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प्राइवेट स्‍कूल के जरूरतमंद बच्‍चे सरकारी योजनाओं से अछूते क्‍यों?

प्राइवेट स्‍कूलों में EWS कैटेगरी से दाखिला लेने वालों के साथ किन-किन स्‍तरों पर होता है भेदभाव?

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सरकार ने स्‍कूलों तक बच्‍चों को लाने के लिए जिन बड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाया, उनमें मिड-डे मील सबसे अहम है. पर अब मिड-डे मील और इस जैसी अन्‍य योजना को लेकर कुछ गंभीर सवाल उठ रहे हैं.

दरअसल, सरकारी स्‍कूल के बच्‍चों को जिन योजनाओं का फायदा मिलता है, प्राइवेट स्‍कूल के बच्‍चे उससे साफ वंचित रह जाते हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं यह प्राइवेट स्‍कूलों में आर्थि‍क रूप से कमजोर तबके (EWS) वाली कैटेगरी से दाखिला लेने वालों के साथ भेदभाव तो नहीं है?

बच्‍चों के अधिकारों को लेकर बने एक सरकारी आयोग ने इस बारे में हाल ही में आवाज उठाई है. आयोग ने मांग की है कि प्राइवेट स्‍कूलों में पढ़ने वाले जरूरतमंद बच्‍चों को भी मिड-डे मील का लाभ मिलना चाहिए. आयोग का मानना है कि अगर वैसे बच्‍चे योजना के लाभ से वंचित रहते हैं, तो यह उनके साथ भेदभाव है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2013-14 के दौरान 11.58 लाख सरकारी स्‍कूलों के 10.45 करोड़ बच्‍चे मिड-डे मील योजना के तहत कवर थे.

लक्ष्‍य से भटक रही है योजना!

‘नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्‍शन ऑफ चाइल्‍ड राइट्स’ (एनसीपीसीआर) ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्‍मृति ईरानी को चिट्ठी लिखकर इस बारे में ध्‍यान दिलाया.

कमीशन ने अपनी स्‍टडी में पाया कि प्राइवेट स्‍कूलों में एडमिशन लेने वाले बच्‍चों का मिड-डे मील योजना से वंचित रहना दो स्‍तरों पर गलत है.

एक तो इन बच्‍चों में पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं हो पाती. दूसरे, बच्‍चों और उनके परिजनों को स्‍कूल भेजने के लिए जरूरी प्रोत्‍साहन नहीं मिल पाता.

इन स्‍तरों पर भी है भेदभाव

जरूरतमंद बच्‍चों से भेदभाव यहीं नहीं थमता. एनसीपीसीआर ने दिल्‍ली के कुछ बड़े प्राइवेट स्‍कूलों में ईडब्‍ल्‍यूएस कैटेगरी से दाखिला पाने वाले छात्रों से दूसरे स्‍तरों पर भी भेदभाव किए जाने की शिकायत की है. आयोग का कहना है कि इस कैटेगरी से जिन 25 फीसदी बच्‍चों का एडमिशन लिया जाता है, उनमें कई फर्जी हो सकते हैं. इस तरह एडमिशन के स्‍तर पर जरूरतमंद बच्‍चों का हक मारा जा रहा है.

इतना ही नहीं, कुछ स्‍कूलों में इन बच्‍चों को अलग बिल्‍ड‍िंग में पढ़ाए जाने की भी शिकायत सामने आई है. दिल्‍ली में करीब 1700 प्राइवेट स्‍कूल हैं. आयोग ने इन स्‍कूलों से 5 साल का लेखा-जोखा मांगा है, ताकि सच्‍चाई सामने आ सके.

यूनिफॉर्म और स्‍कॉलरशिप का क्‍या?

सवाल और भी हैं. प्राइवेट स्‍कूल में पढ़ने वाले जरूरतमंद बच्‍चे उस रकम से भी वंचित रह जाते हैं, जो सरकार स्‍कॉलरशिप और यूनिफॉर्म के लिए सरकारी स्‍कूल में पढ़ने वाले बच्‍चों को देती है.

बहरहाल, उम्‍मीद की जानी चाहिए कि हर स्‍तर पर शिक्षा की गुणवत्ता और बुनियादी ढांचे में सुधार करने को आतुर दिख रही मोदी सरकार इन जरूरी मसलों पर गौर करेगी. अगर सचमुच ऐसा होता है, तो यह निश्‍चित तौर पर एक क्रांतिकारी कदम होगा.

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