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PLI स्कीम- सरकार पब्लिक का पैसा कंपनियों को दे रही, लेकिन रोजगार कम पैदा हो रहा

फार्मा, मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग को छोड़कर किसी क्षेत्र में न निवेश हुआ है, न ही रोजगार पैदा हुआ है

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मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव स्कीम या PLI योजना को फार्मास्यूटिकल्स और मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में अभी रफ्तार पकड़नी बाकी है.

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उन्होंने एक वेबिनार में एक बड़े डेटा का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि अप्रैल 2020 में आत्मनिर्भर भारत के तहत शुरू की गई इस योजना के जरिए कितना निवेश हुआ और कितने रोजगार पैदा किए गए. नागेश्वरन ने जिन सरकारी आंकड़ों की जानकारी दी, वह DPIIT यानी डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडसल्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग) ने जमा किए हैं. इनसे पता चलता है कि स्पेशलिटी स्टील, ऑटोमोबाइल, ड्रोन और व्हाइट गुड्स में अब तक कोई निवेश नहीं किया गया है.

लेकिन अगर इन आंकड़ों को बारीकी से देखा जाए तो कुछ बातें और मालूम चलती हैं. PLI पर कुछ ज्यादा ही भरोसा जताया गया था, इसलिए उसके आंकड़ों पर सवाल उठना लाजमी है.

सभी क्षेत्रों में कमजोर होती रोजगार की स्थिति

निवेश करने की मर्जी रखने वाले लोगों, या निवेश करने की मर्जी न रखने वाले लोगों को सार्वजनिक रूप से इनसेंटिव या टैक्सपेयर का पैसा देकर लुभाना, भारतीय अर्थव्यवस्था के सेहतमंद होने का सबूत नहीं है. सोचिए- सिर्फ दो क्षेत्रों में विकास दर्शाया गया. पहला फार्मास्यूटिकल है जिसमें सरकारी आंकड़ों के हिसाब से, निवेश की राशि लक्ष्य का 107% है, लेकिन यहां रोजगार सृजन सिर्फ 13% है.

मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग को भी अच्छा बताया गया. लेकिन आंकड़े इस दावे को झुठलाते हैं. जितना निवेश हुआ है, वह लक्ष्य का 38% है, लेकिन रोजगार? सरकार के अपने लक्ष्य का सिर्फ 4%.

इलेक्ट्रॉनिक्स में बेहतरी की उम्मीद थी.. लेकिन यहां सिर्फ 4.89% लक्ष्य हासिल किया गया, और नौकरियों का आंकड़ा बहुत मामूली 0.39% रहा. स्पेशलिटी स्टील, ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स, ड्रोन और ड्रोन कंपोनेंट्स और एडवांस केमिस्ट्री सेल (एसीसी) बैटरी क्षेत्र में शून्य प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया गया है यानी न तो कोई निवेश किया गया है और न ही कोई रोजगार पैदा हुआ है.

PLI: आत्मनिर्भरता के लिए भारत का दांव

PLI योजनाओं के बारे में अप्रैल 2021 में सरकार ने दावा किया था- "एक आत्मनिर्भर भारत को हासिल करने के लिए सरकार की एक आधारशिला. इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना और इस क्षेत्र में ग्लोबल चैंपियन तैयार करना है. इन योजनाओं के पीछे रणनीति यह है कि भारत में बनने वाले उत्पादों की बिक्री में वृद्धि पर कंपनियों को आधार वर्ष के बाद प्रोत्साहन दिया जाएगा. उन्हें विशेष रूप से सनराइज़ और रणनीतिक क्षेत्रों में घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने, सस्ते आयात पर अंकुश लगाने और आयात की लागत को कम करने, घरेलू स्तर पर बनी वस्तुओं की लागत प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करने और घरेलू क्षमता और निर्यात बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है.”

इस योजना के लक्ष्य का जिक्र फरवरी 2021 के बजट में भी था. बजट में 13 प्रमुख क्षेत्रों के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे. इसका मकसद, "राष्ट्रीय उत्पादन चैंपियंस बनाना और देश के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना" था. यह कहा गया था कि, "PLI योजनाओं के नतीजे के तौर पर भारत में पांच वर्षों में न्यूनतम उत्पादन 500 बिलियन USD से अधिक होने की उम्मीद है".

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देश के नौजवानों के लिए बेरोजगारी सबसे ज्वलंत मुद्दा है

बाद में और योजनाओं और क्षेत्रों को इसमें जोड़ा गया. लेकिन अब तक हासिल किए गए उद्देश्यों और परिणामों के बीच विसंगति महसूस होती है, जो भारत की रोजगार सृजन की क्षमता को देखकर समझ आता है.

भारत में नौकरियों का संकट भी साफ दिखाई देता है. इसकी मिसाल था, अग्निपथ योजना के विरोध में उतरा नौजवानों का वह नेतृत्वहीन हुजूम. सेनाएं युवाओं के लिए निरंतर और इज्जतदार रोजगार का विकल्प थीं.

लेकिन सड़कों पर बेरोजगारी को लेकर गुस्सा फूट रहा था. 14 जून को जब अधिसूचना आई कि अब सेना में सैनिकों को सिर्फ चार साल के लिए भर्ती किया जाएगा, तो सशस्त्र बलों में इज्जतदार जिंदगी और सुरक्षा की तलाश करने वाले लाखों लोगों के सपने टूट गए. इसके बाद बिहार, यूपी, हरियाणा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए. भारतीय रेलवे ने दावा किया है कि इन नाराजगी भरे प्रदर्शनों में रेलवे की 1000 करोड़ रुपए की संपत्ति का नुकसान हुआ है.

अग्निपथ के विरोध प्रदर्शनों से पहले भी, रेलवे भर्ती परीक्षा में बैठने वाले हजारों विद्यार्थियों ने रेलवे ट्रैक को ब्लॉक किया था और गणतंत्र दिवस पर भी गुस्साए नौजवानों ने एक यात्री ट्रेन में आग लगा दी थी.

यह विरोध रेलवे भर्ती बोर्ड की गैर तकनीकी लोकप्रिय श्रेणी (आरआरबी-एनटीपीसी) परीक्षा 2021 के तकनीक पहलुओं से जुड़ा था. लेकिन इसमें दरअसल एक ऐसे देश के गुस्से का लावा फूटा था जिसकी आबादी की औसत उम्र 29 वर्ष है. जहां नौकरियों के अवसर सिकुड़ रहे हैं, जहां सरकारी मौके कम हो रहे हैं, और निजी क्षेत्र में उस जिम्मेदारी को निभाने लायक क्षमता नहीं है.  

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आईटी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छंटनी ने बेरोजगारी को बढ़ाया है

2022 में भारत में सभी क्षेत्रों में स्टार्ट-अप्स ने कुल 11,833 लोगों को नौकरी से निकाला है. जानी-मानी बड़ी आईटी फर्मों ने इस साल हायरिंग में देरी की है. PLI योजनाओं से संबंधित नए सरकारी आंकड़े भी बेरोजगारी के गंभीर संकट की तरफ इशारा करते हैं. यह और कुछ नहीं, पिछले आठ वर्षों से अधिक समय से 'इंडिया स्टोरी' का नीरस साउंडट्रैक ही है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के आंकड़े भी बताते हैं कि भारत अभी संकट मुक्त नहीं हुआ है. वह कोविड-19 से पहले के रोजगार के स्तर तक भी नहीं पहुंचा है.

CMIE के महेश व्यास का कहना है कि वेतनभोगी नौकरियों के लिए सितंबर-अक्टूबर 2022 के आंकड़े 32 सप्ताह के बाद कोविड पूर्व नौकरियों के आंकड़ों के करीब पहुंचे हैं लेकिन इसे पूरी तरह से बहाल होने के लिए "9 करोड़" तक पहुंचना होगा. वेतनभोगी नौकरियों का कोविड पूर्व स्तर 8.65 करोड़ था और अब यह 8.5-8.6 करोड़ के बीच है.

नौकरियों पर मुनाफा भारी?

PLI योजनाओं को भारत की समस्याओं का रामबाण बताया जा रहा है. लेकिन अगर उससे देश की सबसे बड़ी समस्या यानी बेरोजगारी को कम नहीं किया जा सकता जोकि महामारी से पहले से कायम है तो सोचिए कि टैक्सपेयर के पैसे का कितना दुरुपयोग किया जा रहा है. वह भी जब सार्वजनिक संसाधनों की इतनी कमी है. सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए.

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क्या भारत में PLI ठीक वैसे ही है, जैसे कुछ साल पहले कॉरपोरेट टैक्स को माफ किया जा रहा था. इससे कॉरपोरेट्स को ज्यादा से ज्यादा पैसा मिल रहा है, राहत की सांस भी, लेकिन वह देश के लिए फायदेमंद नहीं हैं, यानी ज्यादा नौकरियां पैदा नहीं हो रहीं.  

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री रोजगार मेला शुरू करने को मजबूर हैं. 10 लाख सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती शुरू करना इस खलबली का नतीजा है. चूंकि युवाओं को स्वरोजगार का सपना दिखाने वाला पकौड़ा अर्थशास्त्र धराशाई हो चुका है, और उनको लुभाने में नाकाम रहा है.  

भारत के पास अपने 'जनसांख्यिकीय लाभांश' को भुनाने के लिए बहुत कम समय है क्योंकि देश में कुल प्रजनन दर पहले की तुलना में बहुत तेजी से सिकुड़ गई है. अगर आज के युवाओं को अर्थव्यवस्था में तुरंत इस्तेमाल नहीं किया जाता है, तो नौजवानों की एक बड़ी आबादी को संभालना मुश्किल हो जाएगा. देश भर में नाराज नौजवानों की भीड़ और नौकरियों की मांग 2022 का एक सुलगता हुआ मुद्दा है.  

(सीमा चिश्ती दिल्ली में रहने वाली लेखक और पत्रकार हैं. वह बीबीसी, द इंडियन एक्सप्रेस आदि में काम चुकी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seemay है. यह लेखक की निजी राय है. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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