प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार (Modi cabinet Expansion )करके जातिय गणित को साधने की कोशिश की गई है.एक बड़े फेरबदल में 12 मंत्रियों को हटाया गया जबकि 36 नए चेहरों को शामिल किया गया. राज्य स्तर के 7 मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया.
कैबिनेट में सोशल इंजीनियरिंग पर बहुत जोर दिया गया है, क्योंकि भारत के चुनावों में मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कास्ट फैक्टर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. इस लिए 47 मंत्री अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति के हैं, जो उनका अब तक का सर्वोच्च प्रतिनिधित्व है.
भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सवर्णों के वर्चस्व वाली पार्टी बनने से लेकर मोदी के नेतृत्व में पिछड़े और दलितों की आवाज बनने तक का लंबा सफर तय किया है.
उन राज्यों पर विशेष ध्यान दिया गया है जहां अगले साल चुनाव होने हैं. यूपी से 7, गुजरात से 6, उत्तराखंड और मणिपुर से 1-1 मंत्री शामिल किए गए हैं. हिमाचल से 1 मंत्री (अनुराग ठाकुर) को पदोन्नत किया गया है.
उत्तर प्रदेश में जातिय गणित साधने की कोशिश
2022 के विधानसभा चुनावों में गैर-यादव ओबीसी (एनवाईओबीसी), ब्राह्मण और गैर-जाटव दलितों के निर्वाचन क्षेत्रों को टार्गेट करके जीत हासिल करने के लिए यूपी के नेताओं को कैबिनेट में शामिल किया गया है. इस लिस्ट में शामिल हैं.
अनुप्रिया पटेल (कुर्मी - एनवाईओबीसी),
कौशल किशोर (पासी - गैर जाटव),
एस.पी.एस बघेल (गडेरिया-धनगर-एससी),
पंकज चौधरी (कुर्मी - एनवाईओबीसी),
भानु प्रताप सिंह वर्मा (कोरी - एनवाईओबीसी),
बी.एल. वर्मा (लोध - एनवाईओबीसी) और
अजय मिश्रा (ब्राह्मण)
वहीं उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज योगी प्रशासन के तहत ठाकुरों के वर्चस्व में नाखुश हैं. जबकि कुर्मी समुदाय से दो लोगों को मंत्री बनाया गया है, समुदाय के एक अनुभवी संतोष गंगवार ने अपना इस्तीफा सौंप दिया.
बीजेपी ने इस फेरबदल के जरिए एनवाईओबीसी, सवर्ण और गैर जाटवों के बीच के अपने वोटबैंक को सकारात्मक संकेत देने का प्रयास किया है. बीजेपी को उम्मीद है कि अगले साल होने वाले चुनावों में इस प्रतिनिधित्व का भरपूर फायदा मिलेगा.भारत में सभी समुदाय राजनीतिक प्रतिनिधित्व चाहते हैं, सत्ता की ताकत पाना चाहते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो कि उनकी मांगों को पूरा किया जायेगा और हितों की रक्षा की जाएगी. मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने से उनको पता चलता है कि पार्टी उनकी जाति के नेताओं का सम्मान करती है.
यूपी में पीएम मोदी के पहले फेरबदल से बीजेपी को मिली थी जीत
मोदी 1.O में, पहला कैबिनेट फेरबदल जुलाई 2016 में हुआ था. शामिल किए गए विभिन्न मंत्रियों में से 3 यूपी के थे, जहां फरवरी 2017 में छह महीने में चुनाव होने थे. कृष्णा राज (एससी), अनुप्रिया पटेल (कुर्मी - एनवाईओबीसी) ), और महेंद्र नाथ पांडे (ब्राह्मण) को मंत्री बनाया गया.
बीजेपी ने यूपी में 320 से ज्यादा सीटें जीतकर बड़ी जीत हासिल की. इन तीन समुदायों के मतदान पैटर्न के विश्लेषण से पता चलता है:
ब्राह्मणों के बीच पार्टी का समर्थन 2012 में 38% से बढ़कर 2017 में 62% हो गया. 24% की बढ़ोतरी हुई
गैर यादव ओबीसी के बीच पार्टी का समर्थन 2012 में मिले 17% से बढ़कर 2017 58% हो गया. 41% की बढ़ोतरी हुई.
दलितों के बीच पार्टी समर्थन 2012 में मिले 5% से बढ़कर 2017 में 17% हो गया. 12% की बढ़ोतरी हुई.
2014 के आम चुनावों की तुलना से पता चलता है कि पार्टी को 2017 के चुनावों से पहले ही इन समुदायों से महत्वपूर्ण समर्थन मिल चुका था.2014 की तुलना में इसने सामान्य जाति और एनवाईओबीसी मतदाताओं के बीच मामूली समर्थन खो दिया और दलितों के बीच मामूली बढ़त हासिल की.
भले ही दोनों चुनावों की तुलना नहीं की जा सकती है, लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि बीजेपी का कुल वोट शेयर काफी हद तक समान था और मोदी फैक्टर ने 2014 और 2017 दोनों चुनावों में काम किया.
2017 में फेरबदल के बाद भी बीजेपी को चुनावी फायदा
अब आइए 2019 के आम चुनाव से डेढ़ साल पहले सितंबर 2017 में मोदी द्वारा किए गए कैबिनेट फेरबदल पर चलते हैं. यूपी के दो सांसद सत्यपाल सिंह (जाट) और शिव प्रताप शुक्ल (ब्राह्मण) को मंत्री बनाया गया,
अखिलेश यादव की सपा, मायावती की बसपा और अजीत सिंह की रालोद द्वारा गठित महागठबंधन के बावजूद भाजपा ने 2014 (64 बनाम 73 सीटों) में जीती गई अधिकांश सीटों को बरकरार रखा. इन समुदायों के मतदान पैटर्न के विश्लेषण से पता चलता है:
ब्राह्मणों के बीच पार्टी का समर्थन 2014 में 72% से 5% बढ़कर 2019 में 77% हो गया.
गैर-यादव ओबीसी के बीच पार्टी का समर्थन 2014 में 60% से बढ़कर 2019 में 76% हो गया.
जाटवों के बीच पार्टी का समर्थन 2014 में 15% से 6% बढ़कर 2019 में 21% हो गया.
गैर-जाटवों के बीच पार्टी का समर्थन 2014 में 45% से 15% बढ़कर 2019 में 60% हो गया.
जाटों के बीच पार्टी का समर्थन 2014 के 77 प्रतिशत से घटकर 2019 में 57 प्रतिशत रह गया.
यहां, हम देखते हैं कि 2016 और 2017 में यूपी में कैबिनेट विस्तार से बीजेपी को फायदा हुआ, जहां इसके प्रमुख समर्थक समूहों के सदस्यों को प्रतिनिधित्व दिया गया था. ये समूह जाटों को छोड़कर, नीचे दी गई तालिका से देखे गए अनुसार भाजपा के पीछे और समेकित हो गए.
दो चुनावों में भाजपा के वोट शेयर का जातिवार विभाजन यह भी दिखाता है कि इन नियुक्तियों से पार्टी को फायदा हुआ.
वोट हासिल करने के लिए सिर्फ जाति का प्रतिनिधित्व काफी नहीं है
इस विश्लेषण से पता चलता है कि मोदी 1.O के दौरान कैबिनेट फेरबदल में अपने कोर वोटर/ जाति समूहों के मंत्रियों को शामिल करके भाजपा ने यूपी में चुनावी फायदा उठाया. यूपी जैसे जाति-प्रधान समाज में प्रतिनिधित्व एक मुख्य संकेत है. क्या यह ट्रेंट जारी रहेगा, ये देखा जाना बाकी है.
हालांकि, किसी विशेष जाति से पार्टी के समर्थन में वृद्धि होना आधार नहीं बन सकता है कि उस जाति को प्रतिनिधित्व ज्यादा मिल जाए. इसके लिए प्रतिनिधियों में गुणात्मक कारक भी देखे जा सकते हैं. उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के 2019 चुनाव में हुए बसपा-सपा-रालोद के बीच अवसरवादी गठबंधन के विरोध में ध्रुवीकरण होना.
कैबिनेट में फेरबदल करने से 2017 के यूपी चुनाव में हुआ फायदा क्या दूसरे राज्यों में भी कारगर साबित हो सकता है. इसपर अभी अधिक शोध किए जाने की जरूरत है कि क्या खास चुनावों से पहले कैबिनेट में फेरबदल से चुनाव जीतने में मदद करता है या किसी खास जाति को साधने में मददगार साबित होगा?
(लेखक एक स्वतंत्र राजनैतिक टिप्पणीकार हैं और @politicalbaaba पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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