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जुगाड़ में माहिर देश में कैसे चलेगा ऑड-ईवन फॉर्मूला?

बोगोटा और बीजिंग में प्रदूषण रोकने में कारगर नुस्खे भारत में भी काम करें, जरूरी नहीं.

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दिल्ली की जहरीली होती हवा में प्रदूषण कम करने की कोशिश के तहत मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 1 जनवरी से दिल्ली में ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू करने की घोषणा की है. इसका अर्थ यह है कि दिल्ली में एक दिन ऑड रजिस्‍ट्रेशन नंबर वाले वाहन चलेंगे, तो अगले दिन ईवन नंबर वाले.

असल मुद्दा है सड़कों पर वाहनों की संख्या कम करके वायु प्रदूषण में कमी लाना. वायु प्रदूषण में कमी लाने का यह तरीका फिलहाल कोलंबियाई शहर बोगोटा में लागू है.

तो फिलहाल दूसरों से उधार लिया ही सही, दिल्ली के पास प्रदूषण कम करने का तरीका तो है. पर अगर कारों पर रोक लगाकर ही वायु प्रदूषण कम हो जाता, तो बाकी शहर भी ऐसा कर लेते.

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क्या यह एक समझदारी भरा उपाय है?

कहीं प्रदूषण पर नियंत्रण की कोशिश का आसान बहाना तो नहीं बन गई हैं कार? शायद हां. प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मिलेनियम से पहले बनी कारें हमारे पर्यावरण के लिए सुरक्षित नहीं थीं. पर आज की तकनीक पर बनी कारें कम से कम प्रदूषण पैदा कर रही हैं. हां, इनकी संख्या जरूर काफी बढ़ी है और इन्हीं समय में दिल्ली में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा है.

ऐसे में इन दोनों चीजों को जोड़कर देखना स्वाभाविक है. पर दिल्ली शायद भूल गई है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के और कारण भी हैं. कोयला जलाने, कूड़ा जलाने और कंस्ट्रक्शन साइट से निकलती धूल से भी प्रदूषण बढ़ता है.

दूसरे देशों से सबक

पूरी तरह प्रतिबंध लगाना तार्किक नहीं है. दिल्ली सरकार को बिना मिलावट का साफ-ईंधन, कंजेशन सेस, डीसेंट्रलाइज्ड मोबिलिटी ऑप्शन (यानी ‘ए’ जगह से ‘बी’ जगह तक जाने के लिए ‘सी’ से होकर न गुजरना पड़े. ‘ए’ और ‘बी’ के बीच सीधा जुड़ाव हो), वर्क फ्रॉम होम ऑप्शन, कार पूल और बिना जांच के वाहनों के प्रयोग को कम कराने को प्रोत्साहन देने जैसे उपायों पर भी सोचना चाहिए था.

इससे एक विस्तृत समाधान तो मिलता ही, एक जनता की सरकार की लोकतांत्रिक छवि भी बरकरार रहती. जनसंख्या और क्षेत्रफल में दिल्ली से छोटे शहर जेनेवा के पास नागरिकों और पर्यटकों के लिए कार के अलावा और भी बेहतर परिवहन के साधन हैं.

जेनेवा का निशुल्क पब्लिक ट्रांसपोर्ट

जेनेवा में एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही आपको एक पब्लिक ट्रांसपोर्ट एटीएम दिखेगा, जिसकी मदद से आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट का निशुल्क इस्तेमाल कर सकते हैं. आप अगले एक घंटे तक किसी भी बस में सफर कर सकते हैं, यहां तक कि बस बदल भी सकते हैं. ये बसें शहर के होटलों और रिहाइशी इलाकों से जुड़ी हुई हैं.

इसी तरह आप जिस होटल में ठहरे हैं, वह आपको एक पास उपलब्ध कराएगा, जिसे आप बसों में इस्तेमाल कर सकते हैं. जाते वक्त भी ऐसे ही पास का इस्तेमाल आप वापस एयरपोर्ट जाने के लिए कर सकते हैं.

सिओल में भी लक्जरी बसें इसी तरह होटलों और एयरपोर्ट को जोड़ती हैं, पर वे शुल्क लेती हैं. इस तरह के उपाय अगर दिल्ली में लागू किए जाएं, तो बहुत सी कारें अपने आप ही कम हो जाएंगी.

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कार की शौकीन दिल्ली

पर दिल्ली में बढ़ रहे टैक्सी कारोबार पर कौन रोक लगाएगा? दिल्ली की टैक्सी का इस्तेमाल करने की आदत पर रोक लगाने के लिए तो अब तक कोई कोशिश नहीं की गई. अकेले यात्री के लिए इस्तेमाल होने वाली इन कारों की संख्या में कमी लाने के लिए या पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली के निजी या सरकारी अधिकारियों ने कुछ किया हो, मुझे तो नहीं लगता.

चलिए इसे दूसरी तरह से देखते हैं. ऑड-ईवन प्लान को लागू करने के साथ-साथ हम दफ्तर से दूर घर में ही काम करने को बढ़ावा क्यों नहीं देते?

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नहीं चलेगा दिल्ली में बगोटा मॉडल

दिल्ली की परेशानी का हल बगोटा की तरह बैन लगाने या बीजिंग की कारों को तरह पूरी तरह बंद कर देने में नहीं है. दिल्ली को अपना हल खुद निकालना होगा. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में निवेश और बेहतर कनेक्टिविटी एक बड़ा कदम हो सकता है. सबसे जरूरी है एयरपोर्ट, होटलों, रेलवे स्टेशनों जैसी जगहों को एक-दूसरे से जोड़ना.

कारों की तादाद में कमी लाने का दूसरा तरीका हो सकता है पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बिल्स का रीइंबर्समेंट. वरना जुगाड़ संस्कृति वाली दिल्ली में ऑड-ईवन का तोड़ निकालने के लिए लोगों का दूसरी कार का जुगाड़ करना मुश्किल नहीं होगा.

या फिर वे टैक्सी की मदद लेने लगेंगे, जिससे उनकी व्यक्तिगत परेशानी तो दूर हो जाएगी, पर प्रदूषण घटाने का उद्देश्य पूरा नहीं होगा.

(डॉ. पीयूष राजन राउत उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के अर्बन प्लानर व अर्बन मैनेजमेंट प्रैक्टिशनर हैं.)

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