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युद्ध, व्यापार और शांति सम्मेलन: क्या रूस-यूक्रेन जंग पर भारत अपना स्टैंड बदलेगा?

Russia-Ukraine War: फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से कुलेबा दिल्ली का दौरा करने वाले पहले उच्च रैंकिंग वाले यूक्रेनी अधिकारी हैं.

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Ukrainian Foreign Minister India Visit: वो आए, उन्होंने देखा, उन्होंने बोला भी लेकिन कुछ हासिल भी होगा, यह असंभव सा लगता है. 28-29 मार्च को यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा की दो दिवसीय भारत यात्रा निश्चित रूप से महत्वपूर्ण थी.

फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन में "विशेष सैन्य अभियान" शुरू करने के बाद से कुलेबा दिल्ली का दौरा करने वाले पहले उच्च रैंकिंग वाले यूक्रेनी अधिकारी हैं.

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भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के निमंत्रण पर यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब मॉस्को के पास एक आतंकी हमले के बाद रूस और पश्चिम के बीच तनाव बढ़ गया है. इस हमले में कम से कम 140 लोग मारे गए हैं और कई घायल हुए हैं.

विदेश मंत्री कुलेबा का मुख्य उद्देश्य यूक्रेन की शांति योजना और स्विट्जरलैंड में आगामी शांति सम्मेलन के लिए भारत से समर्थन मांगना था. इस शांति सम्मलेन की तारीखों की घोषणा अभी बाकी है. उन्होंने यूक्रेन में भारतीय निवेश और व्यापार संबंधों को फिर से शुरू करने की भी वकालत की है.

उन्होंने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, "नई दिल्ली में, मैंने यूक्रेनी-भारत द्विपक्षीय संबंधों, हमारे क्षेत्रों की स्थिति और वैश्विक सुरक्षा के बारे में डॉ. एस जयशंकर के साथ गंभीर और व्यापक बातचीत की."

"हमने शांति फॉर्मूला और इसको लागू करने के रास्ते पर अपने अगले कदमों पर विशेष ध्यान दिया. हमने यूक्रेनी-भारतीय अंतरसरकारी आयोग की समीक्षा बैठक की सह-अध्यक्षता भी की और हमारे देशों के बीच सहयोग के उस स्तर को बहाल करने पर सहमति व्यक्त की जो रूस द्वारा शुरू किए गए बड़े पैमाने पर युद्ध से पहले मौजूद था. साथ ही हमारे संबंधों को अगले स्तर पर ले जाने के लिए नई आशाजनक परियोजनाओं की पहचान करने को लेकर भी सहमति जताई."
यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा
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क्या कुलेबा के कमेंट्स भारत-रूस संबंधों को प्रभावित करेंगे?

भारत अपने यूक्रेन आउटरीच के साथ-साथ रूस के साथ अपनी निकटता को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है. अब यह देखना बाकी है कि कुलेबा की यात्रा कितनी सफल होती है. दोनों देशों के लिए व्यापार और निवेश फिर से पटरी पर आना निश्चित है.

एस. जयशंकर ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, "यूक्रेन के एफएम यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा के साथ हमारे अंतर-सरकारी आयोग की समीक्षा बैठक की सह-अध्यक्षता करते हुए खुशी हो रही है."

"सभी क्षेत्रों में सहयोग को और मजबूत करने के महत्व पर ध्यान दिया गया. हमारा तात्कालिक लक्ष्य व्यापार को पहले के स्तर पर वापस लाना है. आज व्यापार, स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और कृषि सहयोग पर साझा किए गए दृष्टिकोण उपयोगी थे. हम इस वर्ष के अंत में 7वीं आईजीसी बैठक की तैयारी के लिए सहमत हुए."
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर

हालांकि, इससे भारत को उसके पुराने मित्र रूस से दूर करने में मदद नहीं मिलेगी.

फाइनेंशियल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में यूक्रेन के विदेश मंत्री ने कहा था: "भारत और रूस के बीच सहयोग काफी हद तक सोवियत विरासत पर आधारित है. लेकिन यह वह विरासत नहीं है जिसे सदियों तक रखा जाएगा; यह एक विरासत है जो लुप्त हो रही है.”

यह समझ में आता है कि कुलेबा ने ऐसा क्यों कहा, लेकिन यह भारत-रूस साझेदारी को एक सीमित अर्थ में देखना है.
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यूक्रेन की शांति योजना में क्या शामिल है?

रूस अब भी भारत का सबसे बड़ा डिफेंस सप्लायर है और संभवतः संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसका सबसे भरोसेमंद मित्र बना हुआ है. असंख्य क्षेत्रों में सहयोग के अलावा - परमाणु प्रौद्योगिकी से लेकर अंतरिक्ष तक; रियायती दाम पर रूसी कच्चे तेल की बदौलत, पिछले वर्ष दोनों देशों के बीच व्यापार की मात्रा अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई है.

मंत्री की दूसरी चेतावनी - कि चीन और रूस के घने संबंध भारत के लिए खतरा हैं - यह एक और कारण है कि भारत रूस के साथ करीबी रिश्ते बनाए रखना चाहता है. लेकिन इसके अलावा, क्या यूक्रने के विदेश मंत्री की यात्रा अपने अन्य उद्देश्य यानी मुख्य रूप से यूक्रेन के 'शांति फॉर्मूला' के लिए समर्थन, को प्राप्त कर पाएगी?

सबसे पहले, आइए देखें कि शांति फॉर्मूला क्या है.

अक्टूबर 2022 में, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने G7 नेताओं के लिए एक "शांति फॉर्मूला" की घोषणा की. ये हैं:

  • रेडिएशन और परमाणु सुरक्षा (जिसमें जापोरीजिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र से रूस की वापसी)

  • खाद्य सुरक्षा

  • ऊर्जा सुरक्षा, कैदियों और निर्वासित लोगों की रिहाई

  • यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और 1991 की सीमाओं की बहाली

  • शत्रुता की समाप्ति और यूक्रेनी क्षेत्र से रूसी सैनिकों की वापसी

  • युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा और न्याय

  • पर्यावरण की सुरक्षा

  • संघर्ष को बढ़ने से रोकना

  • युद्ध समाप्ति की पुष्टि

खाद्य सुरक्षा और कैदियों-निर्वासित लोगों की रिहाई से जुड़े बिंदुओं को अच्छी से समहति दिखाई लगी, लेकिन इस प्रस्ताव में सबसे बड़ी बाधा यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता की बहाली है.
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फरवरी 2022 के बाद रूसी सेनाओं द्वारा कब्जा की गई जमीन को वापस पाने की आशा की भी जा सकती है, लेकिन यह कल्पना करना कि रूस क्रीमिया को वापस यूक्रेन को सौंप देगा, कठिन है. ऐसा लगता है कि क्रीमिया पिछले एक दशक में रूस के साथ बिना किसी रोक-टोक के एकीकृत हो गया है. रूस ने 2014 में इसे अपने क्षेत्र में शामिल कर लिया था.

इसके अलावा, संघर्ष में रूस की सैन्य बढ़त को देखते हुए और पूरी तरह से विदेशी हथियारों पर निर्भर यूक्रेन के तेजी से कमजोर होने को देखते हुए, डोनबास क्षेत्र को भी यूक्रेन में वापस लाने की कल्पना करना मुश्किल है.

शत्रुता समाप्त करने और संघर्ष न बढ़ने जैसे प्रावधानों के लिए वार्ता में समान रूप से रूसी भागीदारी की आवश्यकता होगी, हालांकि रूस को अभी तक इस होने वाले शांति सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया है.

कैसे यूक्रेन का एक फरमान मामलों को जटिल बना रहा है?

28 मार्च को रूसी मीडिया आउटलेट Izvestia के साथ एक इंटरव्यू में - जिस दिन कुलेबा दिल्ली में उतरे - रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने शांति फॉर्मूले को 'कूटनीतिक रूप से पागल' कहा.

ऐसी शांति योजनाओं को और भी जटिल बनाने वाली बात खुद एक यूक्रेनी फरमान है जिसे अक्टूबर 2022 जारी किया गया था- इसके अनुसार व्लादिमीर पुतिन की अध्यक्षता में रूस के साथ किसी भी बातचीत पर प्रतिबंध लगाया गया.

हाल ही में हुए रूस के राष्ट्रपति चुनावों में पुतिन की शानदार जीत और उनके दोबारा राष्ट्रपति बनने देखते हुए, यह फरमान दोनों देशों के बीच 'शांति वार्ता' के शुरू होने में ही रोड़ा बना हुआ है.
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उसी इंटरव्यू में, लावरोव ने कहा, "व्लादिमीर पुतिन की सरकार के साथ बातचीत पर प्रतिबंध लगाने पर जेलेंस्की के कार्यकारी आदेश पर कुछ शब्द बोलूंगा. हमारे राष्ट्रपति ने गंभीर वार्ता शुरू करने के लिए हमारी तत्परता के बारे में बार-बार बात की है. लेकिन यह आश्वस्त होने के लिए कि ये वार्ता गंभीर होंगे, उन्होंने कीव के पश्चिमी संरक्षकों से कहा कि जेलेंस्की को पहले इस कार्यकारी आदेश को रद्द करना होगा."

भारत इन बारीकियों और रूसी संवेदनाओं को ध्यान में रखेगा और इसी तर्ज पर यूक्रेन को मनाने की कोशिश कर सकता है.

भारत का प्लान ऑफ एक्शन क्या होना चाहिए?

भारत को स्विट्जरलैंड में शांति सम्मेलन में भाग लेना चाहिए, यदि ऐसा होता है. भारत ने हमेशा इस संघर्ष में अपनी तटस्थता की घोषणा की है, और समय-समय पर बातचीत और चर्चा को ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता बताया है. भारत ने पहले तुर्की की मध्यस्थता में हुए "अनाज सौदे" का समन्वय किया है और कई मौकों पर, दोनों पक्षों के बीच "दूत" की भूमिका भी निभाई है, जैसा कि एस जयशंकर ने हाल ही में मलेशिया में एक कार्यक्रम में कहा था. यहां तक ​​कि रूस द्वारा यूक्रेनी ठिकानों पर किसी भी संभावित परमाणु हमले को रोकने में भी भूमिका निभाई है.

भारत ने यूक्रेन पर सभी अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में भाग लिया है- कोपेनहेगन से लेकर जेद्दा, माल्टा और हाल ही में दावोस में हुई वार्ता तक.

यह सम्मेलन भारत को यूक्रेन और पश्चिम, दोनों के साथ खड़े होने का एक मौका देगा. साथ ही यह अवसर आने पर भारत को संघर्ष समाधान के अधिक तटस्थ समर्थक के रूप में स्थापित करेगा.

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