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ताकि कोख पर न चले कैंची...

सर्जरी के जरिए आजकल बच्चे को जन्म देना डॉक्टरों में फैशन बन गया है!

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डॉक्टर को धरती का जीता-जागता भगवान माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि ऊपरवाले के बाद दुनिया में एक वही ऐसा है जो जीवन देने और बचाने की क्षमता रखता है. लेकिन दौलत कमाने की लालच ने धरती के तमाम भगवानों को हैवान बना दिया है.

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आज अस्पताल में जैसे ही कोई मरीज भर्ती होता है तो उसे और उसके परिजनों को पैसा देने वाली मशीन समझ लिया जाता है और इलाज के नाम पर मरीज से ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे निकलवाया जा सके, इसके लिए डॉक्टर जुगाड़ में जुट जाते हैं.

पैसे देने वाली ऐसी ही एक मशीन है गर्भवती महिला. आजकल शहरों में ज्यादातर महिलाएं ऑपरेशन के जरिए बच्चों को जन्म दे रही हैं. मेडिकल की भाषा में इसे सिजेरियन बेबी कहा जाता है.

वो जमाना गया, जब गर्भ के अंतिम दिनों में महिलाएं दर्द से कराहती थीं, तड़पतीं थी और फिर उस दर्द को तोहफ़े के तौर पर उनके अंश का जन्म होता था. और उसकी किलकारियों की गूंज से दर्द का हर एहसास छू-मंतर हो जाया करता था.
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सर्जरी के जरिए डिलिवरी डॉक्टरों का फैशन!

आज कोई गर्भवती महिला जैसे ही अस्पताल में भर्ती होती है, महज आधे घंटे के भीतर उसे और उसके परिवार को बच्चे के जन्म की खुशखबरी मिल जाती है. क्योंकि सर्जरी के जरिए आजकल बच्चे को जन्म देना डॉक्टरों में फैशन बन गया है और गर्भवती महिलाएं ऐसे डॉक्टरों की खोज में हैं जो नार्मल तरीके से उनकी डिलिवरी करा सके.

यहां एक और बात गौर करने लायक है कि निजी अस्पतालों में सर्जरी से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या सरकारी अस्पतालों के मुकाबले कहीं ज्यादा है.

मुंबई की सुबर्ना घोष ने Change.org पर सिजेरियन बेबी के मुद्दे पर ऑनलाइन पीटिशन यानी याचिका की शुरुआत की है. अपनी याचिका में सुबर्ना ने खुद को इसका भुगतभोगी बताया है. अब तक देश भर से करीब पौने दो लाख लोग सुबर्ना की याचिका के साथ अपनी सहमति जता चुके हैं.

सुबर्ना चाहती हैं कि

  1. हर निजी और सरकारी अस्पताल में इस बावत पूरी जानकारी मुहैया कराई जाए कि वहां कितने बच्चे सर्जरी से पैदा हुए और कितने सामान्य तरीके से?
  2. जिन महिलाओं की सर्जरी की गई आखिर उसकी जरूरत क्यों पड़ी, इसकी बाकायदा जांच हो.
  3. और सरकार इस बारे में एक गाइडलाइन बनाए कि किन-किन स्थितियों में डॉक्टरों को महिला का ऑपरेशन कर बच्चे को जन्म देने की इजाजत होगी.
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सुबर्ना ने अपनी ये याचिका केंद्रीय महिला और बाल कल्याण विकास मंत्री मेनका गांधी के साथ साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन को भी भेजी है. हालांकि, इस याचिका को कानूनी शक्ल देने के मुद्दे पर अभी कहीं कोई बहस या सुनवाई शुरू नहीं हुई है. हालांकि, मेनका गांधी ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री से इस बारे में हर हफ्ते सभी अस्पतालों से जानकारी जुटाने की गुहार जरूर लगाई है लेकिन अभी ये भी अमल में नहीं लाया गया है.

अस्पतालों में बच्चों के जन्म से जुड़े आंकड़े जुटाने का काम थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं. खुद केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी भी ये मानती हैं कि हर नई पहल की शुरुआत का विरोध होता है लेकिन अगर सरकार सख्ती बरते तो सबको इसका पालन करना ही पड़ता है.

यही वजह है कि मेनका गांधी को इस बात का पूरा भरोसा है कि वो इस नियम को लागू करवाकर ही रहेंगी.

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सर्जरी के जरिए आजकल बच्चे को जन्म देना डॉक्टरों में फैशन बन गया है!
विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो किसी में देश में पैदा होने वाले कुल बच्चों में सिर्फ 10 से 15 फीसदी बच्चे ही सर्जरी से पैदा होने चाहिए. विज्ञान भी नार्मल डिलिवरी की ही वकालत करता है. नॉर्मल डिलिवरी के पक्ष में सबसे बड़ी दलील ये है कि जब सभी स्तनधारी जानवरों के बच्चे प्राकृतिक तौर पर ही पैदा होते है तो फिर इंसान के क्यों नहीं?

इतना ही नहीं सिजेरियन के मुकाबले नार्मल डिलिवरी बाद महिलाओं को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें भी कम आती हैं. बावजूद इसके प्रकृति के सिद्धांत को धता बताते हुए डॉक्टर ज्यादातर मामलों में सर्जरी के जरिए ही बच्चे को जन्म देने की सलाह देते हैं और इसके तमाम फायदे भी गिनाते हैं.

आईसीएमआर स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के आंकड़ों की बात करें तो तेलंगाना में 74.5 फीसदी बच्चे सर्जरी से पैदा हो रहे हैं, केरल में 41 फीसदी बच्चे सिजेरियन पैदा हो रहे है, जबकि तमिलनाडु में ये आंकड़ा 58 फीसदी और हरियाणा में 51 फीसदी है. आंकड़ों के मुताबिक बीते एक दशक में सिजेरियन बेबी का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है.

सर्जरी से बच्चे को जन्म देना मां की सेहत को तो नुकसानदेह है ही, बच्चों के लिए भी खतरा बना रहता है.

  • सिजेरियन बेबी को जन्म देने वाली महिलाएं अक्सर स्तन में दूध नहीं बनने और अपने शिशु को अपना दूध नहीं पिला पाने की शिकायत करती हैं.
  • साथ ही सर्जरी के दौरान शरीर को मिले घाव को भरने में भी वक्त लगाता है.
  • कभी-कभी तो सर्जरी के दौरान ज्यादा रक्त बहाव से महिला की जान पर भी बन आती है.
  • इतनी ही नहीं बच्चों में भी हैमरेज का खतरा ज्यादा रहता है.
  • सर्जरी के दौरान इस्तेमाल होने वाले औजार से भी बच्चे को चोट लगने का खतरा बना रहता है.
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हालांकि, सर्जरी के जरिए बच्चे का जन्म पूरी तरह गलत नहीं है, क्योंकि कई बार स्वास्थ्य वजहों से महिला की सामान्य डिलिवरी नहीं हो पाती. लेकिन ये आरोप भी बेबुनियाद नहीं हैं कि तमाम अस्पताल ज्यादातर सिजेरियन डिलिवरी सिर्फ ज्यादा पैसे बनाने के लिए ही कराते हैं.

बदलते वक्त के साथ बदल रहे रहन-सहन, खाने-पीने की आदतों में बदलाव और भागदौड़ भरी जिंदगी की वजह से महिलाओं में मोटापा, मधुमेह, तनाव और अवसाद जैसी बीमारियां भी बढ़ी हैं, जिसकी वजह से महिलाओं को गर्भ धारण करने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं, आज के दौर महिलाओं के गर्भ धारण करने की औसत उम्र में भी बढ़ोतरी हुई है.

एक दशक पहले तक कामकाजी महिलाएं 25 से 30 साल की उम्र में परिवार बढ़ाने की सोचती थीं लेकिन अब 32 से 40 की उम्र में परिवार बढ़ाने या बच्चे को जन्म देने की सोचती हैं. ऐसे में गर्भवती महिलाओं को कुछ दिक्कतें बढ़ती उम्र की वजह से भी होती हैं.

दूसरी ओर कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो शुभ दिन, तारीख और मुहुर्त के चक्कर में बच्चे के जन्म का वक्त तय कर रहे हैं और इसके लिए सर्जरी की मदद ले रहे हैं. जरुरत है कि सरकार सर्जरी के जरिए बच्चों के जन्म को लेकर एक विस्तृत कानून बनाकर गलत प्रवृत्तियों पर रोक लगाए.

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