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हैलोवीन: भारत में बढ़ रहा है भूतों के त्योहार का खुमार   

माना जाता है कि हैलोवीन मनाना 2000 साल पहले केल्टिक सभ्यता के लोगों ने शुरू किया था.

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व्हाट्सएप्प पर एक के बाद एक मैसेज फ्लैश हो रहे हैं, बिल्डिंग के दर्जन भर बच्चे हैलोवीन की शाम घर-घर घूम ‘ट्रिक ऑर ट्रीट’ का शोर मचा चॉकलेट और टॉफियों की मांग करना चाहते हैं. लेकिन इसके पहले वो जान लेना चाहते हैं कि किन घरों की घंटी बजाने से उनमें रहने वालों को असुविधा नहीं होगी.

व्यस्तता भरी जिंदगी में जहां घर के दरवाजे ज्यादातर उसमें रहने वाले एकाकी परिवार के सदस्यों के आने-जाने के लिए खुलते हैं, जहां मिलना-मिलाना-बतियाना सब मैसेज और व्हाट्सएप्प पर ही निबट जाता है, इतना कि होली-दिवाली भी एक-दूसरे के घर का दरवाजा खटखटाना अजीब लगे, हैलोवीन पर ही सही, लेकिन बच्चों की हंसी किलकारी से भरी शाम भली लगती है.

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वैलेंटाइन डे, मदर्स डे या फादर्स डे की तर्ज पर पश्चिम से इंपोर्ट होने वाले त्यौहारों की लिस्ट में ताजातरीन नाम जुड़ा है ‘हैलोवीन’ का. इस त्यौहार में वे सारे मसाले हैं जो बच्चों को लुभाते हैं, रंग-बिरंगे कॉस्ट्यूम, दोस्तों की टोली में घूमना और ढ़ेर सारी टॉफियां और चॉकलेट बटोरना देखा जाए तो ये काफी कुछ ईद पर बड़ों से ईदी मांगने, दशहरे पर बड़ों के आशीर्वाद के साथ मेला देखने के पैसे लेने या लोहड़ी-संक्रांति पर अपनी झोली मूंगफली, गजक और तिल के लड्डुओं से भर लेने जैसा ही है. लेकिन चूंकि विदेश से आया है इसलिए विदेशी चॉकलेट्स और कपड़ों-जूतों के ब्रांड की तरह लोकप्रियता की सीढ़ियां फर्लांगता जा रहा है.

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 माना जाता है कि हैलोवीन मनाना 2000 साल पहले केल्टिक सभ्यता के लोगों ने शुरू किया था.
ज्यादातर पारंपरिक भारतीय त्यौहारों की तर्ज पर हैलोवीन का इतिहास भी फसलों और मौसम के बदलने से ही जुड़ा है. माना जाता है कि हैलोवीन मनाना 2000 साल पहले केल्टिक सभ्यता के लोगों ने शुरू किया था. केल्ट आज के समय के इंग्लैंड, आयरलैंड और उत्तरी फ्रांस के इलाके में रहते थे और एक नबंबर को अपना नया साल मनाया करते .

इस तरह 31 अक्टूबर उनके लिए साल का आखिरी दिन होने के साथ गर्मियों और फसल की कटाई खत्म होने का दिन भी होता था. इसके साथ ही शुरुआत होती थी लंबी, अंधेरी सर्दियों की जिन्हें मौत से जोड़ कर भी देखा जाता था. केल्ट लोगों का मानना था कि साल के आखिरी दिन जीवित और मृत लोगों की दुनिया को बांटने वाली रेखा भी धुंधली हो जाती है.

 माना जाता है कि हैलोवीन मनाना 2000 साल पहले केल्टिक सभ्यता के लोगों ने शुरू किया था.
इस दिन भूत इंसानों की दुनिया में आते हैं उन्हें उनका भविष्य समझने में मदद करते हैं. इसलिए इसे इंसानी दुनिया में भूतों के आगमन के दिन के तौर पर मनाते हुए लोग जानवरों के सिर और खाल से बने परिधान पहनते और आग जलाकर आने वाली सर्दियों की तैयारियां करते. खाली, सर्द शामें भूतों की कहानियां सुनाकर बिताई जातीं.
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वक्त के साथ-साथ इस त्यौहार ने भी रंग-रूप बदला और 19वीं शताब्दी के आखिर में अमेरिका पहुंचने के साथ ही इसका बाजारीकरण भी शुरू हो गया. हाल के दशकों में भूतों के तरह-तरह के कॉस्ट्यूम के अलावा सुपरहीरो, कार्टून कैरेक्टर, यहां तक कि जानवरों और पक्षियों के कॉस्ट्यूम के चलन ने भी जोर पकड़ा है. रंग-बिरंगे कॉस्ट्यम में सजे बच्चों के साथ बड़ों को भी अपने पड़ोसियों से मिलने और मिलाने का एक अवसर मिल जाता है.

इस रोज बच्चे पड़ोसियों के घर जा-जाकर ट्रिक और ट्रीट कहते हुए उनसे अपने साथ लाए झोले को चॉकलेट और टॉफियों से भरने का आग्रह करते हैं. अनुमान है कि अमेरिका में पूरे साल बिकने वाली टॉफियों का चौथाई हिस्सा केवल हैलोवीन के मौके पर ही खरीदा जाता है. चूंकि अमेरिकी और यूरोपीय देशों में हैलोवीन वाले दिन छुट्टी होती है इसलिए उससे पहले दिन स्कूलों में रंग-बिरंगे परिधानों में सजे बच्चों की हैलोवीन परेड निकाली जाती है.

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 माना जाता है कि हैलोवीन मनाना 2000 साल पहले केल्टिक सभ्यता के लोगों ने शुरू किया था.

भारतीय होटलों और क्लबों में तो हैलोवीन थीम की पार्टियों का चलन शुरू हुए भी काफी साल हो गए. फिर अमेरिकी फिल्मों और संस्कृति के प्रभाव से भला भारतीय बच्चे कब तक अछूते रहते. अनुराग वाधवा पिछले 15 सालों से दिल्ली में नृत्य और नाटकों के लिए फैंसी ड्रेस की दुकान चलाते हैं. पांच साल पहले अपने परिवार और आस-पास के बच्चों की मांग पर उन्होंने हैलोवीन के कॉस्ट्यूम रखने भी शुरू कर दिए. उसके बाद के सालों में महानगरों में हैलोवीन मनाने के चलन ने कुछ इस कदर जोर पकड़ा कि केवल हैलोवीन कॉस्ट्यूम का बिजनेस हर साल पिछले साल के मुकाबले दोगुना बढ़ता रहा है.

ना केवल मल्टीस्टोरी बिल्डिगों और सोसायटी में रहने वाले लोगों के बीच बल्कि इस मौके पर स्कूलों में भी बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता रखी जाने लगी है. बदलती मांग के साथ फैंसी ड्रेस की दुकानों में वनवासी राम और कान्हा के साथ कंकाल के प्रिंट वाले चोगे, टोपी वाली चुड़ैल की फ्रॉक और डायनोसॉर की कॉस्ट्यूम साथ रखी मिल जाएगी.
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मजेदार बात ये है कि विदेश में रह रहे भारतीय हैलोवीन देसी छौंक के साथ मनाना पसंद करते हैं. अनुराग का कहना है कि अमेरिका और यूरोप में रह रहे कस्टमर उनसे हैलोवीन पार्टी के लिए खासतौर पर भारतीय किरदारों की मांग करते हैं. पिछले कुछ समय में अनुराग उनके आग्रह पर शंहशाह से लेकर चुलबुल पांडे, डिस्को डांसर के मिथुन चक्रवर्ती से लेकर बाजीराव मस्तानी के रणवीर सिंह और एक-दो-तीन की माधुरी दीक्षित तक के कॉस्ट्यूम बनावाकर देश के बाहर भेज चुके हैं जिसे उनके दोस्त बड़े चाव से अपनी हैलोवीन पार्टी में पहनते हैं.

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 माना जाता है कि हैलोवीन मनाना 2000 साल पहले केल्टिक सभ्यता के लोगों ने शुरू किया था.

चूंकि हैलोवीन हर साल 31 अक्टूबर के दिन ही मनाया जाता है इसलिए अमूमन दिवाली के आस-पास पड़ता है. कई बार माओं के लिए दिवाली की भागमभाग के बीच एक और काम बढ़ाने वाला दिन भी बन गया है. सो बीती शाम को जब हैलोवीन के मेहमानों के लिए चॉकलेट-टॉफियां खरीदने डिपार्टमेंट स्टोर जाना हुआ तो और वहां दिखी इन्हीं सामानों की खरीदारी करते लोगों की लंबी कतार. जिसमें बच्चों के लिए किराए के कॉस्ट्यूम की थैलियां लिए मेरे जैसी माएं भी शामिल थीं.

 माना जाता है कि हैलोवीन मनाना 2000 साल पहले केल्टिक सभ्यता के लोगों ने शुरू किया था.

यूं उत्सव मनाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिए, लेकिन जिस तरह से हर तरह के त्यौहार पर बाजार का कब्जा बढ़ा है, ये तय कर पाना थोड़ा मुश्किल लग रहा है कि बाजार प्रायोजित एक और त्यौहार बच्चों को अपनी परंपराओं से काट रहा हैं या उन्हें परिवार और समाज से नए तरीके से जोड़ने का काम कर रहा हैं.

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