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राहुल गांधी ने अगर वायनाड 'छोड़ा' तो केरल में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां

अमेठी के विपरीत, राहुल वायनाड में अधिक सक्रिय थे और मतदाताओं के साथ एक मजबूत संबंध स्थापित किया था.

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नामांकन की समय सीमा से बमुश्किल एक घंटे पहले, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने 2024 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के लिए रायबरेली (Raebareli) से अपना पर्चा दाखिल किया. वो केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस की इस राणनीति को भारतीय जनता पार्टी (BJP) की आलोचना के जवाब के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी ने कथित तौर पर हिंदी पट्टी से चुनावों में परहेज करने के लिए राहुल का मजाक उड़ाया था.

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हालांकि इस बात पर काफी बहस चल रही है कि राहुल ने उत्तर भारत में अमेठी की जगह रायबरेली को क्यों चुना? वहीं केरल में कांग्रेस को अपनी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

कांग्रेस को अपने मतदाताओं को आश्वस्त करना होगा. इसके साथ ही अगर राहुल रायबरेली में जीतते हैं तो वायनाड के लिए एक नया उम्मीदवार ढूंढना होगा. दूसरी तरफ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) को भी समझाना होगा, जो वायनाड में राहुल का समर्थन कर रही है. इसके अलावा उसे मीडिया का भी सामना करना पड़ेगा.

2019 के आम चुनावों में कांग्रेस ने वायनाड संसदीय क्षेत्र से प्रदेश के ही नेता टी सिद्दीकी को मैदान में उतारा था. हालांकि, जब कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राहुल को अमेठी के साथ-साथ वायनाड से उम्मीदवार घोषित किया, तो सिद्दीकी ने अपना नाम वापस ले लिया. चुनाव में राहुल ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के उम्मीदवार पीपी सुनीर को 4.31 लाख वोटों से हराया. उस साल वायनाड में 80.31 प्रतिशत से थोड़ा अधिक मतदान हुआ था, जबकि देश में वोटिंग का औसत सिर्फ 73.25 प्रतिशत था.

राहुल वायनाड में सक्रिय थे

जैसा कि बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और उसके नेता नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल की उम्मीद कर रहे थे, वहीं जमीनी स्तर पर लोगों की भावना थी कि कांग्रेस सत्ता में आएगी और राहुल गांधी देश का नेतृत्व करेंगे.

इस भावना ने मतदाताओं को गहराई से प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप वाम मोर्चा को केरल की 20 संसदीय सीटों में से केवल एक सीट मिली. केरल के मतदाताओं ने राहुल की स्थिति मजबूत करने के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 19 सीटें तोहफे में दीं. संक्षेप में, राहुल की जीत के माध्यम से, केरलवासी उस समय केरल से एक भारतीय प्रधानमंत्री को देखने की उम्मीद कर रहे थे.

कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे में सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने उस समय मुस्लिम बहुल संसदीय क्षेत्र वायनाड में राहुल के लिए जीत हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

चूंकि अब कांग्रेस का लक्ष्य राहुल को रायबरेली में भी जीत दिलाना है, ऐसे में IUML नेतृत्व के समर्थन के बावजूद, केरल में पार्टी के लिए कई चुनौतियां हैं. कांग्रेस नेताओं को आश्चर्यचकित करते हुए, IUML नेता पीके कुन्हालीकुट्टी ने कहा है कि राहुल के रायबरेली से चुनाव लड़ने के फैसले से इंडिया ब्लॉक की संभावनाओं को बल मिलेगा. कुन्हालीकुट्टी के इस बयान से केरल में कांग्रेस को कुछ राहत मिल सकती है, जिसमें कहा गया है कि अगर राहुल रायबरेली जीतते हैं और वायनाड छोड़ते हैं तो IUML अपनी तीसरी संसदीय सीट के रूप में वायनाड पर जोर नहीं देगी.

हालांकि, राहुल के वायनाड छोड़ने के बाद यहां के मदताओं की चिंताओं को दूर करना केरल कांग्रेस नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती होगी. अमेठी के विपरीत, राहुल वायनाड में अधिक सक्रिय थे और उन्होंने मतदाताओं के साथ एक मजबूत संबंध स्थापित किया था. चाहे इंसान-जानवरों के बीच संघर्ष के मुद्दे का समाधान हो या कुछ और, राहुल वायनाड में मौजूद थे. जिससे यहां के मतदाताओं में यह भावना पैदा हुई कि राहुल वास्तव में उनमें से एक हैं. लेकिन अब यही चीज कांग्रेस को मुश्किल में डाल सकती है. अगर राहुल रायबरेली जीतते हैं और वायनाड छोड़ते हैं, तो पार्टी लोगों को कैसे समझाएगी.

वायनाड में प्रियंका गांधी की भूमिका

अब, अगर राहुल रायबरेली जीतते हैं और वायनाड छोड़ते हैं, तो यह केरल में कांग्रेस के लिए अतिरिक्त परेशानी पैदा कर सकता है. यहां अंतर्कलह शुरू हो सकती है. कई स्थानीय नेताओं के बीच इस सीट को लेकर खींचतान देखने को मिल सकती है. राज्य में पिछले आठ साल और केंद्र में दस साल से सत्ता से बाहर होने के बावजूद, केरल में कांग्रेस अपनी गुटबाजी के लिए जानी जाती है. पार्टी के भीतर अलग-अलग गुट अपना-अपना हिसाब-किताब बराबर करने के लिए नए दावों और फॉर्मूलों के साथ उभरेंगे.

हालांकि, कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का सुझाव है कि अगर प्रियंका गांधी वायनाड में उपचुनाव लड़ती हैं तो परेशानी से बचा जा सकता है. प्रियंका देशभर में कांग्रेस के चुनाव अभियान में सक्रिय हैं, वायनाड से उनकी उम्मीदवारी को लेकर अभी से अकटलें लगाई जा रही हैं. IUML के समर्थन के साथ वो एक बड़ी जीत दर्ज कर सकती हैं. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, वायनाड में प्रियंका की उम्मीदवारी से 2026 के केरल विधानसभा चुनावों में पार्टी की सत्ता में वापसी की संभावना भी बढ़ सकती है.

प्रियंका की उम्मीदवारी से कांग्रेस वायनाड के मतदाताओं को समझा सकती है कि राहुल ने ये सीट क्यों छोड़ी. इसके साथ ही IUML के साथ गठबंधन बरकरार रखते हुए पार्टी के अंदर गुटबाजी को भी कम किया जा सकता है. हालांकि, पार्टी को वाम दलों और मीडिया के नैरेटिव को मैनेज करने में चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गुट का हिस्सा होने के बावजूद, वाम दल का केरल में कांग्रेस के साथ मतभेद है. वायनाड से चुनाव लड़ने पर केरल के वामपंथी नेता राहुल का मजाक बना चुके हैं.

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प्रचार के दौरान, जब राहुल ने इस बात पर हैरानी जताई कि केरल के मुख्यमंत्री और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता पिनाराई विजयन बीजेपी की आलोचना के बजाय चौबीसों घंटे उन पर हमला रहे हैं, तो पिनाराई ने अपने जवाबी भाषण में स्वर्गीय इंदिरा गांधी का जिक्र करके जवाब दिया. केरल में हर दूसरे दर्जे का वामपंथी नेता वायनाड में राहुल की उम्मीदवारी से नाराज है, खासकर जब वो सीपीआई नेता एनी राजा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए एनी ने कहा कि राहुल ने वायनाड के मतदाताओं के साथ अन्याय किया है.

केरल में कांग्रेस वायनाड और रायबरेली के बीच राहुल के चुनाव लड़ने से जुड़ी चुनौतियों से पार पा सकती है, लेकिन मीडिया के नैरेटिव की वजह से पार्टी को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. शुक्रवार को केरल के सभी प्रमुख न्यूज चैनल मोदी के भाषण से उत्साहित होकर राहुल को निशाना बना रहे थे. एक रैली में मोदी ने कहा था कि कांग्रेस के "शहजादे " (राहुल गांधी) वायनाड से भाग गए हैं, अमेठी में चुनाव नहीं लड़ेंगे और रायबरेली में कहीं घूम रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि केरल के अधिकांश न्यूज चैनलों के प्राइम-टाइम बहस में यह सवाल था, "क्या राहुल भाग गए हैं?"

टीवी पर डिबेट करने वालों ने मोदी के बयान का समर्थन करते हुए सवाल उठाया कि राहुल ने अमेठी के बजाय रायबरेली को क्यों चुना. कुछ एंकरों ने तो यहां तक ​​कह दिया कि राहुल रायबरेली में जीतने के बजाय अमेठी में हार जाएं. ऐसे नैरेटिव से केरल में कांग्रेस पर गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है. 4 जून तक और संभवतः उसके बाद भी, केरल में कांग्रेस नेताओं को ऐसे नैरेटिव का सामना करना पड़ेगा.

(रेजिमोन कुट्टप्पन एक स्वतंत्र पत्रकार और अनडॉक्यूमेंटेड [पेंगुइन 2021] के लेखक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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