ADVERTISEMENTREMOVE AD
मेंबर्स के लिए
lock close icon

PMGKAY स्कीम: क्या मुफ्त राशन भारत के गरीबों की थाली भरने के लिए काफी है?

हमें न केवल देश की बड़ी आबादी के लिए मुफ्त राशन की जरूरत है, बल्कि सबसे निचले तबके को और ज्यादा देना चाहिए.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

सुखी संपन्न होने के नाते मैं डायट पर हूं...लगातार 19 घंटे उपवास करता हूं, बाकी के पांच घंटे में खाना खाता हूं. अपनी कैलोरी प्रतिदिन 800 से कम रखता हूं. यह अमीरों की विलासिता है लेकिन जो गरीब लोग होते हैं वो कड़ी मेहनत करके गुजारा चलाते हैं, वो भूखे रहने का जोखिम नहीं उठा सकते.  उन्हें जिंदा रहने के लिए ही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) की आवश्यकता है, जिसे अभी तीन महीने के लिए बढ़ाया गया है. वास्तव में, भारत के गरीबों को इसे हमेशा के लिए जारी रखने की जरूरत है. मैं समझाता हूं कि आखिर ऐसा क्यों करना चाहिए.   

PMGKAY स्कीम: क्या मुफ्त राशन भारत के गरीबों की थाली भरने के लिए काफी है?

  1. 1. क्या गरीब अभी भी कुपोषित बने हुए हैं?

    मजदूरों को रोज भारी मेहनत करने के लिए कम से कम 3000 कैलोरी की जरूरत होती है. अगर वो थोड़ा कम भारी यानि मध्यम श्रेणी की मेहनत करते हैं तो उन्हें रोजाना कम से कम 2,700 कैलोरी की आवश्यकता होती है. श्रम और रोजगार मंत्रालय ने 2019 में एक एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी, जिसने प्रति दिन 2,400 औसतन कैलोरी शरीर में जुटाने का लक्ष्य दिया था. बेशक, इस औसत में मेरे जैसे लोग शामिल हैं जो ज्यादा मेहनत का काम नहीं करते और उन्हें कम कैलोरी की जरूरत होती है. 

    महत्वपूर्ण बात यह है कि समिति ने सिफारिश की कि लोग प्रतिदिन कम से कम 50 ग्राम प्रोटीन और 30 ग्राम वसा का सेवन करें.

    इसका मतलब है, एक मेहनत मजदूरी करने वाले को अभी भी कार्बोहाइड्रेट से कम से कम 2,200-2,500 कैलोरी की आवश्यकता होगी, जैसे कि खाद्यान्न, शुगर और कार्ब वाली सब्जियां और फलियां.  

    Expand
  2. 2. कम सब्सिडी और खाने की कमी  

    वास्तव में भारत के गरीबों को प्रोटीन और वसा मिल नहीं पाता है और वो अपनी कैलोरी की जरूरत अनाज और आलू से जुटाते हैं. अगर उन्हें चावल से 2,500 कैलोरी प्राप्त करनी है तो, तो उन्हें प्रतिदिन कम से कम 650 ग्राम चाहिए. अगर यह अलग-अलग कैलोरी की जरूरत वाले पांच लोगों का परिवार होता, तो कोई यह मान सकता था कि उन्हें प्रति दिन कम से कम तीन किलो चावल, या लगभग 90 किलो प्रति माह की आवश्यकता होगी.

    अगर उन्हें इसे वास्तविक, गैर-सब्सिडी वाले, बाजार मूल्य पर ये सब खरीदना पड़े तो इसकी लागत कितनी होगी?

    यह उन्हें कम से कम प्रति माह 3,500-4,000 रुपये पड़ेगा. यानी सिर्फ चावल खरीदना है और कुछ नहीं. आलू, प्याज, खाद्य तेल, थोड़ी मात्रा में दालें, नमक, मसाले, खाना पकाने के लिए ईंधन को जोड़ें तो हर महीने कम से कम 5,500 रुपये का खर्च आता है. इतने में पांच लोगों के एक परिवार को जो खाना मिलेगा वो कैलोरी के हिसाब से पर्याप्त पौष्टिक नहीं होगा. 

    अब जरा ये मानें कि परिवार अपनी कमाई का दो तिहाई हिस्सा खाने पर खर्च कर देता है. इसका मतलब यह हुआ है कि पांच सदस्यों का परिवार जो 5500 रुपए का खर्चा उठा सकता है उनकी कमाई कम से कम 8,333 रुपए होनी चाहिए.

    अब ग्रामीण भारत में कितने परिवार ऐसे हैं…ज्यादातर परिवार इससे कम ही कमा पाते हैं ? हालांकि ऐसा अभी कोई ताजा आंकड़ा नहीं है, लेकिन नाबार्ड (NABARD) का एक ऑल इंडिया रूरल फाइनेंशियल इन्क्लूजन सर्वे का एक डाटा है, जो साल 2018-19 में किया गया था, उससे पता चलता है कि कि 70 फीसदी जो ग्रामीण आबादी है वो बताए गए कमाई के आंकड़े से कम ही कमाते हैं.

    अगर इसमें हम धनी राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, केरल को जोड़ लें तो यह सब 80 फीसदी तक चला जाता है. इसलिए भारत की 70-80 फीसदी आबादी अपने लिए अनाज बाजार मूल्य पर खरीद नहीं सकते.  अगर उन्हें सरकारी सब्सिडी नहीं मिले तो वो अनाज खरीद नहीं पाएंगे और उन्हें भूखे रहना पड़ेगा.  

    Expand
  3. 3. क्या फ्री राशन देश की भूख मिटाएगा?

    एक भारतीय मजदूर को औसतन हर महीने 18 किलो चावल की जरूरत होती है.इसमें से उन्हें अब 10 किलो लगभग 150 रुपये में मिल जाता है. बाकी आठ किलो उन्हें अभी भी खुले बाजार में लेना पड़ता है. इसके लिए उन्हें 300-320 रुपये की कीमत चुकानी पड़ती है.  लेकिन सरकारी सब्सिडी वाली स्कीम से पांच लोगों के एक परिवार को लगभग 2,250-2,350 रुपये खर्च करके पर्याप्त चावल मिल जाता है. अगर वे अपने शेष खर्चों को कम करें तो 3,500 रुपये प्रति माह पर गुजारा हो जाता है.

    अब इस बात पर भी ध्यान दें कि, NAFIS का 2018-19 वाला सर्वे हमें बताता है कि 30% ग्रामीण परिवार जो कमाते हैं वो तय कमाई सीमा से कम है. अगर हम यह भी मान लें कि उनकी आय में कुछ बढ़ोतरी हुई होगी तब भी लगभग 25% सबसे गरीब ग्रामीण परिवार प्रति माह 3,500 रुपये ही कमाता है.

    इसका मतलब है कि मौजूदा खाद्य सब्सिडी योजना जारी रखने के बाद भी ग्रामीण आबादी का एक चौथाई हिस्सा भूखा रहेगा.

    इसलिए, हमें न केवल भारतीयों की एक बड़ी आबादी को मुफ्त राशन देने की जरूरत है बल्कि  80 करोड़ लोगों को कवर करने के लिए भी बहुत कुछ चाहिए - विशेष रूप से पिरामिड के सबसे निचले हिस्से के लिए, क्योंकि अभी जितना कुछ किया जा रहा है उससे ज्यादा करने की आवश्यकता है.

    Expand
  4. 4. क्या पोर्शन कंट्रोल करने से गरीब भारतीयों को मदद मिलेगी ?

    यह कहानी का एक हिस्सा है. जैसा कि मैंने पहले कहा, हमारे देश में गरीब लोगों को उनकी अधिकांश कैलोरी चावल, गेहूं और अन्य मोटे अनाज से मिलती है. सरकार की अपनी कमिटी का कहना है कि आदर्श रूप से उन्हें रोजाना 50 ग्राम प्रोटीन और 30 ग्राम वसा का सेवन करना चाहिए.

    हमें जितनी प्रोटीन चाहिए उसका लगभग आधा हिस्सा चावल खाने से आता है. बाकी जो बचा उसमें 9 ग्राम आधा कप उबली हुई दाल से, एक अंडे से लगभग 6 ग्राम, एक कप दूध से 8 ग्राम पूरा किया जा सकता है.

    दूसरे शब्दों में अगर कहें तो पांच लोगों के परिवार को पर्याप्त पोषण मिलेगा यदि उन्हें 5 किलो दाल, 30 लीटर दूध और 5 किलो खाद्य तेल उपलब्ध कराया जाए. इसका मतलब हुआ कि एक व्यक्ति को एक किलो दाल, छह लीटर दूध और एक किलो खाद्य तेल चाहिए. 

    इसलिए हमें सब्सिडी घटाना नहीं चाहिए बल्कि इसे बढ़ाने की जरूरत है. तो, अगली बार जब आप अपने परिवार के व्हाट्सएप ग्रुप पर एक वायरल फॉरवर्ड करें कि कैसे मुफ्त-भोजन योजना टैक्सपेयर्स के पैसे की भारी बर्बादी है और इसे खत्म करना जरूरी है क्योंकि यह गरीबों को आलसी बना रहा है, तो भारत के  मैरी एंटोनेट जैसे उच्च मध्य वर्ग के लोग इस तरह का सुझाव देने से पहले दो बार जरूर सोचें. 

    (लेखक एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफिट के सीनियर मैनेजिंग एडिटर थे. अब वे स्वतंत्र यूट्यूब चैनल 'देसी डेमोक्रेसी' चलाते हैं. @AunindyoC उनका ट्विटर हैंडल है. यह ओपीनियन आर्टिकल है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं, क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

    Expand

क्या गरीब अभी भी कुपोषित बने हुए हैं?

मजदूरों को रोज भारी मेहनत करने के लिए कम से कम 3000 कैलोरी की जरूरत होती है. अगर वो थोड़ा कम भारी यानि मध्यम श्रेणी की मेहनत करते हैं तो उन्हें रोजाना कम से कम 2,700 कैलोरी की आवश्यकता होती है. श्रम और रोजगार मंत्रालय ने 2019 में एक एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी, जिसने प्रति दिन 2,400 औसतन कैलोरी शरीर में जुटाने का लक्ष्य दिया था. बेशक, इस औसत में मेरे जैसे लोग शामिल हैं जो ज्यादा मेहनत का काम नहीं करते और उन्हें कम कैलोरी की जरूरत होती है. 

महत्वपूर्ण बात यह है कि समिति ने सिफारिश की कि लोग प्रतिदिन कम से कम 50 ग्राम प्रोटीन और 30 ग्राम वसा का सेवन करें.

इसका मतलब है, एक मेहनत मजदूरी करने वाले को अभी भी कार्बोहाइड्रेट से कम से कम 2,200-2,500 कैलोरी की आवश्यकता होगी, जैसे कि खाद्यान्न, शुगर और कार्ब वाली सब्जियां और फलियां.  

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कम सब्सिडी और खाने की कमी  

वास्तव में भारत के गरीबों को प्रोटीन और वसा मिल नहीं पाता है और वो अपनी कैलोरी की जरूरत अनाज और आलू से जुटाते हैं. अगर उन्हें चावल से 2,500 कैलोरी प्राप्त करनी है तो, तो उन्हें प्रतिदिन कम से कम 650 ग्राम चाहिए. अगर यह अलग-अलग कैलोरी की जरूरत वाले पांच लोगों का परिवार होता, तो कोई यह मान सकता था कि उन्हें प्रति दिन कम से कम तीन किलो चावल, या लगभग 90 किलो प्रति माह की आवश्यकता होगी.

अगर उन्हें इसे वास्तविक, गैर-सब्सिडी वाले, बाजार मूल्य पर ये सब खरीदना पड़े तो इसकी लागत कितनी होगी?

यह उन्हें कम से कम प्रति माह 3,500-4,000 रुपये पड़ेगा. यानी सिर्फ चावल खरीदना है और कुछ नहीं. आलू, प्याज, खाद्य तेल, थोड़ी मात्रा में दालें, नमक, मसाले, खाना पकाने के लिए ईंधन को जोड़ें तो हर महीने कम से कम 5,500 रुपये का खर्च आता है. इतने में पांच लोगों के एक परिवार को जो खाना मिलेगा वो कैलोरी के हिसाब से पर्याप्त पौष्टिक नहीं होगा. 

अब जरा ये मानें कि परिवार अपनी कमाई का दो तिहाई हिस्सा खाने पर खर्च कर देता है. इसका मतलब यह हुआ है कि पांच सदस्यों का परिवार जो 5500 रुपए का खर्चा उठा सकता है उनकी कमाई कम से कम 8,333 रुपए होनी चाहिए.

अब ग्रामीण भारत में कितने परिवार ऐसे हैं…ज्यादातर परिवार इससे कम ही कमा पाते हैं ? हालांकि ऐसा अभी कोई ताजा आंकड़ा नहीं है, लेकिन नाबार्ड (NABARD) का एक ऑल इंडिया रूरल फाइनेंशियल इन्क्लूजन सर्वे का एक डाटा है, जो साल 2018-19 में किया गया था, उससे पता चलता है कि कि 70 फीसदी जो ग्रामीण आबादी है वो बताए गए कमाई के आंकड़े से कम ही कमाते हैं.

अगर इसमें हम धनी राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, केरल को जोड़ लें तो यह सब 80 फीसदी तक चला जाता है. इसलिए भारत की 70-80 फीसदी आबादी अपने लिए अनाज बाजार मूल्य पर खरीद नहीं सकते.  अगर उन्हें सरकारी सब्सिडी नहीं मिले तो वो अनाज खरीद नहीं पाएंगे और उन्हें भूखे रहना पड़ेगा.  

0

क्या फ्री राशन देश की भूख मिटाएगा?

एक भारतीय मजदूर को औसतन हर महीने 18 किलो चावल की जरूरत होती है.इसमें से उन्हें अब 10 किलो लगभग 150 रुपये में मिल जाता है. बाकी आठ किलो उन्हें अभी भी खुले बाजार में लेना पड़ता है. इसके लिए उन्हें 300-320 रुपये की कीमत चुकानी पड़ती है.  लेकिन सरकारी सब्सिडी वाली स्कीम से पांच लोगों के एक परिवार को लगभग 2,250-2,350 रुपये खर्च करके पर्याप्त चावल मिल जाता है. अगर वे अपने शेष खर्चों को कम करें तो 3,500 रुपये प्रति माह पर गुजारा हो जाता है.

अब इस बात पर भी ध्यान दें कि, NAFIS का 2018-19 वाला सर्वे हमें बताता है कि 30% ग्रामीण परिवार जो कमाते हैं वो तय कमाई सीमा से कम है. अगर हम यह भी मान लें कि उनकी आय में कुछ बढ़ोतरी हुई होगी तब भी लगभग 25% सबसे गरीब ग्रामीण परिवार प्रति माह 3,500 रुपये ही कमाता है.

इसका मतलब है कि मौजूदा खाद्य सब्सिडी योजना जारी रखने के बाद भी ग्रामीण आबादी का एक चौथाई हिस्सा भूखा रहेगा.

इसलिए, हमें न केवल भारतीयों की एक बड़ी आबादी को मुफ्त राशन देने की जरूरत है बल्कि  80 करोड़ लोगों को कवर करने के लिए भी बहुत कुछ चाहिए - विशेष रूप से पिरामिड के सबसे निचले हिस्से के लिए, क्योंकि अभी जितना कुछ किया जा रहा है उससे ज्यादा करने की आवश्यकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या पोर्शन कंट्रोल करने से गरीब भारतीयों को मदद मिलेगी ?

यह कहानी का एक हिस्सा है. जैसा कि मैंने पहले कहा, हमारे देश में गरीब लोगों को उनकी अधिकांश कैलोरी चावल, गेहूं और अन्य मोटे अनाज से मिलती है. सरकार की अपनी कमिटी का कहना है कि आदर्श रूप से उन्हें रोजाना 50 ग्राम प्रोटीन और 30 ग्राम वसा का सेवन करना चाहिए.

हमें जितनी प्रोटीन चाहिए उसका लगभग आधा हिस्सा चावल खाने से आता है. बाकी जो बचा उसमें 9 ग्राम आधा कप उबली हुई दाल से, एक अंडे से लगभग 6 ग्राम, एक कप दूध से 8 ग्राम पूरा किया जा सकता है.

दूसरे शब्दों में अगर कहें तो पांच लोगों के परिवार को पर्याप्त पोषण मिलेगा यदि उन्हें 5 किलो दाल, 30 लीटर दूध और 5 किलो खाद्य तेल उपलब्ध कराया जाए. इसका मतलब हुआ कि एक व्यक्ति को एक किलो दाल, छह लीटर दूध और एक किलो खाद्य तेल चाहिए. 

इसलिए हमें सब्सिडी घटाना नहीं चाहिए बल्कि इसे बढ़ाने की जरूरत है. तो, अगली बार जब आप अपने परिवार के व्हाट्सएप ग्रुप पर एक वायरल फॉरवर्ड करें कि कैसे मुफ्त-भोजन योजना टैक्सपेयर्स के पैसे की भारी बर्बादी है और इसे खत्म करना जरूरी है क्योंकि यह गरीबों को आलसी बना रहा है, तो भारत के  मैरी एंटोनेट जैसे उच्च मध्य वर्ग के लोग इस तरह का सुझाव देने से पहले दो बार जरूर सोचें. 

(लेखक एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफिट के सीनियर मैनेजिंग एडिटर थे. अब वे स्वतंत्र यूट्यूब चैनल 'देसी डेमोक्रेसी' चलाते हैं. @AunindyoC उनका ट्विटर हैंडल है. यह ओपीनियन आर्टिकल है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं, क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×