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Donbas संकट कुरेद रहा 30 साल पुरानी ट्रांसनिस्त्रिया की हिंसक कलह के जख्म

दशकों पहले रूसी अल्पसंख्यकों की पहचान और उन्हें अलग कर देने के मुद्दों ने ट्रांसनिस्त्रिया की नियति तय की थी.

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यूक्रेन (Ukraine) के डोनबास क्षेत्र में अलगाववादी आंदोलन आज से तीस साल पहले माॅल्डोवा के ट्रांसनिस्त्रिया (Transnistria) में दो वर्गों के बीच भाषा-संस्कृति की विविधता की वजह से उपजी हिंसक झड़प की याद दिलाता है. यह युद्ध ठीक उसी तरह का रूप ले रहा है जैसा माॅल्डोवा के ट्रांसनिस्त्रिया (Transnistria) में हुआ था. राष्ट्रीय और भाषा संबंधी पहचान से जुड़े ठीक उन्हीं मुद्दों और रूसी अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक रूप से अलग कर देने के डर ने उनके स्वतंत्रता आंदोलन को भड़काने का काम किया है.

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दोनों ही मामलों में रूस (Russia) ने खुद का समर्थन करने वाले निगरानी समूहों की तरफदारी की है, जिसकी वजह से एक भयानक युद्ध की स्थिति पैदा हो गई. उन इलाकों में जहां रूसी लोगों की संख्या ज्यादा थी, उन्होंने अपने ही देश से अलग होना शुरू कर दिया और खुद को स्वतंत्र घोषित करने लगे. हालांकि डोनबास जो रूस की सीमा से लगता हुआ क्षेत्र है, यहां पर युद्ध ट्रांसनिस्त्रिया (Transnistria) से कहीं ज्यादा क्रूर और नृशंस है. ट्रांसनिस्त्रिया जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है जो दक्षिणी यूक्रेन की सीमा पर है.

दूसरे सोवियत गणतंत्रों की तरह, माल्डोवा दो दशकों तक रूस और रोमानिया के बीच झूलते रहने के बाद अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा था.

साल 1980 के दशक में जब गोर्बाचेव ने विकेंद्रीकरण और राजनीतिक उदारीकरण को बढ़ावा देते हुए पेरेस्त्रोइका (perestroika) और ग्लासनोस्त (glasnost) की नीतियां पेश कीं तब वहां रहने वाले माल्डोवा के लोगों में तेजी से राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई और पॉपुलर फ्रंट ऑफ माल्डोवा का गठन हुआ. साल 1988 में उन्होंने सोवियत के अधिकारियों से मांग की, कि रूसी नहीं, माल्डोवियन भाषा को राष्ट्र भाषा दर्जा दिया जाए और Russian Cyrillic script नहीं, लैटिन स्क्रिप्ट का इस्तेमाल किया जाए. इसके अलावा अतिवादी तत्व मजदूर अल्पसंख्यकों जिनमें रूसी और यूक्रेनियन शामिल थे, को माल्डोवा से निकालना चाहते थे.

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दो सदियों तक हमें बताया गया कि हम कितने कमतर

31 अगस्त 1989 को आम जनता के दबाव और माॅल्डोवा-रोमानिया (Moldovan-Romanian) की साझा भाषाई पहचान की स्वीकृति को देखते हुए सोवियत ने भाषा से जुड़ी मांगों को स्वीकार कर लिया. इसके बाद क्या स्थिति बनीं, इस बारे में मेरी एक दोस्त लोआना ने विस्तार से बताया है.

बकौल लोआना- 'मैं जब माल्डोवा की राजधानी Chisinau में एक सड़क से गुजर रही थी तो एक रोड साइन को देखते हुए कुछ अलग सा मैंने ऑब्जर्व किया. वहां की भाषा बदली हुई थी. उसी दिन जब मैं स्कूल गई थी और क्लास में ब्लैकबोर्ड पर रोमानियन और लैटिन स्क्रिप्ट में बड़े-बड़े अक्षरों में कुछ लिखा था. मैं स्तब्ध थी.

हमने रूस के प्रति जो प्रतिरोध दिखाया था, उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप हम पर उनकी भाषा थोपी जाने की शुरुआत हो चुकी थी. जब भी हम रोमानियन में बात करते, रशियन हमसे कहते कि ह्यूमन लैंग्वेज में बात करो. दो सदियों तक हमें ये एहसास दिलाया गया कि हम कितने कमतर हैं. उन्होंने हमारा इस तरह ब्रेनवॉश किया कि हम मानने लगे थे कि हम किसी काम के नहीं. इसी तरह के अहसास में जीने का प्रतिफल यह हुआ कि अगर किसी कमरे में 50 माल्डोवियाई, रोमानियन में बात कर रहे होते और तभी वहां कोई रशियन आ जाता, तो सब अपनी भाषा बदलकर रूसी भाषा में बात करने लगते थे.

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मॉल्डोवा और ट्रांसनिस्त्रिया के बीच युद्ध की शुरुआत

सांस्कृतिक रूप से खुद को खतरे में और भविष्य में माल्डोवा के रोमानिया के साथ संभावित एकीकरण के डर से वहां के नस्लीय अल्पसंख्यकों और रूसी लोगों ने अपना खुद का आंदोलन शुरू किया और रूसी को माल्डोवियाई भाषाओं के बराबर का दर्जा देने की मांग उठाई.

साल 1990 में मॉल्डेवियन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक में हुए पहले स्वतंत्र संसदीय चुनावों में नेशनलिस्ट पॉपुलर फ्रंट ने जीत हासिल की और नस्लीय सफाई (Ethnic cleansing) के अपने एजेंडे को लागू करना शुरू किया.

दोनों ही पक्षों ने हथियारबंद निगारानी समूह बनाए, जिन्होंने एक दूसरे पर हमले किए. डीनाएस्टर (Dniester) नदी के पूर्वी किनारे पर ट्रांसनिस्त्रिया का वो हिस्सा जिस पर रूस का प्रभुत्व था, पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव्स ने इस संकरी सी घाटी को Pridnestrovian Moldavian Soviet Socialist Republic घोषित कर दिया.

हालांकि राष्ट्रपति गोर्बाचेव ने इसे स्वीकार नहीं किया. सोवियत यूनियन पहले से ही एक अजीब सी स्थिति में फंसा था और इतना कमजोर था कि किसी निर्णय को लागू नहीं कर सकता था. धीरे धीरे अलगाववादी सरकार ने रूस के प्रभुत्व वाले ट्रांसनिस्त्रिया पर नियंत्रण हासिल कर लिया. 27 अगस्त 1991 को माल्डोवा ने खुद को सोवियत यूनियन से स्वतंत्र घोषित कर दिया. इसके 6 महीने बाद माल्डोवा और ट्रांसनिस्त्रिया के बीच युद्ध शुरू हो गया.

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मैं पहला भारतीय जिसे यहां जाने की इजाजत मिली

चार साल पहले 10 अप्रैल 2018 को मैं Alex के Chisinau से आ रहा था. मुझे और मेरे ड्राइवर गाइड को मॉल्डोवा-ट्रांसनिस्त्रिया बॉर्डर पर हमारे परमिट्स मिले और फिर हम ट्रांसनिस्त्रिया की तरफ आगे बढ़े.

मुझे बाद में टूरिज्म डिपार्टमेंट में ये बताया गया कि मैं ऐसा पहला भारतीय हूं जिसे इस स्वतंत्र देश में जाने की इजाजत मिली है.

पुराने बेंडेर रेलवे स्टेशन जाते हुए हम वहां रुके जहां कभी सिटी हॉल था. इसकी सफेद दीवारों पर गोलियों के सुराख थे. ये ट्रांसनिस्त्रिया युद्ध के दौरान बर्बरता के निशानों को दिखा रहे थे. ये बीते हुए समय का एक दुखद स्मारक था. लड़ाकों के अनुभवहीन और अनियंत्रित समूह इस लड़ाई में शामिल हुए और उन्होंने नृशंस तरीके से एक दूसरे की हत्या की. इसी बीच बाहरी लोग भी इसमें शामिल हो गए. रूस जो अपने ट्रांसनिस्त्रियाई भाइयों के प्रति सहानुभूति रखता था, उसने अलगाववादियों को हथियारों से लैस किया. वहीं रोमानिया ने माल्डोवियंस को हथियार उपलब्ध कराए.

दशकों पहले रूसी अल्पसंख्यकों की पहचान और उन्हें अलग कर देने के मुद्दों ने ट्रांसनिस्त्रिया की नियति तय की थी.

गोलियों के छेद वाली दीवारें ट्रांसनिस्ट्रिया के बर्बर युद्ध के संकेत दिखाती हैं.

(फोटो: अखिल बख्शी)

इस युद्ध का सबसे बुरा समय 2 मार्च से 21 जुलाई 1992 के बीच का था. दोनों ही पक्षों में दुश्मनी भरी हुई थी, लेकिन युद्ध कला में ये कच्चे थे. इन्होंने किसी नतीजे पर पहुंचे बिना आपस में ही लड़ना शुरू कर दिया. इसमें कहीं भी जल्दी या सफलता पाने वाले अंत के संकेत नहीं थे और फिर इन्हें अपने ही प्रदर्शन से हताश होना पड़ा. एक दूसरे के साथ क्रूर इन प्रतिद्वंद्वियों ने तब हस्तक्षेप के लिए रूस की तरफ देखा.

इसके बाद मेजर जनरल एलेक्जेंडर लेबेड ने रूस की 14वीं आर्मी की कमान संभाली और बेंडेर में माल्डोवियाई सेना को मिटा देने के लिए इस युद्ध में कूद गए.

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सीजफायर का रास्ता कैसे निकाला गया?

ट्रांसनिस्त्रियाई लोगों को लेकर कोई प्रेम का भाव नहीं था, इसलिए उन्हें लुटेरा और अपराधी घोषित कर दिया गया. लेबेड ने एक बयान में कहा था, मैंने Tiraspol में उपद्रवियों और Chisinau में फासीवादियों से कहा कि या तो वो एक दूसरे को मारना बंद करें या मैं अपने टैंकों से सबको शूट कर दूंगा. लेबेड की इस धमकी के बाद लड़ाकों ने अपनी बंदूकें छोड़ दीं.

रूस ने इस उबाऊ और क्रूर युद्ध को खत्म किया, जो सेनाओं से ज्यादा लुटेरों के बीच था. रूस ने जो सीजफायर करवाया वो अभी तक लागू था. इस युद्ध में 700 से ज्यादा लोग मारे गए. हालांकि रूस ने ट्रांसनिस्त्रिया में अपना एक मिलिट्री बेस बनाया था, जबकि वो इसे स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर नहीं देखता था.

क्या डोनबास ट्रांसनिस्त्रिया की तरह ही तबाह हो जाएगा?

हम एक नए रशियन मिलिट्री बेस की ओर बढ़े चले जा रहे थे. यह बेस एक किले में है, जो जमीन में धंसा सा लगता है , इसकी प्रकृति निर्मित लंबी मिट्टी की दीवारें, मोटी लताओं के पीछे छिप गई लगती हैं. किले के चारों तरफ शांति फैली है.

जब कोई फसाद, बगावत या युद्ध नहीं होता तो इस बेस के सैनिकों का काम आम जनता से आज्ञा का पालन कराना है. जब वे किसी ड्रिल की तैयारी नहीं कर रहे होते, तो निर्दोष नागरिकों को परेशान करना और पर्यटकों से पैसों की वसूली करना ही उनका काम होता है.

यूनिफॉर्म पहने कई सैनिक किले की दीवार की तरफ बहुत ही औपचारिकता के साथ जाते दिखाई दिए. हालांकि मिलिट्री सर्विस उनके लिए कोई बोझ नहीं थी, लेकिन उनमें से कोई खुश नजर नहीं आया.
दशकों पहले रूसी अल्पसंख्यकों की पहचान और उन्हें अलग कर देने के मुद्दों ने ट्रांसनिस्त्रिया की नियति तय की थी.

ट्रांसनिस्त्रियन युद्ध (1990-92) में मारे गए सैनिकों के लिए बना स्मारक.

(फोटो: अखिल बख्शी)

ट्रांसनिस्त्रियाई अथॉरिटीज ने प्राइमरी स्कूलों में रोमानियन भाषा में पढ़ाना प्रतिबंधित कर दिया है. एक बार उनकी पैरामिलिट्री ने क्लासरूम की दीवार पर लिखे लैटिन अक्षरों पर मशीन गन चला दी थी.

ट्रांसनिस्त्रिया सोवियत समय की एक निराशाजनक निशानी है. कम्युनिस्ट काल का एक जीता जागता म्यूजियम जहां जर्जर और एक जैसे दिखने वाले ब्लॉकहाउसेज हैं. सड़कें लेनिन के स्टैच्यू और स्टालिन के पोस्टरों से भरी हुई हैं और बिलबोर्ड्स पहले की रूसी जीत का जश्न मना रहे हैं. यहां एक इंटेलिजेंस एजेंसी है जिसे अभी भी केजीबी कहा जाता है.

सड़कें मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन और सोवियत सीक्रेट पुलिस के फाउंडर Felix Dzerzhinsky के नाम पर हैं और सोवियत यूनिफॉर्म पहने पुलिस वाले और सैनिक सड़क पर चल रहे निर्दोष लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं. ये एक दमघोंटू माहौल था जो मेरे उदार मस्तिष्क के लिए अनुकूल नहीं था.

लगता है कि स्वतंत्र डोनबास एक दूसरा ट्रांसनिस्त्रिया ही होगा.

(अखिल बख्शी 'Hostage to History: Travels in Moldova' किताब के लेखक हैं. ये एक ओपिनियन आर्टिकल है. इसमें व्यक्त किए विचार लेखक के निजी विचार हैं. क्विंट न तो इनका समर्थन करता है न इसके लिए जिम्मेदार है.)

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