बुरी खबरों की बौछार के बीच भारतीय बाजार (share market) नई ऊंचाइयां छू रहा है. कोविड-19 का खतरा बना हुआ है, चूंकि देश की सिर्फ दस प्रतिशत वयस्क आबादी का वैक्सीनेशन (corona vaccination) हुआ है. इसका यही अर्थ है कि तीसरी लहर (covid third wave) निश्चत है जिसके परिणाम के तौर पर एक बार फिर लॉकडाउन लगाया जाएगा, व्यक्तिगत आय और खपत कम होगी, नौकरियों का नुकसान होगा, बेरोजगारी बढ़ेगी, यानी ऐसा तूफान जिसके चलते मांग कमजोर पड़ी है और राष्ट्रीय आय को दो साल पहले के स्तर तक पहुंचने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है.
दूसरे शब्दों में आम आदमी को एक अनोखे आर्थिक शून्य का सामना करना पड़ा है. मुद्रास्फीति की दर उच्च है, जिसकी वजह ईंधन पर बेतहाशा टैक्स और कमोडिटी-खाद्य मूल्यों में बढ़ोतरी है. अब मैन्यूफैक्चरर्ड गुड्स की कीमतों में भी उछाल हुआ है.
सरकार बाजार से बहुत ज्यादा उधार ले रही है जिसकी वजह से बॉन्ड्स पर मिलने वाला रिटर्न यानी ब्याज घटता जा रहा है. केंद्रीय बैंक हर तरह से कोशिश कर रहा है कि कीमतों नीचे रखे लेकिन बाजार का गणित बहुत निर्दयी है. ब्याज दरें बढ़ेंगी और बढ़नी भी चाहिए. अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने पहले ही संकेत दिया था कि वह उम्मीद से पहले ब्याज दरों को बढ़ाने के लिए तैयार है, यानी वह अंधाधुंध पैसा (डॉलर) डालना बंद कर सकता है जिसे टेपर टैंट्रम 2.0 कहा जाएगा.
यह सब, यानी उच्च मुद्रास्फीति, निम्न मांग, सिकुड़ती राष्ट्रीय आय, उच्च ब्याज दर, फेडरल रिजर्व की टेपरिंग, यानी बैंक की एसेट खरीद की धीमी गति- क्या यह सब भारतीय स्टॉक्स के लिए बुरी खबरे हैं? बिल्कुल, और फिर भी वे ऊंचे स्तर पर हैं. क्यों?
नोटबंदी, जीएसटी और डिजिटल क्रांति- भारत में औपचारिक अर्थव्यवस्था मजबूत हुई
आसमान छूते शेयर बाजार की जटिलता को समझाने के लिए कई इंटरसेक्शंस पर बातचीत करनी होगी. लेकिन फिलहाल मैं कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करना चाहूंगा. आपने इसके कुछ कारणों के बारे में पहले से सुना होगा जोकि सच भी है. पश्चिम में सस्ते ऋण की एक ऐसी लहर आई थी, खासकर अमेरिका में, कि उसने दुनिया भर में एसेट की कीमतों को बढ़ा दिया. भारतीय शेयर बाजार भी डॉलर के इस अविश्वसनीय प्रवाह से उत्साहित हुआ है जिससे विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉल से भी अधिक हो गया.
लेकिन भारत में कई अनोखी घटनाएं भी हुईं जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में अदृश्य तरीके से अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है. 2016 में नोटबंदी से इसकी शुरुआत हुई और फिर 2017 में जीएसटी ने इसे और बदतर किया. आखिर में कोविड से उत्पन्न हुई 2020 की डिजिटल क्रांति. इन तीनों ने व्यापक स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था का ‘औपचारीकरण’ किया. नतीजतन, संगठित कॉरपोरेट घरानों ने सचमुच छोटे, असंगठित, अनौपचारिक क्षेत्र को निगल लिया. इसे दूसरी तरह से देखें तो संगठित कॉरपोरेट क्षेत्र ने हमारी राष्ट्रीय आय को बढ़ाया, बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाया, बाजार में उनकी हिस्सेदारी और उत्पाद की कीमतें बढ़ाई, क्योंकि मजदूरी और स्वरोजगार की कमाई गिर रही है.
शेयर बाजार बड़ी कंपनियों का प्रतिनिधि है, पूरी अर्थव्यवस्था का नहीं
अब खुद से एक बुनियादी सवाल करें- शेयर बाजार क्या है? क्या यह बड़ी कंपनियों की मार्केट वैल्यू का जोड़ नहीं है? अक्सर हम यह समझने की भूल करते हैं कि शेयर बाजार पूरी अर्थव्यवस्था का मापदंड है. जनाब, यह एकदम गलत है. वह सिर्फ चंद बड़ी कंपनियों का प्रतिनिधि है, शायद भारत की 100 कंपनियों का. इन बड़ी कंपनियों की कमाई में पिछले वर्ष 40% की वृद्धि हो सकती है, लेकिन वे छोटी कंपनियों के दम पर फल-फूल रही हैं. इसलिए कोई शक नहीं कि उनकी कीमतों का हिसाब रखने वाले सेंसेक्स और निफ्टी उच्चतम स्तर पर हों. लेकिन दुख की बात यह है कि शेयर बाजार इसीलिए चढ़ा हुआ है क्योंकि बाकी की अर्थव्यवस्था दर्द से बेहाल है.
जब हर ऐरा गैरा शख्स शेयर बाजार का विश्लेषक बन जाता है
अब, जब शेयर बाजार में उछाल हो तो बाजार में बुलबुले के संकेत मिलने लगते हैं:
जब पेनी स्टॉक्स हर महीने में दोगुने होने लगते हैं
जब कुल बाजार पूंजीकरण जीडीपी से बहुत बड़ा हो जाता है - 115% पर, यह इस समय 13 साल के उच्चतम स्तर पर है
जब लोग साफ तौर से संदेह जगाने वाले वैल्यूएशन पर आईपीओ में निवेश करने के लिए ताबड़तोड़ उधार लेने लगते है. जैसे नए सिरे से फंड जुटाना 14 साल में सबसे उच्च स्तर पर है, और अभी हमारे पास साल के कई महीने बाकी हैं!
जब जोमैटो की शानदार शुरुआत के बाद, घाटे में चलने वाली नए दौर की दूसरी कंपनी पेटीएम 2 बिलियन डॉलर से अधिक के सपने देख रही है. इसके साथ 2021 भारत के इतिहास में सबसे बड़ा आईपीओ और फंड जुटाने वाला साल बन जाएगा.
जब ग्रे मार्केट में अनलिस्टेड कंपनियों के शेयर्स एक महीने में 20 से 30% बढ़ जाते हैं, और खरीदार पहले से अनुमानित आईपीओ से नकदी की उम्मीद करते हैं.
जब अच्छी याददाश्त वाले भी भूल जाते हैं कि 2008 की मंदी की क्या वजह थी, जब बाजार 75% तक टूट गया था. अपनी यादों को ताजा कीजिए. वह अनिल अंबानी की रिलायंस पावर का आईपीओ था जिसके लिए सट्टेबाजों ने 8 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की बोली लगाई थी. मैं नहीं कहता कि इन दोनों की तुलना की जा सकती है लेकिन जोमैटो के लिए 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की डिमांड मिली है, जोकि तीसरे स्थान पर है और दीवाली के आस-पास पेटीएम रिलायंस पावर का रिकॉर्ड तोड़ सकता है. आप इस पर नजर रख सकते हैं.
आपको बताऊं, जब हर ऐरा गैरा शख्स आपको शेयर बाजार के टिप्स देने लगे तो समझ लीजिए कि बाजार सचमुच फ्रॉथी है. फ्रॉथी का मतलब, जब बाजार में जोश से भरे लोग बुनियादी बातों की अनदेखी करते हैं और एसेट की कीमत से ज्यादा बोली लगाते हैं. तब आप समझ जाइए कि अब अंत नजदीक है.
तेजड़िये और सट्टेबाज आपको बताएंगे कि ‘इस बार यह अलग है.’ लेकिन मेरी मानिए, अलग कुछ नहीं होता. क्योंकि बाजार हमेशा से गहरे भय और अंधी लालच के बीच झूलता रहा है- और जब लालच विवेक और समझदारी की अनदेखी करता है तब उनकी पौ बारह हो जाती है. हम वहीं पहुंच चुके हैं. अभी आखिरी छोर तक तो नहीं पहुंचे हैं लेकिन उसके बहुत नजदीक हैं.
मुझे लगता है कि अब आप समझ गए हैं? विश्व स्तर पर सस्ती दरों वाला ऋण, बड़ी कंपनियों का लगातार बड़ा होना और छोटी कंपनियों को निगल जाना, और लालच का बेहताशा बढ़ना- इन तीन वजहों से समझा जा सकता है कि शेयर बाजार में उछाल क्यों है जबकि अर्थव्यवस्था अपने सबसे निचले स्तर पर है.
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