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राजस्थान चुनाव: PM बनाम CM की लड़ाई में गहलोत का 'गरीब कल्याण' वाला दांव

चुनाव अभियान में राजे की सीमित भूमिका के बाद, राजस्थान में महिला मतदाताओं की प्रतिक्रिया कैसी होगी, यह एक प्रमुख मुद्दा है.

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राजस्थान (Rajasthan) के राजनीतिक रंगमंच में दिग्गजों के नाटकीय प्रदर्शन के लिए स्टेज तैयार हो चुका है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने चार परिवर्तन यात्राएं शुरू की हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) को प्रोजेक्ट करने से परहेज किया है. इससे यह स्पष्ट हो गया है कि कि रेगिस्तानी राज्य में आगामी हाई-वोल्टेज चुनावी जंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Gehlot) के बीच होने वाली है.

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वसुंधरा राजे को रोके रखने और प्रधानमंत्री के चेहरे पर सारा दांव लगाने के बीजेपी के फैसले ने पीएम-सीएम मुकाबले का स्टेज तैयार कर दिया है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी कल्याणकारी योजनाओं के जरिए राज्य में हर पांच साल पर सत्ता बदलने की रवायत को तोड़ने की कोशिश में जुटे हैं. वहीं बीजेपी पीएम मोदी के नाम पर अंदरुनी कलह को रोकना चाहती है. ऐसे में राजस्थान एक बेहद ही रोमांचक चुनावी मुठभेड़ के लिए तैयार है.

गरीब और अमीर के बीच शक्ति प्रदर्शन

ऐतिहासिक रूप से, सत्ता विरोधी लहर से निपटने में सीएम गहलोत का रिकॉर्ड काफी खराब रहा है. सराहनीय कल्याणकारी कार्यों के बावजूद, सीएम के रूप में अपने पहले दो कार्यकाल पूरे करने के बाद 2003 और 2013 के चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

अपनी योजनाओं के बेहतर प्रचार-प्रसार और मार्केटिंग की जरूरतों को समझते हुए, इस बार गहलोत अपनी उपलब्धियों को जनता के सामने रखने के लिए जनसंपर्क अभियान पर हैं.

हाल के दिनों में हुए कई सर्वे से पता चलता है कि उनकी कोशिशें रंग ला सकती हैं और कांग्रेस मौजूदा वक्त में बीजेपी से बेहतर स्थिति में है.

अपने कल्याणकारी फैसलों की मार्केटिंग के अलावा, हाल के हफ्तों में गहलोत की रणनीति में एक अहम बदलाव आया है, जिसके तहत वह पीएम-सीएम की इस जंग का एक आकर्षक स्क्रिप्ट तैयार कर रहे हैं.

राजस्थान चुनावों को गरीबों (जो उनकी योजनाओं से लाभान्वित हुए हैं) और अमीरों (जिन्हें पीएम मोदी और बीजेपी का समर्थन प्राप्त है) के बीच लड़ाई के रूप में प्रस्तुत करते हुए, गहलोत ने अपनी सरकार द्वारा गरीबों और वंचितों के हितों की वकालत करने की एक कहानी गढ़ी है.

अमीर अभिजात वर्ग की पक्षधर पार्टी के रूप में बीजेपी की आलोचना करने के अलावा, गहलोत राजस्थान चुनाव को गरीबों और अमीरों के बीच संघर्ष के रूप में चित्रित कर रहे हैं- वो कांग्रेस को हाशिये पर खड़े लोगों के रक्षक के रूप में पेश कर रहे हैं और बीजेपी को विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के साथ जोड़ रहे हैं.

गहलोत का 'प्रो-पुअर' नैरेटिव बिल्डिंग और इमेज मैनेजमेंट

चुनाव को 'अमीर बनाम गरीब' के रूप में पेश करने के साथ ही, गहलोत अपनी कई योजनाओं को अनिवार्य रूप से गरीब-हितैषी पहल के रूप में पेश कर रहे हैं. चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना, 500 रुपये में रसोई गैस सिलेंडर और पुरानी पेंशन योजना, कांग्रेस के लिए मुख्य चुनावी मुद्दा बन गए हैं.

बीजेपी-मोदी के बयानों से, जिससे उनकी सरकार की छवि खराब होती है, उससे मुकाबला करने के लिए गहलोत गरीबों के अधिकारों की वकालत करने की एक मजबूत कहानी गढ़ रहे हैं. केंद्र में लगभग एक दशक तक भगवा ब्रिगेड के शासन की वजह से देश में बढ़ती असमानता के आरोपों के बीच यह तर्कसंगत भी है.

राजनीतिक क्षेत्र के लिए अमीर-गरीब की कहानी गढ़ते हुए, गहलोत व्यक्तिगत स्तर पर भी अपने और मोदी के बीच एक आश्चर्यजनक विरोधाभास बनाना चाहते हैं.

"मैं मोदी से बड़ा फकीर हूं" जैसे वाक्यांशों का उपयोग करते हुए, गहलोत यह भी सवाल करते हैं कि मोदी राजस्थान अभियान की बागडोर क्यों संभाल रहे हैं, अगर वास्तव में वह एक 'विश्वगुरु' और एक वैश्विक नेता हैं.

तीखा हमला बोलते हुए गहलोत ने हाल ही में कहा था कि “मोदी जी जो कपड़े एक बार पहनते हैं, उन्हें दोबारा नहीं पहनते. मैं नहीं जानता कि वह दिन में कितनी बार अपनी पोशाक बदलते हैं- एक बार, दो बार या तीन बार, लेकिन मेरी ड्रेस हमेशा एक जैसी ही रहती है."

वह जोर देकर कहते हैं, "मैंने अपनी जिंदगी में कोई प्लॉट नहीं खरीदा है और न ही एक ग्राम सोना खरीदा है जबकि मोदी के चश्मे की कीमत ही 2.5 लाख रुपये है. क्या वह मुझसे भी बड़े फकीर हो सकते हैं?"

इस बात का स्पष्ट उद्देश्य गहलोत की कथित गांधीवादी सादगी और मोदी के कथित अहंकार और महंगी जीवनशैली के बीच अंतर दिखाना है.

मतलब यह है कि जहां गहलोत, राजस्थान और वहां के लोगों के एक विनम्र, समर्पित सेवक हैं, वहीं मोदी एक बाहरी व्यक्ति हैं, जो चुनाव खत्म होते ही गायब हो जाएंगे.

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महिलाओं के लिए फ्री चीजें

जुबानी जंगों और राजनीतिक दिखावे से परे, गहलोत ठोस पहल के साथ अपनी बात रख रहे हैं. जनता के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हुए, उन्होंने हाल ही में अपनी सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक 'इंदिरा गांधी स्मार्टफोन योजना' शुरू की है.

महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए राजस्थान में 1.33 करोड़ महिलाओं को मुफ्त मोबाइल फोन बांटने की योजना बेहद सार्थक है क्योंकि यह महिलाओं और उनके बच्चों को ऑनलाइन शैक्षिक संसाधनों तक बेहतर पहुंच दे सकती है और महिलाओं को फोन का उपयोग करने के लिए पुरुषों पर कम निर्भर बना सकती है.

यह योजना सिर्फ 500 रुपये में LPG सिलेंडर देने के फैसले के बाद आती है, जो महिला मतदाताओं को लुभाने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

कुछ दिन पहले ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने 'इंदिरा रसोई योजना ग्रामीण' की शुरुआत की थी, जो गहलोत शासन की एक अहम योजना है. इस योजना के तहत जरूरतमंदों को सिर्फ 8 रुपये में पौष्टिक भोजन दिया जाता है. इसे अब ग्रामीण राजस्थान तक बढ़ा दिया गया है.

मूल रूप से गहलोत अपनी योजनाओं को अपने गरीब समर्थक शासन मॉडल के एक निश्चित संकेत के रूप में पेश कर रहे हैं. प्रभावी कोरोना प्रबंधन से लेकर प्रमुख चिकित्सा योजनाओं और 25 लाख के बड़े हेल्थ रिजर्वेशन तक, किसानों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली और 100 यूनिट मुफ्त घरेलू बिजली, मवेशी और दुर्घटना बीमा से लेकर शहरी गरीबों के लिए रोजगार गारंटी योजनाओं तक ने समाज के सभी वर्ग को गहलोत के कल्याणवाद ने कवर किया है.

गहलोत अपनी योजनाओं को गरीब हितैषी शासन मॉडल के रूप में पेश कर रहे हैं. प्रभावी कोरोना प्रबंधन से लेकर प्रमुख चिकित्सा योजनाओं, 25 लाख के स्वास्थ्य बीमा के साथ ही किसानों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली, 100 यूनिट मुफ्त घरेलू बिजली, मवेशी और दुर्घटना बीमा से लेकर शहरी गरीबों के लिए रोजगार गारंटी योजनाओं तक, गहलोत ने अपनी जनकल्याणकारी नीतियों से समाज के सभी वर्गों को कवर किया है.

ज्यादातर योजनाएं पिछले पांच सालों में लागू की गई हैं, इसलिए उन्हें केवल चुनावी सौगात के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता है.
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गहलोत सरकार के खिलाफ BJP की रणनीति

गहलोत के नैरेटिव और कल्याणकारी योजनाओं का मुकाबला करने के लिए, बीजेपी भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है. विशेष रूप से विवादास्पद 'रेड डायरी', जिसके बारे में एक पूर्व कांग्रेस मंत्री ने दावा किया था कि इसमें गहलोत शासन के भ्रष्ट सौदों की जानकारी है.

परिवर्तन यात्राओं के दौरान कानून-व्यवस्था के मुद्दों पर भगवा ब्रिगेड का लगातार हमला भी गहलोत शासन में एक कथित कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश लगती है.

अशोक गहलोत की योजनाओं पर चर्चाओं के बीच, यह बताना जरूरी है कि मोदी सरकार ने गहलोत की स्मार्टफोन योजना के तुरंत बाद, LPG की कीमतों में 200 रुपये की कटौती की थी.

चुनाव अभियान में राजे की सीमित भूमिका के बाद, राजस्थान में महिला मतदाताओं की प्रतिक्रिया कैसी होगी, यह एक प्रमुख मुद्दा है. सिलेंडर की कीमतों में कटौती को 'राखी गिफ्ट' के रूप में प्रचारित करना दर्शाता है कि बीजेपी महिलाओं को आकर्षित करने में जुटी है, जो विशेष रूप से राजस्थान चुनावों में राजे को दरकिनार किए जाने के बाद प्रासंगिक भी है.

मिशन राजस्थान

बीजेपी के लिए राजस्थान चुनाव प्रतिष्ठा की लड़ाई है. मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 'ऑपरेशन लोटस' सफल रहा था, लेकिन राजस्थान में गहलोत की राजनीतिक कुशलता की वजह से ये फेल हो गया था.

मेवाड़ में परिवर्तन यात्रा की शुरुआत करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि, "मैं बनिया का बेटा हूं और सारा हिसाब बराबर करना चाहता हूं." कर्नाटक की हार के बाद स्पष्ट रूप से मोदी-शाह की जोड़ी के लिए यह एक बड़ी लड़ाई है, जिसे वो किसी कीमत पर हारना नहीं चाहते हैं.

गहलोत और कांग्रेस द्वारा 'अमीर बनाम गरीब' की कहानी को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के साथ, राजस्थान में पीएम-सीएम मुकाबला पहले से ही राजनीतिक पर्यवेक्षकों और जनता को समान रूप से आकर्षित कर रहा है.

जैसा कि भारत का सबसे बड़ा राज्य भव्य राजनीतिक तमाशे के लिए खुद को तैयार कर रहा है, इस "रेगिस्तानी तूफान" की कहानियां अगले साल लोकसभा टकराव की बड़ी रूपरेखा को अच्छी तरह से परिभाषित कर सकती हैं.

(लेखक एक अनुभवी पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के विशेषज्ञ हैं. NDTV में रेजिडेंट एडिटर के रूप में काम करने के अलावा, वह जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के प्रोफेसर रहे हैं. वह @rajanmahan पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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