ADVERTISEMENTREMOVE AD

जंग के नाम पर पुतिन के अहंकार की सबसे बड़ी कीमत कौन चुका रहा है?

Russian Ukraine war: एक ऐसी दुनिया जहां आम आदमी की उपेक्षा ना सिर्फ सामान्य है बल्कि संस्थागत भी हो गयी है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

यूक्रेन (Ukraine) पर पुतिन की सेना के आक्रमण के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव पारित हुआ. 193 देशों की सदस्यता वाली इस संस्था के प्रस्ताव पर 141 देशों ने पक्ष में वोट किया और 35 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. सिर्फ चार देश – ऐरीट्रिया, उत्तर कोरिया, बेलारूस और सीरिया ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया. ये वो देश हैं जिनकी अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता पहले से ही धुंधली है. यहां तक कि लंबे समय से रूस के भरोसेमंद मित्र देश रहे चीन, क्यूबा और ऐतिहासिक तौर पर करीबी देश भारत और ईरान ने भी वोट नहीं किया. इन्होंने भी शत्रुता खत्म करने की सिफारिश की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर रूस आज पूरी तरह से अलग-थलग पड़ा हुआ है. यहां तक कि जर्मनी के हिटलर को भी इटली और जापान जैसे शक्तिशाली देशों का समर्थन मिला था. लेकिन आज जहां एक तरफ 141 देश एकजुट हैं, जिन्हें मैं अपनी सुविधा के लिए वेस्टर्न लिबरल डेमोक्रेटिक गठबंधन (पश्चिमी उदारवादी लोकतांत्रिक गठबंधन) कहता हूं तो वहीं दूसरी तरफ पुतिन के रूस के साथ सिर्फ चार छोटे और छिटके रहने वाले देश हैं. ऐसा लगता है कि जैसे दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग हैं.

फिर भी मैं कहूंगा ये दोनों ही पक्ष एक मसले पर भयानक तौर पर एक समान हैं. वो है सामान्य रूसी नागरिकों की उपेक्षा. यही है जो उनको ‘एक’ बनाता है.

प्रतिबंधों की मार सबसे ज्यादा किसपर?

हम उस दुनिया में रहते हैं जहां साधारण नागरिक की उपेक्षा सामान्य है. हम अफगानिस्तान से लेकर यमन जैसे देशों में दशकों तक इस कोलैटरल डैमेज के ना सिर्फ गवाह हैं बल्कि सच में इसे संस्थागत बनते भी देखा है. यह बेवजह चलने वाली जंगों का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है.

पश्चिमी गठबंधन या वेस्टर्न एलायंस ने रूसी कुलीनों (ओलिगार्क) पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, जिन्हें मैं जरूरी समझता हूं, उनका इन कुलीनों पर असर पड़ने की संभावना बहुत कम हैं. क्योंकि ये पहले ही अपनी तीस फीसदी रकम सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचा चुके हैं. रूस को SWIFT से बाहर करने जैसी दूसरी जरूरी कार्रवाई से भी इनका कोई नुकसान नहीं होने वाला है. क्योंकि दुनिया के सभी अरबपति चाहे वो भारतीय हों या फिर अमेरिकी या फिर रूसी , वो सिस्टम के भीतर और सिस्टम के बाहर दोनों तरह से अपना काम करना जानते हैं. सिर्फ आम रूसी लोग जिन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए कानूनी तौर पर पैसे ट्रांसफर करने हैं या फिर माता-पिता के इलाज के बिल भरने हैं, उनका काम रुकेगा.

0

इससे ना सिर्फ वो आम यूक्रेनी और रूसी सैनिक जो युद्ध में मारे जा रहे हैं , बल्कि रूसी नागरिक भी बुरी तरह से पीड़ित हैं. अभी रूसी करेंसी रूबल 30 से 40 फीसदी तक टूट चुका है और वो भारतीय रुपये से भी कमजोर हो गया है. आगे रूबल के और गिरने की आशंका से आम रूसी विदेशी करेंसी और सामानों के पीछे भाग रहे हैं ताकि उनकी मेहनत की गाढ़ी कमाई बच सके. मेरे कुछ मिडिल क्लास रूसी फ्रेंड्स हैं जो रूस में अपने परिवार और दोस्तों के लिए बहुत चिंतित हैं, ठीक वैसे ही जैसे कुछ यूक्रेनी अपने दोस्तों और परिवारों के लिए फिक्रमंद. आखिर यूक्रेन पूरी तरह से अलग दुनिया तो नहीं है. कई रूसियों के दोस्त और परिवार भी वहां रहते हैं. जो बर्बादी अभी यूक्रेन पर आई है उसकी पीड़ा सामान्य रूसी नागरिकों को भी है.

पूंजी को मिटाना आसान नहीं

दिलचस्प आलम ये है कि अपने उलझे बाल बिना कटाए और बिना सिगार हाथ में लिए विंस्टन चर्चिल बनने की पूरी कोशिश कर रहे बोरिस जॉनसन ने चेतावनी दी है कि रूसी कुलीनों की UK की संपत्ति ना सिर्फ फ्रीज की जाएगी बल्कि जब्त भी कर ली जाएगी. अब हम ये जानते हैं कि लंदन की रियल एस्टेट की चमक रूसी निवेश से ही बनी है. रूसी कुलीनों ने ये डर्टी मनी पुतिन को बनाए रखकर और समर्थन देकर, साधारण रूसी नागरिकों की कीमत पर कमाई है. लेकिन नवउदारवादी वैश्विक अर्थव्यवस्था के कामकाज के तरीके को देखते हुए ये मुश्किल लगता है कि ये रकम यूके और यूएस की जोखिम वाली संपत्ति में फंसी रहेगी. वैसे भी एक फीसदी शिखर के अमीरों का पैसा कभी रुकता नहीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
आज का पूरा ग्लोबल सिस्टम ऐसा बनाया गया है कि पूंजी को सरकारी नियंत्रण में जाने से बचाया जा सके. इसी वजह से डॉनल्ड ट्रंप जैसा कोई शख्स कई बार दिवालिया होता है और हर बार पहले से ज्यादा अमीर बनता जाता है, तो भारतीय अरबपति पैसे लेकर फरार हो सकते हैं और मौज मस्ती के साथ सुरक्षित रहते हैं. इसलिए मैं कहता हूं कि आम आदमी की उपेक्षा, दुनिया में हर तरफ संस्थागत हो गई है.

इसके अलावा, मेरा मानना है कि पुतिन से अपने कनेक्शन का इस्तेमाल करके , पश्चिमी कंपनियों की मिलीभगत से आम रूसी नागरिकों की कीमत पर ही रूसी कुलीन अमीर बने हैं. एक ऐसा देश जहां साल 2020 के सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 12 फीसदी जनता गरीब है, वहां पर एक फीसदी लोगों का देश की 70 फीसदी से ज्यादा संपत्ति पर कब्जा है.

पश्चिमी कंपनियों ने अपने फायदे के लिए अतीत में ना सिर्फ ऐसा सिस्टम बनाया और पैसा कमाया बल्कि अब वो अपने रूसी साझीदारों से नाता तोड़ रहे हैं और पश्चिमी मुल्क, रूसी संपत्तियां जब्त करने में लगे हैं. ये पश्चिमी उदारवादी लोकतांत्रिक देशों के लिए सब तरफ से फायदे की बात है. खासकर पुतिन और उसके जैसा कोई जब तक सत्ता में बना हुआ है तब तक जब्त पैसा आम लोगों के कल्याण के लिए नहीं दिया जाएगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

साधारण रूसी लोगों को भूल चुके हैं पुतिन

अंत में ये पुतिन की सबसे बड़ी गलती है और यहां तक कि यूक्रेन पर आक्रमण से भी बड़ी गलती . यूक्रेन पर आक्रमण करके पुतिन ने NATO के खिलाफ अपने सभी तर्कों को खुद खाक में मिला लिया है. अचानक से रूस एक साम्राज्यवादी और औपनिवेशिक ताकत जैसा व्यवहार करने वाला देश लगने लगा है, ठीक वैसे ही जैसे कभी अपने उपनिवेश खोने के बाद UK और फ्रांस लगते थे,जो उपनिवेश छीनने के बाद भी उस पर अपनी मर्जी लादते थे. साम्राज्यवादी रूस के लिए यूक्रेन युद्ध कुछ वैसा ही हो सकता है जैसा पूर्व साम्राज्यवादी इग्लैंड के लिए स्वेज नहर संकट था- नाक की लड़ाई जो खून खराबे से भर गया.

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने ये साफ कर दिया है कि क्यों कई पूर्वी यूरोप के देशों ने आखिर NATO को चुना और पुतिन के रूस के साथ रहना पसंद नहीं किया. NATO को कमजोर करने की जगह रूस ने इसे फिर से जिंदा कर दिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन इससे कहीं ज्यादा पुतिन ने दिखा दिया है कि मनपसंद कुलीन, बंदी मीडिया और जरूरत पड़ने पर क्रूर फौज के जरिए दशकों तक आम रूसी लोगों की इच्छा को तोड़-मोड़ सकते हैं. वो पूरी तरह से आम रूसी जनता को भूल गए हैं.आखिर उन्हें सत्ता में बने रहने के लिए आम रूसी लोगों की जरूरत भी नहीं है. इसमें वो अपने पश्चिमी देशों के उदारवादी नेताओं जैसे हैं , जिनको सत्ता में रहने के लिए आम रूसी लोगों की दरकार नहीं . इसलिए वो बेपरवाह हैं लेकिन पुतिन तो रूसी नेता हैं. उन्हें आम रूसी नागरिकों का ख्याल रणनीतिक और अपने अहंकार को बचाने के लिए भी करना चाहिए था

(ताबिश खैर आरहूस यूनिवर्सिटी, डेनमार्क में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उनका ट्विटर हैंडल @tabish_khair हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×