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Pathaan से 'मद्रास कैफे' तक जॉन अब्राहम के 'जिस्म' का जंतर-मंतर

Pathaan में जॉन जब दीपिका पादुकोण के साथ स्क्रीन शेयर करते हैं, उनसे ज्यादा लुभावने लगते हैं

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Pathaan से 'मद्रास कैफे' तक जॉन अब्राहम के 'जिस्म' का जंतर-मंतर
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कुछ लोगों ने इस साल को पठान (Pathaan) का साल कह दिया है. लेकिन मेरे ख्याल से, यह साल 50वीं सालगिरह का साल है. मुझे जो भी पुरुष दिलकश लगते हैं, और जिन्हें मैंने दिल ही दिल में चाहा है, वे सभी इस साल 50 के हो रहे हैं- बेन एफ्लेक, इदरिस एल्बा, जूड लॉ, जीन दुजार्दिन, अर्जुन रामपाल और जॉन अब्राहम. इनमें से हरेक की जिंदगी खुशहाल और सनसनीखेज है. बेन एफ्लेक जेनिफर लोपेज की बांहों में हैं, और जॉन अब्राहम (John Abraham) बॉक्सर शॉट्स में एक बार फिर दर्शकों पर बिजलियां गिरा रहे हैं. ये दोनों बुलंदियों पर हैं.

तो, पठान के जश्न में जॉन वह हाला हैं, जिसके मद में सभी मदहोश हैं. इसके बावजूद कि दुनिया शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण के बेशर्म रंग की रंगत में है.

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जॉन अब्राहम और सुंदरता का बोझ 

सुंदरता एक बोझ है, और जॉन से ज्यादा इससे कौन वाकिफ होगा. एक असाधारण चेहरा और उस पर किंग डेविड (मशहूर यहूदी राजा) सरीखा खूबसूरत जिस्म, ये दोनों फिल्म इंडस्ट्री में उनके दुश्मन बन गए. इसे नाकाफी कहकर, उन्हें लगातार नकारा गया. हां, एक दौर था, जब वह ‘पत्थर चेहरा’ थे. लेकिन जिस्म से लेकर पठान तक, जॉन ने सब कुछ कर डाला, रोमांस से लेकर कॉमेडी और ऐक्शन से लेकर बेतुकापन तक. पर कुछ न कुछ कमी रह गई. जैसे हमेशा वर्क इन प्रोग्रेस चलता रहा. एक अड़चन कायम रही, कमोबेश, उनकी मनमोहक शख्सीयत के चलते.

लेकिन पठान का जिम, मानो जॉन का पुनर्जन्म है. पठान मन ही मन जिसके जैसा होना चाहता है, वह जिम ही है: ‘हमारा प्रीतिपात्र’. जिम जॉन अब्राहम का ऑनस्क्रीन अवतार है. तो, शाहरुख के सामने जॉन को उनके असली रूप में देखना, दिव्य अनुभूति देता है. तिस पर, जब वह दीपिका पादुकोण के साथ स्क्रीन शेयर करते हैं, तब भी उनसे ज्यादा लुभावने लगते हैं. थियेटर में हेट्रोसेक्सुअल मर्द भी इस दावे से इनकार नहीं कर सकते.

फर्क इतना है कि हम इसकी कल्पना आसानी कर सकते हैं कि जिम जख्मी है, गंजा और कमजोर हो रहा है. इसलिए जॉन की हस्ती, दावत में शाही टुकड़े जैसी है.

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जॉन अब्राहम और खलनायक

क्या एंटी हीरो ने जॉन अब्राहम को उनका तिलस्म लौटा दिया है? शायद. उनके कैरेक्टर में शुरुआत से ही प्रतिनायक का एक हल्का रंग था. लेकिन वह रंग इतना चमकीला नहीं था कि उनके चुंबकीय सौन्दर्य को ढंक पाता. अपनी शुरू की फिल्मों में उनसे यही उम्मीद थी कि वह अच्छा दिखें, और हुआ भी वैसा ही. वह बेपरवाह हो गए. समय की धारा के साथ बह गए. प्रियदर्शन बनना उनके लिए बहुत ही आसान था.

लेकिन मद्रास कैफे के साथ कुछ तो बदल गया. फिर आई, रॉकी हैंडसम, कोरियन फिल्म की हिंदी रीमेक. इस फिल्म से दर्शक दोबारा जॉन के जिस्म के जंतर-मंतर में फंस गए. एक विलेन रिटर्न्स में वह सीरियल किलर विलेन के तौर पर नाकाबिले बर्दाश्त थे. तो क्या हम यह कहें कि जॉन उन किरदारों में ही फबते हैं जिनमें उनके कैरेक्टर की सेक्स अपील को भुलाना आसान होता है? (हालांकि वह दर्शकों को ऐसा करने नहीं देते.)

जिम एक टूटा हुआ आदमी है, दर्द और प्रतिशोध के बीच बंटा हुआ. यह विलेन कोई भी मर्द या औरत हो सकता है. उसकी कोई विचारधारा नहीं है, किसी से जुड़ाव नहीं है. अपनी ‘मौत’ के बाद वह बेउसूल हो चुका है. जैसे उसने नई देह धारण कर ली है, अपनी पिछली जिंदगी की थकावट से चूर होकर, उससे तंग आकर. यह जिम की दिक्कत नहीं कि उसे देखकर अब भी लोग आहें भर रहे हैं. वह बेवफा प्रियतम है, जिसे सहानुभूति चाहिए और दूसरा मौका भी. हालांकि वह किसी के लिए फिक्रमंद नहीं.

क्या जॉन को अपनी इस सच्चाई का इल्म है?
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पठान और जॉन अब्राहम को एक दूसरे का फायदा

निर्माता के तौर पर जॉन काफी दिलेर हैं और उन्होंने ऐक्शन जॉनर की फिल्में चुनी हैं. बदकिस्मती से, उनकी कोशिशें नाकाम हुईं- उनकी कमजोरियां दूर नहीं हुईं. उनकी ज्वाला धीमे धीमे सुलगनी चाहिए, उनकी संवाद अदायगी कुछ सहज होनी चाहिए, उनके कैरेक्टर्स को तनिक कम सुंदर, और बेहतर कहानियों में ढला होना चाहिए. दरअसल जॉन हिंदी सिनेमा के 80 के दशक की नायिकाओं जैसे हैं. हाइप्ड और मायावी, लेकिन जिसके साथ, और जिस पर कोई काम नहीं किया गया.

शाहरुख के लिए कहा जाता है कि वह अपनी हीरोइन्स को दमकने देते हैं. चाहे राज के साथ सिमरन हो या राहुल के साथ टीना/अंजली. उनकी नायिकाओं और उनके बीच एक सहजीवी संबंध होता है, जिसमें दोनों को एक दूसरे से नफा होता है.  

कहा जा सकता है कि पठान में दीपिका के साथ नहीं, जॉन के साथ शाहरुख की जोड़ी बनी है. दोनों एक दूसरे के साथ बेहतर नतीजा देते हैं. और जैसा कि देव वाक्य है, शैतान हमेशा से अपने प्रतिद्वंद्वी से ज्यादा आकर्षक होता है. कहना न होगा, कि पठान में भी जिम ऐसे ही संशय, डर और प्रशंसा का मौका देता है.  

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