CJI शरद अरविंद बोबडे़ेके नाम सलमान खुर्शीद का खुला खत
आदरणीय चीफ जस्टिस बोबड़े,
पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के राज्य सभा के लिए नामित होने की खबर सामने आने के बाद से लगातार आलोचना और रोष का माहौल बना हुआ है. गोगोई से निकटता के लिए पहचाने जाने वाले कई पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जजों ने सार्वजनिक रूप से अभूतपूर्व तरीके और साफदिली से इस पर बात की है.
मेरे कई वकील सहकर्मियों ने भी इस पर निराशा जताई है. इनमें से कई का पूर्व CJI से अब सांसद के तौर पर सामना होगा. उन्हें अब पता चलेगा कि जब दूसरे आपका आकलन करते हैं, तो कैसा लगता है.
जाहिर तौर पर गोगोई ने इस मामले पर अपने विचार रख दिए हैं. इस पर उनके विस्तृत विचार हमें कुछ समय में जरूर पता लगेंगे.
एक इंटरव्यू में रंजन गोगोई ने लुटियन वकीलों की एक लॉबी के न्यायिक स्वतंत्रता के लिए अभिशाप होने के संकेत दिए. इसके अलावा उन्होंने कहा कि कई मुखर जजों को काफी कुछ के बारे में जवाब देना पड़ेगा.
'जानबूझकर बयान देने से मना किया'
मुझसे न्यूज एजेंसियों ने इस मामले पर कुछ कहने को कहा था. मेरा जवाब था कि कोर्ट मेरी समझ में इतना ज्यादा बहुमूल्य और अद्वितीय है कि उसको क्षति पहुंचाने की इजाजत नहीं दी जा सकती. कोर्ट को मानने वालों के लिए कुछ मुद्दे परेशान करने वाले हो सकते हैं, लेकिन ऐसी कई बातें हैं जिससे वो न्याय का मंदिर स्थापित होता है.
ऐसे कई जज है जिनकी न्यायिक समझ हमें परेशान करती है, लेकिन वहीं ऐसे जज और भी ज्यादा हैं जो संवेदना, बौद्धिक ईमानदारी, व्यक्तिगत नैतिकता की सभी उम्मीदों से आगे निकल गए.
सभी संस्थानों की तरह, कोर्ट भी उसमें होने वाले लोगों से बड़ा है.
इसलिए मैंने जानबूझकर इस मामले पर बयान देने से मना कर दिया. लेकिन इस पर कई जिम्मेदार और आदरणीय लोगों के बयान आने के बाद मैं, नागरिक कानून मंत्री के तौर पर चुप नहीं रह सकता.
'क्या न्यायिक व्यवस्था में कोई दिक्कत है?'
इस बात का खंडन नहीं किया जा सकता. लेकिन सिर्फ कोर्ट ही क्यों, क्या हमारा पूरा समाज तनाव में नहीं है? राज्य को स्थिर रखने में कोर्ट अहम किरदार निभा सकते हैं.
संवैधानिक सरकार का बहुमत सहारा होता है, लेकिन अगर हम संविधान को समझें तो सिर्फ वहीं एक सहारा नहीं है. अगर हम समझ पाएं कि संवैधानिक कोर्ट कितने जरूरी हैं. हम संविधान की कसम खाते हैं और राष्ट्रीय ध्वज को देश की इज्जत के तौर पर रखते हैं.
लेकिन देशभक्ति के ये सभी लैंडमार्क बेमतलब रह जाएंगे, अगर न्यायपालिका में विश्वास नहीं रहेगा.
मैं जानता हूं कि हमारे बीच कुछ ऐसे लोग हैं जो न्यायिक आचरण और प्रदर्शन में कमी बर्दाश्त नहीं कर सकते. लेकिन एक बात ये भी है कि कोई परफेक्ट नहीं होता और यही बात न्यायपालिका के साथ भी है क्योंकि वो भी समाज का प्रतिबिम्ब है.
न्यायपालिका के लिए तय किए गए उच्च मानक असल में वो सिद्धांत हैं, जिन पर सहमति बनी है. लेकिन शायद इससे हर कमी का पता न चले जब तक कि अंदरूनी व्यवस्था से प्रतिक्रिया न आए.
काफी समय से कई मामलों पर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन हमें साफ करना पड़ेगा कि कितने मुद्दों पर बात की जा सकती है कि सिस्टम को क्षति न पहुंचे.
प्रतिक्रिया का इंतजार
जनता की समझ या फिर न्यायिक समुदाय के बीच जो समझ है, वो प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं.
मैं इन मामलों को ध्यान में रखते हुए न्यायिक परिवार के प्रमुख होने के तौर पर आपसे इन दिक्कतों का संज्ञान लेने का अनुरोध करता हूं और न्यायिक स्वतंत्रता पर उठ रहे सवालों को भी देखने की गुजारिश करता हूं.
मैं केवल अपनी आत्मा की आवाज यहां साझा कर रहा हूं, शायद आप शांत हैं लेकिन ये आपको भी परेशान कर रहा है.
इस मुश्किल घड़ी में आपको शक्ति मिले.
शुभकामनाओं सहित
सलमान खुर्शीद
(सलमान खुर्शीद वरिष्ठ वकील, कांग्रेस नेता हैं और विदेश मंत्री रह चुके हैं. उनका ट्विटर हैंडल @salman7khurshid है. ये एक ओपिनियन है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. क्विंट का इससे कोई लेना-देना नहीं है.)
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