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RBI नीति और महंगाई: क्यों औसत सैलरी वालों को नहीं मिलने वाली कोई राहत

RBI पर अब बढ़ रहा महंगाई कम करने का दबाव, लेकिन फिलहाल स्थिति जलदी बदलती नहीं दिख रही

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यह अभी बहुत साफ नहीं है कि इसी साल 8 अप्रैल से 4 मई के बीच आखिर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए क्या बदल गया है? 8 अप्रैल को RBI की क्रेडिट पॉलिसी कमिटी (MPC) के सदस्यों ने सर्वसम्मति से बिना किसी बदलाव के कर्ज दरें 4% पर रखने के लिए वोट किया. हालांकि इसमें इकोनॉमी को बूस्ट देने के लिए मनी सप्लाई बनाए रखने और इस पर कड़ाई की बात कही गई थी.

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अगर सीधे तौर पर इसे समझें तो ये, "एकोमोडेटिव की वापसी यानि मनी सप्लाई रोकने पर फोकस के साथ जरूरत पड़ने पर फिर एकोमोडेटिव होने की नीति’ थी. और आसान भाषा में कहें, तो इसका मतलब यही है कि सिस्टम में अभी बहुत लिक्विडिटी यानि पैसा है और इसे धीरे धीरे कम करने की जरूरत है.

RBI के इस फैसले के पीछे हो सकती हैं 3 वजहें 

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर वो कौन सी परिस्थितियां हैं जिनके चलते आरबीआई को पिछले एक महीने से भी कम समय में ऑफ-साइकिल बैठक करनी पड़ीं और ये फैसला अचानक लिया गया? जवाब है महंगाई. महंगाई का दबाव महीनों से दिख रहा था. यहां तक कि ग्लोबल इकोनॉमी के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध से खतरा किस तरह आ गया है इसकी चर्चा पिछली MPC बैठक के दौरान भी साफ तौर पर की गई थी.

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अचानक RBI के इस बदलाव पर कई थ्योरी चल रही हैं, इनमें से जो 3 प्रमुख हैं उनके बारे में जान लीजिए.

  • पहली थ्योरी तो यह है कि आरबीआई ने महसूस किया कि यूएस फेड कर्ज दरें बढ़ाने जा रहा है और इसके कई नतीजे हो सकते हैं और इसलिए उनके असर को रोकने के लिए पहले ही RBI अपनी दरें बढ़ा दे.

  • दूसरी थ्योरी यह है कि आरबीआई ने देर से महसूस किया कि आने वाले समय में महंगाई से निजात के लिए कोई चमत्कार होने वाला नहीं है. महंगाई अपने आप कम नहीं होगी. महंगाई थमने की उम्मीद में पहले ही RBI ने कोई कदम नहीं उठाया. इसलिए अब और देर करना सही नहीं.

  • एक तीसरी थ्योरी ये है कि RBI को ये उम्मीद थी कि महंगाई को कम करने के लिए सप्लाई साइड की तरफ पर राहत देने के कुछ उपाय सरकार कर सकती है ताकि महंगाई का दबाव कुछ कम हो लेकिन बाद में RBI को ये महसूस हुआ कि सरकार ऐसा कुछ नहीं करने जा रही है. इसलिए आखिर में RBI ने एक्शन किया. इस बात की संभावना है कि आखिर इन तीनों में से कोई एक थ्योरी सही हो.

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RBI के इन बदलावों से महंगाई बढ़ेगी या घटेगी?

आज गरीबों के लिए खुदरा महंगाई खासकर खाने पीने के सामानों के दामों में तेजी, नौकरी और कमाई सबसे बडा मुद्दा है. हालांकि, RBI ने जो रेपो रेट और CRR कैश रिजर्व रेश्यो बढ़ाया है उससे उनके लिए महंगाई पर शायद ही कोई असर हो. इसके पीछे दो वजह हैं. पहली ये कि भारत में महंगाई बहुत ज्यादा डिमांड बढ़ने की वजह से नहीं है. ये सप्लाई साइड घटने की वजह से है. वास्तव में डिमांड पहले से ही कम है. पिछली GDP का जो अनुमान आया था उसमें भी प्राइवेट कंजम्पशन साल 2020 के मार्च के स्तर को पार नहीं कर पाया है.

आज हम जो महंगाई में बेलगाम तेजी देख रहे हैं वो तेल की तेज कीमतें (इससे परिवहन की लागत बढ़ जाती है) और ग्लोबल सप्लाई चेन में आई परेशानी से ज्यादा है. जैसे एडिबल ऑयल यानि खाद्य तेल की कीमतें रूस-यूक्रेन युद्ध और अब इंडोनेशिया के तेल बैन के फैसले से ज्यादा बढ़ी है. ऐसे में दरें बढ़ाने से इन पर ज्यादा असर नहीं होगा.

सबसे ज्यादा अहम ये है कि रेट बढ़ने और लिक्विडिटी सख्ती का असर कुछ समय बाद दिखना शुरू होता है. इसलिए फिलहाल महंगाई से फौरी राहत मिलने की तो कोई सूरत नजर नहीं आती है.

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कई टिप्प टिप्पणीकार और यह स्तंभकार (इस कॉलम के लेखक) भी मानता है कि महंगाई को रोकने में RBI काफी महीने पीछे हो गया है. महंगाई रोकने की प्रक्रिया की शुरुआत RBI को कई महीने पहले शुरू कर देना चाहिए थी. हालांकि अब जो एक्शन RBI ने लिया है उसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन ये काफी कम और काफी देर से उठाया गया कदम है.

निश्चित तौर पर ही दरों में बढ़ोतरी का फैसला धीरे धीरे किया जाना चाहिए. नहीं तो एक झटके में ऐसा करने से इकोनॉमी को जोर का धक्का लगता है. इसलिए अभी आने वाले समय में दरें और बढ़ने की उम्मीद करनी चाहिए.

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औसत सैलरी वालों और रिटायर्ड लोगों पर क्या असर होगा?

उनमें से कई लोग ऐसे हैं जो कर्ज लेने वाले और बजत करने वाले दोनों की श्रेणियों में आते हैं, यानी वे बैंक में जमा रखते हैं, लेकिन खरीद के लिए लोन भी लेते हैं और उन पर ईएमआई का भुगतान करते हैं. उनके लिए यह खबर काफी बुरी है.

जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो कमर्शियल बैंक फटाफट इसका बोझ ग्राहकों पर थोप देते हैं लेकिन इसकी तुलना में जमा दरें बहुत कम बढ़ती हैं. इसलिए, जब ईएमआई बढ़ जाती है तो बैंकों में बचत के लिए EMI में तेजी की भरपाई करने की संभावना नहीं होती है. इसके अलावा, चूंकि महंगाई में कमी जल्दी आने वाली नहीं है ऐसे में बैंक में उनकी बचत का मूल्य लगातार कम हो जाता है.

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ब्याज दरें और CRR बढ़ने का बिजनेस पर क्या असर होगा ?

सैद्धांतिक तौर पर, उनकी उधार लेने की लागत थोड़ी बढ़ जाती है, लेकिन हकीकत में, फिलहाल इससे बहुत बड़ा फर्क पड़ने की संभावना नहीं है. आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में पाया था कि आर्गेनाइज्ड सेक्टर ने पिछले दो वर्षों से कम ब्याज दरों और पैसे यानि लिक्विडिटी की प्रचुरता का इस्तेमाल अपनी बैलेंस शीट ठीक करने और ब्याज लागत घटाने में किया था.

लेकिन, चूंकि कैपेसिटी यूटिलाइजेशन 80% से कम रहा, इसलिए अधिक उधारी लेने, अतिरिक्त क्षमता बनाने, या ग्रीनफील्ड निवेश करने की कोई जल्दी नहीं थी. अन्य रिपोर्टों का कहना है कि छोटे और मझौले उद्योग कम दरों और हाई लिक्विडिटी की उपलब्धता का फायदा कई जमीनी समस्याओं की वजह से नहीं ले पाए और सिर्फ बड़ी फर्मों को ही इसका फायदा हुआ.

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इसके अलावा, बैंक से कर्ज लेने वालों की संख्या बताती है कि जब पर्सनल लोन और कंपनियां धीरे-धीरे ही सही पर लोन लेना शुरू कर रही थीं तो कॉरपोरेट कर्ज की तुलना में इनकी संख्या ज्यादा थी. कॉरपोरेशन किसी भी दर पर तब उधार लेते हैं जब वो अपने बिजनेस का विस्तार करते हैं . ऐसा तब होता है जब फंड की लागत बढ़ जाती है.

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आसान नहीं है आगे का रास्ता

आरबीआई ने जो दरें बढ़ाई हैं अगर उससे जल्द महंगाई कंट्रोल में नहीं आई है फिर क्या हमारे सामने कोई और उपाय है ? संभवत: महंगाई कम करने की चाभी तो सरकार के पास है. तेल पर टैक्स कम करने और खाद्य तेलों और अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं का इंपोर्ट लागत घटाने के लिए अगर कुछ किया जाता है तो उसका असर होता दिखेगा .. और इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. बहुत सारे कॉमन गुड्स पर GST दरें घटाकर भी कीमतों पर कुछ राहत दी जा सकती है.

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क्या ऐसा होने की संभावना है? ये सभी उपाय मुमकिन हैं लेकिन फिलहाल लगता नहीं कि ये होंगे. हालांकि कुछ छोटे कदम देखे जा सकते हैं. इसका प्राथमिक कारण यह है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही अभी खस्ताहाल हैं और टैक्स हटाने से हालात और बिगड़ जाएंगे. GST के हाई कलेक्शन के लिए अभी तमाम हो हल्ला भले ही हो लेकिन ये इंपोर्ट की बढ़ती लागत और ज्यादा महंगाई का नतीजा है. इसे गुड्स और सर्विस के ज्यादा खपत से जोड़कर नहीं देखना चाहिए.

केंद्र सरकार ज्यादा कैश जुटाने के लिए किस कदर हताश है, इस बात को खराब बाजार में भी LIC के IPO लाने के फैसले से समझा जा सकता है. शुरुआत में जो योजना बनाई गई थी उससे कम कीमत की बैंड पर IPO लाया गया है. इसलिए ऐसे में टैक्स घटने की उम्मीद कर सकते हैं लेकिन अगर ये घटता भी है तो बहुत मामूली कटौती ही होगी.

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