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लालकिले से पीएम मोदी के भाषण में वीर जवानों के लिए क्‍या था?

स्वतंत्रता दिवस पर मोदी का इस साल का भाषण सबसे छोटा रहा. इसमें उन्होंने विदेश नीति का कोई जिक्र नहीं किया

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साउथ ब्लॉक के सर्विस हेडक्वॉर्टर्स (जीओसी) के गलियारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वतंत्रता दिवस पर चौथे भाषण को लेकर यह चर्चा है कि रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में उन्होंने जो बातें कहीं, मुद्दे उससे अलग हैं. सैन्यकर्मियों के लिए परंपरा, प्रोटोकॉल और सेरेमनी से जुड़े बातें काफी अहमियत रखती हैं और ये उनकी पहचान से जुड़ी हैं.

जीओसी, दिल्ली एरिया पहली बार स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान इस साल उनके पीछे नहीं बैठे, जबकि यह परंपरा रही है. अब तक गणतंत्र दिवस पर सभी परेड का नेतृत्व वही करते आए हैं और स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री को वही मंच तक लेकर जाते रहे हैं.

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इसलिए जीओसी, दिल्ली एरिया को मैन ऑफ द मैच कहा जाता है. यह पद अभी लेफ्टिनेंट जनरल मनोज नर्वाणे के पास है. प्रधानमंत्री मोदी जब लालकिले से भाषण दे रहे थे, तब वह उनके पास नहीं बैठे थे. आर्मी इसे सैन्य परंपरा को जान-बूझकर कमजोर करने की कोशिश के तौर पर देख रही है.

देश को फुलटाइम रक्षा मंत्री की जरूरत

मोदी ने कहा कि देश की सुरक्षा उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता है. उन्होंने यह भी कहा कि चाहे समुद्र हो, हवा या जमीन, हमारी सेना किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है. लेकिन क्या यह मोदी सरकार की प्राथमिकता है? यह बात आसानी से गले नहीं उतरती.

संसदीय समिति और कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी या कैग) की रिपोर्ट में सेना की कई जरूरतों की ओर ध्यान दिलाया गया है. मोदी ने कहा कि सैनिक देश के लिए बलिदान देने से नहीं हिचकते, यह बात सच है. हालांकि, अगर उन्हें आधुनिक हथियार और उपकरण दिए जाएं तो शहीद होने वाले सैनिकों की संख्या में कमी लाई जा सकती है.

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रक्षा मामलों में एक बुनियादी कमी है. इसके लिए लॉन्ग टर्म प्लानिंग और बजट पर काम नहीं हो रहा है और सेना के आधुनिकीकरण के लिए हथियार खरीदने की प्रक्रिया को दुरुस्त करने की जरूरत है. सेना जल्द ही फुल टाइम रक्षा मंत्री मिलने की उम्मीद कर रही है, जिससे पेंडिंग डिफेंस रिफॉर्म्स को लागू करने के लिए राजनीतिक दिशा मिल सके. इससे सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल बेहतर होगा.

जब मोदी और पर्रिकर ने सुर्खियां बटोरीं

भारत या विदेश में मोदी के हर भाषण में आतंकवाद का जिक्र होता है. वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर अपनी सरकार के ‘ट्रेडमार्क सर्जिकल स्ट्राइक’ का जिक्र करना भी नहीं भूलते.

सर्जिकल स्ट्राइक का सबसे अधिक राजनीतिक फायदा प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने उठाया है और बीजेपी ने इसे चुनावी तौर पर भुनाने की सारी कोशिशें की हैं. सच तो यह है कि गोवा में पर्रिकर गैंग ने सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय हथिया लिया है.

वेबसाइट तो ठीक है, लेकिन वॉर मेमोरियल कहां है?

मोदी ने गैलेंट्री अवॉर्ड विजेताओं के लिए नई वेबसाइट का ऐलान किया. लेकिन यह शर्म की बात है कि शहीद जवानों के सम्मान में सिर्फ इंडिया गेट अकेला स्मारक है. यहां पहले विश्वयुद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों के नाम खुदे हुए हैं. आजादी के 70 साल बाद दूसरे विश्वयुद्ध, 1947, 1962, 1965, 1971, श्रीलंका और कारगिल में शहीद होने वाले जवानों के लिए कोई राष्ट्रीय स्मारक क्यों नहीं है?

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ओआरओपी

सर्जिकल स्ट्राइक की तरह ही मोदी ओआरओपी का भी जिक्र करते रहते हैं. बेशक यह सरकार की उपलब्धि है, क्योंकि चार दशक के बाद इसी सरकार के कार्यकाल में यह लागू हुआ. मेजर जनरल सतबीर सिंह की अगुवाई में ओआरओपी के आलोचकों का कहना है कि इसमें वन रैंक पांच पेंशन का प्रावधान है.

तकनीकी तौर पर उनकी बात सही है. उन्होंने ओआरओपी में सुधार के सुझाव दिए हैं. उनका कहना है कि इसकी सालाना समीक्षा होनी चाहिए, न कि तीन साल पर. छठे वेतन आयोग में 16 गड़बड़ियों के साथ सातवें वेतन आयोग से सैनिक मायूस और दुखी हैं. हालांकि, इसकी बात मोदी कभी नहीं करते.

पड़ोसी देशों का जिक्र नहीं

स्वतंत्रता दिवस पर मोदी का इस साल का भाषण सबसे छोटा रहा. इसमें उन्होंने विदेश नीति का जिक्र नहीं किया. उनके भाषण में डोकलाम भी नहीं था, जिससे चीन को कड़ा संदेश दिया जा सकता था. पीपल्स लिबरेशन आर्मी (चीन की सेना) ने 1 अगस्त को अपनी 90वीं सालगिरह पर भारतीय सेना को पांच पारंपरिक मीटिंग प्वाइंट्स का न्योता नहीं दिया, ना ही उसने 15 अगस्त को हिंदी-चीनी भाई भाई गेटटुगेदर का न्योता स्वीकार किया.

पिछले साल मोदी ने पाकिस्तान ने हमला बोला था. उन्होंने कहा था कि बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन हो रहा है. इस संदर्भ में उन्होंने गिलगिट बलटिस्तान का भी नाम लिया था. इस साल उन्होंने किसी पर अंगुली नहीं उठाई. मोदी की बातचीत का एक अंदाज है, लेकिन कुछ सैनिकों के लिए इस साल लालकिले के उनके भाषण में पिछले साल जैसी आग नहीं दिखी.

[मेजर जनरल (रिटायर्ड) अशोक के मेहता डिफेंस प्लानिंग स्टाफ के संस्थापक सदस्य हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है]

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