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Reliance Vs Amazon: 2021 के कॉरपोरेट महायुद्ध की पूरी बिसात समझिए

फ्यूचर ग्रुप और किशोर बियानी के लिए रिलायंस रिटेल के साथ हुआ समझौता एक संजीवनी साबित हो सकता है

Reliance Vs Amazon: 2021 के कॉरपोरेट महायुद्ध की पूरी बिसात समझिए
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किशोर बियानी के फ्यूचर ग्रुप और जेफ बेजोस के अमेजन ग्रुप के बीच का कॉरपोरेट युद्ध पहली नजर में माइथोलॉजिकल डेविड और गोलियथ के बीच की लड़ाई जैसी दिखती है. एक तरफ हैं किशोर बियानी, जिनके फ्यूचर ग्रुप की जायदाद लगभग 30,000 करोड़ रुपए है यानी 400 करोड़ डॉलर से थोड़ा ज्यादा. तो दूसरी तरफ हैं जेफ बेजोस, दुनिया के सबसे अमीर आदमी, और जिनके अमेजन ग्रुप का वैल्युएशन है करीब 2 लाख करोड़ डॉलर यानी फ्यूचर ग्रुप से 500 गुना ज्यादा.

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जाहिर तौर पर किशोर बियानी और जेफ बेजोस के बीच किसी लड़ाई में आपको बेजोस का पलड़ा भारी दिखेगा. लेकिन जब इसी लड़ाई में किशोर बियानी के साथ आप भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी को खड़ा कर देते हैं तब लड़ाई दिलचस्प हो जाती है. और फिर ये कहना शायद गलत नहीं होगा कि दरअसल बेजोस के निशाने पर बियानी नहीं, अंबानी हैं.

Reliance Vs Amazon: आखिर ये मामला क्या है?

जब लड़ाई दुनिया के दिग्गज कॉरपोरेट्स के बीच हो रही है तो मामला बिजनेस से ही जुड़ा होगा न. विवाद शुरू तब हुआ, जब आर्थिक संकट से जूझ रही फ्यूचर ग्रुप ने मुकेश अंबानी के रिलायंस रिटेल के साथ हाथ मिलाने का एलान किया. अगस्त 2020 में रिलायंस रिटेल ने 24,713 करोड़ रुपए में फ्यूचर ग्रुप के रिटेल, होलसेल, लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग बिजनेस को खरीदने का फैसला किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्यूचर ग्रुप पर बैंकों और वित्तीय संस्थानों का लगभग 16,000 करोड़ रुपए का बकाया है, जबकि ग्रुप के फाउंडर और सीईओ किशोर बियानी भी लगभग 11,000 करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे हैं. बियानी और उनके ग्रुप के लिए रिलायंस रिटेल के साथ ये डील फायदे का सौदा दिख रही थी कि तभी इस डील को तोड़ने के लिए अमेजन ग्रुप के जेफ बेजोस सामने आ गए.

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फ्यूचर- रिलायंस डील से अमेजन को दिक्कत क्यों?

अमेजन ने अगस्त 2019 में फ्यूचर रिटेल की प्रोमोटर कंपनी फ्यूचर कूपॉन्स में 49 परसेंट हिस्सा 1,431 करोड़ रुपए में खरीदा था. चूंकि फ्यूचर कूपॉन्स की हिस्सेदारी फ्यूचर रिटेल में 7.3 परसेंट है, इसलिए इस डील के बाद अमेजन को फ्यूचर रिटेल में 3.58 परसेंट हिस्सा मिल गया था. साथ ही उसे फ्यूचर ग्रुप में निवेश के लिए राइटस ऑफ फर्स्ट रिफ्यूजल (पहले पूछे जाने का अधिकार) और 3 से 10 साल की अवधि में फ्यूचर रिटेल में हिस्सा खरीदने का अधिकार मिला था. तो जैसे ही फ्यूचर ग्रुप और रिलायंस रिटेल के बीच डील का एलान हुआ, अमेजन ने इस डील पर आपत्ति जताई और ये कहते हुए मामले को सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर में ले गई कि फ्यूचर ग्रुप ने उसके साथ हुए करार को तोड़ा है.

अभी कहां पहुंची है कानूनी लड़ाई?

सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर ने अमेजन के पक्ष में अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा था कि फ्यूचर-रिलायंस डील को आगे ना बढ़ाया जाए. लेकिन फ्यूचर ग्रुप की दलील थी कि अमेजन उसका शेयरहोल्डर नहीं है और इस मामले में आर्बिट्रेशन सेंटर के आदेश का कोई महत्व नहीं है. फ्यूचर ग्रुप इस मामले को दिल्ली हाई कोर्ट में ले गया जहां कोर्ट ने आर्बिट्रेशन सेंटर के आदेश को वैध तो माना, लेकिन साथ ही ये भी कहा कि सेबी, कंपिटिशन कमीशन और दूसरे रेगुलेटर इस मामले में स्थानीय कानून के मुताबिक फैसला कर सकते हैं. कंपिटिशन कमीशन ने जहां फ्यूचर-रिलायंस डील को हरी झंडी दे दी है, वहीं अमेजन ने सेबी, बीएसई और एनएसई को कहा है कि वो आर्बिट्रेशन सेंटर का अंतिम फैसला आने तक डील को मंजूरी ना दें.

सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर में फ्यूचर ग्रुप और अमेजन के बीच विवाद की सुनवाई के लिए 3 आर्बिट्रेटरों का एक पैनल बन चुका है. पैनल के मुख्य जज हैं माइकल ह्वांग जो सुप्रीम कोर्ट ऑफ सिंगापुर के ज्युडिशियल कमिश्नर रह चुके हैं. उनके अलावा आर्बिट्रेशन पैनल के दो सदस्य हैं- अलबर्ट जैन वान डेन बर्ग और जैन पॉलशन.
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आर्बिट्रेशन पैनल एक तय समय-सीमा के भीतर दोनों कंपनियों की दलील सुनकर फैसला सुनाएगा. आम तौर पर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर के फैसले को चुनौती देने के आधार बहुत सीमित हैं और भारतीय अदालतें भी कुछ खास परिस्थितियों में ही फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं स्वीकार करती हैं. उदाहरण के लिए अगस्त 2019 में ग्लेनकोर इंटरनेशनल और इंडियन पोटाश लिमिटेड के बीच विवाद में सिंगापुर आर्बिट्रेशन सेंटर ने जो फैसला सुनाया था, उसे लागू करने के खिलाफ इंडियन पोटाश की याचिका कोई मजबूत ग्राउंड ना होने की वजह से दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी. हां, अगर आर्बिट्रेशन का फैसला भारत सरकार की किसी पॉलिसी के खिलाफ जाता है तो अदालत फैसले को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार कर सकती है. कंपनियां इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर के फैसले को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती हैं. अब देखना है कि फ्यूचर ग्रुप और अमेजन के विवाद में आर्बिट्रेशन पैनल का फैसला किसके पक्ष में होता है.

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किसके लिए क्या है दांव पर

फ्यूचर ग्रुप और किशोर बियानी के लिए रिलायंस रिटेल के साथ हुआ समझौता एक संजीवनी साबित हो सकता है. इससे उन्हें अपने कर्जों को चुकाने और ग्रुप के कामकाज को सुचारू रूप से चलाते रहने के लिए आर्थिक मदद मिल जाएगी.

जहां तक सवाल है रिलायंस रिटेल का, तो भले ही वो देश की सबसे बड़ी रिटेल चेन है लेकिन फ्यूचर रिटेल के रूप में उसे देश की दूसरे सबसे बड़ी रिटेल कंपनी का साथ मिल जाएगा, साथ ही बिग बाजार, होम टाउन और फूड बाजार जैसे बड़े और स्थापित ब्रांड्स, जिनकी मदद से वो अपनी पोजिशन को देश के रिटेल स्पेस में और मजबूत कर सकेगी. और यही अमेजन की सबसे बड़ी परेशानी है, जो देश के लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर के रिटेल मार्केट में अपनी मजबूत होती पोजिशन को छोड़ना नहीं चाहती.

रिलायंस रिटेल ऑफलाइन स्पेस में तो नंबर वन है ही, ऑनलाइन स्पेस में जियोमार्ट के जरिए वो तेजी से आगे बढ़ रही है. पिछले कुछ महीनों के दौरान रिलायंस रिटेल वेंचर्स ने अलग-अलग कंपनियों के जरिए जियोमार्ट में इन्वेस्ट करने के लिए 6.4 अरब डॉलर जुटाए हैं. इसकी तुलना अमेजन से करें तो वो अब तक भारत में लगभग 6.5 अरब डॉलर लगा चुकी है, साथ ही पिछले साल 1 अरब डॉलर और लगाने का एलान अमेजन ने किया था. जियोमार्ट अब ग्रॉसरी के बाद फैशन और इलेक्ट्रॉनिक्स सेगमेंट में भी उतरने का एलान कर चुकी है. अमेजन को अभी तक वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट से देश में ई-कॉमर्स में बड़ी चुनौती मिल रही थी, और अब उसके सामने जियोमार्ट के रूप में एक नया फ्रंट खुल गया है. फ्यूचर ग्रुप के साथ रिलायंस रिटेल की डील को रोककर अमेजन इस फ्रंट पर होने वाली लड़ाई में शायद पहली बाजी जीतने की कोशिश कर रही है.

(लेखक धीरज कुमार अग्रवाल एक मीडिया प्रोफेशनल हैं और वेल्दी एंड वाइज (Wealthy & Wise) के नाम से फाइनेंशियल एजुकेशन पॉडकास्ट चलाते हैं.)

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