रेड जोन (Red Zone) में हंगामा मचा हुआ है. यह इस्लामाबाद (Islamabad) का वह इलाका है, जहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री रहते हैं. सरकारी दफ्तर स्थित हैं. जब से पेशेवर क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान (Imran Khan) सड़क के बादशाह बने हैं, कोई नहीं कह सकता कि क्या होने वाला है. इमरान खान आजादी मार्च (Azadi March) निकाल रहे हैं और उनके मुरीद आखिरी सांस तक उनके नक्शेकदम पर चलने के तैयार हैं, और जहां तक नजर आता है, शायद अगले चुनाव तक.
हालात बेकाबू हो रहे हैं और पाकिस्तान में आम सहमति से प्रधानमंत्री बने शहबाज शरीफ की स्थिति डांवाडोल है. सबकी जुबान पर एक ही सवाल है, हमेशा की तरह, कि क्या खाकी वर्दी वाले कमान संभाल लेंगे? ऐसा नहीं है कि इन हालात में वे कुछ कर सकते हैं. लेकिन यह हालाता उनके हाथों से निकल सकते हैं.
पाकिस्तान के अपदस्थ प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके मुरीदों के आजादी मार्च से हालात बेकाबू हो रहे हैं. सबकी जुबान पर एक ही सवाल है, क्या सेना मोर्चा संभाल लेगी?
इमरान खान की रणनीति यह है कि इससे पहले की उन्हें बाकी नेताओं की सी नियति का सामना करना पड़े, उनके इर्द-गिर्द जमा भीड़ छंट जाए, उससे पहले पाकिस्तान में आम चुनाव हो जाएं. उन्होंने अल्टीमेटम दिया है कि देश में छह दिनों में चुनाव कराए जाएं.
अगर छह दिनों में अराजकता फैल जाती है तो सेना के पास, कमान संभालने के अलावा कोई चारा नहीं होगा. कोई नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान में सब कुछ सत्यानाश हो जाए- कम से कम सेना तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी.
किंग खान की रणनीति
इमरान खान को जिस तरह अविश्वास प्रस्ताव के जरिए अपमानजनक तरीके से संसद के बाहर किया गया था, उस हरकत से किसी का भी मनोबल टूट सकता था. लेकिन इमरान के साथ ऐसा नहीं हुआ. बदलने की आग में धधकते वह सड़क पर उतर आए. साजिश रचने की वही पुरानी कहानी दोहराते जोकि किसी भी पाकिस्तानी के स्वाभिमान के बर्दाश्त के बाहर होगा.
सीएनएन को दिए गए इंटरव्यू में भी इमरान ने यही राग अलापा था. इसे अमेरिकी साजिश बताया था और उतावलेपन में यह भी कहा था कि अमेरिका के विदेश सचिव डोनाल्ड लू उनके ‘अहंकार’ और ‘बुरे बर्ताव’ की वजह से बर्खास्त किया जाए. उन्होंने आरोप लगाया था कि लू ने पाकिस्तान के राजदूत से यह मांग की थी कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को हटाया जाए.
लेकिन इसके बावजूद कि उन्होंने कहा था कि यह 7 मार्च को हुआ था, अविश्वास प्रस्ताव दायर किए जाने से एक दिन पहले, लेकिन वह इस बात का जवाब नहीं दे पाए थे कि उन्होंने बिदाई के ऐन पहले जिक्र क्यों किया, उससे पहले क्यों नहीं. यह सच्चाई थी जिसकी तरफ टीवी एंकर का ध्यान चला गया था.
लेकिन उनकी बात पर भरोसा किया गया
लेकिन बात यह है कि उनकी बात पर भरोसा कर लिया गया है. उनके सभी जलसों में भारी भीड़ जुट रही है, और इस्लामाबाद की तरफ उनके मार्च में लोग बड़ी संख्या में जमा हो गए. वे सड़कों पर पथराव कर रहे हैं. और सिर्फ साजिश के आरोप के चलते गुस्सा नहीं भड़क रहा. इमरान के दूसरे आरोपों में भी दम है. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सहित कैबिनेट के 60 फीसद मंत्री भ्रष्टाचार के मामलों में जमानत याफ्ता हैं.
आखिरकार, उन पर लगे आरोपों के बारे में सभी जानते हैं. इनमें नवाज शरीफ भी शामिल हैं जो झूठे मेडिकल इश्यूज़ की दुहाई देकर इंग्लैंड में सेहतमंद और बेफिक्र बैठे हैं.
तब ‘प्रशासन’ (यानी सेना) इस बात पर आग बबूला हो गया क्योंकि शरीफ बंधु उसकी परवाह किए बिना, भारत के साथ संबंध अच्छे करने में लगे थे. ऐसे में प्रशासन ने यह पूरी कोशिश की कि देश के बच्चे-बच्चे को शरीफ बंधुओं के खिलाफ लगे आरोपों का पता चल जाए. इसके लिए ढेरों टेलीविजन चर्चाएं की गईं और इस बात को पक्का किया गया कि उन पर लगे अरबों रुपए के आरोपों के बारे में हर खासो-आम को पता चल जाए. जब आम जनता महंगाई, बिजली कटौती और अवसाद से जूझ रही हो तो ऐसे आरोप कितना जबरदस्त आक्रोश भड़का सकते हैं.
अब तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है. लेकिन यह काल्पनिक सच बन गया. अब वह सब रिवर्स गियर में है. सेना कम से कम इमरान को तो नहीं चाहती. उनकी अस्थिरता (वह असल में ‘यू टर्न मैन’ हैं), इंटर सर्विसेज़ इंटिलेंज (आईएसआई) के प्रमुख की नियुक्ति पर सार्वजनिक टकराव और पहले सऊदी अरब और अब अमेरिका को दुश्मन बनाने के चलते.
क्या इमरान लौटेंगे
शुरुआत से ही इस्लामाबाद तभी कोई फैसला लेता है, जब उसे ‘हुकूमत’ की हरी झंडी मिलती है. ऐसा लगता है कि इस बार स्थिति बदल गई. जैसा कि सूत्रों का कहना है, इसके बावजूद कि सरकार ने नवाज की सलाह के बाद पीटीआई को मार्च निकालने की इजाज़त दे दी थी.
सुरक्षा बलों की बजाय सेना को रेड ज़ोन की हिफ़ाजत के लिए बुला लिया गया. हंगामा मच गया और सभी ने प्रदर्शन के लोकतांत्रिक अधिकार को कुचलने की आलोचना की. यहां तक कि टेलीविजन चैनलों ने इस हंगामे को रिकॉर्ड तक किया.
इमरान जिन पर इस बात का आरोप था कि उन्होंने पद पर रहते हुए सब कुछ बर्बाद किया, अचानक देश के ‘मसीहा’ हो गए, यहां तक कि सोशल मीडिया उनके समर्थन में आ गया और उनके जुलूस में भारी भीड़ की तस्वीरें भी शेयर की गईं.
सड़क पर भड़की हिंसा से कौन परेशान नहीं होगा, इसीलिए इमरान खान ने धरना वापस ले लिया. हालांकि उनके समर्थकों को कुछ हैरानी हुई. तब तक पीटीआई के पांच कार्यकर्ताओं की मौत हो चुकी थी. इमरान खान ने चुनाव कराने के लिए छह दिनों का अल्टीमेटम दिया और ‘पूरे देश’ के साथ वापस आने का वादा किया.
यह बढ़ा-चढ़ाकर की गई बात नहीं थी. वह लौटेंगे. और शहबाज शरीफ के लिए क्या बचा था- देश के नाम एक संदेश में एक वादा, और संसद में बहादुर की तरफ मौजूद रहना. लेकिन यह काफी नहीं है.
असल ताकत चुनावों में दिखनी चाहिए
इमरान की रणनीति खुद को सरल दिखाना है. वह चाहते हैं कि देश में तुरंत चुनाव हों, इससे पहले की उनकी नियति भी पाकिस्तान के दूसरे नेताओं जैसी हो- उनके आस-पास की भीड़ छंटने लगे. उन्हें हंगामा भी खड़ा करते रहना है जिससे आर्थिक संकट आने पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) सरकार को बेल आउट करने से हिचकिचाए. उन्होंने सेना के परिवारों को उनके विरोध मार्च में हिस्सा लेने का न्यौता दिया और ऐसा लगता है कि उन्हें सेना के भीतर से कुछ समर्थन हासिल है.
अनुभवी पर्यवेक्षकों का मानना है कि सेना- या इसका एक हिस्सा- शायद इमरान का समर्थन कर रही है और सरकार पर बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधारों के लिए दबाव डालना चाहती है. ऐसा लगता है कि वह काफी बदनाम है.
शायद ही कोई होगा जो शरीफ या भुट्टो में से किसी को वोट देना चाहेगा. सेना को ऐसा लगता है कि गठबंधन सरकार के कुछ धड़ों को लंदन से नवाज शरीफ अपनी उंगलियों पर नचा रहे हैं, जो इमरान खान से भी बदतर हैं.
इमरान कम से कम पाकिस्तान में रहने का साहस तो रखते हैं. इसके अलावा वह ईमानदार हैं. कोई भी उनके खिलाफ व्यक्तिगत भ्रष्टाचार का मामला नहीं बना सकता.
भारत को इमरान खान की बातों पर खुश नहीं हो जाना चाहिए
किसी भी मामले में, विकल्प खतरनाक है. अगर छह दिनों में अराजकता फैल जाती है, तो सेना के पास कमान संभालने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता. कोई नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान में अव्यवस्था फैल जाए, कम से कम सेना तो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी. यही कारण है कि नवाज शरीफ ने अविश्वास प्रस्ताव के संबंध में चेतावनी दी थी. नवाज शरीफ सही थे. सड़कों पर भगदड़ मचे, इससे बेहतर था कि इमरान का पतन खुद ब खुद हो जाता.
इस बीच भारतीय मीडिया को इस बात पर खुश नहीं होना चाहिए कि इमरान खान ने स्वतंत्र विदेश नीति और ईंधन की कीमतों में कमी को लेकर मोदी सरकार की तारीफ की है. वह बस इतना करने की कोशिश कर रहे हैं कि रूस के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व वाले अभियान में भारत को एक विद्रोही के रूप में सुर्खियों में लाया जाए.
जो करना था, कर दिया गया है. इमरान जानते हैं कि किस पर दांव लगाना है. इस लेख को लिखते समय, चीजें केवल बदतर हो सकती हैं. आखिर इमरान फिर से प्रधानमंत्री बन सकते हैं. देश ने बेहतर ढंग से अपनी कमर कस ली है, भले ही वह खाकी वर्दीवाले ही क्यों न हो.
(डॉ. तारा कार्था Institute of Peace and Conflict Studies (IPCS) में एक प्रतिष्ठित फेलो हैं. उनका ट्विटर हैंडल @kartha_tara है. ये ओपिनियन आर्टिकल है और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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