ADVERTISEMENTREMOVE AD

Sanjay Singh Bail: सुप्रीम कोर्ट में ED जमानत पर आपत्ति दर्ज करने से पीछे क्यों हटी?

Sanjay Singh Bail: ईडी ने महसूस किया कि उन्होंने जिस पीएमएलए प्रावधान के तहत ज्यादातर मामलों (सिसोदिया सहित) में जमानत से इनकार किया है, वह सुप्रीम कोर्ट में दो धारी तलवार साबित हो सकती है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह (Sanjay Singh) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत देने का फैसला कई सवाल खड़े करता है. ऐसे मामले में दो पेज का छोटा आदेश आमतौर पर सवालों के घेरे में आता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

संजय सिंह करीब छह महीने तक जेल में थे क्योंकि निचली अदालत और फिर दिल्ली हाई कोर्ट लगातार प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत संजय सिंह के खिलाफ दर्ज मामले पर उनकी जमानत याचिका खारिज करती गई. लेकिन 3 अप्रैल की सुबह जब संजय सिंह की जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू हुई तो दोपहर तक उन्हें बेल मिल गई.

आदेश की कॉपी देखने से ऐसा लगता है कि सिंह को जमानत इसलिए मिली क्योंकि ईडी ने कहा कि "उसे सिंह को जमानत देने पर कोई आपत्ति नहीं है." किसी भी मुकदमें में अचानक से आया ऐसा बदलाव किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देगा, इस तरह के हाई-प्रोफाइल मामले की तो बात ही छोड़ दें.

ईडी ने संजय सिंह को जमानत देने से इनकार करते हुए ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के आदेशों को अपने पक्ष में रखा था. फिर ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में अपना रुख क्यों बदल लिया?

और इस तरह इस मोड़ पर आकर कहानी शुरू होती है.

जमानत की सुनवाई के दौरान ED ने चालाकी से अपने पैर पीछे क्यों खिंच लिए?

ईडी की ये रियायत, मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट बेंच द्वारा की गई एक मौखिक टिप्पणी से प्रेरित हुई थी. जैसा कि सिंह के वकील ने बताया, संजय सिंह से अब तक कोई पैसा बरामद नहीं हुआ है और यहां तक ​​कि गवाहों के पिछले बयानों में भी सिंह का कोई उल्लेख नहीं किया गया था. अदालत ने ईडी के वकील को बताया कि चूंकि ईडी ने ऐसे तथ्यों को किसी भी तरह से अस्वीकार नहीं किया था, इसलिए इसका मतलब यह होगा कि सिंह को जमानत देने के आदेश पर सुनवाई के तहत इन तथ्यों को आधार माना जाएगा, जिससे ईडी के अभियोजन को संभावित रूप से खतरा होता.

ईडी को महसूस हुआ कि उन्होंने जिस पीएमएलए (PMLA) प्रावधान के तहत ज्यादातर अन्य मामलों (सिसोदिया सहित) में जमानत से इनकार किया है, वह सुप्रीम कोर्ट में दो धारी तलवार साबित हो सकती है.

पीएमएलए की धारा 45 में कहा गया है कि कोई भी अदालत पीएमएलए के तहत किसी अपराध के आरोपी को तब तक जमानत नहीं देगी, जब तक कि ईडी के वकील की सुनवाई नहीं हो जाती और अदालत संतुष्ट नहीं हो जाती कि "व्यक्ति को बेगुनाह करार देने के लिए पर्याप्त आधार हैं."

साथ ही सुनवाई इस आधार पर भी कि जाती है कि आरोपी द्वारा आगे कोई पीएमएलए अपराध करने की संभावना नहीं है, उसके भागने का जोखिम नहीं है और मुकदमे की प्रक्रिया में वह हस्तक्षेप नहीं करेगा. क्या सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाते समय यह दर्ज करना चाहिए था कि सिंह के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं है क्योंकि यह कल्पना करना मुश्किल होगा कि निचली अदालत आगे बढ़कर उनके खिलाफ आरोप तय करेगी. शायद यही कारण है कि जमानत की सुनवाई के दौरान ईडी ने चतुराई से अपने कदम पीछे ले लिए.

हलांकि, इस मामले ने हमारे सामने प्रवाधान के उन दिक्कतों को भी उजागर किया है, जिसके तहत बेल मिलना मुश्किल हो जाता है. भारतीय कानून में धारा 45 कुछ नया या अलग नहीं है, यह केंद्र और राज्य के कानून में इसी तरह के कई प्रावधानों में से एक है, जिसमें आरोपी को प्री-ट्रायल जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है. हालांकि, अदालतें नियमित रूप से अनुच्छेद 21 और "जमानत नियम है- जेल अपवाद है" पर बात करती रहती हैं, लेकिन उन्होंने लगातार ऐसे कठोर प्रावधानों को बरकरार रखा है, जिससे आरोपी के लिए जमानत हासिल करना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे प्रावधान का इस्तेमाल आतंकवाद से लड़ने से लेकर नशीली दवाओं की तस्करी, पीएमएलए और अंतरराष्ट्रीय अपराध तक के मामलों के निबटान के लिए किया जाता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

संक्षिप्त में,ऐसे विशेष कानूनों में सरकार द्वारा आरोपी के खिलाफ दिया गया कोई भी बयान उसकी जमानत याचिका खारिज करने के लिए काफी है.

 ED के बदलाव ने संजय सिंह को अजीब स्थिति में डाल दिया है

इन प्रावधानों को बरकरार रखने से अदालतों के लिए कई समस्याएं पैदा हो गई हैं - जमानत का एक साधारण मामला लंबी सुनवाई बन जाता है, जहां सभी साक्ष्यों का विस्तार से वर्णन किया जाता है. यह अदालतों को उन तथ्यों पर गौर करने के लिए मजबूर करता है, जो किसी न किसी तरह से मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे. इसमें मुकदमा शुरू होने से पहले ही अभियोजन पक्ष की थ्योरी की खामियों का पता लगाना होता है, जिससे अभियुक्तों के खिलाफ अभियोजन पक्ष का मामला और भी मुश्किल हो जाता है.

पीएमएलए की धारा 45 जैसे प्रावधान बिना जरूरी कार्यवाही के आरोपी को सजा देने के लिए राज्य के हाथ मजबूत करते हैं लेकिन अपराध के अभियोजन के लिए कुछ नहीं करते हैं.

सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान ईडी को जमानत अपनी आपत्ति छोड़ने के लिए प्रेरित करना -भी बहुत समस्‍यापूर्ण है. किसी भी पक्ष को कानूनी सलाह या रणनीतिक सलाह देना अदालत का काम नहीं है. अगर अदालत को लगा कि संजय सिंह को जमानत देने के खिलाफ ईडी का मामला काफी कमजोर है, तो उसे ऐसा कहना चाहिए था.

क्रिकेट के परिपेक्ष्य में देखें तो, यह कुछ वैसा है जैसे अंपायर 'नॉन-स्ट्राइकिंग बल्लेबाज को यह चेतावनी देने के लिए कि वह क्रीज से बाहर है और अगर वापस नहीं लौटा तो अपने प्रतियोगी द्वारा आउट किया जा सकता है' के लिए गेंदबाज को मिड रन में ही रोक देता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चाहे कोई अंपायर की निष्पक्षता पर सवाल उठाए या नहीं, लेकिन गलत फैसले और खेल के प्राकृतिक नतीजे में बाधा डालने के लिए अंपायर पर सवाल जरूर खड़े किए जाएंगे.

ईडी द्वारा याचिका से पीछे हटने का फैसला लेना सिंह के मामले को एक अजीब मझधार में छोड़ देता है. दो अदालतों ने कहा है कि यह मानने का कुछ कारण है कि सिंह ने पीएमएलए अपराध किया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन दो आदेशों को रद्द किए बिना जमानत दे दी है.

यह फैसला दोनों पहलुओं को साधने कि कोशिश करता है- संजय सिंह को जमानत दे दी लेकिन पीएमएलए की धारा 45 के आदेश का पालन नहीं किया. इसने निचली अदालत और दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों को जमानत देने से इनकार करने के फैसले को बरकरार रखा लेकिन फिर भी मौखिक रूप से मामले को जमानत हासिल करने के लिए सही ठहराया. इस मामले में जमानत की अनुमति देकर, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार कानून के अनुसार न्याय के बजाय पंचायती न्याय करने की अपनी सहज इच्छा के आगे घुटने टेक दिए हैं.

(आलोक प्रसन्ना कुमार बेंगलुरु में विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में सीनियर रेजिडेंट फेलो हैं. वह न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान की कार्यकारी समिति के सदस्य भी हैं. यह एक राय है, और व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं अपना. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

( द क्विंट में, हम केवल अपने दर्शकों के प्रति जवाबदेह हैं.एक सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच्चाई इसके लायक है।.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×