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PK-कांग्रेस की दोस्ती भले नहीं हुई,लेकिन दूरियां इतनी नहीं हैं कि दुश्मन बन जाएं

Prashant kishor-Congress के बीच बात नहीं बनी, अब दोनों क्या करेंगे?

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रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और कांग्रेस (Congress) के बीच किसी समझौते पर पहुंचने की कोशिशें एक बार फिर औपचारिक रूप से विफल हो गई है. कांग्रेस के कम्युनिकेशन इंचार्ज रणदीप सिंह सुरजेवाला और प्रशांत किशोर दोनों ने ही ट्विटर पर यह घोषणा की कि एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप (EAG) के हिस्से के रूप में प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया है.

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हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप (EAG) का गठन किया था. ऐसे में जिस तरीके से प्रशांत किशोर और कांग्रेस में बात नहीं बनी उससे कई सवाल उठते हैं :

  • प्रशांत किशाेर और कांग्रेस के बीच बातचीत में समस्या कहां हुई?

  • क्या फिर से बातचीत होने की कोई गुंजाइश या संभावना है?

  • कांग्रेस और प्रशांत किशोर के लिए आगे क्या?

बातचीत में समस्या कहां हुई? दो ट्वीट्स की कहानी

कांग्रेस और प्रशांत किशाेर के बीच चल रही बातचीत के दिक्कत कहां हुई? इस सवाल का जवाब सुरजेवाला और किशाेर द्वारा 24 मिनट के अंतराल में किए गए ट्वीट में निहित है.

सुरजेवाला ने 26 अप्रैल मंगलवार दोपहर 3.41 बजे जो ट्वीट किया वह यह है :

और इसके कुछ देर बाद 4 बजकर 5 मिनट में प्रशांत किशोर ने जो ट्विटर किया वह ये रहा :

ये दोनों ट्वीट उन दो पहलुओं को उजागर करते हैं जहां किशोर और कांग्रेस अलग-अगल हैं :

1. पावर के बिना जिम्मेदारी?

हालांकि दोनों इस बात से सहमत हैं कि किशोर को एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का हिस्सा बनने की पेशकश की गई थी, लेकिन सटीक भूमिका को लेकर दोनों में मतभेद व असहमति प्रतीत होती है. जहां सुरजेवाला "परिभाषित जिम्मेदारी" पर जोर देते हैं, वहीं किशोर लिखते हैं "चुनावों की जिम्मेदारी स्वीकार करें".

ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशांत को इस बात की चिंता थी कि 2024 के चुनावों के लिए कांग्रेस के अभियान के प्रबंधन की जिम्मेदारी मिलने से वह फंस जाएंगे, क्योंकि इस चुनौती को पूरा करने के लिए जरूरी संगठनात्मक परिवर्तन करने की वास्तविक पावर या ताकत उनके पास नहीं होगी.

मूलरूप से समस्या या चिंता उस व्यवस्थ्या से थी जिसमें जिम्मेदारी तो शामिल थी लेकिन किसी प्रकार की ताकत या पावर नहीं शामिल थी.

सच कहूं तो किशोर पहले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जिन्होंने कांग्रेस के भीतर इस तरह की स्थिति पर आपत्ति जताई है. 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी का इस्तीफा भी आंशिक रूप से इसी तरह के कारकों की वजह से आया था. ऐसा कहा जाता है कि गांधी ने महसूस किया कि जब पार्टी के प्रदर्शन की बात आती है तो सुई उन पर आकर रुक जाती है, लेकिन संगठनात्मक परिवर्तन लाने की कोई वास्तविक शक्ति उनके पास नहीं थी.

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2. 'नेतृत्व' और 'परिवर्तनकारी सुधारों' के माध्यम से 'संरचनात्मक समस्याओं' का समाधान

यह स्पष्ट नहीं है कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को ऐसे कौन से संरचनात्मक परिवर्तन के सुझाव दिए, जिसका पार्टी के कुछ खेमों ने विरोध किया होगा.

पार्टी सूत्रों के अनुसार, किशोर ने पार्टी अध्यक्ष, कांग्रेस संसदीय दल के नेता, यूपीए अध्यक्ष और संगठनात्मक परिवर्तन जैसे प्रमुख पदों में बदलाव का सुझाव दिए थे, जिससे वर्तमान में प्रमुख पदों पर कई नेताओं के प्रभाव में कमी आ जाती.

उत्तर भारतीय राज्य के एक नेता ने खुलासा करते हुए कहा कि 'उन्होंने (प्रशांत ने) जो सुझाव दिए, वह पिछले कुछ वर्षों की विफलताओं के लिए पार्टी में बहुत से प्रभावशाली लोगों को जवाबदेह ठहराता, जिसके परिणामस्वरूप कई शक्तिशाली लोगों ने अपना प्रभाव या दबदबा खो देते.'

जैसा कि ट्वीट्स से स्पष्ट है इन दो बातों के अलावा भी ऐसा लगता है कि किशोर की एंट्री को लेकर भी कांग्रेस में मतभेद थे.

3. पार्टी में आंतरिक मतभेद

सूत्रों के मुताबिक रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और दिग्विजय सिंह जैसे नेता प्रशांत किशोर के सुझावों को मानने के इच्छुक नहीं थे.

एक अन्य कारण 'विश्वास की कमी' का था, जिसे कांग्रेस के एक वर्ग द्वारा टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव के साथ किशोर की मुलाकात और आई-पैक (I-PAC) के साथ उनके (प्रशांत के) जुड़ाव के बारे में स्पष्टता की कमी के बारे में जोड़कर कहा जा रहा था.

राहुल गांधी के करीबी नेताओं के साथ-साथ खुद गांधी भी प्रशांत किशोर की एंट्री को लेकर ज्यादा उत्साही नहीं थे.

दूसरी ओर प्रियंका गांधी वाड्रा और कमलनाथ के बारे यह कहा जाता है कि प्रशांत किशोर की एंट्री को लेकर ये सबसे ज्यादा उत्साही थे. वीरप्पा मोइली एक और मुखर समर्थक थे, हालांकि इस वार्ता पर उनका बहुत कम प्रभाव था.

हालांकि जो प्रशांत किशाेर को लाने के पक्ष में और जो उनके अधिकांश सुझावों को स्वीकार करने के समर्थन में थे उनका कहना है कि उन्हें और अधिक "धैर्य" रखना चाहिए था.

प्रशांत किशोर को लेकर हुईं बैठकों में मौजूद रहने वाले पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार 'उनका (प्रशांत) मूल्यांकन सटीक था. इसके साथ ही उन्होंने कुछ कड़वे विचार भी सामने रखे. लेकिन वे जिस तरह का बदलाव चाह रहे थे, उस पर पहले से सहमति नहीं हो सकती है.'

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वे वरिष्ठ नेता आगे कहते हैं कि 'कांग्रेस किसी क्षेत्रीय पार्टी की तरह नहीं है जहां कुछ फरमानों से चीजे बदली जा सकती हैं. सोनिया गांधी या राहुल गांधी को भी इस तरह के दूरगामी परिवर्तन करने की आजादी नहीं थी. ऐसे में किसी बाहरी व्यक्ति या हाल ही में प्रवेश करने वाले व्यक्ति को इस तरह की ताकत या पावर देने का सवाल ही नहीं है.'

प्रशांत किशोर के पूर्व सहयोगी सुनील कानूगोलू जो इस समय कर्नाटक और तेलंगाना में पार्टी के अभियानों पर काम कर रहे हैं. उसका जिक्र करते हुए कुछ नेताओं का कहना है कि "पीके एप्रोच" की तुलना में "सुनील कानूगोलू एप्रोच" कांग्रेस के लिए ज्यादा उपयुक्त है. कानूगोलू को लो प्रोफाइल तरीके और पर्दे के पीछे से काम करने के लिए जाना जाता है.

क्या फिर से बातचीत शुरू होने की कोई गुंजाइश या संभावना है?

किशोर और सुरजेवाला के ट्वीट मैत्रीपूर्ण लहजे को दर्शाते है. उदाहरण के लिए सुरजेवाला ने इस बात पर जोर दिया कि प्रशांत किशोर ने पार्टी के प्रस्ताव को मना कर दिया है. उन्होंने यह नहीं कहा कि प्रस्ताव को ठुकरा दिया है क्योंकि यह कांग्रेस के स्वाभाविक दृष्टिकोण की विशेषता नहीं है. उनका ट्वीट यह कहना चाहता है कि यह पार्टी थी जिसने प्रस्ताव को "अस्वीकार" कर दिया.

दूसरी ओर प्रशांत किशोर ने उस ट्वीट को डिलीट कर दिया था, जो बाद में उनके द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट से लगभग मिलता-जुलता था. कुछ शब्दों को इधर-उधर करने अलावा आखिरी ट्वीट और हटाए गए ट्वीट में एक बड़ा बदलाव यह था कि बाद वाले ट्वीट में प्रशांत किशोर ने पार्टी में शामिल होने और EAG का हिस्सा बनने के कांग्रेस के प्रस्ताव में "उदार" ("generous") विशेषण जोड़ा था.

Prashant kishor-Congress के बीच बात नहीं बनी, अब दोनों क्या करेंगे?

प्रशांत किशोर ने शाम साढ़े तीन बजे यही ट्वीट किया, जिसे उन्होंने तुरंत डिलीट भी कर दिया था.

चूंकि संपूर्ण रूप से प्रशांत किशोर के ट्वीट का लहजा व्यंग्यात्मक नहीं है, इसलिए यह माना जा सकता है कि यह ट्वीट दोस्ती का एक और स्तर जोड़ने के लिए था.

यह देखते हुए कि सैद्धांतिक रूप से कांग्रेस और प्रशांत किशोर दोनों एक ही बात चाहते हैं- बीजेपी के लिए एक मजबूत राष्ट्रीय चुनौती- ऐसे में दोनों के बीच भविष्य की बातचीत से इंकार नहीं किया जा सकता है.

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प्रशांत किशोर के लिए आगे क्या? 

कांग्रेस के साथ बातचीत की विफलता के बावजूद ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशांत किशोर 2021 में पश्चिम बंगाल की जीत के बाद किए गए अपने वादे पर कायम हैं. तब उन्होंने कहा था कि वह राजनीतिक परामर्श का क्षेत्र छोड़ देंगे.

हालांकि वह अभी भी I-PAC के साथ कुछ लिंक बनाए हुए हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कंसल्टेंसी का हिस्सा बनने की बजाय उनकी योजना मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा बनने की है.

कुछ हफ्तों की निष्क्रियता के बाद मंगलवार को फेसबुक पेज 'टीम पीके' अचानक से सक्रिय हो गया. मंगलवार की सुबह इस पेज ने प्रशांत किशोर का एक कोट् (quote) पोस्ट किया, जिसमें लिख है, "मैं जब तक जीवित हूं बिहार के लिए पूरी तरह से समर्पित हूं. - प्रशांत किशोर"

Prashant kishor-Congress के बीच बात नहीं बनी, अब दोनों क्या करेंगे?

टीम पीके फेसबुक पेज द्वारा मंगलवार को की गई पोस्ट

टीम पीके फेसबुक पेज

काफी समय से फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज पर एक प्रायोजित पोस्ट चला रहा है, जिसमें लोगों को "टीम पीके" में शामिल होने और "प्रशांत किशोर के साथ सीधे काम करने" के लिए आमंत्रित किया गया है क्योंकि वह "एक नई यात्रा पर हैं."

Prashant kishor-Congress के बीच बात नहीं बनी, अब दोनों क्या करेंगे?

टीम पीके आवेदन बुला रही है

टीम पीके फेसबुक पेज

इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि I-PAC प्रमुख गैर-बीजेपी क्लाइंट्स के लिए काम करना जारी रखेगा और प्रशांत किशोर की इस क्षेत्र में नेताओं के साथ वार्ता जारी रखने की संभावना है. यह भी संभव है कि इसके साथ-साथ वे अपने गृह राज्य बिहार में खुद को एक राजनेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर सकते हैं.

कांग्रेस के लिए आगे क्या?

इसमें कोई संदेह नहीं कि यह सबसे जटिल प्रश्न है.

प्रशांत किशोर के साथ भले ही फिलहाल के लिए बातचीत समाप्त हो गई हो, लेकिन कांग्रेस की संरचनात्मक समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं.

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि हो सकता है पार्टी ने धीरे-धीरे परिवर्तन का रास्ता चुना हो, बजाय उस नाटकीय परिवर्तन के जिसे प्रशांत किशोर प्रस्तावित कर रहे थे.

प्रशांत किशोर के मामले में असफल होने का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव मनोबल पर पड़ेगा. पार्टी के कुछ नेताओं की रोक के बावजूद प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में "कुछ नया करने की कोशिश" करने का वादा किया और पार्टी को मौजूदा ठहराव से बाहर निकलने का रास्ता निकाला. इस विकल्प के अब उपलब्ध नहीं होने के कारण, पार्टी समर्थकों में डर है कि पार्टी अब फिर से उसी स्थिति में वापसी जाएगी.

मई के मध्य में उदयपुर में होने वाला चिंतन शिविर ध्यान देने वाला पहला मील का पत्थर होगा और इसके बाद इस साल के अंत में होने वाला संगठनात्मक चुनाव भी अहम होगा.

इस बीच गुजरात और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को चुनावी खतरे की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं.

जहां गुजरात अभियान अव्यवस्थित प्रतीत हो रहा है वहीं हिमाचल में पार्टी तुलनात्मक रूप से बेहतर कदम उठा रही है. जैसे कि प्रतिभा सिंह को पीसीसी प्रमुख नियुक्त करना और राज्य इकाई में प्रतिस्पर्धी गुटों को संतुलित करने के लिए महत्वपूर्ण चुनाव समितियां बनाना.

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