मानवेंद्र सिंह झालरापाटन में वसुंधरा राजे के खिलाफ उतरकर अपने किस अपमान का बदला लेने चाहते हैं.
जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र पहले ही कह चुके हैं ये लड़ाई है स्वाभिमान की. ये अपमान की आग 4 साल से सुलग रही थी. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की और कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह के तगड़े मुकाबले की एक लाइन का सार यही है. बॉलीवुड की हिंदी फिल्म का सारा मसाला राजस्थान की झालरापाटन विधानसभा सीट पर उतर आया है.
मानवेंद्र राजपूत हैं और वसुंधरा राजे महारानी के तौर पर मशहूर हैं.
चुनावी लड़ाई में स्वाभिमान और अपमान क्या है?
मानवेंद्र सिंह ने अक्टूबर में बाड़मेर में बड़ी स्वाभिमान रैली के बाद बीजेपी छोड़ने का ऐलान किया था. इसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए.
उनकी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अदावत 4 साल पुरानी, 2014 की है. तब बाड़मेर लोकसभा सीट से मानवेंद्र सिंह के पिता और बीजेपी के दिग्गज जसवंत सिंह चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन बताया जाता है कि वसुंधरा अड़ गईं कि इस सीट से कर्नल सोनाराम चौधरी ही चुनाव लड़ेंगे, जो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. कुछ दिनों बाद जसवंत सिंह बीमार हो गए और ब्रेन हेमरेज की वजह से लंबे वक्त से कोमा में हैं.
मानवेंद्र तभी से सही वक्त का इंतजार कर रहे थे. आखिरकार विधानसभा चुनाव के ऐन पहले कांग्रेस में शामिल हुए. अब मुख्यमंत्री के सामने ताल ठोककर मुकाबले के लिए तैयार हैं.
मानवेंद्र बोले, जमकर लड़ूंगा
मानवेंद्र सिंह के लिए जीत पहली नजर में नामुमकिन सी लगती है. लेकिन वो कहते हैं कि जमकर और सबकुछ झोंककर मुकाबला करेंगे. इस सीट से वसुंधरा राजे 2003 से लगातार भारी अंतर से जीतती चली आ रही हैं. लेकिन जानकारों के मुताबिक पहले की बात और थी, इस बार मानवेंद्र उनके सामने हैं.
राजपूत वोटों पर भरोसा
चर्चा तो ऐसी ही है कि राजपूत कई बातों से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से नाराज हैं. उन्हें लगता है कि राजपूतों की अनदेखी हो रही है. 'पद्मावती' विवाद और गैंगस्टर आनंद पाल सिंह के एनकाउंटर मामले ने इसे और हवा दे दी. मानवेंद्र सिंह को लगता है कि राजपूत समुदाय उनका साथ देगा.
वसुंधरा राजे के मुताबिक, कांग्रेस के पास उनकी टक्कर का कोई उम्मीदवार नहीं है, इसलिए बाहरी व्यक्ति को लाया गया. राजे ने कहा कि ये परिवार की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान की लड़ाई है.
कांग्रेस के उम्मीदवार मानवेंद्र ने कहा कि वो इस चैलेंज को मंजूर करते हैं.
चुनाव में मानवेंद्र से ज्यादा वसुंधरा अनुभवी
- 67 साल की वसुंधरा राजे को चुनाव लड़ने का बहुत अनुभव है. वो 5 बार सांसद और 5 बार विधायक रह चुकी हैं.
- मानवेंद्र 54 साल के हैं और इसके पहले वो एक बार लोकसभा और एक बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं.
- वसुंधरा के 10 चुनाव के मुकाबले मानवेंद्र के पास सिर्फ 2 चुनाव का अनुभव है.
- वसुंधरा कभी नहीं हारीं, जबकि मानवेंद्र 1999 में बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव हार भी चुके हैं.
जसवंत सिंह से कनेक्शन
मानवेंद्र और उनके राजपूत समुदाय को लगता है कि जसवंत सिंह को बाड़मेर से टिकट न देकर बीजेपी और खासतौर पर वसुंधरा ने उन्हें अपमानित किया. 2014 में गिरने के बाद से जसवंत सिंह कोमा में हैं. लेकिन वसुंधरा राजे ने इसके बाद भी रिश्ते सुधारने के लिए अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की.
जिन कर्नल सोनाराम को 2004 में मानवेंद्र सिंह ने करीब पौने तीन लाख वोट से हराया था, उन्हीं ने 2014 में जसवंत सिंह को हराया. मानवेंद्र ने स्वाभिमान रैली में इन तमाम बातों की याद भी दिलाई और बोला कि वो राजपूतों की शान दोबारा कायम करना चाहते हैं.
झालरापाटन में वसुंधरा राजे 2003 से नहीं हारीं
मानवेंद्र से इस मुकाबले के पहले राजे की सभी जीत एकतरफा रही है. उनके खिलाफ कांग्रेस 2003 में सबसे मजबूत उम्मीदवार रमा पायलट ही ला पाई थीं.
- 2003 में वसुंधरा ने 27,375 वोट से जीत हासिल की थी
- 2008 में वसुंधरा राजे 32 हजार से ज्यादा वोट से जीतीं.
- 2013 में वसुंधरा राजे ने 60 हजार वोट से जीत हासिल की
वसुंधरा राजे खुलकर कभी नहीं बोलीं
मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर कभी भी खुलकर कुछ नहीं कहा. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने जिस मकसद के लिए उम्मीदवार उतारा है, वो मकसद हासिल नहीं होगा.
कांग्रेस को लगता है कि इस वक्त मानवेंद्र से बेहतर कैंडिडेट उसके पास नहीं था. सचिन पायलट का तो दावा है कि झालरापाटन में मुख्यमंत्री ने कुछ खास नहीं किया, इसलिए कांग्रेस की संभावना ज्यादा है.
जानकारों को लगता है कि मानवेंद्र के आने से एकतरफा मुकाबला रोचक हो गया है और मुख्यमंत्री इसे हल्के में नहीं ले सकतीं.
झालरापाटन सीट
ये सीट राजधानी जयपुर से करीब साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर झालावाड़ जिले में आती है. यहां के मंदिर की वजह से इसका नाम झालरापाटन पड़ा. वसुंधरा राजे के आने के बाद से ये बीजेपी का गढ़ है, लेकिन इसके पहले कांग्रेस भी यहां से जीतती रही है.
झालरापाटन के वोटर
यहां सभी समुदायों के वोटर हैं, लेकिन मुसलमान वोटरों की तादाद सबसे ज्यादा है.
मानवेंद्र को उम्मीद है कि 35 हजार राजपूत वोटर का समर्थन उन्हें मिलेगा, क्योंकि पूरा राजपूत समुदाय इन दिनों वसुंधरा सरकार से नाराज है. इसके अलावा पाटीदार, डांगी और गुज्जर, ब्राह्मण और वैश्य समुदाय के करीब 50 हजार वोटर हैं.
कांग्रेस को लगता है कि मुस्लिम, दलित और राजपूतों के कॉम्बिनेशन के दम पर मानवेंद्र सिंह मुख्यमंत्री को कड़ी टक्कर दे सकते हैं.
राजस्थान की इस सीट पर सबकी कड़ी नजर रहेगी, क्योंकि मुकाबला सिर्फ राजनीतिक नहीं, इमोशनल भी है. वसुंधरा के मुताबिक, झालावाड़ से उनका 30 साल का रिश्ता है, इसलिए जब तक सांस में सांस है, तब तक रिश्ता बना रहेगा.
लेकिन लोकल लेवल में यही कहा जा रहा है कि राजस्थान के राजपूतों में जसवंत सिंह का बहुत सम्मान है. मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव वैसे तो एकतरफा ही रहता है, लेकिन राजपूत शान और स्वाभिमान के तड़के ने झालरापाटन सीट के लिए रोमांच कई गुना बढ़ा दिया है.
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