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लाल सागर का बड़े पैमाने पर हुआ सैन्यीकरण, तत्काल युद्धविराम की आवश्यकता

19 नवंबर के बाद से हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में 28 ड्रोन और मिसाइल हमले किए हैं.

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इजरायल (Israel) और उसके कट्टर दुश्मन ईरान (Iran) के बीच चल रहे छद्म युद्ध (Proxy War) में, लाल सागर (Red Sea) और इसके आसपास का क्षेत्र प्रमुख फ्लैशप्वाइंट के रूप में उभरा है. तेहरान द्वारा समर्थित हूती विद्रोही (Houthi Militants) अब यमन के अधिकांश हिस्से को नियंत्रित करते हैं. हूती लाल सागर में शिपिंग को निशाना बना रहे हैं, खासकर उन जहाजों को इजरायल जा रहे थे.

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19 नवंबर के बाद से हूती ने लाल सागर में 28 ड्रोन और मिसाइल हमले किए हैं. इसके जवाब में, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और यूनाइटेड किंगडम (UK) ने हूती क्षमताओं को नष्ट करने के लिए यमन पर हमले शुरू कर दिए हैं.

हूतियों के हमलों का वैश्विक व्यापार पर पड़ा प्रभाव

फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखाते हुए, हूतियों द्वारा किए गए हमलों ने इजरायली अर्थव्यवस्था को प्रमुख रूप से प्रभावित किया है. लाल सागर में इजरायल के इलियट बंदरगाह की गतिविधियों में 85 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह बंदरगाह इजरायल के अधिकांश पोटाश निर्यात और चीन द्वारा निर्मित कारों के आयात को संभालता है. चीन की सबसे बड़ी सरकारी स्वामित्व वाली शिपिंग कंपनी, COSCO ने लाल सागर के माध्यम से इजरायल के लिए शिपिंग निलंबित कर दी है. इस तरह के व्यवधान तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) बाजार में इजरायल की बढ़ती हिस्सेदारी को भी प्रभावित कर सकते हैं.

लेकिन, इससे भी अधिक, हूतियों के हमलों ने वैश्विक व्यापार को प्रभावित किया है.

लाल सागर एक प्रमुख वैश्विक समुद्री मार्ग है जो दुनिया भर में लगभग 12 प्रतिशत शिपिंग को संभालता है. इसके साथ ही प्रतिदिन 3 से 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच माल से भरे 50 जहाजों को भी संभालना. क्लार्कसन रिसर्च द्वारा जारी आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार, हूती हमलों ने लाल सागर के माल यातायात में 44 प्रतिशत की कटौती की है, जिससे यात्रा के समय और लागत दोनों में काफी वृद्धि हुई है. 12 जनवरी के बाद से तेल की कीमतों में भी एक फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

18 दिसंबर को इन हमलों के जवाब में, अमेरिका ने ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन लॉन्च किया. यह हूतियों के हमलों का जवाब देने के लिए एक बहुराष्ट्रीय गठबंधन है. इस ऑपरेशन की चीन और रूस ने तुरंत निंदा की, जिन्होंने इसे लाल सागर में अमेरिकी उपस्थिति का विस्तार करने के एक और प्रयास के रूप में देखा.

लाल सागर बना एक व्यापक सैन्यीकृत क्षेत्र

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के एक प्रस्ताव को 10 जनवरी को बड़ी मुश्किल से पारित किया गया, लेकिन रूस और चीन इसमें शामिल नहीं हुए. प्रस्ताव में यमन के तट से हूती विद्रोहियों द्वारा किए गए कई हमलों की "कड़े शब्दों में" निंदा की गई, और गाजा में युद्ध के फैलने की आशंका जताई गई. यह एक स्वागत योग्य कदम है; आखिरकार, इस क्रूर संघर्ष की शुरुआत के बाद से, यह एकमात्र दूसरा प्रस्ताव है जिसे UNSC अपनाने में कामयाब रही है, जो हूतियों द्वारा उत्पन्न आम खतरे की ओर इशारा करता है.

जिस दिन संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को अपनाया गया, उसी दिन हूतियों ने लाल सागर में अंतरराष्ट्रीय जहाजों और युद्धपोतों पर 20 से अधिक ड्रोन और मिसाइलों की सबसे बड़ी बमबारी की. इसके जवाब में, अमेरिका और ब्रिटेन ने 11 और 13 जनवरी को 60 से अधिक यमनी ठिकानों पर हमला किया. कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कल भी हमले किये गये थे. हूतियों ने जवाबी कार्रवाई की कसम खाते हुए, दक्षिणी लाल सागर में USA लैबून पर एक एंटी-क्रूज मिसाइल दागी.

यूएस सेंट्रल कमांड के एक बयान में कहा गया, "...मिसाइल को हुदायदाह के तट के आसपास एक अमेरिकी लड़ाकू विमान द्वारा मार गिराया गया."

इराक और सीरिया में तैनात अमेरिकी सैनिकों पर ईरान समर्थित लड़कों के हमले भी बढ़े हैं, हालांकि, इसमें जान-माल माल का नुकसान नहीं हुआ है. चीन और रूस ने भी यमन पर पश्चिम के हमलों की निंदा की है. दोनों के ईरान के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं. इस बीच, ईरान ने भी लाल सागर में एक युद्धपोत तैनात किया है, और रिपोर्टों में कहा गया है कि सरकार ने फिलिस्तीनियों के साथ खड़े होने के लिए हूतियों की प्रशंसा की है. नतीजतन, लाल सागर एक बड़े पैमाने पर सैन्यीकृत क्षेत्र बन गया है, हूती अपने बयान के बावजूद, उन जहाजों को भी निशाना बना रहे हैं जो इजरायली बंदरगाहों की ओर नहीं जा रहे थे.

भारत ने भी स्वतंत्र रूप से अपने समुद्री सुरक्षा अभियान में इजाफा किया है और अरब सागर में 10 युद्धपोत भेजे हैं. यह फैसला पिछले साल दिसंबर में भारत जाने वाले दो मालवाहक जहाजों पर हुए हमलों के मद्देनजर आया है. अभी हाल ही में, 5 जनवरी को INS चेन्नई ने अरब सागर में एमवी लीला नॉरफॉक के हाईजैक को विफल कर दिया और 21 सदस्यीय चालक दल को सुरक्षित बचाया. इसके अलावा, रूट में बदलाव की वजह से भारत के कुल व्यापार में कम से कम 20-25 प्रतिशत को प्रभावित कर रहा है, विशेष रूप से यूरोप और यूएस ईस्ट कोस्ट के लिए जाने वाले कार्गो को प्रभावित कर रहा है.

फिर भी, भारत ने ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है, ताकि हूतियों का जानबूझकर निशाना न बनें. लाल सागर में शिपिंग की सुरक्षा व्यवस्था में मिस्र और सऊदी अरब जैसे अन्य प्रमुख हितधारकों ने भी गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

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जो स्थिति बन रही है वह ठीक नहीं है

दशकों से अमेरिका, इजरायल और ईरान किसी भी पक्ष के उकसावे के जवाब में अपनी कार्रवाइयों को सावधानीपूर्वक नियंत्रित करते रहे हैं. पश्चिम एशिया के विभिन्न हिस्सों में कम प्रोफाइल वाला छद्म युद्ध (Proxy War) संघर्ष को बढ़ने से रोकने में कामयाब रहा है.

हालांकि, इस बार रोकथाम बहुत नाजुक है. हूतियों ने सऊदी-अमीराती गठबंधन के खिलाफ युद्ध पर विजय प्राप्त कर ली है. चीन की मध्यस्थता से ईरान-सऊदी युद्धविराम अब प्रासंगिक नहीं रह गया है. और यूक्रेन (पश्चिम द्वारा समर्थित) और रूस के बीच युद्ध के खत्म होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं, जिसके लाल सागर में फैलने का भी खतरा है.

एकमात्र रास्ता- क्षेत्र का और अधिक सैन्यीकरण नहीं, बल्कि युद्धविराम है. भारत संघर्ष की शुरुआत से ही हमास के 7 अक्टूबर के हमलों (आज से 100 दिन पहले) की कड़ी निंदा करते हुए युद्धविराम का आह्वान करता रहा है. अरब देश भी युद्धविराम का आह्वान कर रहा है और रूस, चीन और फ्रांस भी.

दिसंबर में युद्धविराम प्रस्ताव पर UNSC में हुए आखिरी वोटिंग (संयुक्त अरब अमीरात द्वारा पेश) में अमेरिका एकमात्र देश था जिसने इसके खिलाफ मतदान किया था. ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री मध्य पूर्व के दौरे पर हैं, उन्होंने भी युद्धविराम का आह्वान किया है. फिलिस्तीनियों को गाजा से बाहर निकालने की इजराइल की योजना को कोई स्वीकार नहीं कर रहा है. गाजा पर हमला इजरायली मानकों के अनुसार भी अभूतपूर्व रहा है.

अमेरिका ने भी इस बात को स्वीकार किया है. वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, दिसंबर के मध्य तक, इजरायल ने गाजा पर 29,000 बम, गोला-बारूद गिराए थे, जिससे उसके लगभग 70 प्रतिशत घर और आधी इमारतें नष्ट हो गईं. इस बीच दक्षिण अफ्रीका ने इजराइल पर गाजा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार करने का आरोप लगाया है, जिसपर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में सुनवाई हो रही है.

इजरायली रक्षा बलों (IDF) के मुताबिक, 9000 हमास सदस्य मारे गए हैं, एक दर्जन से अधिक कमांडरों को मार गिराया गया है, गाजा में 30,000 ठिकानों पर हमला किया गया है, लेबनान में 170 से अधिक आतंकवादी मारे गए हैं, और 750 से अधिक हिजबुल्लाह चौकियों पर हमला किया गया है.

हालांकि, 100 से अधिक इजरायलियों को अभी भी हमास ने बंधक बना रखा है. इजरायली लोग एक नई सरकार और अपने प्रियजनों को घर वापस लाते देखना चाहते हैं. कहें तो स्थिति फिलहाल अस्थिर नजर आ रही है. इसको काबू में करने का एकमात्र रास्ता तत्काल युद्धविराम है.

(अदिति भादुड़ी एक पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह @aditijan पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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