आज आजादी का जश्न अधूरा सा लग रहा है. आजादी के लिए सबकुछ कुर्बान कर देने वालों ने क्या ऐसे ही आजाद भारत की कल्पना की थी? उन्होंने गुलामी की नाइंसाफी से आजादी की लड़ाई तो सबके लिए लड़ी थी. फिर क्यों आज एक परिवार घुट रहा रहा है. क्यों उसे इंसाफ नहीं मिल रहा है?
इस परिवार के बुजुर्ग पहलू खान को अलवर की सड़कों पर पीटा गया था. कभी लात से, कभी घूसों से. पूरे देश ने देखा था. वीडियो देख कुछ नाराज हुए थे, कुछ शर्मसार हुए थे. पिटाई इतनी हुई थी कि पहलू खान ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था. मरने से पहले उन्होंने अपने आखिरी बयान में 6 लोगों के नाम लिए थे. अब अलवर कोर्ट का फैसला आया है. सभी 6 आरोपी बेगुनाह हैं. वो भी जो वीडियो में दिख रहे थे. CB-CID पहले ही उन 6 लोगों को क्लीनचिट दे चुकी है, जिनका नाम पहलू खान ने मरते-मरते लिया था.
पहलू खान के मॉब लिंचिंग का वीडियो-
शुरु से आखिर तक अन्याय
पहलू के परिवार को 14 अगस्त को कोर्ट के बाहर डर लग रहा था. वो बस वहां से निकल जाना चाहते थे. जितनी जल्दी हो सके हरियाणा में अपने घर जाना चाहते थे. जब कोर्ट के बाहर पहलू का परिवार सिसकियों में था तो पास ही नारे लग रहे थे-'भारत माता की जय.' लगभग उसी वक्त एक आरोपी के वकील हुकुम चंद शर्मा कह रहे थे- ''ये लोग जो राजनीतिक रोटियां सेंक रहे थे, ये फैसला उन पर करारा तमाचा है.''
तमाचा तो हमारे जस्टिस सिस्टम को है. कोर्ट ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए छोड़ा. मतलब पर्याप्त सबूत नहीं मिले. जब अपराधी वीडियो पर थे, पर्याप्त सबूत क्यों नहीं मिले?
अप्रैल 2017 को वारदात और अगस्त 2019 को कोर्ट के फैसले बीच क्या हुआ?
मामले के गवाहों को धमकियां दी गईं. पहलू के बेटों पर हमला किया गया. पहलू के बेटों पर गो तस्करी का केस किया गया. हमला बहरोड़ कोर्ट के बार हुआ था. इसलिए उन्होंने अलवर कोर्ट में केस ट्रांसफर की अपील की थी.
जिम्मेदार कौन?
जिसने भी वीडियो देखा था वो कहता था- इसमें तो पक्की सजा होगी. ये लोग बचेंगे नहीं. लगता था कि इसमें तो कानून की कम जानकारी रखने वाला वकील भी पहलू के परिवार को इंसाफ दिला सकता है. लेकिन जांच करने वालों ने ऐसे-ऐसे पेंच फंसाए, कि मामला कानून की गलियों में उलझ कर रह गया. अभियोजन पक्ष कोर्ट में वीडियो का सत्यापित वर्जन तक नहीं दे पाया.
अगर इस मालमे में किसी ‘कॉन्सपिरेसी थ्योरी’ से इंकार भी कर दें तो ये हमारी जांच एजेंसियों की क्षमता के बारे में बताती हैं. सरकार कह रही है आगे अपील करेगी, मगर सवाल ये है कि क्या जांच करने वाले अफसरों के खिलाफ कोई एक्शन लिया जाएगा. और नहीं तो क्या गारंटी कि आगे की अदालत में सबूत पेश होंगे.
नाइंसाफी का नतीजा
पहलू खान हरियाणा के नूंह में जयसिंहपुर के रहने वाले थे. छोटी कास्तकारी थी सो कुछ गाय रखकर आमदनी बढ़ाना चाहते थे. चाहते थे कि गाय का दूध बेचकर परिवार के लिए कुछ जुटाएं. पड़ोस के राज्य से गाय ला रहे थे. तभी मॉब लिंचिंग हुई. उनके पास परमिट थी. भीड़ ने फाड़ दी. उन्होंने कहा कि वो गो तस्कर नहीं हैं. भीड़ सुनी नहीं. वारदात में पहलू का एक बेटा भी बुरी तरह जख्मी हुआ था. अब परिवार बिखर चुका है. पास पड़ोस के लोग खाने-पीने का सामान देकर मदद करते हैं. पड़ोस में जो मुसलमान डेयरी वाले थे, उन्होंने गाय रखना बंद कर दिया है.
मैसेज क्या गया?
यही कि, अब यहां सरेआम गुनाह करके भी बचा जा सकता है. ये भी कि सत्ता में कोई पार्टी हो, फर्क नहीं पड़ता. जब वोट बैंक की बात आती है तो सत्ता का रवैया एक सा होता है. और एक पैटर्न है. मुजफ्फरनगर में दंगे के आरोपी नेताओं को क्लीनचिट दिया जा रहा है. मॉब लिचिंग के आरोपियों को सांसद माला पहनाकर स्वागत करते दिखते हैं.
इस बीच पहलू के परिवार का अहम सवाल - हमें कोर्ट में भी इंसाफ नहीं मिलेगा तो हम कहां जाएं? ये सवाल आजादी के जश्न पर वाकई गंभीर सवाल उठाता है. आरोपियों को 'संदेह का लाभ' मिला है, शक के दायरे में पूरा सिस्टम है.
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