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क्या मोदी-बाइडेन की 'यारी' भारत-अमेरिकी रिश्तों में भी नजर आएगी?

अनुभवी राजनेता बाइडेन भारतीय मूल के वोटरों तक पहुंच के लिए PM मोदी से मुलाकात की तस्वीरों का इस्तेमाल कर सकते हैं

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झंडे फहर रहे हैं, झंडियां लहर रही हैं, और ड्रम स्वागत समारोह में बजने के लिए थाप का इंतजार कर रहे हैं. एक ऐसा मौका, जिसे शायद आने वाले कई सालों तक याद रखा जाएगा. चूंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन स्टेडियम की रैली में शामिल नहीं हो सकते, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद उनके सामने रैली का मिजाज लेकर मिलने जा रहे हैं.

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व्हाइट हाउस समारोह में हजारों भारतीय अमेरिकियों के सज-धज के पहुंचने की उम्मीद है. वे लोग अपने सोशल मीडिया पर इस कार्यक्रम के न्यौते की फोटो सजा रहे हैं. शेखी बघार रहे हैं कि उन्हें यह खुशनसीबी मिली है और खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं. सुबह के समारोह में शामिल होने के लिए व्हाइट हाउस में कुल 125,000 लोगों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है, लेकिन यह साफ नहीं है कि असल में कितने लोग इसमें शामिल होंगे. इस समारोह के एक घंटे चलने की उम्मीद है, जोकि इस बात पर निर्भर करेगा कि इंद्र देव खुश हैं या नाखुश.

राजकीय यात्रा दुर्लभ होती हैं और कई महत्वपूर्ण बातों पर निर्भर करती हैं, जैसे भू-राजनीतिक महत्व, द्विपक्षीय दांवपेंच, कूटनीतिक गणनाएं, भविष्य की उम्मीदें और शुद्ध राजनीति का दुर्लभ संगम. पीएम मोदी की अगुवाई में भारत इस समय बेहतरीन स्थिति में नजर आता है.

व्हाइट हाउस में स्ट्रैटेजिक कम्यूनिकेशंस चीफ जॉन किर्बी के अनुसार, यह यात्रा "हमारे दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों को पुख्ता करेगी और हमारी कूटनीतिक साझेदारी को बढ़ाएगी." बाइडेन प्रशासन के तमाम बड़े अधिकारियों की तरह किर्बी ने भी इस यात्रा को ‘अति विशिष्ट’ बताया है, और दोहरी उम्मीद जताई हैं.

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मोदी के दौरे को लेकर अति उत्साह

वैसे इस अति उत्साह ने कई पर्यवेक्षकों को परेशान भी किया है जिसमें कई पूर्व अधिकारी भी शामिल हैं. क्योंकि उनका कहना है कि वादा न करना, वादा खिलाफी से ज्यादा अच्छा है. शायद यह पीढ़ियों की सोच का फर्क है. अमेरिका के सिक्योरिटी एडवाइजर जेक सुलिवन 46 साल के हैं, और सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटोनी ब्लिंकेन 61 साल के. अमेरिका के एक अंदरूनी सूत्र का कहना है कि यह एक चिंताग्रस्त देश के लिए मुश्किल इशारे करता है.

भारत-रूस, भारत-यूक्रेन और भारत में मानवाधिकारों की स्थिति से जुड़े सवालों को किर्बी ने बहुत चालाकी से टाला, और कहा कि दोनों देश "पार्टनर्स ऑफ फर्स्ट रिसॉर्ट" रहे हैं- और यह बरकरार रहेगा. उन्होंने कहा कि "हम भारत के एक महान शक्ति के रूप में उभरने का समर्थन करते हैं, भारत से अधिक महत्वपूर्ण कोई भागीदार नहीं है." यह यात्रा द्विपक्षीय सहयोग को "एक दुर्गम रास्ते" पर आगे बढ़ने में मदद करेगी.

दूसरों ने इस यात्रा पर अलग तरह की टिप्पणियां कीं. किसी ने इसे "एस्केप वेलोसिटी" कहा और किसी ने "स्काई इज द लिमिट". दूसरे देश, जिसमें से एक का नाम "सी" से शुरू होता है, इस बात पर ध्यान देंगे और अपने निष्कर्ष निकालेंगे. यह यात्रा केवल चीन को नहीं, दूसरे कई लोकतांत्रिक देशों को यह एहसास दिलाने के लिए भी है कि चाहे उनकी व्यवस्था कितनी भी बोझिल क्यों न हो और उनकी आंतरिक राजनीति कितनी ही विभाजनकारी क्यों न हो, फिर भी बेहतर की तरफ बढ़ा जा सकता है.

यह यात्रा वास्तव में महत्वपूर्ण है. अगर इसके नतीजे रक्षा सौदे, तकनीकी हस्तांतरण, निर्यात नियंत्रण में ढील, सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम तैयार करने की पहल, सरल एच-1बी रीन्यूअल प्रक्रिया के तौर पर नजर आते हैं, तो यह परिवर्तनकारी हो सकती है. मूल मुद्दा कूटनीतिक है और संकेत साफ-जोरदार है.

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बाइडेन की विदेश नीति पर बड़ा दांव

शुद्ध राजनीति के लिए- यह समझना मुश्किल नहीं कि जब हजारों भारतीय अमेरिकी व्हाइट हाउस में स्वागत समारोह में शिकरत करेंगे, मरीन बैंड धुन छोड़ेगा और उनमें से 300 से 400 (मेहमानों की फेहरिस्त रोजाना बढ़ रही है) राजकीय रात्रि भोज के लिए पहुंचेंगे तो 2024 में डेमोक्रेट पार्टी के लिए संभावनाएं और मजबूत होंगी. याद रखें कि बाइडेन एक अनुभवी राजनेता हैं- वे सारे पैंतरे लगाना जानते हैं. मरीन बैंड की धुन के साथ जब मोदी रेड कारपेट पर सीढ़ियों से नीचे उतरेंगे तो सुंदर दृश्य तैयार होगा, जिसका कभी बाद में इस्तेमाल किया जा सकता है.

बाइडेन के विभिन्न प्रवक्ताओं ने इस बात की हिमायत की है कि भारत में लोकतंत्र सुरक्षित है- इसके बावजूद कि आलोचकों, यहां तक कि प्रशासन के अंदरूनी हलकों ने भी असंतुष्टों ने भी मानवाधिकार हनन का मुद्दा बार-बार उठाया है. अभी 20 जून, मंगलवार को 18 यूएस सीनेटर और महिला-पुरुष कांग्रेसियों ने बाइडेन को चिट्ठी लिखकर याद दिलाया कि उनकी विदेश नीति मूल्य आधारित है, और उसे दोबारा यथार्थवाद की तरफ खींचे जाने की जरूरत है. 
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इस पर कई डेमोक्रेटिक सीनेटरों ने दस्तखत किए, जिनमें क्रिस वैन होलेन, एलिजाबेथ वॉरेन, शेरोड ब्राउन, बर्नी सैंडर्स और टिम काइन शामिल थे. सदन की ओर से पहली भारतीय अमेरिकी कांग्रेस महिला प्रमिला जयपाल ने भी सबसे पहले इस पर हस्ताक्षर किए थे, और इसके बाद कई दूसरे लोगों के दस्तखत इसमें दर्ज हैं. लेकिन किसी दूसरे भारतीय अमेरिकी कांग्रेसी ने इस चिट्ठी पर अपनी सहमति की मुहर नहीं लगाई, यहां तक कि रो खन्ना ने भी नहीं, जो सैंडर्स के कैंपेन मैनेजर थे और उदारवादी मुद्दों पर लगातार ट्वीट करते रहते हैं. रो खन्ना ने भारत के संबंध मजबूत करने का बीड़ा उठाया है.

कांग्रेस के एक सहयोगी ने पत्र को "एक संकेत बताया है." उसके अनुसार, “यहां के सांसद चेता रहे हैं कि भारत में घटित होने वाली कुछ अलोकतांत्रिक चीजों पर ध्यान देना जरूरी है.”

यूं यह पत्र निष्पक्ष है. इसमें यह भी कहा गया है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के लिए भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार है और सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखला को सहयोग देने में भी इसकी बड़ी भूमिका है. लेकिन फिर इस पत्र में अमेरिका की मूल्य आधारित विदेश नीति का सपना बुना गया, कुछ ऐसा, जो शायद ही कभी साकार रूप लेता है.

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भरोसे की भागीदारी

भारत के दो सबसे जिद्दी पड़ोसियों का जिक्र करें, तो पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्ते मूल्यों पर नहीं, हितों पर आधारित थे. चीन के साथ अमेरिका ने जो रिश्ते कायम किए, उसका मकसद एक कम्युनिस्ट महाशक्ति, पूर्व सोवियत संघ को दूसरे कम्युनिस्ट देश से दूर करना था. अफ्रीका की ही तरह, लैटिन अमेरिका भी अमेरिकी यथार्थवाद के क्रूर उदाहरणों से भरा पड़ा है.

लेकिन यह सब कहने का यह मतलब नहीं कि हम भारत में लोकतांत्रिक प्रवृत्तियों का बचाव कर रहे हैं. दरअसल यह लड़ाई भारत की खुद की है. इस जंग में उन अमेरिकी सांसदों को अपनी रोटियां सेंकने की जरूरत नहीं, जो राजनैतिक और आर्थिक कारणों से ऐसे कलात्मक प्रदर्शन करते रहते हैं.

तो मोदी की यात्रा और उसके नतीजों पर फिर लौटा जाए. इसकी आलोचना उसके लिए भी मुश्किल है जिसने अमेरिका-भारत के रिश्तों के तमाम उतार-चढ़ावों को देखा हो. बाइडेन की टीम सभी खामियों को दूर करने, निर्यात नियंत्रणों की पकड़ ढीली करने, नए विचार सूत्र देने, और दोनों देशों के साथ-साथ चलने पर काम कर रही है. 

भारत में तकनीकी हस्तांतरण और सह-उत्पादन के लिए जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) इंजन सौदे के अलावा, भारत में 31 ड्रोन की जनरल अटॉमिक सेल और सेमीकंडक्टर टेस्टिंग और पैकेजिंग संयंत्र के लिए गुजरात में माइक्रोन का 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश , "भरोसामंद" भागीदारी को प्रदर्शित करते हैं. यह भू-राजनीति में नया मूलमंत्र है. चाहे वह आपूर्ति श्रृंखला हो या "फ्रेंडशोरिंग", जो देश एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं, वे एक साथ काम करेंगे, ताकि अगर अगली बार महामारी आती है तो पिछली बार की तरह पूरी दुनिया ठप्प न पड़ जाए

(फ्रेंडशोरिंग एक ऐसी रणनीति है जिसमें एक देश कच्चा माल, घटक और निर्मित वस्तुएं भी उन देशों से प्राप्त करता है जो उसके साथ मूल्यों को साझा करते हैं)

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स्थिर विकास और इंडस-X

द्विपक्षीय वार्ता समाप्त होने के बाद 22 जून को जारी संयुक्त बयान में व्यापार, अंतरिक्ष, उच्च शिक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, हुआवेई का मुकाबला करने के लिए 5जी/6जी के लिए ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क का रोलआउट, और वर्क वीजा सहित सभी पहलुओं को शामिल किए जाने की उम्मीद है. असल में, यह गहमागहमी पिछले साल घोषित और जनवरी 2023 में लागू क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी, या आईसीईटी से शुरू हुई है.

पांच महीने में ही दोनों पक्षों ने यह पता लगाना शुरू कर दिया है कि प्रौद्योगिकी, रक्षा सहयोग और स्टार्टअप के लिए "अनुकूल इकोसिस्टम" कैसे बनाया जाए. आईसीईटी को व्यावहारिक रूप से प्रदर्शित करने के लिए 21 जून को यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स में इंडस–X नाम का एक सम्मेलन शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य निजी क्षेत्र और स्टार्टअप्स को एक साथ लाना है. श्रीलंका में अमेरिका के पूर्व राजदूत और अध्यक्ष अतुल केशप के अनुसार, यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल ने इस समारोह का आयोजन किया है. इसके जरिए "दुनिया को यह दर्शाना है कि हमारी मुक्त उद्यम प्रणालियों की क्या ताकत है".

उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका "स्थिरता के दो लंगर" थे. उन्होंने यह एक ऐसे देश के संदर्भ में कहा जिसका नाम नहीं लिया जाना चाहिए. भारत की डेप्यूटी चीफ ऑफ मिशन श्रीप्रिया रंगनाथन ने कहा कि भारत-अमेरिका रक्षा संबंध "जीरो टू हीरो" हो गए हैं. भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने यह ऐलान किया है कि जो दो देश "अब तक डेटिंग" कर रहे थे, अब उनका रिलेशनशिप स्टेटस वहां पहुंच चुका है, जिसे फेसबुक पर "जटिल" कहा जाता है.

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इंडस-एक्स का मकसद अत्याधुनिक रक्षा तकनीकों को विकसित करने के लिए अनुसंधान के क्षेत्र में दो प्रणालियों को जोड़ना है. यदि निर्यात नियंत्रणों को युक्तिसंगत बनाने के बाद स्थितियों में बदलाव आता है, तो उसका वही फायदा जो मुक्त व्यापार समझौते से हुआ है.

उम्मीद है कि पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा फसल की आखिरी सिंचाई साबित होगी, और इसके फल अगले साल से तैयार मिलेंगे.  

(सीमा सिरोही वाशिंगटन स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @seemasirohi है. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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