प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) जर्मनी में G7 शिखर सम्मेलन (G7 Summit) में हिस्सा लेने के बाद संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की एक दिवसीय यात्रा पर गए. इसके अलावा जल्द ही जुलाई के मध्य में भारत, इजरायल, यूएस (अमेरिका) और यूएई (संयुक्त अरब अमीरात) आई 2 यू 2 (I2U2) समिट में हिस्सा लेंगे. I2U2 में दो आई से आशय इंडिया और इजरायल से है जबकि दो यू का आशय US और UAE से है. इन देशों के समूह को मध्य पूर्वी क्वॉड (Middle Eastern Quad) के तौर पर भी जाना जाता है.
Middle Eastern Quad (मध्य पूर्वी क्वॉड) एक आर्थिक समूह है, जिसे पूर्व में चीन के विस्तारवाद का मुकाबला करने के लिए खासतौर पर अमेरिका द्वारा शुरू किया गया है. यह क्वॉड समूह ठीक उसी समय शुरु किया गया जब अमेरिका इस क्षेत्र से एशिया-प्रशांत की ओर बढ़ रहा है और वहां चीनी प्रभुत्व का सामना कर रहा है. इन सबके बीच भारत निष्पक्ष तौर पर काफी खास और अहम स्थान रखता है.
जर्मनी में आयोजित G7 समिट में हिस्सा लेने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 28 जून को एक दिवसीय यात्रा पर यूएई पहुंचे थे.
जल्द ही जुलाई के मध्य में आई 2 यू 2 (I2U2) समिट में इंडिया, इजरायल, यूएस और यूएई हिस्सा लेंगे. इस समूह (I2U2) को मध्य पूर्वी क्वॉड भी कहा जाता है.
सिपरी (SIPRI) के आंकड़ों के मुताबिक इजरायल का सबसे बड़ा हथियार खरीदार भारत है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान संयुक्त उत्पादन को लेकर दोनों देश के बीच कई समझौते हुए हैं.
यूएई 2017 के बाद से भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार बन गया है. दोनों देश के बीच हजार वर्ष से ज्यादा पुराने संबंध काफी प्रसिद्ध हैं.
मध्य पूर्वी क्वॉड समूह में भारत एकमात्र देश है जिसने रूस-यूक्रेन संघर्ष में किसी का भी पक्ष लेने से इनकार कर दिया है. भारत रूस से रियायती दरों पर तेल और कोयले की आपूर्ति कर रहा है.
ईरान के साथ केवल भारत के अच्छे संबंध हैं. भारत को खुद की सुविधाजनक स्थिति से ईरान और I2U2 दोनों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करते हुए ठीक से बैठाना होगा.
भारत-इजरायल संबंध ज्यादा गहरे हो रहे हैं
हाल ही में इजरायल की ओर से भारत की दो आधिकारिक यात्राएं दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापक सहयोग का सबूत देती हैं.
पहला दौरा इजरायल के रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज का था. हालांकि इससे पहले प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट की एक यात्रा तय थी लेकिन कोविड होने की वजह से नफ्ताली की वह यात्रा रद्द करनी पड़ी थी. इसके बाद गैंट्ज आए थे.
अपनी यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री गैंट्ज ने भारत में अपने समकक्ष राजनाथ सिंह के साथ भविष्य की रक्षा प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक "लेटर ऑफ इंटेंट" का आदान-प्रदान किया था.
दोनों देश ने अगली पीढ़ी के ड्रोन, मिलिट्री हार्डवेयर के सह-उत्पादन और भविष्य की प्रौद्योगिकियों में रिसर्च, डेवलपमेंट और रक्षा सह-उत्पादन पर एक साथ काम करने पर सहमति जताई है. पिछले साल नवंबर में भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और इजरायल के रक्षा अनुसंधान और विकास निदेशालय ने ड्रोन, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और हैक न होने वाली क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी अगली पीढ़ी की तकनीकों और उत्पादों को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए एक द्विपक्षीय नवाचार समझौता किया था. गैंट्ज की यात्रा के दौरान दोनों पक्षों द्वारा रक्षा सहयोग पर भारत-इजरायल विजन को अपनाया गया, इससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को और अधिक संस्थागत बना दिया गया.
भारत-इजरायल सहयोग के स्तंभ : कृषि, जल, रक्षा
पिछले एक दशक में इजरायल के साथ भारत का रक्षा और सैन्य सहयोग तेजी से बढ़ा है. सिपरी (SIPRI) के आंकड़ों के मुताबिक इजरायल का सबसे बड़ा हथियार खरीदार भारत है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान संयुक्त उत्पादन को लेकर दोनों देश के बीच कई समझौते हुए हैं.
दूसरी यात्रा इनात श्लीन की थी. श्लीन इजरायल के विदेश मामलों के मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी माशाव (MASHAV) की प्रमुख हैं. उन्होंने कृषि और पानी के क्षेत्र में इजरायल-भारत रणनीतिक साझेदारी और विकास सहयोग को और मजबूत करने के लिए सप्ताह भर भारत की यात्रा की थी. कृषि और पानी क्षेत्र दाेनों देशों के बीच बढ़ते संबंधों के दो सबसे "महत्वपूर्ण स्तंभ" हैं.
भारत के साथ इजरायल के सबसे बड़े डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स हैं. इस समय भारत के विभिन्न हिस्सों में 29 भारत-इजरायल उत्कृष्टता केंद्र (Indo-Israeli Centers of Excellence) पूरी तरह से सक्रिय हैं. इन केंद्रों से लाखों भारतीय किसान लाभान्वित हो रहे हैं. इस तरह के 13 और भारत-इजरायल उत्कृष्टता केंद्र पाइप लाइन में हैं. धीरे-धीरे इन केंद्रों को स्थानीय राज्य सरकारों की साझेदारी में विलेज ऑफ एक्सीलेंस (Villages of Excellence) में विस्तारित किया जाएगा, जो आगे चलकर बड़ी आबादी के लिए फायदेमंद साबित होगा.
"स्काई इज द लिमिट"
नई दिल्ली में इजरायली दूतावास ने कहा "उनकी यात्रा का एक मुख्य आकर्षण एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन और क्षमता निर्माण के क्षेत्र में इजराइल सिंचाई और जल संसाधन विभाग, हरियाणा सरकार, भारत के बीच एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर करना था. इस समझौते के हिस्से के रूप में MASHAV हरियाणा में जल प्रबंधन क्षेत्र के विकास के लिए ज्ञान, क्षमता निर्माण और इजरायली प्रौद्योगिकियों को साझा करेगा."
जैसा कि पूर्व इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था, "स्काई इज द लिमिट". मिसाइलों से लेकर पानी तक, भारत-इजरायल का सहयोग व्यापक है. वाकई में यह एक अनूठी साझेदारी है और यह साझेदारी मध्य पूर्वी क्वॉड (इंडिया, इजरायल, यूएई और यूएस) के ढांचे के भीतर और भी आगे बढ़ने के लिए तैयार है.
इन यात्राओं से कुछ समय पहले, यूएई के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए इजरायल सुर्खियों में था. 2020 में यूएई के लीडर शेख मोहम्मद बिन जायद ने क्षेत्रीय भू-राजनीति को तब हिलाकर रख दिया था जब उनका देश इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य करने वाला पहला खाड़ी राज्य और तीसरा अरब राज्य बन गया था. इसके बाद बहरीन (एक खाड़ी राज्य) मोरक्को (एक अरब साम्राज्य) और सूडान ने इजरायल के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने की दिशा में कदम उठाए. मुस्लिम दुनिया के प्रमुख राष्ट्र सऊदी अरब के जल्द ही ऐसा करने की उम्मीद है.
यह अपनी तरह का पहला समझौता है जिस पर इजरायल ने किसी अरब देश के साथ हस्ताक्षर किए हैं. ऐसी कल्पना की गई है कि इस समझौते से अगले पांच वर्षों में गैर-तेल व्यापार बढ़कर लगभग 10 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा. इस समझौते से ठीक पहले, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए यूएई ने भारत के साथ ऐसा ही अपना पहला समझौता किया था. इस समझौते से ऐसी उम्मीद और अपेक्षा की गई है कि इससे द्विपक्षीय व्यापार 100 बिलियन डॉलर तक जा सकता है. पहले से ही, संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और 2017 के बाद से एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार है. एक हजार साल से पहले के संबंध काफी लोकप्रिय हो गए हैं, जिसमें माइग्रेशन (प्रवास) से लेकर इकनॉमी तक, ऊर्जा से लेकर खाद्य सुरक्षा तक, व्यापार से लेकर आतंकवाद का मुकाबला करने तक और सुरक्षा से लेकर रक्षा तक लगभग हर क्षेत्र शामिल हैं.
यूएई का लक्ष्य खुद को एक इकनॉमिक हब के तौर पर बदलना और कोविड के बाद के आर्थिक सुधार को प्रोत्साहित करना है, जिसमें भारत और इजरायल एक अहम भूमिका निभाते हैं. 2020 में अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. इस समझौते से इजरायल के साथ यूएई के राजनयिक जुड़ाव का मार्ग प्रशस्त हुआ और भारत के लिए उसके अरब सहयोगियों के बीच संतुलन बनाने और इजरायल के साथ सहयोग का काम पहले की अपेक्षा काफी आसान हो गया. इससे भी बढ़कर इसके कई फायदे हुए हैं. पिछले साल भारत, इजरायल और यूएई ने अपने पहले त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के तहत इजरायल की एक कंपनी ईकोपिया एक महत्वपूर्ण यूएई प्रोजेक्ट के लिए भारत में अत्याधुनिक रोबोटिक सोलर क्लीनिंग तकनीक का उत्पादन करेगी. कंपनी का मैन्युफैक्चरिंग बेस भारत में है और इसकी वैश्विक परियोजनाएं 2,700 मेगावाट तक फैली हुई हैं.
आगामी 'I2U2' समिट
पिछले साल विदेश मंत्री एस जयशंकर की इजरायल यात्रा के दौरान 'I2U2' देशों के विदेश मंत्रियों की वर्चुअल मुलाकात हुई थी. यह चर्चा व्यापारिक संबंधों में सुधार, क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने, वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए तालमेल के प्रयासों और परिवहन और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित संयुक्त बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर केंद्रित थी.
इस साल समूह को आगे ले जाने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडेन की मध्य पूर्व यात्रा के दौरान चारों देशों के नेता वर्चुअली मुलाकात करेंगे. व्हाइट हाउस के एक अधिकारी के अनुसार, "इनमें से कुछ नई साझेदारियां मध्य पूर्व से बढ़कर हैं. इस संबंध में राष्ट्रपति (बाइडेन) खाद्य सुरक्षा संकट और पूरे गोलार्द्ध में सहयोग के अन्य क्षेत्रों, जहां यूएई और इजरायल महत्वपूर्ण नवाचार केंद्र के तौर पर कार्य करते हैं. पर चर्चा के लिए I2U2 राष्ट्राध्यक्षों के साथ एक वर्चुअल समिट करेंगे. भारत के प्रधान मंत्री मोदी, यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद और इजरायल के प्रधान मंत्री बेनेट के साथ होने वाले इस अद्वितीय संबंध को लेकर राष्ट्रपति (बाइडेन) काफी उत्साहित हैं."
इस समूह में भारत का एक विशिष्ट स्थान है. भारत की अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है. भारत एकमात्र देश है जिसने रूसी-यूक्रेन संघर्ष में पक्ष लेने से पूरी तरह इनकार कर दिया है. इसके उलट अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा रूस की निंदा करने के लिए भारत पर महत्वपूर्ण दबाव डालने के बावजूद भारत रूस से रियायती दरों पर तेल और कोयले की खरीद करता रहा है.
यूएई ने भी नाटो का साथ देने से इनकार कर दिया है, जबकि इजरायल ने केवल आंशिक तौर पर रूस से संबंध तोड़े हैं. इसके अतिरिक्त यह मीटिंग अमेरिका और ईरान के बीच बाद के परमाणु कार्यक्रम को लेकर रुकी हुई वार्ता के मद्देनजर हो रही है.
ईरान फैक्टर
बाइडेन प्रशासन ने हाल ही में ईरान पर नए प्रतिबंध लगाए हैं. ईरान का घोर विरोधी इजरायल किसी भी नई डील का पुरजोर विरोध कर रहा है, जबकि यूएई भी कोई डील नहीं देखना चाहेगा. वहीं दूसरी ओर यूएई का ईरान के साथ महत्वपूर्ण आर्थिक और व्यापारिक जुड़ाव है. ईरान के साथ केवल भारत के अच्छे संबंध हैं. भारत में 'ईशनिंदा' को लेकर हो रहे हंगामे के बावजूद हाल ही में ईरानी विदेश मंत्री ने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दिल्ली का दौरा किया और द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई. इसके तुरंत बाद काफी प्रचारित अंतर्राष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (North-South Transport Corridor) के जरिए ईरान से होते हुए पहली बार रूस से माल भारत पहुंचा.
भारत को खुद की सुविधाजनक स्थिति से ईरान और I2U2 दोनों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करना होगा. इस समूह में शामिल सभी देशों की आर्थिक क्षमता को देखते हुए (ऐसे समय में जब भारतीय अर्थव्यवस्था को फिर से जोड़ा जा रहा है) भारत को इस नए क्वॉड से बहुत कुछ हासिल करना है.
(अदिति भादुड़ी, पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. आप @aditijan से ट्वीट करती हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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