भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में आंतरिक कलह की अटकलबाजियों के बीच, हालात का ठीक-ठीक आकलन करने के लिए द क्विंट ने दो वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकारों को आमंत्रित किया. यह लेख उस सीरीज का दूसरा हिस्सा है. पहला लेख, जिसे वरिष्ठ पत्रकार भारत भूषण ने लिखा, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं.
गांधी परिवार द्वारा चलाए जा रहे तीन ट्रस्ट के खिलाफ अंतर-मंत्रालय जांच का ऐलान कर मोदी सरकार ने उन्हें बड़ी चेतावनी दे दी है. जिन ट्रस्टों की जांच की जा रही है वो हैं राजीव गांधी फाउंडेशन, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट. इस घोषणा में जांच की व्याख्या अस्पष्ट थी, लेकिन जांच टीम की संरचना से मिलने वाले संकेत अच्छे नहीं हैं.
इसमें आयकर विभाग के अधिकारियों, जो कि आर्थिक गड़बड़ियों की पड़ताल करते हैं, के अलावा गृह मंत्रालय के अधिकारियों को शामिल किए जाने से लगता है कि जांच का दायरा खुला रहेगा और अंत में ये पड़ताल राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में भी पहुंच सकती है.
इसका संकेत बीजेपी के एक प्रवक्ता ने दिया जो टीवी चैनल पर चिल्ला कर गांधी परिवार के चीन से साठगांठ का आरोप लगा रहे थे और कह रहे थे कि 2005 में जब कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार केन्द्र में थी, चीन की सरकार ने नई दिल्ली में अपने दूतावास के जरिए RGF को भारी दान दिया था.
- गांधी परिवार द्वारा चलाए जा रहे तीन ट्रस्ट के खिलाफ अंतर-मंत्रालय जांच का ऐलान कर मोदी सरकार ने उन्हें बड़ी चेतावनी दे दी है.
- 2014 में सत्ता में आने के बाद पहली बार, मोदी सरकार ने गांधी-परिवार और उनके हितों पर सीधा प्रहार करने का फैसला किया है.
- मोदी और उनके भरोसेमंद लेफ्टिनेंट अमित शाह ने अंदाजा लगा लिया है कि हर मोर्चे पर संकट से घिरा गांधी परिवार अब सत्ता में वापसी के लिए बेहद कमजोर हो चुका है.
- 23 जून को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की पिछली बैठक में हुए टकराव से लगता है कि मोदी और शाह अपने आकलन में गलत नहीं हैं.
- जिस तरह से सरकार से उनके पीछे पड़ी है, गांधी परिवार को पार्टी की जरूरत है. उन्हें ऐसे वफादार लोगों की जरूरत है जो कोविड-19 की पाबंदियों के बावजूद अपने नेताओं के लिए सड़कों पर उतर आएं.
पीएम मोदी और बीजेपी ने कमर कस ली है
तलवारें म्यान से निकल चुकी हैं. छह सालों तक गांधी परिवार से नफरत करने वाले अपने समर्थकों की फ्रांसीसी क्रांति के तर्ज पर वंशवाद के खात्मे की मांग पर काबू रखने के बाद, ऐसा लगता है कि सरकार ने भगवा रक्त-वासना को संतुष्ट करने के लिए आखिरी प्रहार का मन बना लिया है.
पिछले नवंबर में, गांधी परिवार की SPG सुरक्षा छीन ली गई. इस महीने की शुरुआत में प्रियंका को लुटियंस दिल्ली में अपना बंगला खाली करने को कहा गया. और अब सरकार ने अपने तेवर और कड़े करते हुए परिवार द्वारा चलाए जाने वाले तीन NGO से निपटने के लिए PMLA जैसे कठोर कानून का सहारा लिया है.
बीजेपी प्रवक्ता चाहे इसे जो भी रंग देने की कोशिश करें, गांधी परिवार पर ये हमला राजनीति से हट कर व्यक्तिगत हो गया है. 2014 में सत्ता में आने के बाद पहली बार, मोदी सरकार ने गांधी-परिवार और उनके हितों पर सीधा प्रहार करने का फैसला किया है.
बीजेपी जानती है कि गांधी-परिवार कमजोर पड़ गया है
इसके असर से गांधी परिवार भी वाकिफ है. राहुल ने एक ट्वीट कर तुरंत पलटवार किया कि वो इससे डरने वाले नहीं हैं. शब्द साहसिक थे, लेकिन कांग्रेस के डूबते जहाज को बचाने के लिए जारी गांधी परिवार के इस संघर्ष में सिर्फ बहादुर दिखना काफी नहीं होगा.
सरकार के इस कदम का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि गांधी-परिवार के साथ छोटे राजनेताओं के जैसा व्यवहार हो रहा है. उनके गले में फंदा डालकर जेल भेजना हमेशा से बीजेपी और आरएसएस की लिस्ट में सबसे ऊपर रहा है. भारतीय राजनीति के पहले परिवार के पीछे सरकारी एजेंसियों को दौड़ाने का मतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज ऐसा करने के हालात देख रहे हैं.
जाहिर तौर पर सरकारी एजेंसियां लंबे समय से विपक्ष को रौंदने में सरकार के काम आ रही हैं. अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए आपको कोई बहुत तगड़े मामले की जरूरत नहीं होती. इतने सालों से पीएम मोदी ने खुद को रोक रखा था, शायद इसलिए कि उन्होंने जनता पार्टी सरकार के उस इतिहास से एक सबक सीखा था जिसमें 1977 में अपमानजनक हार के बाद इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी ने उन्हें राजनीतिक कमबैक का मौका दे दिया.
ऐसा लगता है कि मोदी और उनके भरोसेमंद लेफ्टिनेंट अमित शाह ने अंदाजा लगा लिया है कि हर मोर्चे पर संकट से घिरा गांधी परिवार अब सत्ता में वापसी के लिए बेहद कमजोर हो चुका है.
कांग्रेस पार्टी के भीतर कलह
23 जून को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में हुए टकराव से लगता है कि मोदी और शाह अपने आकलन में गलत नहीं हैं. बैठक में भाग लेने वाले एक अंदरूनी सूत्र के मुताबिक, उस दिन तनातनी इतनी बढ़ गई था कि लगा CWC के सदस्य मारपीट पर उतर आएंगे, गनीमत था कि बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हो रही थी.
कांग्रेस पार्टी के अंदर गुटबाजी 2019 में मोदी के लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सामने आई और राहुल गांधी ने इस्तीफा देने का फैसला कर लिया. पिछले एक साल में ये गुटबाजी और गहरी हुई है.
पार्टी में नेतृत्व की कमी, राहुल के अकेले काम करने का झुकाव, प्रियंका के करिश्मे का फीका पड़ना, बेटे को फिर से पार्टी अध्यक्ष बनाने की सोनिया गांधी की जिद, अंदरुनी कलह रोकने में हाई कमान की नाकामी जिससे कई राज्यों में बड़े पैमाने पर दल-बदली शुरू हो गई और मध्यप्रदेश में सरकार तक चली गई, और पिछले चुनावों में पार्टी का खराब प्रदर्शन ये सब कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिससे कांग्रेस टूट के कगार पर पहुंच गई है.
CWC की बैठक में खूब कहासुनी हुई जिसमें एक तरफ राहुल और प्रियंका थे और दूसरी तरफ बाकी नेता. जहां सोनिया ज्यादातर खामोश रहीं, प्रियंका गांधी ने कोई कसर नहीं छोड़ी और राहुल के समर्थन में खड़े नहीं होने के लिए पुराने और कुछ नए नेताओं पर खूब बरसीं. नाराज प्रियंका कह रही थी कि राहुल अकेले मोदी के खिलाफ लड़ रहे हैं, उन्हें पार्टी से कोई मदद नहीं मिल रही है.
परिवार और पार्टी के बीच की खाई इतनी बढ़ गई है कि एक पूर्व वफादार राजनेता ने हकीकत में ये माना कि ‘कांग्रेस में अब कोई भी गांधी-परिवार को नहीं चाहता है’.
गांधी परिवार के लिए अब कितना समर्थन बचा है?
यह बात अहम है कि सरकार द्वारा परिवार के ट्रस्टों की जांच की घोषणा के बाद कांग्रेस नेताओं की प्रतिक्रिया मौन थी. रणदीप सुरजेवाला, अभिषेक सिंघवी, पी चिदंबरम और कुछ भूलने योग्य नामों के खानापूर्ति वाले बयानों को छोड़ दें तो पार्टी का कोई भी बड़ा या वजनदार नेता गांधी-परिवार के बचाव में सामने नहीं आया.
इसकी तुलना 1999 के माहौल से करते हैं जब शरद पवार और पी ए संगमा ने ‘विदेशी मूल’ के मुद्दे पर सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाया था. तब पार्टी सोनिया के बचाव में कूद पड़ी और कांग्रेस के नेता और महिलाएं उनके घर के बाहर कई हफ्तों तक टेंट लगाकर त्यागपत्र वापस लेने और पार्टी अध्यक्ष के पद पर लौटने का आग्रह करते रहे. एक आदमी, पूरे कांग्रेसी अंदाज में, एक पेड़ पर चढ़ गया और नाटकीय तौर पर बंदूक लहराते हुए खुद को गोली मार लेने की धमकी देने लगा.
जिस तरह से सरकार से उनके पीछे पड़ी है, गांधी परिवार को पार्टी की जरूरत है. उन्हें ऐसे वफादार लोगों की जरूरत है जो कोविड-19 की पाबंदियों के बावजूद अपने नेताओं के लिए सड़कों पर उतर आएं. गांधी परिवार के समर्थन में जनाधार के भयंकर अभाव की वजह से ही पीएम मोदी और अमित शाह उनके खिलाफ आक्रामक हैं और उनके विरोध में बनाए गए अपने एजेंडों में एक कदम और आगे बढ़ गए.
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