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रूस-चीन की बे-पनाह दोस्ती भारत के लिए चिंताजनक, लेकिन इस साझेदारी में कई खामियां हैं

चीन में तुलनात्मक रूप से संयमित राष्ट्रीय चरित्र है, जबकि रूसियों को विस्तार की तलाश में आगे बढ़ने की प्रवृत्ति अपने खानाबदोश पूर्वजों से विरासत में मिली है.

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हाल ही में रूस (Russia) और चीन के बीच लगातार गहराते संबंधों को लेकर भारत में नाराजगी देखी गई है. इसकी शुरुआत रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की बीजिंग और मई में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की होने वाली बीजिंग यात्रा की खबर आने के बाद हुई है. पुतिन ने आखिरी बार अक्टूबर 2023 में चीन का दौरा किया था.

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दरअसल, चीन-रूस संबंध आज अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहे हैं. दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार आज 240 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का है. चीन रूस का सबसे बड़ा कच्चा तेल खरीदार है, जो अपने कुल कच्चे तेल के आयात का 19 प्रतिशत रूस से खरीद रहा है.

चीनी कारों ने 2023 में रूसी ऑटोमोबाइल बाजार के 49 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लिया है. समुद्री भोजन से लेकर फैशन उद्योग और पर्यटन तक, संबंध तेजी से बढ़ रहे हैं. और इसका अधिकांश हिस्सा स्थानीय मुद्राओं में हो रहा है. इसे कुछ लोग रूसी अर्थव्यवस्था का "युआनीकरण" बता रहे हैं.

"युआन" चीन की स्थानीय मुद्रा है.

पिछले दो वर्षों में, यानी जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, रूस के कुल निर्यात भुगतान के 34.5 प्रतिशत के लिए चीनी युआन का उपयोग किया गया है.

चीन, जिसने खुद को यूक्रेन युद्ध में "न्यूट्रल " घोषित किया है, मूलतः रूस के पक्ष में है.

इन सबके बावजूद दोनों की साझेदारी में खामियां बनी हुई हैं.

चीन-रूस संबंध पूरे पक्के क्यों नहीं हो सकते?

पहला, इस "नो लिमिट" पार्टनरशिप ने चीन को सेकेंडरी प्रतिबंधों के खिलाफ खुद को बचाने से नहीं रोका है. इसलिए, भले ही चीनी उपभोक्ता वस्तुओं ने रूसी बाजार से पश्चिमी कंपनियों के जाने के बाद खाली हुई जगह को जल्दी से भर दिया है, लेकिन चीनी निवेश ने ऐसा नहीं किया है.

चीन ने रूस के अंदर अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजनाओं को धीमा कर दिया है, जबकि यूरोप में इसके शिपमेंट ने सावधानीपूर्वक रूसी क्षेत्र को दरकिनार कर दिया है. इसके अलावा, भले ही चीन ने रूस से कच्चा तेल, गैस, इनर्ट गैस और अनाज खरीदना जारी रखा है, फिर भी वो सिर्फ उसपर निर्भर नहीं है और वो अच्छी तरह मोल-भाव कर रहा है.

प्रमुख चीनी बैंकों ने रूस में परिचालन कम कर दिया है. हाल ही में रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन को रूस का आधा भुगतान बिचौलियों के माध्यम से किया जा रहा है. चीन ने रूस के साथ मिलकर अन्य संस्थापकों को साथ लाते हुए एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) की स्थापना की, और 2022 में रूस और बेलारूस से संबंधित परियोजनाओं को निलंबित करने की घोषणा की.

दूसरा चीनी प्रवासियों का खतरा, विशेषकर सुदूर पूर्व में. यह एक ऐसा मुद्दा है जो रूस को डराता रहता है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने व्लादिवोस्तोक की अपनी यात्रा के दौरान रूस के सुदूर पूर्वी बाजार को भारतीय श्रमिकों के लिए खोलने पर चर्चा की थी, इसका एक कारण चीनी प्रवास का अधिक नियंत्रित और बेहतर तरीकों से मुकाबला करना था.

रूस आक्रामक रूप से चीनी पर्यटकों को लुभा रहा है, यहां तक ​​कि वीजा-मुक्त ग्रुप यात्रा की अनुमति भी दे रहा है. लेकिन इसने हाल ही में घोषणा की कि वह चीनी विजिटर्स के लिए सामान्य रूप से वीजा व्यवस्था को खत्म नहीं करने वाला है.

दोनों के दृष्टिकोण में अंतर

पिछले साल, जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद, चीन ने एक नियमित कार्यक्रम में, अपने मैप का अनावरण किया जिसमें न केवल अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को अपने क्षेत्र के रूप में दिखाया गया, बल्कि बोल्शॉय उस्सुरीस्की द्वीप के रूस के साथ विवादित क्षेत्र को भी इसके अभिन्न अंग के रूप में दिखाया गया. जबकि भारत ने तुरंत इसकी निंदा की, रूसियों ने इसे "गलतफहमी" कहा जिसे स्थानीय स्तर पर उठाया जाएगा.

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भले ही चीनियों का वर्ल्ड ऑर्डर में अपने स्थान के बारे में रूस जैसा ही दृष्टिकोण है. लेकिन 13 मार्च को साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ओपिनियन लेख में चीन के रेनमिन यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के संस्थान के डायरेक्टर वांग यीवेई ने 10 कारण बताए जिनकी वजह से चीन और रूस के अंतरराष्ट्रीय नियमों के प्रति उनके दृष्टिकोण में अंतर हैं. उन्होंने बताया कि कैसे रूस और चीन की घनिष्ठ रणनीतिक साझेदारी होने के साथ ही विश्व मंच पर उनके दृष्टिकोण और व्यवहार अलग-अलग थे.

वांग यीवेई की व्याख्या के लिए सभी बिंदुओं का उल्लेख करना संभव नहीं है. लेकिन उनमें यह भी है कि चीन सद्भाव और आम भलाई चाहता है जबकि रूस मतभेदों का प्रयास करता है. चीन विश्व व्यवस्था के नियमों का लाभ उठाता है जबकि रूस ऐसा नहीं करता. दोनों देश न केवल अंतरराष्ट्रीय कानून और मानदंडों पर भिन्न हैं, बल्कि विश्व मंच पर भी अलग-अलग व्यवहार करते हैं और इसलिए, अलग-अलग नतीजे मिलते हैं.

चीन साथ लेकर चलने पर जोर देता है जबकि रूस का पश्चिम के साथ संबंध हमेशा अधिक टकरावपूर्ण रहा है. चीन में तुलनात्मक रूप से संयमित राष्ट्रीय चरित्र है, जबकि रूसियों को विस्तार की तलाश में आगे बढ़ने की प्रवृत्ति अपने खानाबदोश पूर्वजों से विरासत में मिली है.

जब अन्य देशों के साथ जुड़ने की बात आती है, तो चीनी संस्कृति गलत काम की स्थिति में न्याय को बनाए रखने के महत्व पर जोर देती है. रूस का दृष्टिकोण अक्सर दूसरों को उनके ही खेल में हराने का होता है. जहां चीन खुद अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करता है, वहीं रूस दूसरों को अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने के लिए कहता है और खुद को ऐसे नियमों से मुक्त मानता है.

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रूस-चीन साझेदारी क्यों चिंताजनक है?

चीन के सरकारी अखबारों में शिक्षाविदों द्वारा लिखे गए ओपिनियन (साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट) सोच-समझकर और जानबूझकर दिए जाते हैं. इसलिए यह कहा जा सकता है कि एक संदेश दिया गया था. हालांकि इसपर रूस का जवाब भी सख्त था.

रूसी मीडिया स्पुतनिक की चीनी साइट के लिए लिखे गए एक ओपिनियन पीस में, स्तंभकार लियोनिद कोवाचिच ने चीन को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में उसके कई विवादों, हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के फैसले को मान्यता देने से इनकार करने, दक्षिण चीन सागर में चीन और फिलीपींस के बीच क्षेत्रीय विवाद, हांगकांग के लिए इसके राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, ब्रिटेन और अन्य के साथ इसके समझौते को दरकिनार करने की याद दिलाई.

फिर भी, यीवेई द्वारा एक मुद्दा उठाया गया है. यह वह बात है जो शायद भारतीय पर्यवेक्षकों को सबसे अधिक चिंतित करती है - न केवल मास्को और बीजिंग के बीच बढ़ती निकटता, बल्कि साझेदारी में रूस की बढ़ती अधीनस्थ भूमिका भी.

चीन पूर्व की ओर रूस के झुकाव से सावधान है, "आसियान" (ASEAN) और उत्तर कोरिया के देशों में रूसी घुसपैठ के प्रति सहमत नहीं है. यहां तक कि वह मध्य एशिया में घुसपैठ करने के लिए यूक्रेन के साथ रूस की व्यस्तता का फायदा उठाता है.

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रूसी रणनीतिक विचारकों ने स्वीकार किया है कि चीन को हाल ही में आयोजित बोआओ फोरम या "आसियान" जैसे संगठनों में रूस की सक्रिय भागीदारी में कोई दिलचस्पी नहीं है जहां चीन खुद को मुख्य रूप में देखता है.

मॉस्को स्थित प्रिमाकोव इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड इकोनॉमी एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में चीन के अर्थव्यवस्था और राजनीति क्षेत्र के प्रमुख सर्गेई ए लुकोनिन ने 2022 में लिखे एक पेपर में लिखा, "किसी को आश्चर्य हो सकता है कि मौजूदा परिस्थितियों में रूस के लिए चीन कौन है : एक मित्र, एक सहयोगी, एक भागीदार, एक न्यूट्रल व्यापार भागीदार, एक कठिन वार्ताकार, एक छुपा हुआ प्रतिद्वंद्वी? इसका उत्तर हो सकता है - दिए गए समय की स्थिति और हितों के आधार पर - चीन एक ही समय में रूस के लिए ये सब है."

भारत के लिए चीन को काउंटर करने का स्पष्ट रास्ता, रूस से संबंध मजबूत करने का है.

(अदिति भादुड़ी एक पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह @aditijan पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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