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Russia-Ukraine War: रूस-यूक्रेन जंग के दो साल बाद चीन की भूमिका क्या है?

Russia-Ukraine War: अमेरिका गाजा के युद्ध में उलझा है. इस बीच रूस-यूक्रेन जंग में चीन खुद को अमेरिका के विकल्प के तौर पर पेश कर रहा है.

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Russia-Ukraine War: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (XI Jinping) को यूक्रेन की मेजबानी में होने वाले शांति शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है. हाल ही में समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की (Volodymyr Zelenskyy) के राजनयिक सलाहकार इहोर जोवका ने कहा, "हम निश्चित तौर से चीन को शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं. ये आमंत्रण शीर्ष स्तर को भेजा गया है. यानी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति के स्तर तक."

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रूस और चीन ने फरवरी 2022 में अपनी किसी भी साझेदारी को “तय सीमा से परे” बताया था. इसी साझेदारी की वजह से जंग में चीन की पैंतरेबाजी उसे महत्वपूर्ण वार्ताकार को तौर पर पेश करती है.

पिछले साल चीन ने एक बारह-बिंदु दस्तावेज के साथ जंग को लेकर अपना रुख सामने रखा था. इस दस्तावेज में चीनी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति बीजिंग की निष्ठा और राज्य की क्षेत्रीय संप्रभुता पर किसी भी हमले की निंदा को का जिक्र किया था. जबकि चीन जंग के बीच एक राजनयिक मध्यस्थ के तौर पर भी सक्रिय था. लेकिन चीन की ओर से प्रस्तावित शांति योजना में उसके क्षेत्रीय हितों की झलक भी दिख रही थी.

चीनी राजनयिकों के कुलीन हलकों में कई लोग इस जंग को नैतिक दृष्टिकोण से नहीं देखते हैं. ज्यादातर चीनी बुद्धिजीवी इस बात को साबित करने पर अड़े हैं कि रूस और यूक्रेन जंग को भड़काने में अमेरिका का हाथ हैं. सारे चीनी बुद्धिजीवी अमेरिका को ‘विलेन’ के तौर पर पेश करने के लिए एकजुट हैं.

इसके अलावा मैड्रिड में नाटो के 2022 के शिखर सम्मेलन में चीन को एक प्रमुख सुरक्षा चुनौती के तौर देखा गया. वहीं इसके अलावा पश्चिमी देशों को एक डर और बना रहा कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की मौजूदगी यूरोप के लिए खतरा पैदा कर सकती है.

इसलिए अमेरिका के साथ अपनी प्रतिस्पर्धा को साधने में रूस के साथ चीन के रणनीतिक संबंधों का बहुत महत्व है.

अमेरिकी सरकार ने पहले ही चीनी सरकार पर संभावित रूप से रूस को हथियार पहुंचाने का आरोप लगाया है. रूस से तेल और गैस खरीदने के अलावा रूसी सेना को सशस्त्र ड्रोन और अन्य हथियारों की चीन की आपूर्ति इसे जल्द ही किसी भी समय एक विश्वसनीय राजनयिक बनने में खलल डालेगी.

हालांकि चीन यूक्रेनी संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन पर हमले की निंदा करता है. लेकिन चीन ने तर्क दिया है कि पूर्वी यूरोप में नाटो का विस्तार जंग को उकसाने की वजह बना. चीन ने “शीत युद्ध की मानसिकता” की निंदा की और यह तर्क दिया कि इलाके में (यूक्रेन) सुरक्षा के माहौल को बदतर करने में अमेरिका और नाटो का हाथ है. चीनी सरकार ने रूस-यूक्रेन जंग को युद्ध या हमला कहने से इनकार करते हुए  "आपदा" शब्द का इस्तेमाल किया.

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रूस-यूक्रेन जंग खत्म कराने में चीन की दिलचस्पी के पीछे की मंशा को समझने के लिए दो बातें अहम हैं. पहला युद्ध के वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण के अनुरूप है, जहां युद्ध ने चीन-यूरोपीय संबंधों को काफी खराब कर दिया है और शी जिनपिंग की प्रमुख परियोजना बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना यूरोप में ठंडे बस्ते में चली गई है.

इसके अलावा रूस में सत्ता परिवर्तन की अफवाहें और रूसी सेना की हार की संभावना में पुतिन की सरकार का भविष्य चीन के लिए एक राजनयिक तबाही होगी.

दूसरी अहम बात यह है कि गाजा युद्ध पर बंटे हुए अंतरराष्ट्रीय मत के बाद चीनी सरकार ने यूक्रेन के संबंध में भी 'वेट एंड वॉच' अप्रोच अपनाने का फैसला किया.

अमेरिकी समाचार चैनल CNN के साथ एक बातचीत में स्टिम्सन सेंटर में चीन कार्यक्रम की निदेशक यूं सन ने तर्क दिया कि "चीन पहले मध्यस्थता करना चाहता था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि रूस बहुत बुरी तरह से हार जाए. लेकिन अब वह चिंता (रूस के हारने की) कम हो गई है.

यह देखते हुए कि मध्य पूर्व में उपजे तनाव की वजह से अमेरिका उलझा हुआ है, फिर भी चीन अपने दम पर शांति समझौते को आगे बढ़ाने के लिए कम प्रेरित दिखता है.

यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की राजनयिक स्थिति को समझते हैं कि अमेरिका गाजा जंग में उलझा है और चीन सरीखे देश खुद को अमेरिका की तरह मध्यथ के तौर पर पेश करना चाहते हैं.

जबकि चीन संघर्ष समाधान में अमेरिका के सामने एक राजनयिक विकल्प बनने की कोशिश करता है. हालांकि इससे रूसी समर्थक होने के बावजूद राजनयिक तौर पर चीन की तटस्थता और विश्वसनीयता को भी परख लिया जाएगा.

(उपमन्यु बसु मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज, भारत में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं. वह वर्तमान में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज से डॉक्टरेट की पढ़ाई कर रहे हैं. वह अंतर्राष्ट्रीय विकास और सुरक्षा सहयोग, फिलीपींस में एक नॉन रेजीडेंट फेलो भी हैं. वह भारतीय विदेश नीति और दक्षिण एशियाई राजनीति पर लिखते हैं. यह एक ओपिनियन है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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