कांग्रेस के बागी नेता सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच छिड़ी जंग अब राजस्थान में एक गंदे खेल में बदल गई है. खेल के दो मुख्य नायक सरेआम बयानों के तीर चला रहे हैं. कहानी में अंतहीन ट्विस्ट और टर्न आ रहे हैं. पायलट-गहलोत की महाभारत पर पूरे देश की नजर है.
दिलचस्प बात ये है कि इस बड़े नाटक में सहायक कलाकार हैं, जिनके पेचीदा पात्रों पर से भी पर्दा उठा है, इसमें से कई पात्र राष्ट्रीय पटल पर अज्ञात हैं. विशेष रूप से, कई लोग पायलट खेमे के बागी विधायकों के बारे में जानने को उत्सुक हैं और पता करना चाहते हैं- ये कौन से नेता हैं? इनकी क्या खासियतें हैं और दांव पर क्या है? पायलट खेमे में इनकी भूमिका क्या है? और ये नेता हमेशा से अलग-अलग से रहने वाले सचिन के कैसे करीब आए?
भंवर लाल शर्मा
पायलट का समर्थन करने वाले विधायकों के समूह में सबसे बुजुर्ग और विवादित नेता 75 साल के भंवर लाल शर्मा हैं. उन्हें पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त किया जा चुका है. उन पर गहलोत सरकार को गिराने के लिए बीजेपी नेताओं के साथ साजिश रचने का आरोप है. इसके कथित ऑडियो टेप भी हैं.
शर्मा 2011 से ऑल इंडिया ब्राह्मण फेडरेशन के अध्यक्ष हैं, जो उनकी ताकत है. इसके अलावा वह 2002 से राजस्थान ब्राह्मण महासभा के प्रमुख हैं, उनके इस बड़े संगठन में राज्य के करीब 75 लाख ब्राह्मण शामिल हैं.
हालांकि वह गरीबी में बड़े हुए और 10वीं में स्कूल छोड़ दिया, लेकिन शर्मा खुद को सफल रणनीतिकार यानी आधुनिक समय का चाणक्य मानते हैं. एक बार उन्होंने अतिउत्साह में कहा था: “महान ऋषि चाणक्य ने शक्तिशाली राजा चंद्रगुप्त मौर्य को सलाह जरूर दी, लेकिन वह खुद राजमहल (महल) के बाहर एक झोपड़ी में रहते थे. लेकिन, हम झोपड़ी से संतुष्ट नहीं हैं. हम महल चाहते हैं.”
पिछले कुछ सालों में उनके राजनीतिक कौशल पर उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं भारी पड़ी हैं. हमने उन्हें लोकदल से जनता दल और फिर बीजेपी से होते हुए आखिर में कांग्रेस में जाते देखा है. कांग्रेस में उन्हें करीब दो दशक का लंबा वक्त हो गया है. उपलब्धियों के बजाय, शर्मा को राजस्थान की राजनीति में संकट के लिए ज्यादा जाना जाता है, यानी वह कई बार राज्य में सरकारों को गिराने के प्रयासों में शामिल रहे हैं.
सरकार गिराने की शर्मा की सबसे बदनाम कोशिशों में था साल 1996 में राजस्थान में बीजेपी की भैरो सिंह शेखावत सरकार को उखाड़ने का नाकाम प्रयास.
हॉर्स ट्रेडिंग और मनी लॉन्डरिंग के आरोपों के अलावा यह एपिसोड और भी वजहों से काफी खराब हो गया था. वजह थी इसकी टाइमिंग. शर्मा ऐसे वक्त में सरकार के तख्तापलट की कोशिश कर रहे थे, जब मुख्यमंत्री शेखावत बीमार थे और अमेरिका में अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे थे.
मगर उस वक्त बीजेपी के कट्टर विरोधी होने के बावजूद गहलोत ने बीमार शेखावत को हटाने के उस प्रयास में शामिल होने से इनकार कर दिया. तब से शर्मा-गहलोत के बीच ये कड़वाहट बरकरार है.
इस चतुर राजनेता को राजस्थान में तीखे बयानों के लिए भी जाना जाता है. 2014 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद शर्मा ने राहुल गांधी को “जोकरों की टीम का एमडी” करार दिया था.
विडंबना यह है कि उन्होंने यह भी दावा किया था कि राहुल गांधी और सचिन पायलट जैसे लोग “राजनीतिक विरासत” से आए हैं. तब कांग्रेस ने उन्हें निष्कासित कर दिया था, लेकिन माफी के बाद 2018 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उनकी फिर वापसी हो गई थी.
चुरू जिले से सात बार विधायक रह चुके शर्मा गहलोत सरकार में कभी भी मंत्री नहीं बनाए जाने से खफा थे और अब पायलट को सीएम की कुर्सी पर बैठाने के लिए ओवरटाइम कर रहे हैं. ऐसे वक्त में जब आरोप है कि वो सौदे कर रहे हैं और रणनीतियां बना रहे हैं, उन्हें कई लोग पायलट कैंप का 'चाणक्य' कर रहे हैं.
विश्वेंद्र सिंह
शर्मा की मामूली पृष्ठभूमि के विपरीत पायलट कैम्प के अन्य बर्खास्त विधायक विश्वेंद्र सिंह हैं. वह अपने शाही वंश के बारे में मुखर है और उस पर गर्व करते हैं. वह भरतपुर के पूर्व राजघराने के प्रमुख हैं. यह राजस्थान की इकलौती रियासत थी, जिसमें जाट शासक थे. विश्वेंद्र राजनीतिक रूप से शक्तिशाली जाट समुदाय के बीच एक प्रभावशाली आवाज हैं. यह कम्युनिटी एक बड़ा वोटबैंक है, जिसका राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 40 सीटों पर प्रभाव है.
विडंबना यह है कि विश्वेंद्र ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1989 के लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट को हराकर की थी.
मगर राजसी पृष्ठभूमि और जातिगत लाभ होने के बावजूद भी उनकी राजनीतिक यात्रा बेहद अस्थिर रही है. एक दबंग छवि वाले शख्स, निडर शाही खानदान के विश्वेंद्र कभी जनता दल से कांग्रेस में गए, फिर बीजेपी में शामिल होने के बाद वापस 2008 कांग्रेस में वापस आ गए.
बीजेपी में लंबे सालों तक रहने के दौरान, 2003 से 2008 तक वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री के तौर पर पहले कार्यकाल में विश्वेंद्र को अचानक से विशेष प्रमुखता दी जाने लगी थी. हालांकि वह दोनों पुराने दोस्त थे, उनके बीच कभी नर्म-कभी गर्म वाले समीकरण ने राजस्थान के राजनीति के इतिहास में विशेष अध्याय को जन्म दिया. कुछ समय तक राजे के आधिकारिक सलाहकार होने के बावजूद दोनों के बीच कड़वाहट आ गई और दोनों सालों से पूर्वी राजस्थान पर एकछत्र राज करने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
विश्वेंद्र तीन बार सांसद और दो बार विधायक रह चुके हैं, फिर भी उन्हें 2018 में पहली बार मंत्री बनाया गया था. लेकिन पर्यटन मंत्री के तौर पर वह विभाग के नौकरशाहों से नाखुश थे.
यह भी माना जाता है कि वह इस बात से खफा थे कि गहलोत भरतपुर से एक अन्य मंत्री सुभाष गर्ग, जो सीएम के समर्थक माने जाते है, को ज्यादा अहमियत देते हैं.
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो गहलोत का गर्ग को अहमियत देना विश्वेंद्र को भरतपुर में एक चुनौती पैदा करने का प्रयास दिखता है. इसी वजह से, विश्वेंद्र पायलट खेमे में चले गए और अब खुले विद्रोह के नतीजे के तौर पर उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया है.
यंग पायलट के बुजुर्ग सिपहसलार
इन दो कुशल नेताओं के अलावा पायलट को समर्थन देने वाले अन्य विधायक में शामिल हैं 72 साल के हेमाराम चौधरी और 69 साल के दीपेंद्र सिंह शेखावत हैं. बाड़मेर जिले के जाट नेता हेमाराम 6 बार विधायक रहे चुके हैं और 2008 से 2013 तक गहलोत मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री भी बन चुके हैं.
इसी तरह दीपेंद्र सिंह 5 बार के विधायक हैं. गहलोत के पहले कार्यकाल में मंत्री रह चुके हैं और 2008 से 2013 तक राजस्थान विधानसभा के स्पीकर रह चुके हैं. विडंबना यह है कि पिछले लोकसभा चुनावों से पहले सकारात्मक संकेत देने के लिए कैबिनेट में युवा चेहरों को रखने की पायलट की जिद के कारण इन दिग्गजों के मंत्री पद के सपने 2018 में चकनाचूर हो गए थे. अब पायलट खेमे को समर्थन देकर ये फिर से मंत्री बनने के सपने देख रहे हैं.
कई लोगों का कहना है कि पायलट-गहलोत के झगड़े को पार्टी में ‘यंग vs ओल्ड’ का नाम देना जल्दबाजी होगी.
राजस्थान में राजनीतिक जंग कैसे खत्म होगी, अब इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है. लेकिन भले ही गहलोत अपनी सरकार बचाने में सक्षम हों, लेकिन राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता का लंबा दौर चलेगा, ये पक्का है
एक पुरानी कहावत है कि ‘एक व्यक्ति का अंदाजा उसकी संगत से लगाया जाता है’ और इस सियासी ड्रामे में पायलट के साथियों को देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि पायलट रंग बिरंगी संगत में हैं
राजस्थान की राजनीति में युवा और होनहार पायलट के कद को नुकसान पहुंच चुका है और अब साफ-सुथरी छवि पर भी सवाल उठेंगे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के जानकार हैं. इस लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं, क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं.)
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