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नोबेल पुरस्कार से IIT तक: आखिर औरतें लापता क्यों हैं?

कनाडा की डोना स्ट्रिकलैंड अभी तक केवल तीसरी महिला हैं जिन्हें फिजिक्स के लिए नोबेल पुरस्कार मिला है

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इस साल के नोबेल पुरस्कार खास हैं. इसलिए नहीं कि बड़ी खोज और बड़े विचारों के लिए इन्हें दिया गया है. वह तो नोबेल पुरस्कार के साथ हमेशा होता है, जिसे लेकर प्रशंसा और विवाद भी हर बार होता है. इस बार का नोबल पुरस्कार इस मायने में खास है कि फिजिक्स में नोबल पुरस्कार पाने वालों में लगभग 50 साल बाद फिर से एक महिला का भी नाम है.

लेजर फिजिक्स में असाधारण आविष्कारों के लिए अमेरिका के ऑर्थर अश्किन, फ्रांस के जेरार्ड मोउरोके साथ कनाडा की डोना स्ट्रिकलैंड को नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया है (देखें खबर).

डोना स्ट्रिकलैंड नोबेल प्राइज के इतिहास में फिजिक्स में यह सम्मान पाने वाले तीसरी महिला हैं. इससे पहले 1903 में मैरी क्यूरी को रेडिएशन के आविष्कार और इसके साठ साल बाद मारिआ गोएपार्ट मेयर को परमाणु संरचना में नया आयाम जोड़ने के लिए यह सम्मान मिला था. माउरो और स्ट्रिकलैंड की खोज से आंखों के लेजर से इलाज में बड़ी प्रगति हुई है और इससे लाखों लोगों को फायदा पहुंचा है.

स्ट्रिकलैंड को जब ये बताया गया कि वे नोबेल पाने वाली अब तक की तीसरी भौतिकी विज्ञानी हैं तो उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं था कि इतनी कम महिलाओं को यह सम्मान मिला है. उन्होंने कहा कि विज्ञान की जिस दुनिया में वे रहती हैं, वहां उनके चारों ओर पुरुष ही पुरुष नजर आते हैं. इसलिए उनके लिए यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि आगे चल कर हालात तेजी से बदलेंगे.

वैसे विज्ञान ही नहीं, नोबेल पुरस्कार जिन तमाम क्षेत्रों में दिया जाता हैं, वहां भी कुल मिलाकर महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है. अब तक 854 पुरुषों को नोबेल पुरस्कार मिला है जबकि सिर्फ 54 महिलाओं को यह सम्मान मिला है. लेकिन ज्यादा फर्क विज्ञान के क्षेत्र में है.

विज्ञान खासकर STEM यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स ज्ञान के वे क्षेत्र हैं, जहां महिलाओं की उपस्थिति सिर्फ पुरस्कारों में नहीं, कुल मिलाकर कम है और यह वैश्विक स्तर पर है. पिछले महीने न्यूक्लियर साइंस की दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला यूरोपियन न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर सीईआरएन (सर्न) में हुए एक सेमिनार में इटली के एक प्रोफेसर अलसांद्रो स्त्रुमिया ने यह कह कर हलचल मचा दी कि भौतिकी विज्ञान को पुरुषों ने बनाया है. हालांकि सर्न ने प्रोफेसर स्त्रुमिया से अपनी सदस्यता छीन ली है और 1600 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने उनकी निंदा की है, लेकिन इस बयान ने विज्ञान के क्षेत्र में स्त्री-पुरुष भेद के सवाल को फिर से छेड़ दिया है.

भारत में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का बुरा हाल

भारत की बात करें तो यहां के श्रेष्ठ टेक्नोलॉजी संस्थान माने जाने वाले आईआईटी में छात्राओं की संख्या अब भी 10 परसेंट से कम है. इसे बढ़ाने के लिए इस साल आईआईटी एडमिशन कमेटी ने 779 छात्राओं को अलग से एडमिशन देने का फैसला किया ताकि आईआईटी में छात्राओं की संख्या 14 फीसदी हो जाए. बाकी की दुनिया की तरह भारत में भी विज्ञान के क्षेत्र में छिटपुट महिलाएं ही आ रही हैं और उनका शिखर पर पहुंचनाबहुत ही दुर्लभ है.

भारत में हालांकि बड़े प्रयोग नहीं होते फिर भी विज्ञान के क्षेत्र में जो भी उपलब्धियां होती हैं, उसे सरकार पुरस्कृत करती है. विज्ञान के क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा सम्मान शांति स्वरूप भटनागर अवार्ड है.

2018 में 12 लोगों को ये पुरस्कार मिला, जिसमें सिर्फ एक महिला हैं. उससे पहले के दो साल में किसी भी महिला को ये पुरस्कार नहीं मिला. भारत की विज्ञान और अनुसंधान संस्थानों के प्रमुख पदों पर भी महिलाएं आम तौर पर नहीं होती हैं.

भारत में महिलाओं की विज्ञान ही क्यों ज्ञान के हर क्षेत्र में अनुपस्थिति है. इसके कुछ खास कारण हैं. लेकिन फिलहाल उन वजहों पर बात करते हैं, जिसने पूरी दुनिया में महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में पीछे कर रखा है.

एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर मेरी के. फेनी बताती है कि शुरुआती मुसीबतों के बावजूद जो महिलाए विज्ञान, टेक्नोनॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स के क्षेत्र में आ जाती है, उन्हें आगे बढ़ने से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोका जाता है. उनकी राह में तमाम तरह के रोड़े अटकाए जाते हैं. खासकर जिन क्षेत्रों में महिलाएं काफी कम हैं, वहां उन्हें बाहरी या दिखावे के लिए काम पर रख लिया गया माना जाता है.

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लड़कियां मैथ्स में कमजोर नहीं होतीं

यह धारणा कि महिलाएं गणित और दूसरी गणनाओं में कमजोर होती है, को आंकड़ों के आधार पर खारिज किया जा चुका है. विस्कांसिन यूनिवर्सिटी की मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर जैनेट सिबले हाइड ने 1967 से लेकर 1987 में स्कूलों में छात्र और छात्राओं के मैथ्स के रिजल्ट के आंकड़े जुटाए.

लगभग 30 लाख स्टूडेंट्स के रिजल्ट के विश्लेषण के आधार पर प्रोफेसर हाइड और उनकी टीम ने पाया कि मैथ्स के ज्ञान के मामले में छात्रों और छात्राओं में कोई भेद नहीं है. लेकिन ऊपर की कक्षाओं में जाने पर छात्र मैथ्स में अच्छा करने लगते हैं क्योंकि वे अपने करियर के लिए मैथ्स से जुड़े फील्ड की ओर झुकने लगते हैं.

भारत में भी आप पाएंगे कि स्कूल की परीक्षाओं यहां तक कि दसवीं और बारहवीं तक लड़कियां और लड़के विज्ञान के क्षेत्र में एक जैसा परफॉर्म करते हैं और कई बार तो टॉपर्स में लड़कियां ज्यादा होती हैं. लेकिन आगे चलकर वे पिछड़ जाती हैं.

शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा पारिवारिक ट्रेनिंग और सामाजिक नॉर्म यानी मान्यताओं के कारण होता है. जैसे कि भारतीय परिवारों में यह बताया जाता है कि इंजीनियरिंग की तैयारी सिर्फ लड़कों को करनी चाहिए क्योंकि यह लड़कों का फील्ड है. इसमें समझदारी के अंतर जैसी कोई बात नहीं है. शोधकर्ताओं ने दो और बातें नोट की.

एक, मैथ्स में नंबर पाने के मामले में ऊंची कक्षाओं में भी छात्रों और छात्राओं के बीच अंतर लगातार कम हो रहा है. और दो, जिन देशों में औरत और मर्द के बीच फर्क यानी जेंडर गैप कम है, वहां छात्र और छात्राओं के बीच मैथ्स के नंबर का फर्क भी कम है. यानी मैथ्स में नंबर पाने का का कारण समझदारी का अंतर नहीं, बल्कि माहौल और सामाजिक नजरिए का फर्क है.

परिवार के बोझ में दब जाति हैं स्त्री प्रतिभाएं

साथ ही, यह नहीं भूलना चाहिए कि वैज्ञानिक खोज एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें लंबे समय तक लगातार काम करने की जरूरत होती है. महिला वैज्ञानिकों को अपने करियर के बीच में अकसर प्रसूति अवकाश लेना पड़ता है और बच्चा पालने में भी उनको ज्यादा भूमिका निभानी पड़ती है.

इस कारण घर से दूर जाकर काम करने या कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने में उन्हें दिक्कत होती है. भारत जैसे देशों में तो अन्य पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का ज्यादा बोझ महिलाओं को ही उठाना पड़ता है और उन्हें कई बार करियर को छोड़ना भी पड़ता है.

पश्चिमी देश महिलाओं को लेकर उदार और समानतावादी हैं. लेकिन उन्हें आसानी से मिलने वाली छुट्टी, बच्चा ऑफिस लाने की छूट या समय से पहले घर जाने जैसी सुविधा विज्ञान के कठिन रास्ते पर उनके लिए सकारात्मक बनकर नहीं आती. ये अतिरिक्त सुविधाएं उनके विकास को रोक देती है. यह एक उलझी हुई स्थिति है.

इसलिए जिन देशों में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी है, वहां भी महिलाएं खासकर कर वैज्ञानिक प्रयोगों और उपलब्धियों के मामले में बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है.

अब जबकि महिलाओं और पुरुषों का फासला इस क्षेत्र में भी घट रहा है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि महिलाएं भी विज्ञान के क्षेत्र में नए शोध करेंगी और फिजिक्स के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाने के लिए महिलाओं को अब 50 साल का इंतजार नहीं करना पड़ेगा.

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