ADVERTISEMENTREMOVE AD

यही वक्त है, मोदी को किसानों से बात कर मनमुटाव दूर कर लेना चाहिए  

द क्विंट के एडिटर-इन-चीफ राघव बहल हाल की घटनाओं पर अपनी बेबाक राय पेश कर रहे हैं.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

मोदी सरकार का खरीफ धान फसल की MSP बढ़ाना, बीजेपी और कांग्रेस को मिले राजनीतिक चंदे और केंद्र- केजरीवाल सरकार की तकरार, द क्विंट के एडिटर-इन-चीफ राघव बहल हाल की घटनाओं पर अपनी बेबाक राय पेश कर रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पीएम को अब किसानों से सीधे मुखातिब होना चाहिए

मोदी सरकार ने खरीफ धान फसल की MSP आकर्षक 72 रुपये प्रति कुंतल बढ़ा दी है, जो कि प्रतिशत के मामले में पिछले साल से ज्यादा है. ऐसा करने के पीछे कृषि अर्थशास्त्र का तर्क हो सकता है, लेकिन मैं मानता हूं कि सरकार ने इसके जरिए प्रदर्शनकारी किसानों को राजनीतिक संदेश दिया है. ये एक स्वागतयोग्य पहल है, खासकर पंजाब और हरियाणा में आढ़तियों को बाईपास कर किसानों के बैंक अकाउंट में सीधी पेमेंट देने के बाद.

कहा जा रहा है कि किसान जल्द और समस्या-मुक्त डायरेक्ट पेमेंट मॉडल से खुश हैं, हालांकि कृषि कानून विरोधी प्रदर्शन इतने तीव्र हैं कि ये ‘खुशी’ जाहिर नहीं हो पाई. लेकिन इससे किसानों और सरकार के बीज दुश्मनी के बीच थोड़ा सद्भाव कायम किया जा सकता था. 

प्रधानमंत्री मोदी को खुद सीधे प्रदर्शनकारी किसानों से मुखातिब होकर कहना चाहिए, "देखो मैंने MSP बढ़ा दी, खरीद प्रक्रिया में सुधार किया है और कानूनों को 3 सालों तक रोकने का भी ऑफर दिया है. अब मुझ पर भरोसा कीजिए कि हमारी बातचीत बिना किसी शर्त और खुले दिमाग के साथ होगी. आप प्रदर्शन खत्म कीजिए, मोर्चे खाली कर दीजिए और बातचीत करने आइए. मैं निजी तौर पर बातचीत को मॉनिटर करूंगा." मुझे लगता है ये काम करेगा, बशर्ते संदेश सीधे पीएम से जाए और किसी से नहीं.

0

भारतीय राजनीति पर 'नेटवर्क इफेक्ट' का प्रभाव

भारतीय राजनीति अब इंटरनेट की नकल कर रही है. कैसे? दोनों पर 'नेटवर्क इफेक्ट' का प्रभाव होता दिख रहा है और 'विजेता' के हाथों में ही सारे संसाधन आ गए हैं. हां, आपने सही अंदाजा लगाया है. मैं राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे की ही बात कर रहा हूं.

बीजेपी को कांग्रेस से 5 गुना ज्यादा चंदा मिला है. बीजेपी को 750 करोड़ और कांग्रेस को 139 करोड़ रुपये डोनेशन में मिले. अगर मैं आपको एक स्थिति दूं कि बीजेपी का नेशनल वोट शेयर 38% है और कांग्रेस का 19%, तो अगर चंदा इस फायदे से ज्यादा मिला कि ‘विरोधी के मुकाबले ज्यादा ताकत है’ तब भी 3:1 का रेश्यो समझ में आता. 

लेकिन 5:1, वो भी जब इलेक्टोरल बॉन्ड अभी गिने नहीं गए हैं, जो कि लगभग 90 फीसदी बीजेपी को जाते हैं, मतलब कि बीजेपी को 'नेटवर्क इफेक्ट' का फायदा मिल रहा है जैसे इंटरनेट पर गूगल, अमेजन, फेसबुक और AirBnB को मिलता है. लेकिन एक दिलचस्प 'अपवाद' शरद पवार की NCP है. इस छोटी राजनीतिक पार्टी ने कांग्रेस से लगभग आधा चंदा इकट्ठा किया है. उल्लेखनीय. इंटरनेट की शब्दावली में NCP डिजिटल गुरिल्ला है, जैसे स्नैपचैट.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शिक्षण संस्थान क्यों दे रहे राजनीतिक चंदा?

राजनीतिक चंदे की चर्चा हो रही है तो मुझे एक डेटा बेहद अप्रिय या यूं कहिए भद्दा लगा. कई शिक्षण संस्थानों ने बीजेपी को राजनीतिक चंदा दिया है. मेवाड़ यूनिवर्सिटी क्यों एक राजनीतिक दल को 2 करोड़ देती है? इसकी जगह उसे सामाजिक/आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए स्कॉलरशिप नहीं शुरू करनी चाहिए?

यहां तक कि जीडी गोयनका इंटरनेशनल स्कूल और लिटिल हार्ट्स कॉन्वेंट ने भी- क्यों, क्यों जो पैसा छात्रों पर खर्च होना चाहिए था, उसे सवालिया नारे और पोस्टरों पर खर्च करने के लिए दे दिए गए? मैं तो उम्मीद करूंगा कि RSS के वरिष्ठ बीजेपी नेतृत्व से ये पैसा इन शिक्षण संस्थानों को लौटाने को कहें. बीजेपी शिक्षण संस्थानों को इन पैसों से स्कॉलरशिप फंड बनाने को कह सकती है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुनाफा नहीं होगा तो उत्पादन नहीं बढ़ाएंगे वैक्सीन निर्माता

दोनों पक्षों का एकाधिकार है और दोनों में असामान्य मोलभाव चल रहा है. भारत सरकार, SII और भारत बायोटेक से वैक्सीन खरीद के लिए सबसे सही कीमत निकालने की कोशिश कर रही है. सामान्य परिस्थितियों में, शायद नियामक निरीक्षण की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि दोनों पक्षों के पास समान एकाधिकार है. लेकिन यहां, सरकार इसे एक असमान बातचीत बनाने के लिए महामारी के कारण मिली शक्ति का उपयोग कर सकती है.

ऐसा लगता है सरकार कीमतों को कम करने की कोशिश कर रही है, इसे काफी सस्ते में खरीदना चाह रही है, शायद 150 रुपये/खुराक पर, जो सप्लायर्स ने शुरुआत में रियायत के रूप में दी थी. लेकिन ये ‘चवन्नी बचाया और रुपैया लुटाया’ की नीति हो सकती है. जब तक वैक्सीन निर्माता अपने निवेश पर ठीकठाक लाभ नहीं कमाएंगे, तब तक वो उत्पादन नहीं बढ़ाएंगे, जो दुखद होगा.

इसलिए सरकार को कीमतों को इतना कम करने का प्रलोभन छोड़ देना चाहिए कि वो ये कह सके कि "देखो, हमने वास्तव में इन्हें काबू में कर लिया" - इसके बजाय, भारत के लिए बेहतर ये होगा कि सरकार टीकों के लिए कंपनियों को थाड़ा ज्यादा भुगतान करे ताकि उत्पादन बढ़े.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

केंद्र और केजरीवाल सरकार की फिर तकरार

दुर्भाग्य से, केंद्र और केजरीवाल सरकारों के बीच हमेशा तकरार रही है. नया मामला है केजरीवाल का सस्ते राशन की घरों तक डिलिवरी (बिग बास्केट, रिलायंस फ्रेश, या अमेजन की तरह). केंद्र सरकार उचित मूल्य की दुकानों के पारंपरिक वितरण के साथ ही रहना चाहती है.

दोनों अनावश्यक नंबर बनाने की कोशिश में हैं. तथ्य ये है कि ये एक दिलचस्प “प्रयोग” है, जिसे पायलट प्रोजेक्ट की तरह आजमाया जाना चाहिए. अगर ये विफल रहता है, तो ठीक है, हमने एक प्रयोग तो किया. अगर ये सफल होता है, तो ये हमारे कल्याणकारी योजनाओं के डिजाइन में मौलिक सुधार कर सकता है. 

इसलिए अब समय आ गया है कि गरीबों के लिए तू-तू-मैं-मैं छोड़ दें और पेशेवर निगरानी में पायलट प्रोजेक्ट के साथ आगे बढ़ें.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×