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वसुंधरा राजे के रिप्लेसमेंट के लिए दीया कुमारी कितनी कारगर, BJP ने क्यों खेला ये दांव?

Diya Kumari: अपने सीमित सियासी अनुभव और विवादों के बावजूद, दीया को बीजेपी के शीर्ष नेताओं का समर्थन हासिल है.

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Rajasthan Election: 1951-52 के पहले चुनाव के बाद से ही राजघराने चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे हैं, लेकिन उनमें से केवल वसुंधरा राजे (Vasundhra Raje) ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाईं. हालांकि, हाल के दिनों में आगामी चुनाव से पहले राजे के अलावा जयपुर के पूर्व शाही परिवार की सदस्य दीया कुमारी (Diya Kumari) अचानक सुर्खियों में हैं.

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कई लोगों को नाराज करते हुए बीजेपी ने राजसमंद से लोकसभा सांसद दीया कुमारी को जयपुर की प्रतिष्ठित विद्याधर नगर सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. 2018 के चुनाव में सीट जीतने वाले वरिष्ठ नेता और पांच बार के विधायक नरपत सिंह राजवी को इस सीट से हटाने के फैसले ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है.

बीजेपी ने 2018 में उन 41 सीटों में से 40 सीटें खो दी थीं, जिन पर खड़े उम्मीदवार बीजेपी की पहली सूची में शामिल थे.

लेकिन, पिछली बार 30 हजार से अधिक वोटों से जीतने के बावजूद, बीजेपी ने नरपत सिंह राजवी को टिकट नहीं दिया. राजवी भारत के पूर्व सीएम और उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के दामाद हैं और वे राजे खेमे के प्रमुख नेताओं में से एक हैं. उनका टिकट कटने से सियासी तूफान खड़ा हो गया है.

क्या दीया कुमारी, वसुंधरा राजे की जगह ले पाएंगी?

टिकट कटने के बाद नरपत सिंह राजवी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने हैरानी और अविश्वास जताते हुए इस फैसले को "भैरों सिंह शेखावत की विरासत का अपमान" बताया. यह याद करते हुए कि कैसे शेखावत ने राज्य में दशकों तक पार्टी को आगे बढ़ाया था, राजवी ने यह भी सवाल किया कि 23 अक्टूबर को शुरू होने वाले शेखावत की जन्मशती को बीजेपी किस मुंह से मनाएगी, जब उनके अपने परिवार के साथ इतना खराब व्यवहार किया जा रहा है?

दीया का "न तो पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ संवाद और न ही संपर्क था, ऐसे में राजवी ने उनकी साख पर सवाल उठाते हुए कहा...

"पार्टी एक ऐसे परिवार को आशीर्वाद क्यों दे रही है, जिसने मुगलों के साथ मिलीभगत की और यहां तक ​​कि राजस्थान के प्रतिष्ठित नायक राणा प्रताप के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी."

यह संदर्भ स्पष्ट रूप से जयपुर राजघरानों के इतिहास के सबसे शर्मनाक अध्यायों में से एक का है, जिन्होंने न केवल जोधा बाई की शादी सम्राट अकबर से कराई थी, बल्कि महाराजा मान सिंह ने युद्ध में राणा प्रताप के खिलाफ मुगल सेना का नेतृत्व भी किया था.

बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि राजवी को हटाकर दीया के लिए 'सुरक्षित सीट' रखने का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि पार्टी के शीर्ष नेता दीया के लिए एक बड़ी भूमिका की परिकल्पना करते हैं और राजे को दरकिनार करने से पैदा हुए खाली जगह को दीया से भरना चाहते हैं और उनके शाही वंश से ताल्लुक रखने को भी कैश करना चाहते हैं.

महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या दीया कुमारी, वसुंधरा राजे को दरकिनार करने से पैदा हुई भारी कमी को पूरा कर सकती हैं और क्या वे राजस्थान में दो दशकों से अधिक समय से बीजेपी की सबसे लोकप्रिय नेता की जगह ले सकती हैं?

ग्राउंड पर देखें तो दीया और राजे के बीच समानताएं स्पष्ट दिखती हैं. दोनों महिलाएं प्रमुख शाही परिवारों से हैं और राजसी आकर्षण रखती हैं लेकिन जो लोग राजस्थान की राजनीति और बीजेपी के अंदरुनी तौर पर काम करने के तरीके को समझते हैं, उन्हें इसको लेकर जटिल तस्वीर नजर आती है.

अपनी शाही पृष्ठभूमि के बावजूद, दीया की राजनीतिक कौशल को लेकर संदेह बरकरार है.

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उनके पिता ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने 1989 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनावी राजनीति में कदम रखा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. दीया ने खुद अब तक केवल दो चुनाव लड़े हैं, जिनमें 2013 का विधानसभा चुनाव है, जब बीजेपी ने राजस्थान में ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया था और दूसरा 2019 का लोकसभा चुनाव है.

दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए 2018 के विधानसभा चुनावों से बाहर रहने का फैसला किया, जब बीजेपी को कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा था. आगामी चुनाव में अब तक लड़ चुकी सीटों पर छोड़कर दीया एक अलग तीसरे सीट पर चुनाव लड़ेंगी.

राजे-दीया के बीच तकरार और विवाद

दीया की शख्सियत अपनी सौतेली दादी राजमाता गायत्री देवी की तरह आकर्षक है, जो स्वतंत्र पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं. 1960 और 70 के दशक में गायत्री देवी ने जयपुर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था लेकिन बहुत से लोग इसका उन्हें मास लीडर होने या राजनीतिक कौशल का श्रेय नहीं देते हैं और राज्य बीजेपी में अधिकांश लोग दीया को एक हल्के प्रभाव वाली नेत्री के रूप में देखते हैं, जिनके पास कोई बड़ा चुनावी अनुभव या राजनीतिक कौशल नहीं है.

विडंबना यह है कि दीया को किसी और ने नहीं बल्कि खुद राजे ने 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी की रैली में बीजेपी में शामिल किया था. हालांकि, समय के साथ उनके राजनीतिक गठबंधन में खटास आ गई और 2016 में दीया और उनकी मां पद्मिनी देवी का राजे के साथ सार्वजनिक विवाद हो गया, जिसे जयपुर में 'राज महल विवाद' के नाम से जाना जाता है.

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राजे-दीया के बीच कड़वाहट अगस्त 2016 में सार्वजनिक रूप से सामने आ गई, जब जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने दीया के परिवार के स्वामित्व वाले 'राज महल पैलेस' होटल के गेट सील कर दिया.

हालांकि, यह एक अतिक्रमण विरोधी अभियान का हिस्सा था, लेकिन इससे काफी ड्रामा हुआ क्योंकि पहले दीया ने सरकारी अधिकारियों के साथ सौदेबाजी की और बाद में, उनकी मां राजमाता पद्मिनी देवी करणी सेना जैसे राजपूत संगठनों के समर्थन में सड़कों पर उतर आईं. अंततः, जेडीए पीछे हट गया लेकिन इस वाकये ने साबित कर दिया कि वसुंधरा राजे और दीया कुमारी का रिश्ता पूरी तरह टूट गया है.

उस टकरार के बाद से, राजे के विरोध करने वाले RSS और बीजेपी के गुटों ने दीया को वसुंधरा की जगह प्रचारित करने की कोशिश की. राजे की आरएसएस के साथ उनकी अनबन मशहूर रही है और 2003 में राजे के मुख्यमंत्री बनने के बाद से और अब तक जारी है.

RSS के बड़े नेता राजे के पहले कार्यकाल से ही उनके लिए विकल्प तलाश रहे हैं और अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि आरएसएस ने पिछले लोकसभा चुनाव में दीया को टिकट दिलाया था. बीजेपी के शीर्ष दो नेताओं पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ राजे के असहज रिश्ते भी शायद ही किसी से छिपे हों और राजे को हाशिए पर धकेलने की उनकी कोशिश ने दीया को आरएसएस-बीजेपी के नेताओं के लिए शाही हथियार के रूप में बदल दिया, जिसे राजे की जगह पर उतारा जा सके.

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वहीं, दीया कुमारी का सियासी सफर उनके बयान और कई अजीब दावों के लिए ज्यादा सुर्खियों में रहा. उनके सबसे उल्लेखनीय दावों में से एक यह था कि ताज महल उनके पूर्वजों का था क्योंकि इसे मुगल सम्राट शाहजहां ने "कब्जा" कर लिया था. इसके बाद उन्होंने भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज होने का भी दावा किया. यहां तक की अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में तेजी लाने के लिए दीया ने सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम के वशंज होने के दावे को लेकर अपने परिवार की वंशावली को सबूत के तौर पर देने की भी पेशकश की थी.

राजनीतिक से परे, दीया का निजी जीवन भी साधारण ही रहा है. 1990 के दशक के मध्य में उन्होंने प्रेम विवाह किया. शुरुआत में परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा, इस शादी के बाद जयपुर में राजपूत संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. हालांकि, एक दशक बाद वैवाहिक संबंध में खटास आ गई और अंततः 2019 में तलाक के रूप में उनका तलाक हो गया.

फिर बीजेपी की पसंद दीया क्यों?

अपने सीमित राजनीतिक अनुभव और विवादों के बावजूद, दीया ने बीजेपी के शीर्ष नेताओं का समर्थन हासिल कर लिया है और गृह मंत्री शाह ने 2018 के राज्य चुनावों के दौरान दीया के एक पॉपर्टी में बीजेपी का स्पेशल ऑफिस भी खोला. यह समर्थन हाल ही में काफी स्पष्ट रहा है. परिवर्तन यात्राओं के अंत में जयपुर में मोदी की रैली के दौरान, दीया कुमारी ने उस कार्यक्रम का संचालन किया था.

इसके विपरीत, पीएम मोदी ने वसुंधरा की स्पष्ट रूप से उपेक्षा की और यहां तक की राजे को रैली को संबोधित करने की भी अनुमति नहीं दी गई. कुछ दिनों बाद, अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जयपुर में एक रणनीति सत्र बुलाया, लेकिन दीया के साथ एक अलग बैठक की गई.

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बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से पर्याप्त समर्थन के बावजूद, राजनीतिक हलकों को दीया की राजनीतिक दूरदर्शिता और कौशल पर संदेह है. उनके सीमित अनुभव, राजनीतिक परिपक्वता की कमी और अपरंपरागत सार्वजनिक टिप्पणियों को देखते हुए, 2023 के चुनावों में राजे के रिप्लेसमेंट करने की उनकी क्षमता पर संदेह बना हुआ है.

हालांकि, उनके समर्थक इसके विपरीत तर्क देते हैं, लेकिन आगामी चुनावी लड़ाई में दीया कुमारी का वसुंधरा राजे के बदले अच्छा विकल्प होना, ये जमीनी हकीकत से परे केवल राजे के विरोधियों की सोच अधिक लगती है. आगे की राह इस बात का को तय करेगी कि क्या दीया की शाही वंशावली और सियासत में नई जगह, राजस्थान की राजनीति के चुनावी दंगल में सफलता में तब्दील हो सकती है कि नहीं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के विशेषज्ञ हैं. एनडीटीवी में रेजिडेंट एडिटर के रूप में काम करने के अलावा, वे जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर भी रहे हैं. (ये एक ऑपनियन का टुकड़ा है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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