सरकार की सबसे बड़ी चिंता यह रही है कि मुसलमान औरतों को तीन तलाक के शोषण से मुक्त कराए. लोकसभा और राज्यसभा में इस बारे में बिल पास भी करा दिया. अब कोई तीन तलाक देकर बच नहीं सकता. उसे जेल कि हवा खाना पड़ेगी और जमानत तभी होगी, जब पत्नी सहयोग करेगी.
मुस्लिम महिला की इतनी चिंता थी कि राज्यसभा में बिल पास कराने के लिए विपक्ष से झूठ भी बोला गया, ताकि उनकी उपस्थिति न हो सके. राज्यसभा के कामकाज का मसौदा तैयार करते समय विपक्ष को यह कहा गया कि बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाएगा. इससे विपक्ष की उपस्थिति की तैयारी न की जा सकी और बिल के पक्ष में 99 और 84 विपक्ष में पड़े.
जनता दल (यू), AIADMK ने वोटिंग का बहिष्कार किया. टीडीपी , बीएसपी और टीआरएस के सांसद संसद में रहे ही नहीं.
इसमें कोई शक नहीं है कि तलाक देना इतना आसान हो गया था कि कोई एसएमएस पर तलाक देता था, तो कोई वॉट्सऐप पर. हिन्दू-कोड बिल भले बाबा साहेब अम्बेडकर न पास करा सके, लेकिन हिन्दू महिलाओं के साथ घोर अन्याय संवैधानिक संशोधनों के द्वारा काफी हद तक कम किया जा सका.
जिस समय हिन्दू कोड बिल पास करने का प्रयास डॉ. अम्बेडकर कर रहे थे, तो लगभग सारे तथाकथित सवर्ण सांसद लामबंद हो गये थे कि इससे हिन्दू धर्म नष्ट हो जाएगा. डॉ. अम्बेडकर के खिलाफ भारी प्रतिरोध पैदा हुआ. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और आरएसएस ने पूरी ताकत से विरोध किया.
हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार, उस समय पत्नी तलाक नहीं दे सकती थी, चाहे पति अमानवीय व्यवहार करे या अक्षम हो जाये, मर जाये या पागल हो जाये. अगर बचपन में रिश्ता कर दिया जाये, तो आगे चलकर चाहे पति गायब हो जाये या छोड़ दे, तो भी वह जीवनभर विधवा रहेगी.
वह सफेद वस्त्र धारण करे, अच्छा खाना खाने से वंचित रहे, लेकिन हिन्दू-कोड बिल में पत्नी को भी तलाक देने का अधिकार मिला. पति उस समय एक से अधिक विवाह कर सकता था, लेकिन विधेयक ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया. मां-बाप की सम्पत्ति में लड़की और लड़के का बराबर का अधिकार का प्रावधान किया गया. मुस्लिम समाज में इस तरह का सुधार नहीं हो सका. तीन तलाक कई मुस्लिम देशों में नहीं रहा फिर भी हमारे यहां चलता रहा. आजादी के इतने दिन बीत गये और समय भी बहुत बदल गया और ऐसे में मुस्लिम समाज को खुद इसको खत्म कर देना चाहिए था.
बीजेपी मुस्लिम औरतों की बराबरी की चिंता ज्यादा ही कर रही है और उस अनुपात में हिन्दू औरतों के हक की फिक्र क्यों नहीं है? सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में हिन्दू महिलाओं के प्रवेश का बराबर का अधिकार दिया, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को वह स्वीकार्य नहीं रहा. इस कदर तक विरोध किया कि सुप्रीम कोर्ट को कहा गया कि ऐसा फैंसला देते समय हिन्दू भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए और जो समाज स्वीकार करे, निर्णय वैसा ही करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का इतना भयंकर विरोध हुआ कि महीनों मंदिर के सामने धरना-प्रदर्शन और रुकावट पैदा किया गया कि कहीं गलती से भी कोई महिला प्रवेश कर भगवान अयप्पा को अशुद्ध न कर दे.
मान्यता यह थी और इनके हिसाब अभी भी यह है कि महिलाओं को माहवारी होती है, इसलिए वह अपवित्र हैं, जिससे भगवान अशुद्ध हो जायेंगे. यह भी मान्यता है कि अयप्पा भगवान ब्रह्मचारी हैं. जो पार्टी मुस्लिम महिलाओं की बराबरी की चिंता करे और हिन्दू महिलाओं में परम्परा की दुहाई देते हुए असमानता को सही ठहराए, इसके पीछे जरूर कोई सोच है, जिसको समझना मुश्किल नहीं है.
यह कहना कि यह मुस्लिम महिलाओं कि मांग थी कि तीन तलाक खत्म किया जाये, तो अपवाद को छोड़कर ऐसा कुछ नहीं था. भले ही वह शोषित हैं, लेकिन वह कभी भी विश्वास नहीं कर सकतीं कि बीजेपी उनका भला करेगी.
बीजेपी भी यह जानती है कि इससे मुसलमानों का वोट मिलने वाला नहीं है. उसका इरादा हिन्दू वोट को साधने का है. कुछ न कुछ ऐसे करते रहना होगा, ताकि हिन्दू-मुस्लिम का ध्रुवीकरण लगातार बना रहे. आज जरा भी मुस्लिम समाज की बात करने वाला राष्ट्रदोही करार कर दिया जा रहा है. आज माहौल ऐसा हो गया कि जायज बात भी मुसलमान के लिए की जाये, तो उसे गाली पड़ती है और कहा जाता है कि ये 'देशद्रोही' और 'पाकिस्तान चला जाए'.
1952 से लेकर अब तक एक भी मुस्लिम महिला विधायक और सांसद चुनकर जनसंघ और बीजेपी से नहीं आ सकी है और वही आज मुस्लिम महिला के शुभचिंतक बने हैं. क्या विडम्बना है! यहां तक नफरत हो गयी है कि जोमैटो (@ZomatoIN) फूड के आर्डर को जबलपुर के अमित शुक्ला (@NaMo_SARKAR ) इसीलिए कैंसिल कर देते हैं कि डिलीवरी करने वाला मुसलमान था. इस तरह से भोजन का भी धर्म हो गया है.
आरएसएस में महिलाओं की कितनी भागीदारी है, यह सभी जानते हैं. आरएसएस और बीजेपी के लिए हिन्दू महिलाएं मातृशक्ति हैं और इससे ज्यादा वह नहीं मानते. बीजेपी मुसलमानों को हिंदुओं के खिलाफ करके वोट तो ले सकती है, लेकिन जो सामाजिक ताना-बाना तैयार हो रहा है, उसकी कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ेगी.
देश जमीन का मात्र टुकड़ा नहीं है, बल्कि इंसानों का समूह है. जब एक बार नफरत पैदा हो जाए, तो देर-सबेर कीमत सबको चुकानी पड़ती है.
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