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PMC बैंक स्कैम: सरकार चाहती तो ग्राहकों का 1 करोड़ तक होता इंश्योर

अगर डिपॉजिट इंश्योरेंस की रकम इंडेक्स से जुड़ी होती तो हर खाते पर एक करोड़ रुपये कवर होते

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वो कौन था वो कहां का था क्या हुआ था उसे

सुना है आज कोई शख्स मर गया यारों

1978 में आई फिल्म ‘गमन’ के लिए लिखी गईं शहरयार की पक्तियां, मुंबई में 15 अक्टूबर को हुई तीन मौतों की पीड़ा को बखूबी बयां करती हैं.

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अब एक बार फिर से शहरयार की तरफ लौटते हैं

अजीब सानेहा मुझ पर गुजर गया यारों

मैं अपने साये से कल रात डर गया यारों

जी हां, हैरतंगेज PMC बैंक घोटाला वह दुखद सानेहा (हादसा) था, जिसने संजय, फत्तोमल और योगिता को इतना खौफजदा कर दिया था कि वे टूट गए और इस दुनिया से रुखसत हो गए.

तीन हफ्ते गुजर चुके हैं और PMC बैंक मामले से मैं अभी भी स्तब्ध हूं. जिस बेधड़क अंदाज में घोटाला हुआ, उससे अधिक हैरानी अभी तक इस मामले को हैंडल करने के सरकार के तरीके से हुई है. जरा मुझे इस बारे में बताने दीजिए.

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जिस दुस्साहस से PMC बैंक घोटाले को अंजाम दिया गया, उसके सामने तो बॉनी और क्लाइड की डकैतियां तक छोटी पड़ जाएं. रईसों की जिंदगी जीने वाले बाप-बेटे, राकेश और सारंग वधावन ने मुंबई के लचर रेगुलेशन वाले पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक में 44 बैंक खाते खोल रखे थे. उनकी कारगुजारियां 1990 के दशक के आखिर में शुरू हुईं और जल्द ही बैंक के सामने नकदी संकट खड़ा हो गया. तब राकेश वधावन ने ‘बहादुरी’ दिखाते हुए PMC को बचाने के लिए 100 करोड़ रुपये जमा कराए और जल्द ही हालात ‘सामान्य’ हो गए.

पहले अपराध में आसानी से छूटने के बाद वधावन पिता-पुत्र और बेधड़क (यानी दुस्साहसी) हो गए. वे अपने इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रुप HDIL के पूर्व निदेशक वरयाम सिंह को बैंक का चेयरमैन बनाने में सफल रहे. एक और शख्स, जॉय थॉमस बैंक का मैनेजिंग डायरेक्टर बन गया. जॉय की दो बीवियां हैं. एक मुंबई में और पुणे में जुनैद नाम से थॉमस ने दूसरी बीवी रखी हुई थी. अब तक वधावन बदकिस्मत बैंक के बांटे गए कुल कर्ज का 73 प्रतिशत यानी 6,500 करोड़ रुपये डकार चुके थे. यह डकैती रिजर्व बैंक और ऑडिटरों की नाक के नीचे हुई थी. क्या आप जानते हैं कि इस लूट को कैसे अंजाम दिया गया? कुछ ऐसी जानकारियां सामने आई हैं, जिनसे इस पहेली को सुलझाया जा सकता है.

वधावन परिवार के 44 बैंक खातों को 21 हजार- जी हां, इक्कीस हजार- फर्जी खातों के पीछे छिपाया गया था. इनमें से कई खाते उन डिपॉजिटर्स के नाम पर खोले गए थे, जिनकी मौत हो चुकी थी. कथित तौर पर बैंक ने ओवरड्राफ्ट की मंजूरी दी और हवाला के जरिये नकदी दुबई भेजी गई. उसके बाद काले धन को PMC के बैंक खातों में डिपॉजिट करके उसे सफेद धन में बदला गया. वधावन परिवार को जो कर्ज दिया गया था, वह छिपा हुआ तो था, लेकिन असल बहीखाते में भी दर्ज था. 21 हजार डिपॉजिटर्स के फर्जी लोन खातों की जानकारी रिजर्व बैंक को एडवांस्ड मास्टर इंडेंट में दी गई. इस तरह से वधावन के कर्ज पर परदा डाला गया और नतीजा 31 मार्च को PMC बैंक के ब्लॉकबस्टर नतीजे के रूप में सामने आया.
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PMC बैंक की बैलेंसशीट

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रिजर्व बैंक जब अपने वॉल्ट में बैंक के बारे में फर्जी सूचनाएं ठूंस रहा था, तब वधावन बाप-बेटे चहकते हुए उसके पैसों से दैसॉ फाल्कन 200, एक बॉम्बार्डियर चैलेंजर, एक लग्जरी यॉट (जो मालदीव में खड़ा है) खरीद रहे थे. और जैसा कि पोंजी स्कैम में होता है, यह पार्टी तब तक चलती रही, जब तक कि कैश एक छिपाए हुए खाते से दूसरे में जाता रहा और इस तरह से गड्ढे भरे जाते रहे. हालांकि, एक तरफ वरयाम सिंह घोड़े खरीद रहा था, जॉय या जुनैद दूसरी पत्नी के साथ मिलकर अपार्टमेंट्स अपने नाम कर रहा था और दूसरी तरफ बाप-बेटे दोनों हाथ से बैंक के पैसे लुटाकर जिंदगी के मजे लूट रहे थे. ऐसे में जब कैश खत्म होने से पोंजी चेन पर ब्रेक लगा तो बेचारे बैंक डिपॉजिटर्स बेआसरा खड़े नजर आए.

जब बिल्ली को मारा जा सकता है, तब उसके गले में घंटी क्यों बांधी जाए!

खैर, इसके बाद जो हुआ, वह और भी ट्रैजिक था और रिजर्व बैंक में जिसने भी यह पॉलिसी बनाई हो, वह तो...रिटायर होने के ही लायक है. PMC के स्तब्ध डिपॉजिटर्स को बताया गया कि वे अगले छह महीने में अपने खाते से अधिकतम 1,000 रुपये ही निकाल सकते हैं. जी, बस इतना ही. छह महीने में महज हजार रुपये. इस पर जब हायतौबा मची, जो मचनी भी चाहिए थी, तब रिजर्व बैंक ने इस लिमिट को पहले 10,000, फिर 25000 और उसके बाद 40,000 रुपये किया. ऐसा क्यों किया गया, यह समझ से परे है. पहली बात तो यह है कि भारत में डिपॉजिट गारंटी स्कीम है, जो बैंक के दिवालिया होने पर हर जमाकर्ता को हर एग्रीगेट बैंक खाते पर अधिकतम एक लाख रुपये की गारंटी देती है. अगर आपने समझदारी से दो जॉइंट एकाउंट खोले हों, यानी पहले में ऊपर पत्नी का नाम और दूसरे में पहले पति का नाम हो, तो आपके दो लाख रुपये सुरक्षित रहेंगे.

मैं उस अधिकारी से पूछना चाहता हूं, जिसने ‘छह महीने में अधिकतम हजार रुपये निकालने’ वाला बेतुका और हैरान करने वाला आदेश दिया- सर, आपने एक सिंपल आदेश क्यों नहीं दिया कि ‘डिपॉजिटर्स अपने खाते से अधिकतम एक लाख रुपये तक’ की रकम निकाल सकते हैं क्योंकि हर खाते में जमा इतनी रकम डिपॉजिट इंश्योरेंस के तहत कवर्ड है. अगर यह आदेश दिया जाता तो शायद बैंक के 90 प्रतिशत जमाकर्ताओं को अपना पूरा पैसा मिल गया होता और इससे सरकारी खजाने पर चवन्नी तक का बोझ नहीं पड़ता. वहीं, एक लाख रुपये तक की रकम इंश्योरेंस कंपनी से रिकवर कर ली जाती. क्या किसी ने इस बारे में सोचा भी था? क्या किसी को डिपॉजिट इंश्योरेंस रूल की जानकारी नहीं थी? या किसी ने इसकी परवाह ही नहीं की?

अफसोस की बात यह है कि हर सरकार को बैन, फ्रीज, स्टॉप और चोक जैसे काम आसान लगते हैं. बस कलम चलाई और एक झटके में काम खत्म. आखिर, वैकल्पिक तरीके निकालने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, कई बार वह आसान रास्ता नहीं होता और अक्सर उसमें मुश्किलें भी आती हैं. पॉजिटिव गवर्नेंस और क्रिएटिव सॉल्यूशंस के लिए दिमाग लगाना पड़ता है. ऐसे में बिल्ली के गले में घंटी बांधने का मुश्किल काम कौन करे, जब उसकी जान लेना इतना आसान है?

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अगर डिपॉजिट इंश्योरेंस की रकम इंडेक्स से जुड़ी होती तो हर खाते पर एक करोड़ रुपये कवर होते!

मैं यहां एक अलग मुद्दे की तरफ आपको ले जा रहा हूं. भारत में हर जमाकर्ता के लिए 1 लाख रुपये के इंश्योरेंस का नियम 1993 में यानी करीब 25 साल पहले लागू हुआ था. उसके बाद से इसमें बदलाव नहीं हुआ है, जबकि इकनॉमी कई गुना बड़ी हो चुकी है और महंगाई दर के कारण इस बीच कैश की वैल्यू कम होती गई है.

अगर एक लाख रुपये के डिपॉजिट इंश्योरेंस को सिर्फ महंगाई दर से जोड़ा गया होता तो यह रकम आज 15 लाख रुपये से अधिक होती. इसके साथ अगर इस रकम को जीडीपी मल्टीपल से जोड़ा जाता तो रकम एक करोड़ रुपये के करीब पहुंच जाती और इस मामले में तब हम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों में शामिल हो जाते. चीन हर खाते पर 81,000 डॉलर के डिपॉजिट की गारंटी देता है. यहां तक कि दिवालिया हो चुका और छोटा देश ग्रीस भी हर डिपॉजिटर को 1,00,000 यूरो की गारंटी देता है. दूसरी तरफ, 5 लाख करोड़ डॉलर की तरफ बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था अपने डिपॉजिटर को सिर्फ एक लाख रुपये की गारंटी देती है. यह शर्मनाक है.

इस मिसाल से आप पॉजिटिव गवर्नेंस और ‘फलां को बैन करो, ढिमका को बैन करो’ की नीतियों के कैंसर में फर्क समझ सकते हैं. इसमें से एक नीति पर चलने पर PMC के हर डिपॉजिटर को 50 लाख रुपये से अधिक का पूरा कैश निकालने की आजादी मिलती और सरकार को कोई नुकसान भी नहीं होता. वहीं, दूसरे में आप बगैर सोचे-समझे डिपॉजिटर्स को छह महीने तक अधिकतम 1,000 रुपये निकालने का फरमान सुना देते हैं, जिसका अंजाम संजय गुलाटी, फत्तोमल पंजाबी और डॉ. योगिता बिजलानी की मौत के रूप में सामने आता है.

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