1983 का साल मेरे लिए खास था. मैं क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का हिस्सा तो था ही, उसी साल पहली बार मेरी मुलाकात लिटिल जीनियस सचिन तेंदुलकर से भी हुई. मैं मुंबई के चेंबूर में आरसीएफ ग्राउंड पर अपनी फिल्म ‘कभी अजनबी थे’ की शूटिंग कर रहा था.
हमारी फिल्म यूनिट को क्रिकेट प्रैक्टिस सीन के लिए 21 बच्चों की जरूरत थी. भला कौन सोच सकता था कि उन 21 बच्चों में सचिन तेंदुलकर नाम का बेहद खास बच्चा भी होगा, जिसकी आंखों में जबरदस्त चमक थी और पांव में जैसे पंख लगे हुए थे.
गेम की अच्छी समझ रखने वाले स्पेशल टैलेंट को देखते ही पहचान लेते हैं. फिल्म की शूटिंग के लिए दीपक मुरारकर उन बच्चों को लेकर आए थे. मैंने उनसे तुरंत सचिन तेंदुलकर के बारे में पूछा. हम वर्ल्ड कप जीतकर लौटे ही थे, इसलिए शूटिंग के लिए जो बच्चे आए थे, उनके लिए मैं उसकी ट्रॉफी से कम नहीं था. खैर, दीपक ने बताया कि उस ‘स्पेशल’ बच्चे का नाम सचिन तेंदुलकर है और वह काफी सुर्खियां बटोर रहा है. दीपक ने मुझसे नेट प्रैक्टिस के दौरान सचिन का खेल देखने का न्योता दिया.
शिवाजी पार्क से क्रिकेट की दुनिया जीतने तक का सफर
उस समय भला किसने सोचा होगा कि यह बच्चा आगे चलकर भारत रत्न से सम्मानित होगा.
“मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूं, जिसने सचिन का यह सफर देखा है. यह सफर शिवाजी पार्क से शुरू हुआ था और खत्म क्रिकेट की दुनिया जीतने के साथ हुआ. मुझे यह भी याद है कि घोष मेमोरियल ट्रॉफी के बेस्ट प्लेयर का सम्मान मेरे हाथों ही उन्हें मिला था. इसके बाद यंग सचिन तेंदुलकर की दुनिया बड़ी ही तेजी से बदली.”
मैं सनग्रेस मफतलाल के सेक्रेटरी हेमंत वेंगेनकर के साथ शिवाजी पार्क में श्री रमाकांत आचरेकर से भी मिलने गया था. उन्होंने मुझे नेट्स के दौरान दो युवा प्रतिभाओं का खेल देखने को कहा. मैंने देखा कि वहां सचिन बड़ी आसानी से सीनियर बॉलर्स को हैंडल कर रहे थे, जबकि पिच बैटिंग के लिए अच्छी नहीं थी.
“मैंने उस दिन सचिन की एकाग्रता, टेक्निक, टेंपरामेंट और बेमिसाल टैलेंट देखा. मुझे उस रोज बाएं हाथ के एक और स्टाइलिश बैट्समैन विनोद कांबली की प्रतिभा को देखने का भी मौका मिला. हेमंत और मैं उन दोनों के खेल से इतने प्रभावित हुए कि हमने सनग्रेस मफतलाल के मैनेजमेंट के पास तुरंत दोनों को लेने का प्रस्ताव भेजा.”
दरअसल, इस तरह से हम उनका हौसला बढ़ाना चाहते थे, क्योंकि क्रिकेट तब तक एक महंगा खेल था. मुझे लगता है कि वहां से सचिन के ग्रेट करियर की शुरुआत हुई. उनके सामने जो भी मौके आए, सचिन उन्हें लपकते हुए सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए. उन्होंने स्कूल टूर्नामेंट में विशाल स्कोर बनाना शुरू कर दिया.
उस वक्त मिलिंद रेगे क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) के सेक्रेटरी थे. उन्होंने क्लब के प्रेसिडेंट राज सिंह डुंगरपुर से सचिन को सीसीआई का मेंबर बनाने को कहा. डुंगरपुर को भी सचिन की आंखों में वह चमक दिखी. सचिन की उम्र कम थी, इसलिए विशेष प्रस्ताव पास करके उन्हें सीसीआई का क्रिकेट प्लेइंग मेंबर बनाया गया.
‘मेरी कार की सीट से फिसल जाते थे सचिन’
मुझे याद है कि नन्हे सचिन मेरी बिल्डिंग के गेट पर अपने बड़े बैट के साथ मेरा इंतजार कर रहे होते थे, ताकि मैं उन्हें अपनी ब्लू कॉन्टेसा कार में सीसीआई ले जा सकूं. वह इतने छोटे थे कि जब भी मैं ब्रेक लगाता था, वह कार की सीट से फिसल जाते थे. इस पर अक्सर मैं हंसता था.
“एक दिन सचिन ने मुझसे कहा, ‘एक दिन, मेरे पास भी बड़ी कार होगी.’ मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मैंने सचिन को एक बच्चे से बड़ा होते हुए देखा. जब सचिन ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलना शुरू किया, तब मैं मुंबई क्रिकेट टीम का मैनेजर और कोच था. मैंने मोतीबाग पैलेस ग्राउंड पर देर से आने पर उन्हें दंडित भी किया था.”
चेंबूर में जब मैंने पहली बार उन्हें देखा था, तब से लेकर सचिन का साथ मुझे बेहद पसंद रहा है. आज भी उनके प्रति मेरे मन में प्यार और सम्मान बढ़ रहा है. जब भी उन्होंने भारत या विदेश में सेंचुरी मारी तो मैंने उसकी बधाई दी और सचिन ने हमेशा उसका जवाब दिया.
सचिन के रिटायरमेंट के ऐलान के बाद हमारे रिश्ते में थोड़ी खटास आई. कुछ लोगों ने इसके लिए मुझे दोषी ठहराना शुरू कर दिया. आगे चलकर सचिन ने इसे खेल का एक पहलू मानकर स्वीकार किया और हमारे रिश्ते फिर से अच्छे हो गए हैं.
मैंने हमेशा कहा है कि सचिन जैसा टैलेंट धरती पर मिलना मुश्किल है और शायद वह दूसरे ग्रह से यहां आए हैं. मेरे लिए सचिन हमेशा वह बच्चे रहेंगे, जिसे क्रिकेट खेलने में खूब मजा आता था. मैं उनके सामने सिर झुकाता हूं और इस महान इंसान को सलाम करता हूं.
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