(यह ओपीनियन पीस मूल रूप से 19 फरवरी 2020 को प्रकाशित हुआ था. लॉ कमीशन की रिपोर्ट और मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणियों ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे के बारे में चर्चा छेड़ दी है उसी को देखते हुए द क्विंट के आर्काइव से इस स्टोरी को पुनः प्रकाशित किया जा रहा है.)
जब किसी सरकार के प्रति विश्वास में कमी आ जाती है, तो लोग उसके बारे में घटिया से घटिया अटकलों पर भी यकीन करने लगते हैं. और ऐसा ही कुछ दिल्ली में विधानसभा चुनाव की मतगणना के दिन (11 फरवरी 2020) हुआ था. बिना किसी अपवाद के, हर एग्जिट पोल ने अनुमान लगाया था कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी स्पष्ट जीत हासिल करेगी.
एग्जिट पोल्स ने बीजेपी के खराब प्रदर्शन की भी भविष्यवाणी की थी. इस पार्टी के कैंपेन की व्यापक योजना और सूक्ष्म प्रबंधन किसी और ने नहीं बल्कि पार्टी और सरकार में नेता नंबर- 2 ने किया था.
हां, गोलवलकर ने समान नागरिक संहिता का विरोध किया था
हालांकि, यह संकेत किसी दिन सच हो सकता है, क्योंकि UCC लंबे समय से बीजेपी की तीन मुख्य वैचारिक प्रतिबद्धताओं और चुनावी वादों में से एक रही है, बाकी के दो वादे आर्टिकल 370 को निरस्त करना (जिसकी प्रधान मंत्री ने जोरदार ढंग से "पूरा" करने की घोषणा की) और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण (यह वादा भी इस अर्थ में "पूरा" हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद इसके लिए रास्ता साफ कर दिया).
लेकिन, जिस समय सोशल मीडिया मोदी सरकार के "हेडलाइन मैनेजमेंट" कदम के बारे में अटकलों से भरा हुआ था, उस समय मैंने सोचा कि बीजेपी और संघ परिवार के समर्थकों और विरोधियों को इस तथ्य के प्रति सचेत करना महत्वपूर्ण होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दो प्रतिष्ठित नेताओं में से एक समान नागरिक संहिता की अवधारणा के घोर विरोधी थे.
वह कोई और नहीं बल्कि माधव सदाशिव गोलवलकर (19 फरवरी 1906 - 5 जून 1973). वह "गुरुजी" गोलवलकर के नाम से लोकप्रिय थे, वे RSS के दूसरे और सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सरसंघचालक (सुप्रीमो) थे. वह 1940 से 1973 तक 33 वर्षों तक RSS के प्रमुख रहे.
जब भी मैंने RSS और बीजेपी के समर्थकों या विरोधियों से कहा है कि गोलवलकर ने UCC का कड़ा विरोध किया था, तब उनकी प्रतिक्रिया रही है, "नहीं, यह सच नहीं हो सकता.
RSS के सबसे प्रमुख वैचारिक गुरु इसके खिलाफ कैसे बोल सकते थे?” ऐसे में मैंने उन्हें एक प्रसिद्ध चीनी कहावत का उपयोग करके जवाब दिया, "तथ्यों से सत्य की तलाश करें."
संघ के अपने समाचार पत्र में UCC के बारे में गोलवलकर का इंटरव्यू
अब सवाल यह है कि तथ्य क्या हैं?
समान नागरिक संहिता पर उनके आदर्शवादी विचारों को जानने के लिए हमें संघ के अपने साप्ताहिक अखबार ऑर्गेनाइजर के सेरेब्रल संपादक के.आर मलकानी को दिए गए उनके इंटरव्यू (23 August 1972; reproduced in Guruji Golwalkar - Collected Works, Volume 9, page 165) को पढ़ना चाहिए. यहां उसके कुछ अंश दिए जा रहे हैं.
"एकरूपता किसी राष्ट्र के पतन का संकेतक है."
मलकानी: क्या आपको नहीं लगता कि राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने के लिए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है?
गोलवलकर: मैं ऐसा नहीं मानता. इस मामले पर मैं जो कहना चाहता हूं उससे आप और कई अन्य लोग आश्चर्यचकित हो सकते हैं, लेकिन मुझे ऐसा ही लगता है यह मेरा विचार है. और मुझे सच वैसा ही बोलना चाहिए जैसा मैं इसे देखता हूं.
मलकानी: क्या आप इस बात से सहमत नहीं हैं कि राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए एकरूपता की आवश्यकता है?
गोलवलकर: समरसता और एकरूपता दो अलग चीजें हैं. समरसता के लिए एकरूपता आवश्यक नहीं है. भारत में हमेशा से ही अनगिनत विविधताएं रही हैं. इसके बावजूद भी हमारा देश प्राचीन काल से ही मजबूत एवं सुसंगठित रहा है. एकता के लिए हमें एकरूपता नहीं, बल्कि समरसता की आवश्यकता है.
मलकानी: लेकिन पश्चिम में राष्ट्रवाद का उदय कानूनों के संहिताकरण और एकरूपता की स्थापना के साथ-साथ हुआ.
गोलवलकर: यह नहीं भूलना चाहिए कि वैश्विक मंच पर यूरोपीय राष्ट्रवाद का आगमन एक हालिया घटना है. यूरोपीय सभ्यता भी नई चीज है. इसका अस्तित्व पहले भी नहीं था और शायद भविष्य में भी इसका अस्तित्व नहीं रहेगा. मेरे विचार से प्रकृति को अत्यधिक एकरूपता पसंद नहीं है. इसलिए, यह कहना जल्दबाजी होगी कि भविष्य में अत्यधिक समान पश्चिमी सभ्यता (uniform western civilization) का क्या परिणाम हो सकता है... मेरा मानना है कि विविधता और एकता सह-अस्तित्व (co-exist) में रह सकती हैं, और वे सह-अस्तित्व में हैं भी.
मुसलमानों को एकीकृत किये जाने के खिलाफ कौन है?
मलकानी: क्या आप नहीं मानते कि मुसलमान समान नागरिक संहिता का विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि वे अपना अलग अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं?
गोलवलकर: मुझे अपनी व्यक्तिगत पहचान या अस्तित्व बनाए रखने की चाहत रखने वाली किसी भी जाति, समुदाय या वर्ग से तब तक कोई आपत्ति या समस्या नहीं है, जब तक कि अलग अस्तित्व की यह चाहत उन्हें राष्ट्रवाद की भावना से दूर न कर दे.
गोलवलकर आगे कहते हैं कि...
“मेरे विचार में, कई लोगों को समान नागरिक संहिता की जरूरत होने का एहसास इस कारण से है कि उन्हें लगता है कि मुस्लिम आबादी असंगत तरीके से बढ़ रही है, क्योंकि मुस्लिम पुरुषों को चार पत्नियां रखने की अनुमति है. मुझे डर और चिंता है कि यह समस्या को देखने का नकारात्मक तरीका है."
"असल समस्या यह है कि हिंदू और मुसलमानों के बीच भाईचारे की भावना का अभाव है. यह अभाव इस हद तक है कि जो लोग खुद को धर्मनिरपेक्ष मानते हैं, वे भी हर निर्णय इस विचार पर लेते हैं कि मुसलमान एक अलग समुदाय से हैं. उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक पर कब्जा करने के लिए निश्चित रूप से तुष्टीकरण की नीति अपनाई है. जो लोग तुष्टिकरण की इस नीति का विरोध करते हैं, वे भी मानते हैं कि मुसलमान एक अलग समुदाय है, लेकिन वे चाहते हैं कि मुसलमानों की अलग पहचान मिटा दी जाए और उन्हें एकरूपता में समाहित कर दिया जाए."
"जो लोग तुष्टिकरण के पक्षधर हैं और जो एकरूपता चाहते हैं उनके बीच कोई बुनियादी अंतर नहीं है. दोनों मानते हैं कि मुसलमान अलग हैं और एकीकरण नहीं चाहते."
मेरा दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है. जब तक मुसलमान इस देश और इसकी संस्कृति से प्यार करते हैं, उन्हें अपनी जीवनशैली के अनुसार जीने का अधिकार है.
जब गोलवलकर ने अपने उग्र विचारों से साक्षात्कारकर्ता को अवाक कर दिया
मलकानी: क्या यह उचित है कि हमारी मुस्लिम बहनों को पर्दा प्रथा और बहुविवाह का शिकार बनाया जाए?
गोलवलकर: यदि मुस्लिम रीति-रिवाजों पर आपकी आपत्ति मानवतावाद के व्यापक विचारों पर आधारित है, तो यह उचित है. इन मामलों में सुधारवादी दृष्टिकोण का स्वागत है. लेकिन कानूनों की बाहरी व्यवस्था के माध्यम से यांत्रिक तरीके से समानता लाने का प्रयास करना उचित नहीं है. बेहतर होगा कि मुसलमान खुद ही अपने पुराने कानूनों और रीति-रिवाजों में सुधार कर लें. मुझे खुशी होगी अगर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचें कि बहुविवाह उनके लिए अच्छा नहीं है. लेकिन मैं उन पर अपने विचार थोपना नहीं चाहूंगा.
मलकानी शायद अपने ही नेता से ऐसी उग्र प्रतिक्रिया सुनने के लिए तैयार नहीं थे. इसका अनुमान मलकानी अंतिम कथन या टिप्पणी से लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा था कि "ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रश्न अब अत्यधिक दार्शनिक हो गया है."
इस पर गोलवलकर ने फिर से बहुत ही जोरदार उत्तर दिया.
"बेशक, यह अत्यंत दार्शनिक है. मेरा दृढ़ विश्वास है कि एकरूपता किसी भी राष्ट्र के पतन का संकेतक है. प्रकृति एकरूपता को स्वीकार नहीं करती. मैं जीवन के विविध तरीकों के संरक्षण का पक्षधर हूं. साथ ही, हमें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि ये विविधताएं देश की एकता को पोषित करें और बढ़ावा दें. उन्हें राष्ट्रीय एकता में बाधक नहीं बनना चाहिए."
खुशवंत सिंह से गोलवलकर ने क्या कहा?
गोलवलकर के लेखन के व्यापक अध्ययन से पता चलता है कि उनके विचार अत्यधिक सांप्रदायिक थे. स्वाभाविक तौर पर, इनसे मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति RSS के रवैये पर गहरा प्रभाव पड़ा है. इसके बावजूद भी, इस्लाम और मुसलमानों पर उनकी कुछ राय, विशेषकर उनके अंतिम वर्षों में, पूरी तरह से उस तस्वीर के विपरीत हैं जो उनके कम्युनिस्ट विरोधियों ने उनके बारे में चित्रित की है.
मैं यहां दो अन्य महत्वपूर्ण साक्षात्कार (खुशवंत सिंह को, जो उस समय 1972 में द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया के संपादक थे; और 1971 में पत्रकार और अरबी विद्वान डॉ. सैफुद्दीन जिलानी) की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा जो गोलवलकर ने इस विषय पर दिए थे.
खुशवंत सिंह ने साक्षात्कार (Illustrated Weekly of India, 17 November 1972; reproduced in ‘Guruji’ Collected Works, volume 9, page 200) की शुरुआत कुछ इस तरह के शब्दों के साथ की थी...
“कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनसे हम नफरत करना शुरू कर देते हैं, यहां तक कि उन्हें जानने की जहमत भी नहीं उठाते. ऐसे व्यक्तियों की मेरी सूची में गुरु गोलवलकर सबसे पहले आते हैं.”
खुशवंत सिंह: मुसलमानों के मुद्दों के बारे में आप क्या सोचते हैं?
गोलवलकर: मुझे इसमें जरा सा भी संदेह नहीं है कि भारत और पाकिस्तान के प्रति मुसलमानों की विभाजित निष्ठा के लिए ऐतिहासिक कारक ही जिम्मेदार हैं. इसके अलावा, मुस्लिम और हिंदू दोनों ही इसके लिए जिम्मेदार हैं. विभाजन के बाद मुसलमानों को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उससे पैदा हुई असुरक्षा की भावना ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई. फिर भी कुछ लोगों के अपराध के लिए पूरे समुदाय को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है.
गोलवलकर साक्षात्कार के अन्य हिस्सों में यह कहते हैं कि “हमें मुसलमानों की वफादारी को प्यार से जीतना होगा. मुसलमानों के प्रति यही एकमात्र सही नीति है." "मैं आशावादी हूं और मेरा मानना है कि हिंदुत्व और इस्लाम एक-दूसरे के साथ मिलकर रहना सीखेंगे." "ईसाइयों के साथ हमारा कोई विवाद नहीं है सिवाय उन तरीकों के जो वे धर्म परिवर्तन के लिए अपनाते हैं."
"भारतीयकरण का मतलब हर किसी को हिंदू बनाना नहीं है."
"हिन्दू दर्शन के अनुसार सभी धर्म समान रूप से पवित्र हैं"
डॉ. जिलानी को दिए गए इंटरव्यू (Bunch of Thoughts by M.S. Golwalkar, page 639) में गोलवलकर कहते हैं कि :
“हमारी धार्मिक मान्यता और दर्शन के अनुसार, एक मुस्लिम उतना ही अच्छा है जितना कि एक हिंदू. परम ईश्वर तक पहुंचने वाले केवल हिंदू ही नहीं होंगे. हर किसी व्यक्ति को अपने विश्वासों या मान्यताओं के अनुसार अपने मार्ग पर चलने का अधिकार है.”
एक बार कश्मीर के एक मुस्लिम व्यक्ति से कही गई बात का हवाला देते हुए, गोलवलकर कहते हैं कि “अपने धर्म का पालन करें. हालांकि, एक महत्वपूर्ण फिलॉस्फी है जो केवल हिंदू या मुसलमानों से संबंधित नहीं है. जो भी आपको पसंद हो उसे नाम दें. यह इस बात पर जोर देता है कि एक ही शक्ति है, एक ही अस्तित्व है जो सत्य है, जो आनंद है. ईश्वर के बारे में हमारी सभी अवधारणाएं उस परम सत्य के बारे में हमारी अपनी सीमित अवधारणाएं हैं. ताकि परम सत्य की आधारशिला हम सभी को एक साथ जोड़ सके. यह किसी एक धर्म का हिस्सा नहीं है. इस प्रकार इस्लाम, ईसाई और हिंदू धर्म के ईश्वर एक ही हैं और हम सभी उनके अनुयायी हैं.
"लोगों को इस्लाम के बारे में सच्ची और सटीक जानकारी दें. लोगों को हिंदू धर्म के बारे में सच्ची और सटीक जानकारी दें." "उन्हें यह जानने के लिए शिक्षित करें कि सभी धर्म मनुष्य को निःस्वार्थ, पवित्र और नेक होना सिखाते हैं.'' "भारतीयकरण का मतलब हर किसी को हिंदू बनाना नहीं है." (एक अन्य इंटरव्यू में, गोलवलकर कहते हैं, "हिंदू दर्शन मानता है कि सभी धर्म समान रूप से पवित्र हैं.")
गोलवलकर के विचार सांप्रदायिक जहर के खिलाफ एंटीडॉट का काम कर सकते हैं
ये सभी कथन या अभिव्यक्तियां उन लोगों का खंडन करती हैं जो यह तर्क देते हैं कि गोलवलकर "अन्य सभी लोगों पर हिंदुओं की आंतरिक श्रेष्ठता" में विश्वास करते थे. इसके साथ ही इन अभिव्यक्तियों ने इस्लाम और मुसलमानों के बारे में समझौता न करने वाले शत्रुतापूर्ण विचार रखने वाले व्यक्ति के रूप में गोलवलकर की रूढ़िवादी छवि को तोड़ दिया.
मैंने गोलवलकर के बारे में इन अल्पज्ञात तथ्यों पर ध्यान आकर्षित करने पर विचार किया, क्योंकि मेरा दृढ़ विश्वास है कि RSS के समर्थकों और विरोधियों के बीच संवाद की आवश्यकता और उपयोगिता है. और आज के भारत में अत्यधिक, यहां तक कि जहरीले, ध्रुवीकृत माहौल में ऐसी बातचीत और भी आवश्यक हो गई है.
RSS और संघ परिवार के घटक आज के दौर में ऐसी कई चीजें कर रहे हैं जो गलत और अक्षम्य हैं. वे मुख्य रूप से भारतीय समाज को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत करने और राष्ट्रीय विमर्श में असहिष्णुता और अहंकार को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार हैं. इसके बावजूद भी, हमें उन समझदार या विवेकपूर्ण आवाजों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए जो भगवा परिवार के लंबे इतिहास में मौजूद रही हैं.
पूर्वाग्रह और अज्ञानता ने "तथ्यों से सत्य की खोज" में किसी की मदद नहीं की है. और सत्य के प्रति प्रतिबद्धता के बिना, कोई भी समाज में शांति, प्रगति, सद्भाव और न्याय को बढ़ावा नहीं दे सकता है.
अंत में, गोलवलकर के खुद के विचार (जिनका उल्लेख इस लेख में किया गया है) का उपयोग संघ परिवार में कट्टरपंथियों द्वारा फैलाए जा रहे सांप्रदायिक जहर के एंटीडॉट के रूप में किया जा सकता है.
(सुधींद्र कुलकर्णी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सहयोगी के रूप में काम किया है और India-Pakistan-China Cooperation की मदद से संचालित Forum for a New South Asia के संस्थापक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @SudheenKulkarni है और उन्हें sudheenkulkarni@gmail.com पर प्रतिक्रियाएं भेजी जा सकती हैं . इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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