ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी 2.0 सरकार में शाह हैं असली नंबर टू, कहां खड़े हैं राजनाथ?

वाजपेयी-आडवाणी युग वास्तव में खत्म हो चुका है. राजनाथ सिंह ही अतीत की एकमात्र परछाई हैं

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

नरेंद्र मोदी 2.0 सरकार में सत्ता समीकरण फिर से परिभाषित होने के बावजूद ऐसा लगता है कि राजनाथ सिंह आसानी से परिस्थिति को स्वीकार करते नहीं दिख रहे हैं. केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में अमित शाह के शामिल होने के साथ ही यूपी के इस कद्दावर ठाकुर का संघर्ष शुरू हो गया और उन्होंने अपनी वरिष्ठता और सम्मान के हिसाब से कैबिनेट में जगह बनाने की लड़ाई जीत ली.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

केंद्रीय कैबिनेट में राजनाथ सिंह को दरकिनार करने का संघर्ष अब भी था. केंद्र सरकार की निर्णय लेने वाली शीर्ष 8 कैबिनेट कमेटियों में से 6 में सिंह को शामिल नहीं किया गया. वहीं मंत्रालय में पहली बार शामिल किए गये अमित शाह सभी कमेटियों में शामिल रहे.

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक सिंह ने अपनी नाराजगी दिखलाई. कई खबरों में कहा गया कि ऐसी अपमानजनक परिस्थितियों में कैबिनेट में बने रहने के बजाय उन्होंने इस्तीफे की पेशकश तक कर डाली.

असर निश्चित रूप से दिखा, क्योंकि कमेटियों के गठन के 17 घंटे बाद ही सरकार के मुखपत्र प्रेस इन्फॉरमेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने संशोधित सूची सामने रख दी.

पहली सूची पीआईबी वेबसाइट पर 6 जून को सुबह 5 बजकर 57 मिनट पर अपलोड की गयी थी. उसी दिन पुनरीक्षित सूची रात 10 बजकर 19 मिनट पर आ गयी. बदलाव महत्वपूर्ण थे. अब राजनाथ सिंह 8 में से 6 कमेटियों में शामिल कर लिए गये थे. वे संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी के चेयरपर्सन भी नियुक्त किए गये थे. यही कमेटी संसद के हरेक सत्र के लिए सरकार का एजेंडा तय करती है.

अब भी शक्तिसंपन्न एप्वाइंटमेंट कमेटी से वे दूर रखे गये, जिसके सदस्य केवल मोदी और शाह हैं. यह कमेटी केंद्र सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों में सभी वरिष्ठ नौकरशाहों की नियुक्ति तय करती है. संतोष की बात यह रही कि राजनाथ को राजनीतिक मामलों की समिति में ले लिया गया है, जिससे उन्हें पहले बाहर कर दिया गया था. यह किसी मामले की समीक्षा के लिए अहम निकाय है और यह सरकार से टकराव से जुड़े सभी बड़े राजनीतिक मुद्दों पर निर्णय लेती है.

0

क्या शाह ही वास्तविक सत्ता के केंद्र हैं?

राजनाख सिंह निश्चित रूप से आनंदित महसूस कर रहे होंगे कि उन्होंने गलत तरीके से जा रहे एक संदेश को रोक लिया. दुर्भाग्य से यह जीत आखिरकार दिखावा ही रहने वाली है. एक तरफ उनका सम्मान उन्हें वापस कर दिया गया है और उन्हें मोदी के बाद दूसरे नंबर वाली स्थिति दे दी गयी है वहीं शायद ही किसी को संदेह हो कि वास्तविक सत्ता का केंद्र शाह हैं.

यह बात बिल्कुल सत्य है कि सिंह ने मोदी के तुरंत बाद और शाह के ठीक पहले शपथ ली. वे कैबिनेट मीटिंग में मोदी के दाहिने सम्मानजनक कुर्सी पर भी बैठे, जबकि शाह उनकी बाईं ओर बैठे जहां कभी अब बीमार चल रहे पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली बैठा करते थे.

ऐसे अवसरों पर जब मोदी विदेश यात्राओं पर रहें, संभव है कि राजनाथ को कैबिनेट मीटिंग की अध्यक्षता का अवसर भी मिले. मगर, मोदी के विश्वस्त शाह ही हैं और वही स्वत: नंबर दो भी रहेंगे. राजनाथ को यह बात अच्छी तरह से पता है.

संसदीय चुनावों में जबरदस्त जीत के बाद देश के राजनीतिक परिदृश्य और बीजेपी पर चुनौतिविहीन प्रभाव स्थापित कर लेने के बाद मोदी के पास अब पूरी आजादी है कि वह अपनी सरकार को अपनी छवि के अनुरूप आगे ले चलें जिस पर बीते समय में लगातार प्रहार हुए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी के कद को घटाने वाले कोई दिग्गज आसपास नहीं

मोदी को इस बात का भी फायदा होने वाला है कि उनके वजन को कमतर कर सकने वाले दिग्गज अब उनके आसपास नहीं हैं. पार्टी के निर्माता एलके आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को चुनाव लड़ने का टिकट नहीं मिला और वे सही मायने में शिथिल ‘मार्ग दर्शक मंडल’ में समाहित हो चुके हैं.

सुषमा स्वराज ने स्वास्थ्य आधार पर चुनाव मैदान से खुद को बाहर रखने का विकल्प चुना और इसी वजह से कैबिनेट में उन्हें शामिल नहीं करने का रास्ता बना. अरुण जेटली अस्वस्थ हैं और उन्होंने मोदी को मंत्री पद के दायित्व से मुक्त रखने का आग्रह किया है ताकि वे अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे सकें. दूसरे पुराने चेहरे भी जा चुके हैं. वेंकैया नायडू अब उपराष्ट्रपति हैं. अनंत कुमार का हाल में निधन हो गया.

वाजपेयी-आडवाणी युग वास्तव में खत्म हो चुका है. राजनाथ सिंह ही अतीत की एकमात्र परछाई हैं. वे भी रक्षा मंत्री नहीं बनाए गये होते, मगर उन्हें तीन बातों का फायदा हुआ.

  • एक, उनकी उम्र 67 साल है जो 75 साल के मुकाबले काफी कम है मोदी-शाह की बीजेपी में पद पर बने रहने की उम्र सीमा है.
  • दूसरी बात ये है कि उन्होंने लखनऊ से शानदार जीत हासिल की है. यह प्रतिष्ठाजनक सीट है जहां से दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चुने जाते थे. यह उत्तर प्रदेश की राजधानी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहीं से दिल्ली का रास्ता जाता है.
  • तीसरी बात है कि राजनाथ सिंह की आरएसएस में आज भी बहुत प्रतिष्ठा है, जिसके सामने कई धाराएं अपना सिर झुकाती हैं ऐसा कहा जाता है.

मोदी 2.0 अपने सफर की ओर आगे बढ़ रहा है तो शाह ऐसे मंत्री हैं, जिन पर नजर रहेगी. बीजेपी खेमा मानता है कि वे सरकार की धुरी बनकर उभरेंगे. इस बीच सिंह को अपने आत्मसम्मान के लिए अपनी छोटी-मोटी जीत पर संतोष करना होगा.

(लेखक दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह उनके अपने विचार हैं जिसके लिए क्विंट जिम्मेदार नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें