अयोध्या में 25 नवंबर को विश्व हिन्दू परिषद की धर्म सभा है और वाराणसी में बीते पांच दिन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बैठक चल रही है. अचानक तेज हुई इस सरगर्मी को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हो रहे चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. ये अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले का सेमीफाइनल है.
संघ को अच्छी तरह अहसास है कि सेमीफाइनल में हार का असर फाइनल पर पड़ेगा. इसलिए उसकी कोशिश है कि राम के सहारे बीजेपी की जीत सुनिश्चित की जाए. भले ही 3-0 की जगह 2-1 से जीत मिले, लेकिन हर हाल में जीत मिलनी चाहिए.
मंदिर मुद्दे को लेकर अचानक क्यों बढ़ी संघ की सरगर्मी?
छत्तीसगढ़ में पहले चरण का मतदान हो चुका है और 20 नवंबर को दूसरे चरण का मतदान है. उसके बाद 28 नंबर को मध्य प्रदेश में और 8 दिसंबर को राजस्थान में वोट डाले जाएंगे. बीजेपी छत्तीसगढ़ में जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है.
बीजेपी के कई बड़े नेता खुद भी यह मानते हैं कि राजस्थान में कांग्रेस का पलड़ा भारी है और ऐसे में सारा दारोमदार मध्य प्रदेश पर टिका है. मध्य प्रदेश में मुकाबला कांटे का है. पार्टी के भीतर कई धड़े बनने के बावजूद कांग्रेस मुकाबले में बनी हुई है. इसलिए संघ परिवार के तमाम सहयोगी राम मंदिर के बहाने मतदाताओं के भीतर के हिंदू को जगाने की कोशिश में जुट गए हैं. 25 नवंबर को अयोध्या में धर्म सभा उसी रणनीति का हिस्सा है.
क्या संघ मध्य प्रदेश की हवा पहले ही भांप चुका है?
संघ परिवार से जुड़े तमाम धार्मिक संगठन जिस तरह राम नाम का जाप कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि उन सभी को मध्य प्रदेश में बीजेपी की नाजुक स्थिति का अंदाजा है. बीते कुछ महीने से संघ प्रमुख मोहन भावगत राम मंदिर को लेकर खुद ही बयान पर बयान जारी कर रहे हैं.
पहले संघ की राय थी कि सरकार को कानून बनाकर मंदिर निर्माण की राह तैयार करनी चाहिए. लेकिन बाद में सरकार की मजबूरियों को देखते हुए संघ ने अपना नजरिया बदल लिया. अब संघ और उसके सहयोगी संगठन मंदिर के लिए नया जन आंदोलन खड़ा करने की बात कह रहे हैं.
लेकिन यहां एक मुश्किल भी है. काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ाई जा सकती. इसलिए कई महीने से बयान पर बयान देने के बाद भी भक्तों में वो उत्साह नहीं पैदा हो रहा, जिसकी इन्हें उम्मीद थी. यह चिंता का सबब है. अगर राम नाम का जादू उतर गया तो फिर बीजेपी की रक्षा कौन करेगा... सत्ता कैसे बचेगी... यही सोच कर संघ इस बार पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में है.
अयोध्या की धर्म सभा में एक लाख से ज्यादा संतों और भक्तों को जुटाने की कोशिश
बनारस में चल रही बैठक इसी रणनीति का हिस्सा है. 11 नवंबर को शुरू हुई यह बैठक आज समाप्त होगी. संघ प्रमुख मोहन भागवत की अगुवाई में देशभर से आए 250 संघ प्रचारक इसमें शिरकत कर रहे हैं. इस शिविर का औपचारिक अंजाम जो भी हो, जानकारों के मुताबिक असली मकसद देश का मौजूदा सियासी रुझान समझना है. ताकि 2019 में होने वाले चुनाव की व्यापक रणनीति बनाई जा सके.
मतलब कहने के लिए शिविर का मकसद सियासी नहीं है लेकिन इसे हर लिहाज से सियासत से जोड़ कर देखा जाना चाहिए. शिविर के लिए बनारस का चुनाव काफी कुछ कह देता है. बनारस शिव की नगरी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों शिव का सहारा ले रहे हैं. संघ इस शिविर के जरिए यह जताना चाहता है कि राम के साथ शिव पर भी उसका पहला हक है. अयोध्या और काशी दोनों उसके एजेंडे में हैं. मतलब साफ है. संघ हर तरीके से हिंदुओं के बिखराब को रोकने में जुटा है.
इसीलिए 25 नवंबर को अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद की धर्म सभा से पहले काशी में संघ का शिविर लगाया गया.
काशी के चल रहे इस शिविर में जो भी मंथन होगा उसका असर 25 नवंबर को अयोध्या में होने वाली धर्म सभा पर पड़ना तय है. उस धर्मसभा में एक लाख से अधिक साधु-संतों और भक्तों को जुटाने की कोशिश है.
भक्तों की संख्या जितनी बड़ी होगी राम मंदिर के लिए उठने वाली आवाज उतनी दूर तक सुनाई देगी. इसलिए अयोध्या की धर्मसभा में लोगों को जुटाने के लिए भी संघ पूरी जिम्मेदारी उठा रहा है. सिर्फ काशी क्षेत्र से 50 हजार लोगों को अयोध्या ले जाने की तैयारी है. बाकी की संख्या देश के दूसरे हिस्सों से पूरी की जाएगी.
अयोध्या के बाद अगले महीने दिल्ली में धर्मसभा
काशी में मंथन के बाद अयोध्या में हुंकार भरी जाएगी और उसके बाद फिर साधु-संत और भक्त अगले महीने दिल्ली कूच करेंगे. विश्व हिंदू परिषद 9 दिसंबर को दिल्ली में धर्मसभा के आयोजन की तैयारी में है.
बताया जा रहा है कि उसमें पांच लाख भक्तों को जुटाने का लक्ष्य रखा गया है. दरअसल संघ इस बात से थोड़ा परेशान है कि राम मंदिर को लेकर वह जिस तरह की बहस चाह रहा था वैसी तीखी बहस हो नहीं रही है. यह खतरनाक संकेत है.
क्योंकि राम मंदिर की बहस धीमी पड़ी और हिंदुओं के भीतर की चिंगारी नहीं भड़की तो फिर 2019 में बीजेपी के साथ से देश की सत्ता छिन जाएगी. संघ और उसके सहयोगी संगठन ऐसी किसी भी स्थिति से बचाव का रास्ता तैयार करने में जुटे हैं. ताकि 2019 में मोदी लहर नहीं तो राम लहर के जरिए सत्ता पर अपनी पकड़ बरकरार रखी जा सके.
मतलब साफ है आने वाले कुछ दिन सियासी लिहाज से काफी रोचक होने वाले हैं. धर्म और राम के नाम पर सियासत का एक नया अध्याय लिखने की कोशिश हो रही है. बस देखना यही है कि देश की आम जनता किस ओर खड़ी होती है. संघ और विश्व हिंदू परिषद के साथ या फिर राम के उन आदर्शों के साथ जो दांव पर लगे हैं.
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