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कंगाल और करोड़पति से बराबर टैक्स, वो भी जीवनरक्षक दवा पर, क्रूर है

कोरोना के इलाज पर टैक्स, धीमा वैक्सीनेशन और वैक्सीन पासपोर्ट, इन तीनों पर द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल की राय.

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ये सरकारी निद्रा का ही परिणाम है कि देश में गरीबों को भी कोरोना से जुड़े इलाज, यानी दवा, एंबुलेंस, ऑक्सीजन और यहां तक कि वैक्सीन पर भी जीएसटी देना पड़ता है. इसी बेसुधी का नतीजा है कि धीमा वैक्सीनेशन और वैक्सीन पासपोर्ट को मंजूरी नहीं देना..कोरोना से जुड़े इन तीन विषयों पर द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल की राय.

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‘गरीब राम’ पर ये जुल्म क्यों?

गरीब राम राष्ट्रीय राजधानी के एक गांव में रहने वाला एक मजदूर था. एक दिन अचानक से उसकी सांस चढ़ने लगी. उनका बेटा पल्स ऑक्सीमीटर खरीदने के लिए सबसे नजदीकी केमिस्ट के पास गया, 500 रुपये दिए, जिसमें से 25 रुपये सरकार के लिए GST था. गरीब का ऑक्सीजन स्तर गिर गया. 800 रुपये का एक RT-PCR टेस्ट हुआ, जिसमें से 40 रुपये GST थे. उसे कोविड-19 था. उसे दिल्ली के सरकारी अस्पताल में ले जाने के लिए एक एंबुलेंस बुलाई गई. इस दर्दनाक यात्रा की लागत 3000 रुपये थी, जिसमें से 360 रुपये का भुगतान GST के रूप में किया गया था. गरीब का बेटा 5000 रुपये के कुछ ऑक्सीजन सिलेंडर भी लेकर आया था, जिसमें 250 रुपये GST के दिए थे. डॉक्टरों ने दवाइयों के कॉकटेल से गरीब की बीमारी ठीक करने की कोशिश की. रेमडेसिविर की कीमत 10,000 रुपये, जिसमें से 500 रुपये GST के थे. लेकिन, Tocilizumab और Amphotericin B सस्ते थे. गरीब के बेटे ने केमिस्ट से इसका कारण पूछा. “इसपर GST नहीं है सर.” “ठीक है, मुझे परिवार के लिए सैनेटाइजर की दो बोतल दे दीजिए.” केमिस्ट ने कहा “190 रुपये, और GST के 10 रुपये.”

गरीब का बेटा उलझन में पड़ गया. उसके दिमाग में तरह-तरह के सवाल आने लगे: मुझे अपने बीमार पिता को अस्पताल पहुंचाने के लिए इतना ज्यादा टैक्स क्यों देना पड़ा? या लोगों को सुरक्षित रखने के लिए खरीदी गई सैनेटाइजर की बोतलों पर? या मेडिकल ऑक्सीजन पर? मगर उसने चुप रहने का फैसला किया, ऐसा न हो कि राज्य के खिलाफ "असंतोष" पैदा करने के लिए एफआईआर हो जाए. वो चुपचाप उन 140 करोड़ भारतीयों में शामिल हो गया (उन कुछ को छोड़कर जो कैबिनेट में हैं या वित्त मंत्रालय में काम करते हैं) जिन्हें नहीं मालूम कि आखिर कोविड-19 के इलाज पर क्यों, कैसे और किसके लिए टैक्स लगाया जा रहा है. दुर्भाग्य से, गरीब राम की मौत हो गई.

उनका बेटा अपनी पत्नी, मां और दो बच्चों को टीकाकरण केंद्र में ले गया, लेकिन वहां कहा गया कि “यहां कोई खुराक उपलब्ध नहीं है, सड़क के पार निजी अस्पताल में जाएं, उनके पास डोज हैं.”

आपने सही अनुमान लगाया. स्वर्गीय गरीब राम के परिवार ने हर वैक्सीन के लिए 800 रुपये दिए, जिसमें 40 रुपये GST के लिए गए! और क्योंकि गरीब राम के परिवार में किसी ने भी कभी अर्थशास्त्र के बारे में नहीं पढ़ा था, वो ये नहीं समझ पाए थे कि इनडायरेक्ट टैक्स की ये व्यवस्था कितनी अजीब है, जो एक कंगाल और एक करोड़पति से समान दर से टैक्स वसूलती है. इतना ज्यादा इनडायरेक्ट टैक्स, खासतौर से महामारी में जीवन रक्षक दवाओं पर, सबसे क्रूर और शोषणकारी टैक्स है - लेकिन स्वर्गीय गरीब राम के परिवार को ये कैसे पता चलेगा? उन्होंने तो अपने गांव वापस जाने के लिए जो टैक्सी ली, उसपर भी उन्हें करीब 200 रुपये GST देना पड़ा

यूके को अब कोरोना से डर नहीं लगता

अगर आपको लगता है कि कोविड-19 की तीसरी या चौथी या पांचवीं लहर मीडिया का बनाया हुआ भ्रम है, तो देखिए कि यूनाइटेड किंगडम में क्या हो रहा है. देश खुलने की कगार पर है. लेकिन अगर टीवी में दिख रही तस्वीरें वास्तविक हैं, तो लगभग हर कोई लंदन की गलियों में बाहर निकल आया है. लोग पब जा रहे हैं और बीयर के मजे ले रहे हैं. आपको ऐसा लग रहा होगा कि खतरनाक वायरस अब इतिहास की बात हो चुकी है. लेकिन रुकिये जरा. UK में पिछले 24 घंटों में संक्रमण के करीब 8000 नए मामले आए हैं.

जनसंख्या के हिसाब से देखें, तो ये भारत की जनसंख्या का करीब-करीब दोगुना है! हां, यूके के हालात इस समय भारत से दोगुना खतरनाक हैं, फिर भी वो आराम से ये सोच रहे हैं कि सब कुछ पूरी तरह से खोल देना चाहिए. क्यों? क्योंकि उन्होंने कुछ ऐसा किया है जो हमने नहीं किया. UK के सभी वयस्कों में से करीब 75% को वैक्सीन की एक डोज दी जा चुकी है, वहीं, 45% का वैक्सीनेशन पूरी तरह से हो चुका है यानी उन्हें दोनों डोज दिए जा चुके हैं. भारत में 20% को एक डोज और 5% से कम को दोनों डोज मिले हैं. यही बड़ा अंतर है.

इसलिए, भले ही उनकी संक्रमण दर भारत से दोगुनी हो, किसी के गंभीर रूप से अस्पताल में भर्ती होने या मौतों की शायद ही कोई रिपोर्ट हो. तेजी से वैक्सीनेशन का यही जादुई असर है.

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वैक्सीन पासपोर्ट चालू है, बस सरकार को नहीं पता

वैक्सीन पासपोर्ट! जब विकसित देश कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज ले चुके लोगों के सामान्य जीवन को फिर से शुरू करने के लिए साइंटिफिक नियम बना रहे हैं, तब हम उसकी क्षमता से इनकार करते हुए 'बैन' की मांग कर रहे हैं. (इसी तरह बिटकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी के मुद्दे पर भी हमने अपने नीतिगत बुद्धि को इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया है, खैर उस पर कभी और आएंगे). इससे भी बदतर, भारत के नीति निर्धारक जैसे ‘आंखें मूंदे’ अपने आसपास अनियंत्रित और अनियमित वैक्सीन पासपोर्ट को पनपने दे रहे हैं. आपने उस गोल्फ कोर्स के बारे में जरूर सुना होगा जिसने कहा है कि सिर्फ दोनों डोज ले चुके खिलाड़ियों एवं सहायकों को ही आने दिया जाएगा. या मध्य प्रदेश के नगर निगमों का यह कहना कि सिर्फ दोनों डोज ले चुके दुकानदार की दुकान खोल सकते हैं.

कई मॉल ऐसे हैं जो सिर्फ दोनों डोज ले चुके लोगों को ही अंदर आने दे रहे हैं. आप इन पाबंदियों को क्या कहेंगे?

ये वैक्सीन पासपोर्ट ही तो हैं जो हमारे चारों ओर बिना किसी नियम या निगरानी के बढ़ते जा रहे हैं, ये अलग बात है कि हमारी सरकार नींद में चल रही है और 'बैन' पर जोर दे रही है. अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से संबंधित संदर्भ में कहा है "उठो और आज जो हालात हैं उसे स्वीकार करो". इससे पहले कि वैक्सीन पासपोर्ट हर जगह लागू हो जाए, जागिए, पश्चिम से सीखिए, नियम बनाइए, और भारत में नियमित वैक्सीन पासपोर्ट युग की शुरुआत कीजिए.

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