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Odisha Assembly Polls: नवीन पटनायक को वीके पांडियन के दबदबे की कीमत चुकानी पड़ेगी?

Odisha Assembly Polls: वीके पांडियन शायद मानते और उम्मीद करते हैं कि अब से 2029 के बीच वह ‘उत्तराधिकारी’ की भूमिका में आ जाएंगे.

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वीके पांडियन, एक दशक से भी ज्यादा समय से सबके पसंदीदा नवीन पटनायक के आंख और कान रहे हैं, जिन्होंने एक प्रमुख राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का ज्योति बसु का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.

नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) ने साल 2000 में जब पहली बार ओडिशा(Odisha) के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उसी साल तमिलनाडु के 26 वर्षीय नौजवान वीके पांडियन (VK Pandian) सिविल सेवा परीक्षा में कामयाबी हासिल कर IAS अफसर बने थे.

मूल रूप से पंजाब कैडर दिए जाने के बाद उन्हें 2002 में ओडिशा लाया गया, जहां उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत, नई सोच और गरीबों की मदद करने के सच्चे इरादे के चलते एक रॉक स्टार जैसा दर्जा हासिल किया.

परदे के पीछे शायद उनकी सबसे बड़ी कामयाबी वह शानदार पहल है, जिससे ओडिशा में हॉकी और दूसरे खेलों को बढ़ावा मिला. इसी वजह से ओडिशा में बहुत से लोग पांडियन की तारीफ करते हैं.

नवंबर 2023 में, उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और सत्तारूढ़ बीजू जनता दल के नेता के तौर पर पूर्णकालिक राजनीति में उतर गए. मौजूदा समय में पांडियन 5T के चेयरमैन हैं. 5T उनकी द्वारा ही लाई गई पहल है, जिसका बड़ा बदलाव देखा गया है. इसे नवीन पटनायक का सार्वजनिक रूप से समर्थन हासिल है.

Odisha Assembly Polls: वीके पांडियन शायद मानते और उम्मीद करते हैं कि अब से 2029 के बीच वह ‘उत्तराधिकारी’ की भूमिका में आ जाएंगे.

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की फाइल फोटो

फोटो: PTI

ओडिशा में ज्यादातर लोगों का मानना है कि वह पांडियन ही हैं, जो असल में ओडिशा में रोजमर्रा के कामकाज संभालते हैं, और बूढ़े व बीमार नवीन पटनायक उनका मौन समर्थन करते हैं. बताया जाता है कि पांडियन, जो 2011 में नवीन पटनायक के निजी सचिव बने थे. राज्य के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों के लिए भी नवीन बाबू तक पहुंच पर कड़ाई से नियंत्रण रखते है.
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ओडिशा के ‘असल’ मुख्यमंत्री

#IndiatoBharat यात्रा में लेखक ने ओडिशा में दर्जनों लोगों से मुलाकात की. उनमें से तकरीबन सभी ने उस तरीके के खिलाफ नाराजगी जाहिर की, जिसमें उन्हें लगता है कि पांडियन ओडिशा के “असल” मुख्यमंत्री बन गए हैं. कुछ लोग इस चीज को खारिज करते हैं जबकि कई उनके प्रति नाराजगी जताते हैं.

शायद, सबसे ज्यादा नाखुश बीजेडी के नेता और कार्यकर्ता हैं, जिन्हें पांडियन की बात इसलिए माननी पड़ती है क्योंकि उन्हें निर्विवाद सुप्रीमो नवीन पटनायक का आशीर्वाद और समर्थन प्राप्त है.

कुछ सालों से सुलग रही नाराजगी 2023 में बाहर आ गई, जब पांडियन ने सरकारी तौर पर अफसर के रूप में काम करते हुए भी एक पूर्णकालिक राजनेता की भी जिम्मेदारी संभाल ली.

नवीन पटनायक ने मार्च 2023 में आधिकारिक तौर पर “मो सरकार” या मेरी सरकार नाम से एक पहल शुरू की, जिसका मकसद राज्य भर के आम नागरिकों से बातचीत कर उनका नजरिया जानना था ताकि राज्य की अनगिनत कल्याणकारी योजनाओं (जो बेहद लोकप्रिय हैं) में और सुधार किया जा सके. आमतौर पर कोई भी उम्मीद करेगा कि यह काम सत्तारूढ़ दल के मंत्री, विधायक और नेता करेंगे.

पर अजीब बात यह हुई कि वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों सहित सभी BJD नेताओं को नौकरशाह के पीछे दूसरे दर्जे की भूमिका निभाने के लिए मजबूर होना पड़ा. पांडियन ने नवीन बाबू की तरफ से राज्य के सभी 30 जिलों और सभी 147 निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा किया, रैलियों और सभाओं को संबोधित किया और अपने गुरु नवीन पटनायक के लिए समर्थन जुटाया. मंच पर कैबिनेट मंत्रियों को बैकग्राउंड में रखा जाता था, क्योंकि पांडियन ने यह साफ कर दिया था कि बॉस कौन है और जनता किसे नीचे से देख रही थी.
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इस घटना के बाद विवादों का तूफान खड़ा हो गया. हालांकि, किसी ने भी सामने आकर शिकायत नहीं की, लेकिन इस बात के साफ इशारे थे कि पार्टी के वरिष्ठ नेता अपमानित महसूस कर रहे थे और कई मीडिया रिपोर्ट इस चलन के बारे में बता रही थीं.

सरकार के समर्थक “ओडिशा के गरीब लोगों और नौजवानों के प्रति समर्पण" के लिए की गई पहल और पांडियन दोनों की तारीफ करते हैं, जबकि कई दूसरे लोगों ने निर्वाचित प्रतिनिधियों की बदकिस्मती की ओर इशारा करते हैं कि वे बेकार बैठे हैं और दूसरे दर्जे की भूमिका निभा रहे हैं जबकि एक अनिर्वाचित नौकरशाह “सुपर चीफ मिनिस्टर” जैसा बर्ताव कर रहा है.

क्या ‘नाखुशगवार अचंभा’ पांडियन का इंतजार कर रहा है?

राष्ट्रीय स्तर पर, BJP और BJD एक-दूसरे की आलोचना नहीं करते हैं, लेकिन BJP के राज्य-स्तर के कई नेता खुलेआम पांडियन को एक अनिर्वाचित तानाशाह कहकर उनकी आलोचना करते हैं, जो “उड़िया” लोगों की भावनाओं के साथ खेल रहा है और “उड़िया” गौरव को नुकसान पहुंचा रहा है. चूंकि प्रदेश की ज्यादातर मीडिया पटनायक सरकार के सामने नतमस्तक है, इसलिए पांडियन के खिलाफ ऐसी नाराजगी की खबरें नियमित रूप से नहीं मिल पाती हैं.

लेकिन ऐसे भी पत्रकार हैं, जो इस सबकी आलोचना करते हैं. राज्य के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार संदीप साहू कहते हैं, “लोकतंत्र में यह अस्वीकार्य है. जब ताकतवर और जाने-माने नेता इस अनिर्वाचित शख्स के सामने झुके नजर आते हैं तो खुलेआम चल रहे इस तमाशे के खिलाफ ज्यादा लोगों को खुलकर सामने आना चाहिए. अफसोस की बात है कि ज्यादातर मीडिया प्लेटफॉर्म और पेशेवरों ने इनसे सुलह कर ली है.”
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लेकिन विवाद की आंधी का असर तो हुआ. पांडियन को IAS से इस्तीफा देकर पूर्णकालिक राजनेता बनने के लिए मजबूर होना पड़ा.

मगर इससे आशंकाएं भी हैं.

पूर्व सांसद कांग्रेस नेता सौम्य रंजन पटनायक, जो निर्विवाद रूप से राज्य में सबसे सफल मीडिया हाउस चलाते हैं. पहले वह BJD में थे और कई सालों तक नवीन पटनायक के घनघोर समर्थक रहे. राज्य की राजनीति में पांडियन की भूमिका पर आलोचनात्मक लेख लिखने के फौरन बाद उनके मीडिया दफ्तरों पर छापा पड़ा. हालांकि, इन्हें अफवाहें भी कहा जा सकता है, लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि उन्हें प्रधान संपादक पद से इस्तीफा देने, खामोश रहने और अपनी बेटी को बागडोर सौंपने के लिए मजबूर किया गया. असल में ऐसा ही हुआ था.

पांडियन न तो लोकसभा और न ही विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि नवीन पटनायक लगातार छठा जनादेश हासिल करेंगे और फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे. हो सकता है कि पांडियन मानते हों और उम्मीद करते हों कि वह अब से 2029 के बीच “उत्तराधिकारी” की भूमिका में सेट हो जाएंगे. मगर लेखक को ऐसा अहसास हुआ कि पांडियन और उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के बीच खड़ा एक नाखुशगवार अचंभा उनका इंतजार कर रहा है.

(सुतानु गुरु CVoter फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इसके लिए जिम्मेदार नहीं है.)

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