यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा अगर नेशनल सिक्योरिटी का तर्क पेगासस विवाद को दबाने के लिए एक टूल बन जाए. संसद का पूरा मानसून सत्र किसी भी कानून पर बहस किए बिना ही निकल गया, क्योंकि विपक्ष ने हर दिन मोदी सरकार से मीडिया रिपोर्ट पर जवाब मांगा कि क्या देश में प्रमुख हस्तियों के फोन में घुसपैठ के लिए इजरायली स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया था?
संसद में इतने हंगामे और प्रदर्शन के बाद निश्चित रूप से उन सवालों के जवाब मिलना चाहिए जो पब्लिक डोमेन में घूम रहे हैं.
अफसोस की बात है कि पेगासस मामला कम से कम अगले खुलासे तक थम गया है, क्योंकि कोई भी नेशनल सिक्योरिटी की लक्ष्मण रेखा को लांघने की हिम्मत नहीं करता. चाहे वह विपक्ष ही क्यों न हो.
यह उस मनोदशा से स्पष्ट था जो सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मुद्दा आने पर सामने आई थी, जिसमें कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की गई. जांच इस बात की कि मोदी सरकार ने इजरायल में बने स्पाइवेयर को खरीदा और इस्तेमाल किया या नहीं.
जब सरकार ने नेशनल सिक्योरिटी के कारणों का हवाला देते हुए अपने जवाब को पब्लिक करने से मना कर दिया तो सभी पक्षों में नरमी देखी गई. सुप्रीम कोर्ट ने न केवल सरकार को आश्वस्त किया कि वह इन बातों का ध्यान रखेगी बल्कि पिटिशनर के वकील ने भी कहा कि वे भी नेशनल सिक्योरिटी से समझौता नहीं करने के बारे में समान रूप से जागरूक हैं.
हालांकि मामला खत्म नहीं हुआ है और सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस भेज दिया. ऐसा लगता है कि फिलहाल पेगासस मामला ठंडा पड़ गया है.
एक्सपर्ट की एक कमेटी करेगी जांच
मोदी सरकार ने एक्सपर्ट की एक कमेटी गठित करने की पेशकश की है, जो जांच करेगी और नतीजे को सीलबंद कवर में सुप्रीम कोर्ट में पेश करेगी. ऐसा तब हुआ जब राफेल विमान खरीद का विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. सरकार का जवाब सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया. उसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.
आने वाला वक्त ही बताएगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट पेगासस विवाद पर भी उसी रास्ते (राफेल की तरह ही) पर चलेगा. हालांकि ऐसा लगता है कि नेशनल सिक्योरिटी का तर्क बहुत कम गुंजाइश छोड़ता है.
जरूरी बात तो ये है कि विपक्ष भी इस समय पेगासस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालने के लिए इच्छुक नजर आ रहा है. अधिकांश मानसून सत्र के दौरान संसद में पेगासस पर शोर रहा. लेकिन बाद में विपक्ष नए कृषि कानूनों के मुद्दों पर पहुंच गया। दो दिनों तक राज्यसभा में अफरा-तफरी का माहौल रहा. विपक्षी सांसदों ने टेबल पर उछल-कूद कर नारेबाजी की.
ऐसा लगता है कि कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे के कमरे में हुई पिछली बैठक में नेताओं को लगा कि पेगासस को अगले साल के विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाने के लिए ज्यादा अटेंशन नहीं मिल रहा. कुछ लोगों ने कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और इसे कोर्ट के विवेक पर छोड़ देना चाहिए.
यह फैसला लिया गया कि विवादास्पद कृषि कानून लोगों के लिए बड़ा मुद्दा है. खासकर पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं. इसलिए विपक्ष ने अपना फोकस बदलने का फैसला किया.
राजनीतिक दलों के लिए चुनावी मुद्दे कम समय के लिए होते हैं. लेकिन जिस मुद्दे पर पूरे मानसून सत्र में हंगामा किया गया, उस मुद्दे के अहम सवालों को विपक्ष ने हवा में लटका दिया है.
चिंता की बात ये भी है कि क्या पेगासस से इंटरसेप्शन भारतीय कानूनों के तहत आता है. सरकार के पास संदिग्ध आतंकवादियों, अपराधियों और नेशनल सिक्योरिटी के लिए खतरा मानी जाने वाली एक्टिविटी में शामिल लोगों को ट्रैक करने के लिए फोन कॉल को इंटरसेप्ट करने का अधिकार है
हालांकि, पेगासस इंटरसेप्शन एक टूल से कहीं अधिक है. यह स्पाइवेयर है जो किसी एजेंसी को फोन में घुसपैठ करने, बैंक खाते की डिटेल्स, पासवर्ड सहित फोन की सभी जानकारी दे सकता है. सभी एक्टिविटी पर निगरानी की जा सकती है. यह इंटरसेप्शन के छोटे दायरे से परे है, जो कानून के तहत आता है.
अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पास है. जहां तय होगा कि कितनी दूर जाना है और कितनी सख्ती से उन कानूनों की जांच करना है, जिनके तहत सरकार फोन कॉल को इंटरसेप्ट कर सकती है. नेशनल सिक्योरिटी का तर्क इस विवाद को टालने के लिए एक परफेक्ट कवर साबित हो सकता है.
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