ADVERTISEMENTREMOVE AD

इमरान ने ऐसी बेवकूफी क्यों की जिससे सरकार चली गई और जो मौत की सजा दिला सकती है

सुप्रीम कोर्ट ने इमरान के मामले के साथ दो दिन जो किया उससे आखिरी फैसला क्या आएगा, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

पाकिस्तान (Pakistan) में रविवार को जो हुआ वो कुछ ऐसा था-उसमें एक व्यक्ति टावर की छत पर खड़ा है और उसे भीड़ धक्का देने वाली है, लेकिन एकदम से वो खुद ही कूद जाता है और तब कहता है, देखो मैंने तुम्हें चकमा दिया. हालांकि जो व्यक्ति कूदा इससे उसकी मौत नहीं हुई, बल्कि उसने संविधान की हत्या की और इसने देश को एक संवैधानिक संकट के बीच लाकर खड़ा कर दिया, जहां उसके पास कोई सरकार या संसद नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जिस दिन इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होनी थी, ये साफ था कि उन्हें मुंहतोड़ हार का सामना करना पड़ेगा. संयुक्त विपक्ष के पास 199 वोट थे और सरकार के पास मुश्किल से 70 सदस्य थे.

जो एक सरप्राइज या ट्रम्प कार्ड वो हफ्तों से दिखाने की कोशिश कर रहे थे, वो पूरे सदन को ही बर्बाद करने की उनकी मंशा निकली.

तीन बड़े उल्लंघन

इमरान खान सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिश का जिक्र करते हुए, जिसका कोई छोटा सा भी प्रमाण नहीं है, नव नियुक्त कानून मंत्री फवाद चौधरी ने डिप्टी स्पीकर से कहा कि वो अविश्वास प्रस्ताव को रद्द कर दें.

इसके बाद साफ तौर पर एक असंवैधानिक और हैरान करने वाला कदम उठाते हुए डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने आसानी से प्रस्ताव को रद्द कर दिया. वोटिंग नहीं हुई और विपक्ष को कोई मौका नहीं दिया गया कि वो अपनी बात रख सके. डिप्टी स्पीकर ने स्पीकर असद कैसर की जगह पर पहले से तैयार किया एक स्टेटमेंट पढ़ा और सत्र को स्थगित कर दिया.

यहां बता दें कि डिप्टी स्पीकर के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं थी कि वो वोटिंग के बिना प्रस्ताव को रद्द कर सकें या असेंबली को स्थगित कर सकें क्योंकि स्पीकर पहले ही अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं जिसे अगर आगे बढ़ाया जाता है तो इस पर सात दिनों के अंदर वोटिंग होनी होती है और इन सात दिनों तक सत्र स्थगित नहीं किया जा सकता.

ये देश के संविधान पर एक सुनियोजित हमला है और प्रजातांत्रिक प्रक्रिया को विफल करना है. पाकिस्तान के लोकतंत्र पर ये हमला उससे भी ज्यादा गंभीर और प्रबल है, जैसा साल 2018 में चुनावी सेंधमारी के दौरान किया गया था.

इसके बाद इमरान खान टीवी पर आए और उन्होंने साजिश को हराने के लिए आवाम को बधाई दी. उन्होंने असेंबली के विघटन की घोषणा की और इसके कुछ ही देर बाद राष्ट्रपति अल्वी ने विघटन की घोषणा कर दी.

संविधान के तीन गंभीर उल्लंघन- पहले डिप्टी स्पीकर, फिर प्रधानमंत्री और फिर राष्ट्रपति द्वारा. इसने विपक्ष और जनता को चौंका दिया. पाकिस्तान में न अब कानून का राज है और न सरकार.

विपक्ष ने संसद में धरना दिया और PMLN के अयाज सादिक के नेतृत्व में वोटों की काउंटिंग की गई, जिसके बाद विपक्ष ने ऐलान किया कि उसके पास बहुमत है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में भी इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया कि डिप्टी स्पीकर के कदम को असंवैधानिक करार दिया जाए.

इमरान खान के तर्कहीन कदम

एक चौंकाने वाला सवाल जो यहां पैदा हो रहा है, वो ये कि अगर इमरान खान को असेंबली का विघटन करना था और देश में नए सिरे से चुनाव होने हैं, तो ये काम उन्होंने कानूनी तरीके से अपने खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश होने से पहले क्यों नहीं किया?

एक शासनात्मक शक्ति जो उन्होंने अपने पास रखी वो ये कि अविश्वास प्रस्ताव टल जाने के बाद असेंबली को विघटित कर दिया जाए.

दूसरा चकराने वाला सवाल ये है कि क्या उन्हें पता था कि वो हार चुके हैं? क्यों उन्होंने वोटिंग के साथ न जाकर इसके बदले एकदम अलग हटकर संविधान का उल्लंघन करते हुए अपनी सरकार का अंत कर दिया.

क्योंकि, इनमें से कोई भी काम तर्कसंगत और विवेकपूर्ण नहीं था और संविधान के आर्टिकल 6 के तहत इसके लिए मौत की सजा का प्रावधान है. इमरान खान ने जो कदम उठाया वो साफ तौर पर अहंकार, अक्खड़पन, कानून और संविधान की अवमाननना, क्रोध और प्रतिशोध का मिलाजुला रूप है.

लेकिन दूसरी तरफ, कोई भी मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति मौत की सजा नहीं पाना चाहेगा. तो दो टूक तरीके से साफ है कि इन सभी व्यक्तियों को कोई सुरक्षा दे रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रधानमंत्री पागल हो गए हैं लेकिन क्या डिप्टी स्पीकर और राष्ट्रपति का भी दिमाग का काम नहीं कर रहा? ऐसा नहीं हो सकता. आमतौर पर संविधान का उल्लंघन सत्ता को हथियाने या गैरकानूनी तरीके से सत्ता में बने रहने के लिए किया जाता है, इसे खोने या अपनी ही सरकार के विघटन के लिए नहीं.

यहां भी असली मंशा यही नजर आती है - किसी भी तरह से सत्ता में बने रहना. सभी संकेत इस ओर इशारा करते हैं. आरिफ अल्वी ने पहले ही इमरान खान से कहा कि वो प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं जब तक कि एक कार्यवाहक को लेकर कोई निर्णय नहीं हो जाता. इमरान खान के पूर्व कैबिनेट सदस्य ये घोषणा कर रहे हैं कि अगले चुनाव में वोटिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के जरिए होगी और विदेशों में रह रहे पाकिस्तानी भी वोट दे पाएंगे.

कार्यवाहक प्रधानमंत्री का नाम तय करने के लिए विपक्ष के नेता शाहबाज शरीफ को नामित व्यक्तियों के नाम भेजे जा चुके हैं. वहीं असेंबली को पीटीआई के अनुसार विघटित कर दिया गया और पूर्व कैबिनेट मंत्रियों ने पहले ही घोषणा कर दी है कि अगर शाहबाज शरीफ इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनते, तो कार्यवाहक प्रधानमंत्री, इमरान खान की पसंद का होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक सुनियोजित चुनावी सेंधमारी

तो ये पूरी योजना ऐसी लगती है कि एक बार फिर चुनावी सेंधमारी की तैयारी की जा रही है, पूरे सिस्टम को अपने हाथ में लेकर और ऐसे सभी नियंत्रणों और संतुलनों को खत्म करके जिसका इस्तेमाल विपक्ष कर सकता है.

अब सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर थीं, जो ये फैसला सुनाती कि क्या सूरी का फैसला गैरकानूनी है.

फुल कोर्ट के बजाय अदालत तीन सदस्यीय बेंच के साथ शुरू हुई और रविवार को 5 घंटों के लिए इसमें देरी हुई, इसके बाद तुरंत संकट का हल न ढूंढकर कोर्ट को स्थगित कर दिया गया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंतिम फैसला क्या होगा?

इसके बाद सोमवार को भी बेकार के सवालों और टिप्पणियों के बाद सुनवाई स्थगित कर दी गई.

सुप्रीम कोर्ट अगर इस मामले में ईमानदारी से फैसला सुनाती है तो अपने पिछले कई पापों को धो सकती है. उसके सामने जो मामला है, वो आसान केस है, जिसके बारे में देश का हर संविधान विशेषज्ञ कह रहा है.

पाकिस्तान के कानूनी इतिहास का एक अनूठा पहलू रहा है, जिसे कभी नहीं भूला जा सकता.

थोड़ा पीछे जाकर देखें जो ब्रिटेन में द टाइम्स में क्या लिखा गया था, जब पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट जनरल परवेज मुशर्रफ के केस की सुनवाई कर रहा था कि वो यूनिफॉर्म में रहते हुए चुनाव लड़ सकते हैं.

इसमें बेंच के कम से कम तीन सदस्यों को उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य का ऐसा वीडियो दिखाया गया, जिससे फैसला पक्ष में आ सके

उस वक्त द टाइम्स में लिखा गया था, आईएसआई लड़कियां भेज रहा था और जज बिना ये जाने कि उनकी रिकॉर्डिंग हो रही है, अय्याशी कर रहे थे. ''अब उनके पास कई जजों के ऐसे वीडियो हैं''- एक सोर्स ने उस वक्त द टाइम्स को ये बताया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

न्यायपालिका का दागदार इतिहास

इस बेंच के एक जज नवंबर 2007 में जस्टिस जावेद इक़बाल ही थे, जबरन गायब किए गए लोगों पर बनाए गए कमीशन के प्रमुख थे और उन पर गायब हुए लोगों की महिला रिश्तेदारों ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे

ये वही व्यक्ति हैं जो तब National Accountability Bureau (NAB) के प्रमुख बने और जब उन्होंने पीटीआई की सरकार में भ्रष्टाचार को लेकर कुछ कहा तो इमरान खान सरकार ने उनका एक अश्लील वीडियो लीक कर दिया था. तब से वह कठपुतली की तरह विपक्ष के नेताओं को झूठे आरोपों और गैरकानूनी तरीकों से जेल में रख रहे हैं.

एनएबी कोर्ट के जज अरशद मलिक जिनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई, उन्होंने भी ये बात स्वीकार की थी कि उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दोषी ठहराने के लिए एक वीडियो को लेकर ब्लैकमेल किया गया.

पाकिस्तान के साथ ये त्रासदी रही है कि उसकी नियति ऐसे ही लोगों के वीडियो से बहुत हद तक आकार लेती रही है, जो सत्ता के गलियारों में ऐसे ही आकर बैठे हैं, बिना किसी दूरदृष्टि, जानकारी या मूल्यों के.

क्या सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर एक अंसैवधानिक फैसला देगा? ऐसा हुआ तो हमारे पास पर्याप्त कारण हैं ये समझने के लिए ऐसा क्यों हुआ?

(गुल बुखारी, पाकिस्तानी पत्रकार और मनवाधिकारों के लिए काम करने वाली एक्टिविस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @GulBukhari है. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×