रोहित वेमुला एक ऐसा नाम है जिसे वर्तमान सरकार जल्द से जल्द भूल जाना चाहेगी. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद यह नाम बार बार हेडलाइंस और राष्ट्रीय चर्चा में लौट आता है.
तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के मंत्रालय से हटने के बावजूद ऐसा हो रहा है. यह विवाद पहले ही काफी सुर्खियां बटोर चुका है. ताजा हेडलाइन मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित जस्टिस रूपनवाल कमीशन की रिपोर्ट को लेकर है. यह रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं है और इस पर आ रही तमाम प्रतिक्रियाएं मीडिया रिपोर्ट को लेकर ही हैं.
मीडिया रिपोर्ट में जिस बात को सबसे ज्यादा महत्व दिया जा रहा है वह यह है कि रुपनवाल कमीशन के मुताबिक रोहित वेमुला की मां दलित नहीं हैं और इस नाते रोहित वेमुला भी दलित नहीं था.
हालांकि जाति प्रमाण पत्र देना या उसकी जांच करना जिला कलेक्टर के दायरे में आता है और रोहित वेमुला के गृह जिले गुंटूर के कलेक्टर कांतिलाल दांडे ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को भेजी अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि रोहित वेमुला अनुसूचित जाति का था.
इस रिपोर्ट में गुंटूर के तहसीलदार के पास मौजूद दस्तावेजों का हवाला दिया गया है और इसके आधार पर रोहित की जाति ‘माला’ निर्धारित की गई है. इस बारे में इस साल जून में खबरें छपी थीं.
जाति को लेकर विवाद
रोहित की जाति को लेकर विवाद की शुरुआत 21 जनवरी, 2016 को ही शुरू हो गयी थी, जब तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह दावा किया था कि रोहित वेमुला दलित नहीं, ओबीसी था. 17 जनवरी को रोहित वेमुला की लाश हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के हॉस्टल के कमरे से मिली थी और उसके फौरन बाद देश के कई शहरों में आंदोलन छिड़ गया था.
हालांकि इसके बावजूद विवाद थमा नहीं और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने रिटायर्ड न्यायाधीश ए. के. रुपनवाल की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग गठित कर दिया.
नोटिफिकेशन जारी करके जांच आयोग को दो काम सौंपे गए.
- उन परिस्थितियों और तथ्यों की जांच करना, जिसकी वजह से हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र चक्रवर्ती आर. वेमुला की मृत्यु हुई और अगर इसमें किसी की गलती है तो उसका जिम्मा तय करना.
- यूनिवर्सिटी में शिकायतों के निपटारे की वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा करना और सुधार के उपाय सूझाना.
आश्चर्यजनक है कि जांच आयोग की रिपोर्ट के निर्णय वाले अंश के 12 पेज में से चार पेज यह बताने में लगाए गए हैं कि रोहित वेमुला की जाति क्या है. खासकर तब जबकि रोहित वेमुला की जाति का पता लगाने के लिए आयोग से कहा ही नहीं गया था.
यह जिम्मा जिला कलेक्टर का होता है, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को सौंप दी है. अनुसूचित जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है और जाति उत्पीड़न के मामले की जांच करने के लिए अर्धन्यायिक शक्तियां प्राप्त हैं. आयोग के अध्यक्ष पी.एल. पूनिया ने इस बात पर सवाल उठाए हैं कि जस्टिस रुपनवाल ने उस विषय पर अपनी रिपोर्ट क्यों दी, जिस बारे में उनसे पूछा ही नहीं गया है.
रोहित को ओबीसी बताने के पीछे वजह क्या है?
रोहित वेमुला को ओबीसी बताने के पीछे वजह क्या है और अगर वह ओबीसी था, तो भी पूरे मामले में क्या फर्क पड़ता?
इसकी वजह जानने के लिए हैदराबाद के गाचीबावली थाने की केस डायरी को देखना होगा. रोहित वेमुला केस डायरी संख्या 20/2016 में आईपीसी की धारा 306 के अलावा अनुसूचित जाति अत्याचार निरोधक अधिनियम की धारा 3(1)(ix) ,(x) और 3(2)(vii) लगी हुई है. ये गैरजमानती धाराएं हैं. इसका जिक्र राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल संख्या -906 के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने किया था.
अगर रोहित वेमुला की जाति अनुसूचित जाति निर्धारित होती है तो ये धाराएं अपना काम करेंगी.
राजनीतिक हस्तक्षेप क्यों?
इसके अलावा, रोहित वेमुला केस कैंपस में राजनीतिक हस्तक्षेप का स्पष्ट मामला भी है. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दो छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन झगड़ रहे थे. अगर इस बात की जड़ में न भी जाएं कि कौन सही था और कौन गलत, तो भी यह सवाल तो उठता ही है कि छात्रों के इस झगड़े को लेकर केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने मंत्री स्मृति ईरानी को कार्रवाई करने के लिए चिट्ठी क्यों लिखी.
बंडारू दत्तात्रेय न तो संबंधित विभाग के मंत्री हैं और न ही यह विश्वविद्यालय उनके निर्वाचन क्षेत्र में आता है. और फिर मानव संसाधन मंत्रालय ने भी दत्तात्रेय के पत्र का संज्ञान लेकर न सिर्फ विश्वविद्यालय को चिट्ठी लिखी, बल्कि कार्रवाई में देर होने पर अलग से रिमाइंडर भी भेजा.
इसके बाद विश्वविद्यालय ने रोहित वेमुला समेत अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के पांच सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की और उन्हें हॉस्टल छोड़कर फुटपाथ पर जाना पड़ा.
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पांच छात्रों के निष्कासन का केस हैदराबाद हाईकोर्ट में पहले से ही लंबित है. इसलिए भी निष्कासन के बारे में एक सदस्यीय आयोग को टिप्पणी करने से बचना चाहिए था.
रुपनवाल कमीशन की रिपोर्ट के लीक होने का असर हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे पर पड़ सकता है.
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