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BJP-JDU की तकरार के बीच राजद्रोह के मुकदमे की वापसी के मायने

बीते दो महीने से बीजेपी और जेडीयू के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं

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बिहार पुलिस ने बुधवार, 9 अक्टूबर को देश की 49 नामी हस्तियों के खिलाफ मुजफ्फरपुर में दायर राजद्रोह के मामले को फर्जी करार दे दिया. पुलिस के मुताबकि, इस बारे में मुकदमा दायर करने वाले वकील के खिलाफ ही प्राथमिकी दर्ज की जाएगी. हालांकि, बीजेपी और जेडीयू की बढ़ती दूरियों के बीच इसके पीछे की राजनीति को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

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दरअसल, देश की 49 हस्तियों ने मॉब लिचिंग और देश में दलितों, मुसलमानों और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था.

इनमें रामचंद्र गुहा, रोमिला थापर, श्याम बेनेगल, मल्लिका साराभाई, नयनतारा सहगल, मणिरत्नम, अनुराग कश्यप, अडूर गोपालकृष्णन, अपर्णा सेन, कोंकणा सेन शर्मा और अमित चौधरी जैसी बड़ी हस्तियां भी शामिल हैं.

इसी पत्र को आधार बनाकर मुजफ्फरपुर के एक वकील सुधीर कुमार ओझा ने जुलाई के महीने में मुजफ्फरपुर कोर्ट में याचिका लगाई थी. इस पर बीते महीने, कोर्ट ने इन हस्तियों पर मामला दर्ज कर पुलिस को जांच करने का आदेश दिया. इस बारे में नीतीश सरकार की काफी आलोचना हुई थी. शुरुआत में राज्य सरकार का कोई भी मंत्री बोलने को तैयार नहीं था.

फर्जी पाया गया मामला

बिहार पुलिस ने 9 अक्टूबर को इस मामले को बंद करने की घोषणा की. एडीजी जीतेंद्र कुमार ने बताया,

‘इस मामले की जांच मुजफ्फरपुर के एसएसपी मनोज कुमार की निगरानी में हो रही थी. हालांकि, शिकायतकर्ता इस बारे में कोई भी सबूत पेश नहीं कर पाया. यहां तक कि जिस पत्र के आधार पर इस मामले को दर्ज किया था, वह भी शिकायतकर्ता के पास नहीं था. इसीलिए यह मामला फर्जी पाया गया है और शिकायतकर्ता के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया गया है.’

हालांकि, पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के बाद इस बार सत्तारूढ़ गठबंधन में ही राजनीति शुरू हो गई है.

जेडीयू के नेता दबे स्वर में इसे सत्य की जीत बता रहे हैं, तो बीजेपी नेताओं के पास बगलें झांकने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है. जेडीयू नेताओं के मुताबिक, इस बारे में परोक्ष रूप से बीजेपी के नेता जिम्मेदार रहे हैं. उनके मुताबिक वकील का संबंध रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से रहा है. वहीं, कल तो इसे महज एक अदालती कार्रवाई बता रहे बीजेपी नेता अब इसका दोष वकील ओझा के सिर फोड़ रहे हैं.

उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बुधवार को पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के बाद ओझा को 'अदातन मुकदमेबाज' तक करार दे दिया. हालांकि, इस मामले के पीछे, जेडीयू और बीजेपी के बीच बढ़ती दूरियों को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है.

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JDU-BJP के बीच बढ़ रही दूरियां

दरअसल, बीते दो महीने से बीजेपी और जेडीयू के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं. खासतौर पर बीते दिनों पटना में भयंकर जल-जमाव और राज्य के कई इलाकों में बाढ़ के लिए बीजेपी नेता सीधे तौर पर नीतीश कुमार को जिम्मेदार बता रहे हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने तो बकायदा इस बारे में कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, तो वहीं जेडीयू के प्रवक्ता सिंह को आधारविहीन नेता बता रहे हैं. हालात यहां तक पहुंच गए कि बीजेपी नेताओं ने दशहरे के दिन पटना के गांधी मैदान में रावण-वध कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया.

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बुधवार को बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा और गिरिराज सिंह को ‘सोच-समझकर’ बोलने को कहा गया. इसके बाद कुमार ने भी अपने प्रवक्ताओं पर लगाम कसी.

बता दें कि बिहार में अगले वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. लोकसभा चुनाव में राज्य में 40 में 39 सीटों पर जीत और विपक्षी महागठबंधन के पस्त हौसले को देखकर बीजेपी नेता आत्मविश्वास से लबरेज हैं. बीजेपी नेताओं के बुलंद हौसलों के मद्देनजर नीतीश कुमार चाहते हैं कि एनडीए जल्द से जल्द उन्हें मुख्यमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित कर दे. हालांकि, बीजेपी अभी कोई वादा नहीं करना चाहती.

साथ ही, बीजेपी के कई नेता भी अब सूबे की कमान पार्टी के हाथों में देखना चाहते हैं. बीते महीने विधान पार्षद संजय पासवान ने खुलेआम कुमार को दिल्ली जाने की सलाह दे डाली थी, लेकिन इस बारे में विवाद को देखते हुए बीजेपी ने खुद को इससे अलग कर लिया. वहीं, सुशील कुमार मोदी ने अपने एक ट्वीट में कुमार को 'योग्य कप्तान' बताया था, लेकिन बाद में उसे हटा लिया.

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