माईसेल्फ पिंकू. झुमरी तिलैया के मेन मार्केट में मेरी एक दुकान है. वही झुमरी तिलैया, जिसके बारे में आपने बड़े चर्चे सुने हैं. बॉलीवुड के गानों में और बिनाका गीतमाला में. उस समय के अविभाजित बिहार में मेरे इलाके में प्रॉस्पेरिटी दूसरे इलाके से पहले पहुंची थी. सब माइका माइनिंग का कमाल था. रेडियो के कार्यक्रम में हिस्सा लेना हमारे लिए अखबार में नाम छपवाने जैसा था.
मेरी धाक है- एक ट्रेडर के रूप में और एक इंवेस्टर के रूप में. आसपास के लोग मुझे छोटा झुनझुनवाला मानते हैं. शेयर मार्केट में निवेश के लिए मुझसे टिप्स लिए जाते हैं. इंग्लिश मीडियम से मेरी पढ़ाई की भी शायद एक धाक है. लेकिन अभी हो क्या रहा है?
हुआ यूं कि दिसंबर में विदेश में छुट्टी मनाने का मैंने प्लान बनाया था. मन में आया कि लगे हाथ तेजी से दौड़ते शेयर बाजार में जल्दी कुछ कमाई कर लें. मैंने दो लाख रुपए लगाने का फैसला किया. चारों तरफ जियो की धूम थी, तो लगा कि रिलायंस में कमाई की गारंटी है. फिर मन में आया कि एनबीएफसी के शेयर तेजी से चढ़ रहे हैं, सो इंडियाबुल्स में निवेश भी सही रहेगा.
अब छोटे झुनझुनवाला की त्रासदी देखिए. मेरे शेयर ब्रोकर ने जानकारी दी कि मेरा निवेश अब 2 लाख से घटकर 1.66 लाख रुपए ही रह गया है. मतलब एक महीने में 34,000 रुपए स्वाहा. चला था चौबे छब्बे बनने, दूबे बन गया.
अपनी छवि बचाने के लिए मुझे जानना था कि आखिर हो क्या रहा है. मुझे बिजनेस चैनलों पर आने वाले तोते की तरह रटी-रटाई बातें बोलने वाले एक्सपर्ट पर बिल्कुल भरोसा नहीं है. वो वही घिसी-पिटी लाइनें दोहराते हैं— करेक्शन खरीदने का शानदार मौका होता है, फंडामेंटल्स मजबूत हैं, इसीलिए तेजी से रिकवरी होगी, लॉन्ग टर्म सोचिए...
मैंने अपने ब्रोकर से पूछा, तो जवाब आया- रुपया कमजोर हो रहा है, कच्चा तेल महंगा हो रहा है, करंट अकाउंट का घाटा बढ़ रहा है, विदेशी निवेशक पैसा निकाल रहे हैं, इसीलिए शेयर बाजार गिर रहा है. कुछ समझ में नहीं आया.
जानना जरूरी था, तो मैंने पड़ोसी के ज्ञानी चाचा को फोन किया. वो एक बड़े अर्थशास्त्री हैं.
“बड़ा आसान है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है. निवेशकों को लग रहा है कि अमेरिकी ट्रेजरी में निवेश फायदे का सौदा है. सो निवेशक दूसरे बाजारों से पैसा निकालकर अमेरिकी ट्रेजरी में निवेश कर रहे हैं, इसीलिए भारत से भी डॉलर निकल रहा है. डॉलर की कमी होगी, तो वो महंगा होगा, इसीलिए डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है.” अर्थशास्त्री ने समझाया.
लेकिन उसके आगे की कहानी डरावनी लगी. उन्होंने कहा कि इसी साल रुपया 14 परसेंट कमजोर हो चुका है. इसका मतलब हमारा हर इंपोर्ट सिर्फ एक्सचेंज रेट की वजह से कम से कम 14 परसेंट महंगा हो गया. इनमें कच्चा तेल और गोल्ड बड़े आइटम हैं. चूंकि हम एक्सपोर्ट की तुलना में काफी ज्यादा इंपोर्ट करते हैं, हमारा व्यापार घाटा तेजी से बढ़ रहा और इसकी वजह से रुपए पर और दवाब बढ़ रहा है.
अब देखिए, रुपया कमजोर और कच्चा तेल 4 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर. मतलब आग में घी. पेट्रोल-डीजल महंगा, ट्रांसपोर्ट महंगा और इसी वजह से सबकुछ महंगा. महंगाई बढ़ेगी, तो ब्याज दरें भी बढ़ेंगी. और इस सबसे अर्थव्यवस्था में सुस्ती आएगी. ऐसे में शेयर बाजार कैसे बढ़ सकता है?
अर्थशास्त्री से बात करके ये भी समझ में आ गया कि विदेश घूमना क्यों महंगा हो गया. जिस किसी चीज के लिए पेमेंट डॉलर में करना है, वो अब महंगा होगा. फिर भी ये समझ नहीं आया कि मेरे दुकान पर कारोबार इतना सुस्त क्यों है. अर्थशास्त्री ने आंखें खोलीं.
“आपने दिल्ली में किसानों के विरोध का लाइव टेलीकास्ट देखा. किसान कराह रहे हैं, क्योंकि उनको उचित दाम नहीं मिल रहा है. गांवों में मजदूरी नहीं बढ़ रही है. जीएसटी की वजह से छोटे कारोबारियों की लागत बढ़ गई है. नौकरी के मौके बढ़ नहीं रहे हैं. ऐसे माहौल में दुकान पर खरीदारी कैसे बढ़ेगी?” अर्थशास्त्री ने बताया
कुल मिलाकर, मुझे जो समझ में आया, उसके हिसाब से शेयर बाजार से तत्काल उम्मीद मैं छोड़ दूं. विदेश में छुट्टी मनाने के आइडिया को मैंने दफन कर दिया है. धनतेरस पर आईफोन का नया मॉडल खरीदने का प्लान भी कैंसिल.
मेरे मन में बस एक सवाल है. मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?
(यह एक छोटे कारोबारी की मनगढ़ंत कहानी है)
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