प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली सत्तारूढ़ सियासी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो पूर्व प्रवक्ताओं के पैगंबर मुहम्मद के बारे में आपत्तिजनक बयानों पर हंगामा (Prophet Remark Row) अभी तक थमा नहीं है. हमारे देश में मुस्लिमों के खिलाफ नफरत और जहरीली राजनीति बीजेपी के लिए स्टैंडर्ड पॉलिटिक्स बन गई है. वो शर्मनाक तौर पर इस्लामोफोबिया का इस्तेमाल हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए करती है. लेकिन इस बार पैगंबर को नीचा दिखाने के लिए बयानबाजी करने में उन्होंने सभी सीमाएं लांघ दी.
ये सोचना कि हिंदी में टीवी पर चलने वाली सियासी बहस का असर सिर्फ घरेलू हिंदी भाषी लोगों और टीवी देखने वालों तक होगा और इसका सियासी फायदा देश में उठाया जा सकता है, आज बेहद संकीर्ण सोच है.
आज इंटरनेट के जमाने में ऐसे विचार पूरी तरह से अप्रासंगिक हो गए हैं. भारत में, इस टिप्पणी से मुसलमान आहत और आक्रोशित हुए थे, फिर भी सरकार ने इसकी कोई निंदा नहीं की थी. लेकिन जब इस्लामी देशों ने टिप्पणी के बारे में सुना और उनका गुस्सा भड़का तो, सरकार ने जल्दबाजी में मामले को संभालने के लिए कदम उठाए.
पांच खाड़ी देशों, साथ ही मलेशिया और पाकिस्तान सहित कई अन्य मुस्लिम देशों ने भारतीय राजदूतों को बुलाकर पूर्व भाजपा नेताओं के "अस्वीकार्य" बयान पर तीखी आपत्ति दर्ज कराई.
चलिए अब ये उम्मीद करनी चाहिए कि यह प्रकरण हमारी सरकार को यह याद दिलाने के लिए वेक अप कॉल जैसा होगा कि घर पर भड़काऊ बयानबाजी का विदेशों में परिणाम हो सकता है.
जब आपके कथित घरेलू राजनीतिक हित आपके स्पष्ट राष्ट्रीय हितों को कमजोर करते हैं, तो जाहिर है कि राष्ट्रीय हित प्रथम होना चाहिए .
मुस्लिम देशों में भारत की प्रतिष्ठा कमजोर हुई
कूटनीतिक मानकों से देखें तो जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आई वो काफी कड़ी थीं. पांच खाड़ी देश और कई मुस्लिम देश जिसमें मलेशिया और पाकिस्तान भी हैं ने भारतीय राजदूतों को तलब किया और कड़े शब्दों में ‘नामंजूर’ बयानों पर आपत्ति दर्ज कराई. इतना ही नहीं जिन्होंने ऐसे बयान दिए उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की.
इसके अलावा कई ने कड़ी निंदा की. कतर ने तो उपराष्ट्रपति, जो कतर के दौरे पर थे, उनके साथ अपना लंच भी रद्द कर दिया. इस मौके का फायदा उठाकर The Organisation of the Islamic Conference जो कि वैसे भी भारत का दोस्त नहीं है , ने भारत की निंदा की. उसने तो मामले में संयुक्त राष्ट्र से कार्रवाई करने की मांग तक कर डाली.
11 मुस्लिम देशों में भारतीय सामानों के बहिष्कार को लेकर आंदोलन जैसा खड़ा हो गया. खाड़ी के देश में बड़ी तादाद में जो भारतीय काम कर रहे हैं उन्हें उनकी नौकरी तक से बर्खास्त कर दिया गया.
भारत ने नुकसान को कम करने के लिए हाथ पैर चलाए. मुस्लिम दुनिया को भरोसा दिया कि ऐसे बयान किसी भी तरह से भारत सरकार के नजरिए को नहीं बताते. क्योंकि ये बयान "फ्रिंज एलिमेंट" यानि कुछ किनारे पर रह रहे मामूली उत्पातियों के हैं . (लेकिन पार्टी ने ऐसे फ्रिंज को क्यों आधिकारिक प्रवक्ता बनाया ये नहीं साफ किया गया.)
BJP के दो प्रवक्ताओं को उनके पदों से सरसरी तौर पर हटा दिया गया, एक को सत्तारूढ़ दल से निलंबित कर दिया गया और दूसरे को निष्कासित कर दिया गया. लेकिन इस घटना ने इस्लामोफोबिया के बढ़ते मामलों को उजागर किया, जिसे BJP सरकार ने फैलाया, और मुस्लिम दुनिया में भारत की स्थिति को व्यापक तौर पर नुकसान पहुंचाया.
भारत के हितों के लिए खाड़ी काफी महत्वपूर्ण
स्लामी देशों की कड़ी प्रतिक्रिया और उसके सामने भारत का झटपट आत्मसमर्पण ने ये बता दिया है कि खाड़ी देश भारत के हितों के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. खाड़ी देश भारत के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हैं. भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए वो बहुत जरूरी हैं.
लगभग 7 मिलियन भारतीय प्रवासी कामगारों को वहीं नौकरी देते हैं. ये लोग जो वापस घर पैसे भेजते हैं तो उनसे उनका घर चलता है. इसके अलावा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वो एक महत्वपूर्ण सिक्योरिटी पार्टनर हैं.
इस सब को क्षुद्र स्वार्थी घरेलू राजनीतिक हितों को बढ़ाने के लिए खतरे में डालना, जिसे BJP तेजी से आगे बढ़ा रही है, बेहद गैर-जिम्मेदाराना है. विडंबना ये है कि ये सब तब किया जा रहा है जब मोदी सरकार ने मुस्लिम देशों, खासकर खाड़ी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए काफी प्रयास किए थे, और इस तरह भारतीय विदेश नीति में उनका महत्व बढ़ाया था.
मुस्लिम हितों को ठीक से समझने और उसे बचाने के लिए भारत की प्रतिष्ठा मुस्लिम देशों में मजबूत रही है. दरअसल देश में विविधता और बड़ी मुस्लिम आबादी भारत की शान और ताकत रही है और हम इसका जश्न मनाते रहे हैं और कई साल से इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की इज्जत रही है.
मुस्लिम देश भारत में मुसलमानों के साथ बेहतर सलूक, बड़े भारतीय मुस्लिम शख्सियतों से जैसे मुस्लिम फिल्मी सितारे, बिजनेसमैन, खिलाड़ी और राष्ट्रपति, विदेश मंत्री और राजदूत वाकिफ रहे हैं. ये भी अपनी भारतीयता और मुसलमान होने पर गर्व करते रहे हैं. भारत में मिलजुलकर रहने की जो स्थापित परंपरा थी उसकी वजह से ही ये संभव हो सका कि पाकिस्तान के साथ हमारी शत्रुता रहने के बाद भी बाकी मुस्लिम देशों के साथ हमारे संबंध अच्छे रहे.
BJP ने वर्षों की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिला दी
लेकिन जो कुछ भी इज्जत प्रतिष्ठा बरसों से बनी थी उसे सत्ताधारी दल की प्रायोजित राजनीति ने बुरी तरह से अब नष्ट कर दिया है. इस सरकार ने जोर जोर से बोलने वालों को पूरी तौर पर खुल्ला छोड़ दिया जबकि सरकार को इसका अंजाम ठीक से समझना चाहिए था.
जब आपके कथित घरेलू राजनीतिक हित आपके स्पष्ट राष्ट्रीय हितों को कमजोर करते हैं, तो जाहिर है कि राष्ट्र का ख्याल पहले आना चाहिए. लेकिन पहली बार ऐसा लगता है कि हमारे पास एक ऐसी सरकार है कि जो ये फर्क नहीं कर पा रही है कि उसमें और सतारूढ़ सियासी पार्टी (जो सरकार पर पूरी तरह हावी है) में फर्क होता है.
वास्तव में, ओमान में भारतीय दूतावास ने BJP महासचिव की प्रेस रिलीज भी जारी की, जिसमें उन्होंने प्रवक्ताओं को बर्खास्त करने के बारे में बताया था. इससे भड़काऊ बयान पर विदेश मंत्रालय ने सरकार और पार्टी के बीच में अंतर की जो बात कही थी वो नहीं बचा. ये हमारे इंबैसी के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति है. इससे पता चलता है कि किस तरह से सत्ताधारी दल के स्वार्थों को पूरा करने के लिए काम करती हैं.
नई दिल्ली के लिए सबक
कई लोगों ने तर्क दिया है कि विदेशों में भारत को सियासी पार्टी की वजह से जो आलोचनाएं झेलनी पड़ी इसकी जिम्मेदारी पार्टी को लेनी चाहिए थी ना कि सरकार को. बीजेपी को घुटने टेककर दुनिया भर में माफी मांगनी चाहिए थी जिनके अपमानजनक बयानों का ये सब नतीजा हुआ. लेकिन हकीकत में सरकार को भी माफी जरूर मांगनी चाहिए...और ना सिर्फ विदेश की सरकारों से बल्कि अपनी जनता से भी. भारत की जनता से माफी इसलिए मांगनी चाहिए कि सरकार ऐसे गुनहगारों के खिलाफ सभी कानूनी प्रावधान होने के बाद भी कार्रवाई नहीं की.
सेक्शन 295 A के तहत किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है. चाहे वो कोई बयान हो या फिर कोई चिन्ह या फिर अपमानजनक चित्र. लेकिन इस मामले में ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई.
गृह मंत्रालय के अंदर आने वाले दिल्ली पुलिस ने बीजेपी प्रवक्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और मीडिया में भी बीजेपी प्रवक्ताओं को लेकर वैसे सवाल नहीं उठे. हालांकि महाराष्ट्र पुलिस जहां गैर बीजेपी सरकार है वहां इस तरह की कार्रवाई देर से ही सही पर हुई.
चलिए अब ये उम्मीद करते हैं कि इस एपिसोड से सरकार की आंखें खुल जाए और वो समझें कि देश में जो भड़काऊ भाषण या बयानबाजी वो लोग करते हैं इसका अंजाम विदेशों में भी हो सकता है. प्रधानमंत्री मोदी अक्सर भारत के लिए विश्व गुरू शब्द की बात करते रहे हैं लेकिन विश्व गुरु होने के लिए अच्छा शिष्य होना पहले जरूरी है.. इस पूरे मामले से नई दिल्ली के लिए यही सबसे बड़ी सबक है.
(डॉ. शशि थरूर तिरुवनंतपुरम से तीसरी बार सांसद हैं और 22 पुस्तकों के पुरस्कार विजेता लेखक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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