आजतक के घटनाक्रम को न्यूट्रल होकर देखेंगे तो लगेगा कि नफरत के बीज खुलेआम बोए जा रहे हैं. ‘गोली मारो...’ जैसे नारे नेताओं की डिक्शनरी में परमानेंट जगह पा गए हैं और दुख की बात है कि इस तरह की बयानबाजी से कुछ लोग प्रभावित भी हो रहे हैं और कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं.
अकेले दिल्ली में ही पिछले कुछ दिनों में नफरत की आइडियोलॉजी से प्रभावित सिरफिरों ने हमें शर्मसार किया है. ऐसे माहौल में अनायास मेरा मन शिंडलर्स लिस्ट देखने को हुआ. इसीलिए नहीं कि इस फिल्म को 7 ऑस्कर अवॉर्ड मिले. इसलिए भी नहीं कि इसको लेजेंडरी डायरेक्टर स्टीवन स्पिलबर्ग ने 1993 में बनाया. इसलिए कि ये हमारे इतिहास का ऐसा चैप्टर है जिसके पन्ने हमेशा पलटते रहना चाहिए और आज के नाजुक दौर में तो बार-बार इसकी जरूरत पड़ती है.
हमें सिखाया गया है कि समाज में नफरत का जहर मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन होता है. यह हमारी सोच को भ्रष्ट बनाता है और हमसे वो सब भी करवा जाता है जिससे हम आमतौर पर परहेज ही करते हैं. फिल्म देखने के बाद अनायास मेरे मन में आया- नफरत की खेती पर ओले गिरे और ये कभी पनप ही ना पाए.
एक समझदार भी हालात बदलने में कामयाब होता है
इस फिल्म में दूसरे विश्वयुद्ध के समय में जर्मनी में यहूदियों के साथ होने वाले अत्याचारों का लेखा-जोखा है. फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है और इतिहास से सबक लेने वालों को एक बार इसे जरूर देखना चाहिए. इसके कई बड़े सबक हैं.
- पहला-नफरत, हमेशा अपने साथ तबाही ही लाता है.
- दूसरा- शक्ति के दुरुपयोग से दहशत ही फैलती है.
- तीसरा- और सबसे जरूरी, नफरत के कैंसर के बीच भी कई नेकदिल अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ते हैं और आखिर में नफरत पर विजय पाते हैं.
फिल्म उस दौर की कहानी है जब जर्मनी में यहूदियों की सामूहिक हत्या की जा रही थी. बच्चे-बूढ़ों में इतनी दहशत थी कि वो जान बचाने के लिए किसी भी तरह के उपाय करने को मजबूर थे. गंदी नालियों में शरण लेने से भी परहेज नहीं था. नाजी पार्टी के हुक्मरानों के लिए ये नफरत मनोरंजन की सामग्री बन गई थी.
फिल्म के मुख्य किरदार ऑस्कर शिंडलर एक बिजनेसमैन हैं जिन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध को अपने कारोबार के लिए बड़ा मौका समझा. यहूदियों ने सस्ते में खूब मेहनत करवाई और काफी तरक्की भी की. लेकिन इसी दौरान उसे नफरत के घटिया परिणामों का ऐसहास होने लगा.
ऐसे में उसने अपनी कमाई दौलत को यहूदियों की भलाई में लगा दिया. एक यहूदियों की लिस्ट (इसलिए फिल्म का नाम शिंडलर्स लिस्ट है).
उन सबको अपने नए बिजनेस के नाम पर नाजी हुक्मरानों से खरीदा. विश्व युद्ध खत्म होते होते, शिंडलर के सारे पैसे इसी काम में खर्च हो गए. लेकिन उसने दरियादिली फिर भी नहीं छोड़ी और सारे यहूदियों को आजाद कर दिया. कोई भी कैरेक्टर पूरी तरह से खराब या अच्छा नहीं होता है. शिंडलर भी ऐसा ही था. लेकिन आसपास के माहौल ने शिंडलर को बदलने को मजबूर कर दिया.
उसने यहूदियों की एक लिस्ट बनाई और अपनी लगन से सबकी जान बचाई. कहने का मतलब नफरत प्यार को कुछ पल के लिए धूमिल कर सकता है लेकिन प्यार इन सारी बाधाओं को फिर भी लांघ ही लेता है. स्पिलबर्ग की ये मूवी सिर्फ मूवी नहीं है. पूरी जिंदगी का संदेश इसमें छिपा है. आप अपने हिसाब से इसमें से जितना चाहें अमृत निकाल सकते हैं.
नफरत की आग में झुलसने वाले भी इसे हवा कैसे दे सकते हैं
हां, एक बात मुझे फिर भी समझ नहीं आई. इतिहास के कई चैप्टर ऐसे हैं जो हमें जमीन पर रहने के लिए प्रेरित करते रहते हैं. हमारे पुराणों में और धार्मिक ग्रंथों में भी तो यही बताया जाता है. फिर भी नफरत की चारों तरफ इतनी खेती और वो भी धर्म के नाम पर. जबकि नफरत फैलाने वाले भी शायद जानते हैं कि इस रास्ते का अंत तबाही में ही होने वाला है. एक और सवाल का मुझे जवाब नहीं मिला. जो नफरत की आग में एक बार झुलसते हैं वो भी आगे उसी आग को कैसे हवा देते हैं. इतिहास में इसके नमूने भी आपको मिलेंगे. जियोनिस्ट के आंदोलन से इजरायल बना. वहां कई ऐसे लोग जमा हुए जो कभी नफरत के शिकार हुए हों.
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