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भारत का 'एक देश-एक राशन कार्ड': अहम लेकिन देर से आया सुधार, होंगे कई फायदे

ONORC के आलोचक और समर्थक क्या तर्क देते हैं, क्यों समर्थकों का पलड़ा भारी?

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सुप्रीम कोर्ट ने 29 जून को राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 जुलाई तक वन नेशन, वन राशन कार्ड (One Nation-One Ration Card) योजना लागू करने का आदेश दे दिया. लेकिन आदेश आते ही गरीबों को राशन देने में तकनीक के इस्तेमाल को लेकर गड़बड़ियों का अंदेशा जताया जाने लगा है.

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2011 से ठंडे बस्ते में पड़े आईटी और PDS (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) यानी जनापूर्ति प्रणाली को जोड़ने का काम किया जा रहा था. ये उस समय की बात है जब UIDAI के तत्कालीन चेयरमैन नंदन निलेकनी की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी. इस समिति ने PDS प्रणाली में सुधार लाने के लिए दो चरणों में सुधार के सुझाव दिए थे. पहले चरण के तहत सप्लाई चैन यानी आपूर्ति श्रृंखला में सुधार, जबकि दूसरा फोकस सब्सिडीज़ के डाइरेक्ट ट्रांसफर पर रखा गया था.

टास्क फोर्स ने बताया था कि PDS लाभार्थियों को पेश आनेवाली समस्याओं का कारण बड़े पैमाने पर होनेवाली चोरियां और डाइवर्जन हैं. साथ ही डुप्लिकेट और फर्जी लाभार्थी, गलत तरीके से लाभार्थियों के नाम काटे या जोड़े जाने की समस्या है. इस समस्या से उबरने के लिए टार्क फोर्स ने सुझाव दिया था कि एक नेशनल इन्फॉर्मेशन युटिलिटी या पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम नेटवर्क को खड़ा किया जाए जो PDS को सही तौर से चलाने के लिए मजबूत और अभेद्य सिस्टम के तौर पर उभर सके.

फास्ट-ट्रैकिंग इंटिग्रेटेड पोर्टल में देरी

पैनल के सुझावों के करीब एक दशक के बाद, कोरोना के प्रकोप और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार अब इस पर काम कर रही है.

लेकिन रणनीतिक तौर पर टास्क फोर्स ने कमजोर यूपीए सरकार को राशन के स्थान पर सब्सिडी के डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) की सिफारिश कर गलती कर दी, और शत्रुतापूर्ण राजनीतिक अर्थव्यवस्था के चलते रिपोर्ट को जल्दबाजी में दबा दिया गया. मोदी सरकार ने आधार कार्ड केंद्रित कई सुधार किए. लेकिन GST नेटवर्क की तर्ज पर PDS प्रणाली को मजबूत करने के लिए सुविधाजनक आईटी एजेंसी या NIU को तैयार नहीं कर पाई.

इन हाउस एजेंसी NIC को जुड़वा पोर्टल बनाने में दिक्कत हुई. एक IM-PDS जो एक राज्य से ज्यादा राज्यों में राशन के वितरण को दर्ज कर सके और दूसरा अन्नवितरण जो राज्य के अंदर राशन के वितरण को दर्ज कर सके.

28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के 5.46 लाख उचित मूल्य दुकानें (FPS), 23.63 करोड़ राशन कार्ड होल्डर्स, 81 करोड़ व्यक्तिगत लाभार्थियों के मैनुअल सिस्टम की डिजिटिल बनानाएक चुनौती भरा काम था, खासकर कम सरकारी क्षमता के साथ

लाभार्थी डेटा को डिजिटल करने, राष्ट्रीय नंबरिंग योजना को अपनाने और लाभार्थियों के आधार नंबरों को उनके राशन कार्ड से जोड़ने के बड़े काम को करने के लिए मिशन मोड में आने की जरूरत थी. हैरानी की बात यह है कि अपने तेज-तर्रार फैसलों के लिए पहचानी जानेवाली मोदी सरकार जून 2019 में इस जुटी, जब योजना का नाम वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) कर दिया.

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"ONORC कोरोना के दौरान जान बचा सकता था"

योजना के समर्थकों का मानना है कि अगर न नेशन वन राशन कार्ड की सुविधा लॉकडाऊन के दौरान होती, तो प्रवासी कामगार, दिहाड़ी मजदूर, शहरी गरीब, कचरा बीनने वाले, सड़क पर रहने वाले बच्चे, घरेलू कामगार और जरूरतमंद लोग भूखे नहीं रहते. अपने गांवों में विशेष PDS आउटलेट से बंधे होने के बजाय, वे अपने निवास स्थान पर किसी भी ई-प्वाइंट ऑफ सेल (POS) सक्षम FPS से राशन पा सकते थे.

वहीं दूसरी ओर आलोचक, जैसे ज्यां द्रेज़ और रीतिका चोपड़ा PDS की बारहमासी समस्याओं को दूर करने के लिए टेक्नोलॉजी की सीमाओं को उजागर करते हैं. इसमें सबसे ज्यादा तकलीफदेह बच्चों के नाम सूची से गायब होना है, जिन्हें प्रति परिवार एक शख्स के तौर पर देखा जाता है. FPS डीलर्स यहीं कैंची चलाकर लोगों का हक मारते हैं.

अनपढ़ और भोली भाली जनता को आईटी युक्त प्रणाली के साथ प्रमाणीकरण और वितरण से अलग रखकर ज्यादा शुल्क वसूल कर ठगा जाता है. साथ ही खराब कनेक्टिविटी, प्रमाणीकरण विफलता, PoS उपकरणों का खराब होना, आधार और राशन कार्ड नंबरों के बीच बेमेल, POS उपकरणों का उपयोग करने के लिए FPS डीलरों का अपर्याप्त प्रशिक्षण और ऑनलाइन लेनदेन की उच्च लेनदेन लागत जैसे तर्क दिए जा रहे हैं.

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"धोखाधड़ी को कम और सेवा को बेहतर कर सकता है ONORC"

इंटेलिजेंट टेक्नोलॉजी के अलावा, ONORC सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कारगर बनाने के लिए पसंद, प्रतिस्पर्धा और प्रोत्साहन का लाभ उठाता है. PDS डेटाबेस के दोहराव को दूर करने के लिए आधार का इस्तेमाल पहचान की धोखाधड़ी की समस्या को दूर करता है. फेयर प्राइस शॉप के चंगुल से छूटने से लाभार्थी की सौदेबाजी की शक्ति में सुधार होता है और दिए जानेवाले अनाज की मात्रा में धोखाधड़ी कम होती है. यह FPS के बीच प्रतिस्पर्धा भी पैदा करता है और उन्हें ग्राहकों के लिए अनुकूल बनाता है.

एक पारदर्शी सिस्टम फ्रॉड होने स्थिति में जवाबदेही तय करता है. बड़े पैमाने पर डेटा जेनरेट करता है, जो मैनुअल सिस्टम में संभव नहीं. ऐसे सिस्टम में लोग शिकायतें भी आसानी से दर्ज करा सकते हैं.
इसी तरह ये कमजोर बायोमेट्रिक्स वाले बुजुर्ग और हाथ से काम करने वाले मजदूरों को मोबाइल फोन पर वन-टाइम पासवर्ड का उपयोग करके प्रमाणित करने की सुविधा देता है.

ऑटोमेटेड पेपर रसीदें लेनदेन का रिकॉर्ड रखने के साथ लाभार्थियों को उनके अधिकारों के बारे में भी जानकारी देती है. सुने जा सकनेवाले वॉइस मैसेजेस अनपढ़ लोगों को भी हर लेनदेन की जानकारी देते हैं. परिवार से अलग होने पर भी परिवार के सदस्यों को एक ही जगह से राशन लेने के नियम से छुटकारा दिलाते हुए किसी भी पॉइन्ट से राशन लेने की सुविधा दिलाती है

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शुरुआती संकेत जनता का समर्थन दिखाती है

केंद्र सरकार इस योजना को लागू करने के लिए राज्यों को अतिरिक्त उधार अधिकार के साथ प्रोत्साहित कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की नाराजी झेल रहे असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल को छोड़ सारे राज्यों ने इसे स्वीकार किया है. 5.46 लाख FPS में से 4.74 लाख FPS ने e-POS उपकरणों को लगा लिया है. अगस्त 2019 में अपनाए जाने के बाद से हर महीने 1.35 करोड़ और कुल मिलाकर 27.83 करोड़ लोगों ने नए सिस्टम से राशन लिया है.ये बताता है कि लोग इसे अपना रहे हैं.

खास बात ये है कि अप्रैल 2020 से मई 2021 तक के कोविड काल के दौरान ही इसके तहत 19.8 करोड़ लोगों ने इसके जरिए राशन लिया है. जिलों के बीच और भीतर के लेन देन और भी उत्साहजनक हैं, जो बताते हैं कि लाभार्थियों इसे पसंद कर रहे हैं.

अंत में एक बार फिर निलेकणी टास्क फोर्स की बात करें तो, गहरे सुधार की प्रक्रिया तैयार हो रही है. जिसके तहत पहले चरण में टेक्नोलॉजी सशक्त PDS प्रणाली ही दूसरे चरण के DBT कार्यक्रम का आधार साबित होगी.

(लेखक वित्त मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव हैं. यह एक ओपिनियन लेख है.यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है )

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