आईपीएल के प्रसारण अधिकारों के लिए स्टार इंडिया की 16,347.50 करोड़ रुपए की बोली भारतीय क्रिकेट के लिए ढ़ेर सारी खुशियों की सौगात होनी चाहिए.
स्टार इंडिया की कामयाब बोली का मतलब है कि राज्य एसोसिएशनों के साथ-साथ आठों मौजूदा फ्रेंचाइजी को बीसीसीआई की तरफ से कहीं ज्यादा पैसे मिलेंगे. फ्रेंचाइजी को 16,347.50 करोड़ रुपए के सौदे का 45 फीसदी मिलेगा, जबकि बाकी रकम बोर्ड के पास रहेगी.
स्टार के सौदे के अलावा, आईपीएल की टाइटल स्पॉन्सरशिप के लिए बोर्ड को वीवो से अगले पांच सालों में 2,199 करोड़ रुपए मिलेंगे. यानी कुल मिलाकर अगले पांच साल में बीसीसीआई को आईपीएल के सौदों से करीब 20,000 करोड़ रुपए मिल सकते हैं हालांकि अभी तक एक भी गेंद फेंकी नहीं गई है.
इसमें एसोसिएट पार्टनर या स्पॉन्सरशिप के वो सौदे शामिल नहीं हैं जो आईपीएल के लिए आने वाले वर्षों में हो सकते हैं. स्टार सौदे की तरह, फ्रेंचाइजी को उस रकम का भी 45 फीसदी मिलेगा जो वीवो बीसीसीआई को देगा.
इससे आईपीएल दुनिया की सबसे कीमती क्रिकेट प्रॉपर्टी बन गई है जो दुनिया भर के क्रिकेट बोर्ड्स के लिए फिक्र की बात है. क्रिकेट खेलने वाले छोटे देश इस आईपीएल बूम के असर में बहुत जल्दी आ सकते हैं.
टी20 की तरफ खिंचाव बढ़ेगा
हम देख ही रहे हैं कि वेस्ट इंडीज जैसी टीमें टी20 की तरफ खिलाड़ियों के झुकाव का नुकसान झेल रही हैं. न्यूजीलैंड को भी इसका पहला तजुर्बा तब हुआ जब मिशेल मैकलेनगन ने दुनिया भर में टी20 टूर्नामेंट खेलने के लिए सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट से बाहर निकलने का फैसला किया. न्यूजीलैंड में प्लेयर बेस काफी छोटा है और बड़े खिलाड़ियों का इस तरह से बाहर निकलना उन्हें पूरी ताकत से मुकाबला करने में मुश्किल बना सकता है.
कई और खिलाड़ी मैकलेनगन की राह पर चल सकते हैं क्योंकि क्रिकेट खेलने वाले छोटे देशों में खिलाड़ियों को मिलने वाला मेहनताना उतना आकर्षक नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट जिम्बॉब्वे को पहले ही खो चुका है. वेस्ट इंडीज भी जूझ रहा है क्योंकि स्टार खिलाड़ी दुनिया भर की टी20 लीग खेलने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं. पाकिस्तान के भी अपने खिलाड़ियों को दुनिया भर में टी20 लीग खेलने की इजाजत देने की संभावना है भले ही इससे उनके क्रिकेट का नुकसान हो.
छोटे पूल से खिलाड़ी चुनने की समस्या श्रीलंका जैसे देशों को भी दिक्कत में डाल रही है. दक्षिण अफ्रीका अपनी सेलेक्शन पॉलिसी के चलते पहले से ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में प्रासंगिक बने रहने की लड़ाई लड़ रहा है.
समस्या सिर्फ आईपीएल नहीं है. साल 2020 तक, टेस्ट खेलने वाले 10 बड़े देशों में से 7 में अपनी टी20 लीग शुरू हो चुकी होंगी.
बाकी बचे देशों में, जिम्बॉब्वे और श्रीलंका ने अपनी टी20 लीग शुरू करने की कोशिश की है लेकिन वो इसका फायदा नहीं उठा पाए. न्यूजीलैंड अपनी टी20 लीग शुरू करने के लिए काफी छोटा बाजार है और ज्यादा से ज्यादा वो अपनी घरेलू टीमों में एक विदेशी खिलाड़ी शामिल कर सकता है.
द्विपक्षीय क्रिकेट को होगा नुकसान
इन लीगों की मौजूदगी से होगा ये कि हर महीने कुछ ना कुछ क्रिकेट मुकाबले होते रहेंगे जिससे छोटे देशों के क्रिकेटरों को साल भर रोजगार मिलता रहेगा. भारत, इंग्लैंड और कुछ हद तक ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देश अपने खिलाड़ियों को रोके रख सकेंगे, बाकी सभी टीमों के खिलाड़ी टी20 की चमक के पीछे खिंचे चले जाएंगे.
इससे द्विपक्षीय क्रिकेट का महत्व और आकर्षण घटता जाएगा. द्विपक्षीय क्रिकेट के प्रसारण अधिकारों के लिए मिलने वाली रकम कम होती जाएगी, और इससे देशों के बीच होने वाले क्रिकेट मुकाबलों का महत्व खत्म होता जाएगा.
कुछ हद तक आईसीसी टूर्नामेंट या भारत-पाकिस्तान चैंपियंस ट्रॉफी जैसे मुकाबले थोड़े समय के लिए जुनून जगा पाएंगे. लेकिन नियमित द्विपक्षीय क्रिकेट अपनी चमक खोता जाएगा. पिछले एकाध सालों में हमने कई ऐसे द्विपक्षीय मुकाबले देखे हैं जिनसे कोई खास कमाई नहीं हो सकी.
क्रिकेट बोर्ड्स के लिए यही एक वजह एक साथ आने के लिए काफी होनी चाहिए.
लेकिन बदकिस्मती से इसने अभी तक खतरे की घंटी नहीं बजाई है. हमने भारत की पिछली दो द्विपक्षीय श्रृंखला में देखा है कि कैसे कमजोर विपक्ष ने भारतीय टीम को ना के बराबर टक्कर दी.
बीसीसीआई भी नुकसान से बच नहीं पाएगा
आईपीएल के नए सौदे ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मंच पर भारत की मोल-तोल करने की क्षमता भी छीन ली है. द्विपक्षीय श्रृंखला अब भारत के लिए सौदेबाजी का हथियार नहीं रहेंगी क्योंकि प्रतिद्वंद्वी कमजोर होते जा रहे हैं. और इसका असर फरवरी-मार्च 2018 में दिखेगा जब बीसीसीआई के द्विपक्षीय श्रृंखला के प्रसारण अधिकारों को रिन्यु करने का वक्त आएगा.
दुनिया भर में कमजोर होते विपक्ष के साथ, द्विपक्षीय श्रृंखला की चुनौती में वो दमखम नहीं रहेगा जो आईपीएल में होगा. पहले ही, आईपीएल का सौदा किसी द्विपक्षीय श्रृंखला से कहीं ज्यादा कीमती हो गया है और इससे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पर बढ़ रहे खतरा हर किसी को दिखना चाहिए.
एक और बड़ी चिंता होनी चाहिए कि अब किसी की दिलचस्पी टेस्ट क्रिकेट में बची नहीं है. लंबे समय तक क्रिकेट की सर्वश्रेष्ठ विधा समझे जाने वाले इस सबसे पुराने फॉर्मेट में हाल में कुछ अविश्वसनीय प्रदर्शन भी देखने को मिले लेकिन ब्रॉडकास्टर्स की इसमें काफी कम दिलचस्पी बची है.
क्रिकेट की अंतरराष्ट्रीय प्रशासनिक संस्था, आईसीसी 2019 के वर्ल्ड कप के बाद टेस्ट और वनडे लीग शुरू करने की योजना बना रही है. लेकिन जब तक ये दोनों लीग शुरू होंगी, शायद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के मौजूदा स्वरूप को बचाने में काफी देरी हो चुकी होगी.
ये लगी पहले ही कम से कम 10 साल देर हो चुकी हैं. इस वक्त, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बुरे वक्त से गुजर रहा है. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मुकाबलों के प्रसारण अधिकार हासिल करने में भारतीय ब्रॉडकास्टर्स की कोई खास दिलचस्पी नहीं है. साल 2000 के आसपास इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट बोर्ड्स के लिए ये कमाई का बड़ा जरिया था. अब जबकि भारत अगले साल इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया दोनों देशों के दौरे पर जाने वाला है, अभी भी हमें नहीं पता कि क्या हम ये मैच भारत में देख पाएंगे या नहीं.
जब हर कोई इसी चीज पर दिमाग लगा रहा है कि आईसीसी की कमाई में भारत को क्या हिस्सा मिलना चाहिए, निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को बचाने के लिए थोड़ा और वक्त वो दे सकते हैं.
जहां तक आईपीएल के कैश बोनांजा की बात है, हमें याद रखना चाहिए कि हर किसी के बैंक खाते में मोटी रकम अभी आएगी तो जरूर, लेकिन अगर लंबी अवधि में टैलेंट पूल छोटा हुआ तो फिर ये अच्छा वक्त भी बीत जाएगा.
इसलिए जरूरी है कि एक संतुलन बने वरना हमारे पास एक-दूसरे के खिलाफ खेलने के लिए सिर्फ वॉरियर्स और किंग्स बच जाएंगे.
(चंद्रेश नारायण टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व क्रिकेट राइटर हैं, साथ ही वो आईसीसी के पूर्व मीडिया ऑफिसर और डेल्ही डेयरडेविल्स के मौजूदा मीडिया मैनेजर हैं. वो वर्ल्ड कप हीरोज के लेखक, क्रिकेट संपादकीय सलाहकार, प्रोफेसर और क्रिकेट टीवी कमेंटेटर भी हैं.)
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